मोहन सेठ की सीट पर राजीव सेठ की नजर...
हर विधानसभा चुनाव में रिकिट के लिए जी तोड़ कोशिश करने वाले भारतीय जनता पार्टी के राजीव सेठ की नजर अब मोहन सेठ की खाली हुई दक्षिण विधानसमा सीट पर लग गई है। यहां उपचुनाव होना है। वैसे तो इस सीट के लिए भाजपा के भीतर ही दर्जन भर दावेदार है और कहा जा रहा है कि जिस तरह से मोहन सेठ को किनारे लगाया गया है उसके बाद एक बात तो तय मानी जानी चाहिए कि यहाँ उसे टिकिट मिलेगी जो बृजमोहन अग्रवाल का विरोधी भले ही न हो कम से कम करीबी न हो यानी मोहन सेठ जिसे उँगली में न नचा पाये।
कहा जाता है कि वैसे तो सभी दावेदार अपने अपने ढंग से टिकिट के लिए जोर आजमाईश कर रहे है लेकिन इन दावेदारों में अशोका रतन वाले सेठ यानी राजीव अग्रवाल ने जोर आजमाईश में कोई कसर बाकी नहीं रखा है। खल्लारी से लेकर रायपुर ग्रामीण से पहले ही दावेदारी कर चुके राजीव सेठ ने संगठन का काम भी किया है और कहा जाता है कि पैसे के दम पर उन्होंने न केवल जिला भाजपा के अध्यक्ष बने बल्कि कई तरह के ज़मीन विवादों को भी निपटाया है। क्या है बिल्डर्स का खेल इस पर चर्चा लंबी है लेकिन उनकी टिकिट की गाड़ी कहां अटक जाती है यह शोध का विषय है।
ऐसा भी नहीं है कि वे टिकिट के मामले में निरंक हो। पार्टी ने उन्हें दो-दो बार टिकिर दी है वह भी पार्षद का लेकिन वे कभी चुनाव नहीं जीत पाये।
दो बार पार्षद चुनाव नहीं जीत पाने वाले राजीव सेठ को लगता है कि पार्षद का चुनाव छोटा चुनाव है और वे हार इसलिए गये, क्योंकि वार्ड के लोग उन्हें इच्छी तरह से जानते है, और विधानसभा बड़ा चुनाव है दूसरे वार्ड वाले उन्हें कम जानते है इसलिए' 'कमल' के ज़रिए चुनाव जीत ही जायेंगे।
अब ये अलग बात है कि अभी शहर इतना बड़ा भी नहीं हुआ है कि राजीव सेठ क्या हैं लोगों से छिपा हुआ रह जाये वे क्या बला है।हालाँकि इस बार वे निगम मंडल के लिये भी ताक़त लगाये हुए है लेकिन पार्टनर के कारण यह भी बाधित न हो जाये।
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