रविवार, 31 अक्तूबर 2010

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस पर हार्दिक बधाई

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस पर हार्दिक बधाई 

शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

सीएम साहब! बधाई हो 10 साल का...

1 नवम्बर को छत्तीसगढ़ के स्थापना का दस साल पूरा हो जाएगा। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बधाई हो। छत्तीसगढ़ के स्थापना का दस साल पूरा हो गया। अखबार वाले भी खुश है। उन्हें भी बधाई हो। फिर राज्योत्सव के नाम पर लाखों रुपए के विज्ञापन मिल जाएंगे। सरकारी खजानों से राज्योत्सव की धूम इस बार जोरदार रहेगी। रहनी भी चाहिए। सलमान खान जैसे सुपर स्टार को बुलाया जा रहा है। सब कुछ ठीक ठाक है। राज्य इन दस सालों में बहुत तरक्की की है। फिर क्यों नहीं राज्योत्सव मनाना चाहिए। यही बहाने हम दूसरे प्रदेश की संस्कृति को जान समझ लेंगे। आखिर आम छत्तीसगढिय़ा फिर कब देख पाएगा सलमान खान को।
डा. रमन सिंह सबसे ज्यादा बधाई के पात्र हैं सलमान खान को दिखाने के लिए। संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को छत्तीसगढिय़ा बेवजह कोसते रहते हैं। अरे सुआ नाचा गम्मत तो रोज देखते रहते हैं। बाहर के कलाकारों को देखने समझने का तो यही मौका है। फिर छत्तीसगढ़ कोई गरीब प्रदेश तो है नहीं कि बाहर के कलाकारों को मनमाने ढंग से रुपए न दे सके। बाहर के कलाकारों को भी तो लगना चाहिए कि हमारे प्रदेश के लोग कितने उदार है स्वयं फ्री फंड में काम करते हैं लेकिन मेहमानों को उनकी औकात से अधिक पैसा दे सकते हैं।
अखबार वाले बेवजह यहां के कुछ लोक कलाकारों को प्रश्रय देते हैं। छोटी सोच को तो अखबार में जगह ही नहीं मिलनी चाहिए और न ही सरकार के खिलाफ ही कुछ छापना चाहिए। पत्रिका ने आकर सब गड़बड़ कर दिया वरना सब गुड-गॉड चल रहा था। दो की लड़ाई में जबरदस्ती छापना पड़ रहा है। लेकिन सीएम डॉ. रमन साहब भी कम नहीं है वे भी जानते है कि ये सब जो घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है वह कार्रवाई करने के लिए नहीं बल्कि अपनी कमीज को ज्यादा सफेद बताने की लड़ाई है। 10 साल बिना कार्रवाई के निपट गया। आगे का साल भी निपट जाएगा। बताते रहो मंत्रियों को दुष्ट और अधिकारियों को भ्रष्ट क्या फर्क पड़ता है? कार्रवाई ही जब नहीं होनी ही है। सीएम साहब! ठीक सोचते हैं हर विभाग के भ्रष्ट कारनामों को केवल अखबार के छपने के आधार पर कार्रवाई की जाती रही तो चल गया विभाग।
अब पीएचई का ही मामला ले पत्रिका बेवजह पीछे पड़ गया है। कमल विहार कितनी अच्छी योजना है और अच्छे काम में थोड़ी बहुत गलती होती ही है उसको तिल का ताड़ बना रहे हैं। गली-गली में बाबूलाल गली छाप पर नवभारत क्या साबित करना चाहता है। बेवजह शराब के खिलाफ अखबार लिख रहा है। अब शराब पीकर नशे में कोई हत्या कर दे तो इसमें डॉ. साहब की कहां गलती है वे तो ठेका दे दिए हैं अब बेचने वाले जाने और पीने वाले? जबरदस्ती कहा जा रहा है कि शराब की वजह से हर माह सौ-दो सौ लोग मार रहे हैं। आंकड़े बता कर आम लोगों को भ्रमित करने वालों को तो पकड़-पकड़ कर पिटना चाहिए। गृहमंत्री ननकीराम कंवर की नाराजगी डीजीपी विश्वरंजन से हैं और वे गुस्सा एसपी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहकर उतार रहे हैं इतने में भी बात नहीं बनी तो थानेदारों पर आरोप लगाने लगे कि वे शराब माफियाओं के इशारे पर चल रहे हैं।
नगर भैय्या बृजमोहन अग्रवाल के तो पीछे ही पड़ गए हैं लोग। जब कांग्रेस के समय सडक़ उखड़ती थी तब कोई नहीं बोलता था और न ही शिक्षा व्यवस्था पर ही सवाल उठाता था। कोई ये नहीं कहता कि एक आदमी आधा दर्जन से ज्यादा विभाग मुस्तैदी से संभाल रहा है। उल्टे उसके विभाग के विवादास्पद अधिकारियों को उनसे संबंध जोडऩा कितना उचित है। जब विभाग में विवादास्पद और भ्रष्ट लोगों का जमावड़ा हो तो कोई इन्हें हटाकर कैसे काम कर सकता है आखिर विभाग चलाना कोई मजाक तो नहीं है।
अब किसानों के नाम पर बेवजह लोग राजनीति कर रहे हैं। अरे भई चुनाव था इसलिए कह दिया 270 रुपए बोनस देंगे। चुनाव में तो ऐसा बोला जाता है। फिर अब किसान किसान कहां रह गए हैं। लोग धंधा-नौकरी कर रहे हैं। गांव-गांव तक सडक़ें इसलिए तो बनाई है कि किसान भी शहर का दर्शन कर सके। अब चप्पू साहू खुद किसान है इसके बाद भी लोगों को उन पर भरोसा नहीं है वे जानते हैं कि किसानों को बोनस से कुछ हासिल नहीं होने वाला। वे जानते हैं कि खेती से सिर्फ घाटा होना है इसलिए खेती की जमीन उद्योगों को दी जा रही है। वे जानते हैं कि यूरिया से खेत बर्बाद होता है इसलिए तो वे दुकानों की अनियमित सप्लाई पर ध्यान नहीं देते। बेवजह लोग किसान मोर्चा बनाकर राजनीति कर रहे हैं। लोगों को तो बहाना मिल गया है कि बृजमोहन अग्रवाल हरियाणवी हैं इसलिए छत्तीसगढ़ की उपेक्षा कर रहे हैं। कोई ये नहीं देख रहा है कि रात-रात भर जाग कर आदमी मेहनत कर रहा है। मंत्री है भई कोई मजाक नहीं है कि सुबह से लोगों से मिलने निकल जाए।
डॉ. साहब तो गांधी जी के सच्चे अनुयायी है इसलिए वे किसी की बात ही नहीं सुनते। गांधी दर्शन से लबरेज डॉ. साहब ने गांधी जी के तीन बंदरों के सिद्धांत को आत्म सात कर लिया है बुरा न देखो, बुरा न सुनों, बुरा न बोलो? कभी डाक्टर साहब के मुंह से किसी के लिए अपशब्द सुना है फिर वे क्यों किसी अधिकारी के खिलाफ सुनेंगे और मंत्री तो उनकी अपनी पार्टी के हैं? जो लोग नाराज है या भ्रष्टाचार से दुखी है वे बेवजह दुखी है घर का मामला है मना लिया जाएगा। और रहा सवाल देखने का तो डॉ. साहब ने तो सत्ता पाते ही आंखे बंद कर ली थी क्योंकि वे जानते है आंख खोलते ही सत्ता की बुराई दिखेगी और पिछली सरकार के काले कारनामों पर कार्रवाई करनी पड़ जाएगी। इसलिए उन्होंने तब से आंखे बंद कर ली है और फिर कांग्रेसी कोई पराये थोड़ी न है? पता नहीं कब सत्ता बदल जाए तो? इसलिए बदले की राजनीति तो होनी ही नहीं चाहिए? आखिर कांग्रेसी भी तो सत्ता की राजनीति ही कर रहे हैं। डॉ. साहब भी जानते हैं कि कांग्रेसी गांधी जी के सिद्धांतों पर चलने वाली पार्टी है। वह भी न बुरा देखती है न सुनती है न बोलती है? इसलिए चिंता आम लोगों की करना चाहिए और इसकी चिंता पूरी सिद्दत से की जा रही है एक-दो रुपया किलो चावल दे दो। पेट भरा रहेगा तो सब खुश और जो खुश नहीं है उनके लिए गांव-गांव में दारू तो है ही। दस साल में सब गुड-गॉड है अमन चैन शांति है इसलिए एक बार फिर डॉ. साहब और उसकी पूरी टीम को बधाई!

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

छवि में रमन आगे तो भ्रष्टाचार में मोहन


ईमानदारी में हेमचंद ने बाजी मारी
कांग्रेस में जोगी का जवाब नहीं
भाई-भतीजा वाद में बैस दूसरे नंबर पर
 छत्तीसगढ़ के दस साल को लेकर कराए गए सर्वे में छवि के मामले में मुख्यमंत्री रमन सिंह अब भी दूसरे नेताओं से काफी आगे है जबकि भ्रष्टाचार और अनियमितता के मामले में बृजमोहन अग्रवाल के विभाग सबसे ऊपर है। भाई-भतीजावाद के मामले में जहां बृजमोहन अग्रवाल टॉप पर है वहीं भाजपा सांसद रमेश बैस दूसरे नंबर पर है। कांग्रेसियों में अभी भी जोगी नंबर वन है जबकि दूसरे नंबर पर वीसी शुक्ल है।
छत्तीसगढ़ ने इन दस सालों में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकार देखी है। चौतरफा भ्रष्टाचार ने जहां विकास को अवरुद्ध किया है वही नेताओं की करतूत को लेकर भी आम आदमी दुखी है। शराब लॉबी की दादागिरी और सरकारी जमीनों के बंदरबांट ने छत्तीसगढ़ के भविष्य को आशंकित कर दिया है। ऐसे में लोगों से जब छत्तीसगढ़ के दस सालों को लेकर सवाल पूछे गए तो लोगों का आक्रोश सामने आना स्वाभाविक था। सर्वे के मुताबिक अब भी रमन सिंह छवि के मामले में छत्तीसगढ़ के तमाम नेताओं से आगे चल रहे हैं। उनके ठीक पीछे विद्याचरण शुक्ल, मो. अकबर का नाम है। हालांकि रमन सिंह की छवि को लेकर लोगों ने उन्हें नंबर वन जरूर बताया है लेकिन ढीला परसन की वजह से अफसरशाही और भ्रष्टाचार से लोगों की नाराजगी भी सामने आई है।
सबसे ईमानदार मंत्री को लेकर पूछे गए सवाल में हेमचंद यादव सब पर भारी पड़े जबकि उनके ठीक पीछे लता उसेंडी का नाम सामने आया है। अमर अग्रवाल को लोगों ने तीसरे नंबर पर रखा है। इसी तरह सबसे भ्रष्ट मंत्री व विभागों के सर्वे में पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभागों के नाम सामने आए है। पीडब्ल्यूडी, पर्यटन एवं संस्कृति व शिक्षा विभाग में सर्वाधिक भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में भारी आक्रोश है। यहां विवादास्पद अफसरों श्रीमती बाम्बरा, श्रीमती तवारिस, एमजी श्रीवास्तव, अजय श्रीवास्तव तक के नाम लोगों की जुबान पर है। दूसरे नंबर पर डॉ. रमन सिंह के खनिज, विद्युत व जनसंपर्क विभाग का नाम लिया गया। जबकि कश्यप का पीएचई व विक्रम उसेंडी के वन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की खबर भी लोगों के जुबान पर है।
राजनीतिक पदों का दुरुपयोग परिवार द्वारा करने या मंत्रियों द्वारा परिवार वाद के मामले में भी पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल सब पर भारी पड़े है। मंत्री बनने के बाद परिवार के लोगों द्वारा पेट्रोल पंप व्यवसाय में आने, लोडिंग अनलोडिंग में मोनोपल्ली के अलावा व्यापारी वर्ग में प्रभाव स्थापित करने के अलावा छोटे भाई योगेश अग्रवाल को राजनैतिक संरक्षण और जमीन के धंधे में रूचि को लेकर बृजमोहन अग्रवाल का नाम सबसे आगे है। दूसरे नंबर पर भाजपा सांसद रमेश बैस का नाम लिया जा रहा है। भाई को निगम अध्यक्ष के अलावा रिश्तेदारों को प्राथमिकता के आरोप रमेश बैस पर भी लगे हैं। कांग्रेस में अभी भी पसंदीदा नेता में अजीत जोगी टॉप पर है जबकि इसके बाद वीसी शुक्ल का नंबर है। विपक्षी भूमिका को लेकर पूछे गए सवाल पर रविन्द्र चौबे को मिठलबरा की उपाधि दी गई व उसे महेन्द्र कर्मा से भी कम अंक दिए गए। जबकि मो. अकबर व देवजी भाई पटेल का नाम सबसे आगे रहा।
इसके अलावा लोगों ने कई रोचक जानकारी भी दी और छत्तीसगढ़ के विकास के लिए लोगों ने सुझाव भी दिए। खासकर बड़े शहरों की यातायात को लेकर लोगों का कहना था कि चौड़ीकरण के साथ पार्किंग की भी व्यवस्था करनी चाहिए और लीज रद्द कर पार्किंग की जानी चाहिए। शराब नीति की भी आलोचना की गई। हालांकि शराब बंदी से ज्यादा लोगों का कहना था कि शराब दुकान शहर के बाहर होनी चाहिए। लोगों का यह भी सुझाव था कि जिन नेताओं व अधिकारियों का राजधानी में मकान हो उन्हें सरकारी बंगला नहीं दिया जाना चाहिए। जबकि कमल विहार सहित सरकारी जमीनों व कृषि जमीन के उपयोग पर भी लोगों ने सरकार की भूमिका पर नाराजगी जताई।

बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

ये कौन सी लड़ाई है अखबारों की...

पिछले हफ्ते फिर पत्रिका के कर्मचारियों ने भास्कर की गाड़ी को चोरी का बंडल ले जाते पकड़ा। प्रशासन हैरान है पर कार्रवाई नहीं कर रहा है। आखिर भास्कर का अपना रुतबा है। वह कानून तोड़े तब भी सरकार में हिम्मत नहीं है कि वह कुछ कर सके। दूसरा कोई होता तो दफा 279 लगाकर अंदर कर दिया जाता और पत्रिका जैसे दमदार होता तो लूट की धाराएं भी लग जाती। लेकिन मामला भास्कर का है इसलिए पुलिस भी चुप है। लड़े-मरे क्या करना है। मर्डर-वर्डर हो तब कार्रवाई होगी। मारपीट तो हो ही चुकी है। वैसे भास्कर पर यह आरोप नया नहीं है। पहले उसकी लड़ाई नवभारत और देशबंधु से हो चुकी है। नवभारत का तो वह कुछ नहीं बिगाड़ पाया लेकिन बेचारा देशबंधु घुन की तरह पीस गया।
वैसे भास्कर पर एक और आरोप लगे हैं छत्तीसगढ़ के पत्रकारों की छुट्टी कटौती का। होली तक में भास्कर निकल चुका है। इसके अलावा पत्रकारिता को कलंकित करने का आरोप भी कम नहीं है। दो-पांच सौ में पत्रकार मिलते हैं यह जुमला भी काफी चर्चा में रहा है। कहते हैं भास्कर के आने के पहले छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता के स्तर को लेकर कसमें खाई जाती थी लेकिन उसके आने के बाद जिस तरह से परिवर्तन आया है वह किसी से छिपा नहीं है। अब तो खबरें भी कालम सेमी में बिकने लगी है।
जब रिपोर्टर को जीआरपी
में बैठना पड़ा...
नया अखबार आया है तो कुछ नए लोग भी पत्रकार बन गए है। ऐसा ही एक पत्रिका का राहुल जैन है। पिछले हफ्ते वह रिपोर्टिंग के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचा तो जीआरपी वाले उन्हें पकड़ कर थाने ले आए। वह चिखता रहा कि वह पत्रकार है लेकिन साहब के आने तक बिठा दिया गया। कुछ बड़े पत्रकारों के हस्तक्षेप के बाद ही उसे जाने दिया गया।
जीम का असर
पिछले हफ्ते मेकाहारा के गार्ड ने पत्रिका के फोटोग्राफर से उलझने की गुस्ताखी की और वह पिटा गया। वैसे हीरा को देखकर कोई नहीं कहेगा की वह पिटाई कर सकता है वह पिटा भी नहीं। हीरा के साथ हुई घटना का दूसरे को पता चला तो अन्य फोटोग्राफर पहुंचकर यह कारनामा कर गए। अब प्रेस क्लब में जिम खुल गया है। पत्रकार अब माफी नहीं मंगवाते तुरंत हिसाब करते हैं। सावधान...।
और अंत में...
जनसंपर्क अधिकारी स्वराज दास की मनमानी की चिट्ठी अखबार में क्या छपी। हालत खराब हो गई। आनन-फानन में फोटोग्राफरों की नियुक्ति का फरमान जारी हो गया। लेकिन आदत से मजबूर मनमानी अब भी जारी है। चुन-चुन कर चहेतों को ही कॉल लेटर भेजा गया। प्रतिभाशाली फोटोग्रॉफर अपनी डिग्री को कोस रहे हैं।

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

फ्रांस के युवाओं का कमाल...

पिछले हफ्ते फ्रांस से खबर आई कि वहां के युवाओं ने सडक़ पर निकल कर न केवल हंगामा किया बल्कि आगजनी से लेकर तोड़-फोड़ भी जमकर की। फ्रांस की पुलिस को उन्हें संभालने में पसीने छूट गए। ऐसा नहीं है कि हंगामा करने वाले युवा बगैर मतलब के सडक़ पर उतर आए। दरअसल ये युवा फ्रांस सरकार के उस फैसले के खिलाफ सडक़ पर उतर आए जिसमें सरकार ने सेवानिवृत्ति की आयु 60 साल से 62 साल कर दी। लालफीता शाही का दबाव फ्रांस में भी जबरदस्त है और सरकार चंद अफसरों के इशारे पर सेवानिवृत्ति की आयु 2 साल बढ़ाने का निर्णय लिया था। फ्रांस के युवाओं का कहना था कि इस तरह से सरकार का निर्णय नौकरी की निर्धारित आयु सीमा के अंतिम सालों पर खड़े युवाओं के लिए मौत का फरमान है। युवाओं के अपने तर्क थे। कुछ ने इसे वोट बैंक करार दिया तो कुछ ने ऐसे कर्मचारियों का षडय़ंत्र करार दिया जिनके बच्चे स्टेबलीस हो चुके हैं। फ्रांस के युवाओं के इस प्रदर्शन से सरकार को झुकना पड़ा है।
भारत में भी यही सब कुछ हो रहा है। युवाओं को छला जा रहा है। खासकर छत्तीसगढ़ में सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 62 किए जाने की मांग शुरु हो गई है। लेकिन युवाओं का यहां पता नहीं है। हालांकि कर्मचारियों का एक वर्ग ही इसका विरोध कर रहा है लेकिन 60 से 62 कराने के षडय़ंत्र में शामिल लोगों की कमी नहीं है। यहां तो युवाओं को कांग्रेस व भाजपा ने लालीपॉप थमाकर अपने पाले में कर लिया है कोई एनएसयूआई के बहाने कांग्रेस की राजनीति कर रहा है तो कोई अभाविप के बहाने भाजपा की राजनीति कर रहा है। छात्र नेता अपने आकाओं के इशारे पर काम करते हैं। न उन्हें शिक्षा के व्यवसायीकरण की चिंता है और न ही स्कूल-कॉलेज की मनमानी का ही ख्याल है। यहां तक की कमी और जर्जर भवन के खिलाफ भी छात्र नेता नहीं बोलते।
इसी रायपुर की बात है जब युवाओं पर राजनीति हावी नहीं थी तब टॉकीज में टिकिट की कीमत बढ़ा देने या सिलाई दर बढ़ जाने पर छात्र नेता सडक़ पर उतर आए थे। अब वह सब नहीं दिखता। भाजपा या कांग्रेस का पट्टा डाले युवाओं का जोश चंद रुपयों में ठंडा पड़ चुका है। ऊपर से शिक्षा के व्यवसायीकरण और भारी कोर्स ने उन्हें स्वार्थी बना दिया है। छत्तीसगढ़ शांत प्रदेश जल रहा है। चौतरफा लूट मची है। लेकिन कोई कुछ नहीं बोल रहा है युवाओं का जोश ठंडा पड़ चुका है अब तो मशहूर ‘दुष्यंत’ भी दुखी होकर सोचते होंगे कि क्या वे इन्हीं युवाओं के लिए लिखे थे कि
‘कैसे आकाश में सुराख नहीं होगा
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।’

सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

अब आम आदमी क्या करे...

पिछले दिनों ठाकुर प्यारे लाल सिंह और हरि ठाकुर की प्रतिमा के सामने जो कुछ भी हुआ वह अराजकता की स्थिति मानी जा रही है। देवांगन समाज के साथ सर्व छत्तीसगढिय़ा समाज ने कानून-व्यवस्था को ठेंगा बताकर जीई रोड पर घंटो हंगामा किया। ये लोग अचानक सडक़ पर नहीं आए थे। बुनकर समाज की जमीन को कब्जे से मुक्ति दिलाने का आंदोलन एकाएक उग्र नहीं हुआ था। उनकी सालों पुरानी मांग रही है। बालकृष्ण अग्रवाल इस शहर के लिए नया नाम नहीं है। और न ही उसके कारनामें से ही लोग अनजान रहे है। अजीत जोगी से लेकर बृजमोहन अग्रवाल से उनके मधुर संबंध जग जाहिर रहे हैं। अग्रोहा सोसायटी से लेकर अपहरण कांड के कितने ही गवाह हैं। लेकिन सरकार ने कभी भी उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं की। पुलिस भी थर-थर कांपती नजर आती है।
मैं एक बात सरकार से पूछता हूं कि जब कानून में स्पष्ट प्रावधान है कि लीज की जमीन का और लीज नहीं हो सकता फिर भी देवांगन समाज को न्याय मिलने में देर क्यों हो रही है। ऊपर से वहां शराब दुकान का खुलना क्या आम लोगों को चिढ़ाने वाला काम नहीं है। मुख्यमंत्री स्वयं सोचे कि अधिकारी उनकी बात मानते हैं या गुण्डा मवालियों या शराब माफियाओं की। तभी तो स्पष्ट निर्देश के बाद न तो तत्कालीन कलेक्टर संजय गर्ग की ही शराब दुकान हटाने की हिम्मत हुई और न ही वर्तमान कलेक्टर डॉ. यादव की ही हिम्मत हो रही है। देवांगन समाज ने पहले ही चेता दिया था कि वे अपनी मांग को लेकर 20 तारीख को रैली व सभा कर रहे हैं। आमंत्रण मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को भी था लेकिन वे नहीं पहुंचे। लोग आक्रोशित तो थे ही। ऐसे में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी क्या सिर्फ पुलिस की है।
यानी शराब माफियाओं से लेकर अपराधियों को संरक्षण नेता दे और मामला बिगड़ जाए तो दोष पुलिस पर मढ़ा जाए। ऐसा न्याय छत्तीसगढ़ के अलावा और कहां होगा? देवांगन समाज का यह आंदोलन एकाएक उग्र नहीं हुआ और न ही मठपुरैना के लोग ही एकाएक उत्तेजित हुए थे। सरकार की मनमानी और न्याय की धीमी रफ्तार की वजह से लोग कानून व्यवस्था अपने हाथ में लेने लगे है। मठपुरैना में मासूम छात्र मनीष की हत्या सरकार के लिए शर्मनाक है। गांव-गली में शराब दुकान व अवैध शराब की गंगा बहाई जा रही है। मंत्री से लेकर अधिकारी अपराधियों को संरक्षण दे रहे हैं। शिकायत करने वाले या तो पुलिस की झिडक़ी का शिकार हो रहे हैं या गुण्डा मवाली का। ऐसे में जब भीड़ आक्रोशित हो तो क्या होगा? यह राजधानी की स्थिति है तो प्रदेश के सुदूर इलाकों की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
सरकार को भी सोचना होगा कि छत्तीसगढ़ जैसे सम्पन्न राज्यों में पूरी पीढ़ी को बर्बाद करने के एवज में शराब का राजस्व कितना मायने रखता है? सरकारी जमीनों के बंदरबांट का आखरी हिस्सा क्या विवाद नहीं है? फिर क्यों इस तरह की लीज दी जानी चाहिए। सवाल सब का है कि क्या सरकार सिर्फ मनमानी के लिए होती है या लोगों की तकलीफों को दूर करने के लिए? सवाल यह भी है कि जिम्मेदारी किसकी है जब अधिकरी मुखिया का ही कहना न माने।
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रविवार, 24 अक्तूबर 2010

राज्योत्सव के नाम पर अपराधी पर लाखों रूपया खर्च




दमदार बृजमोहन की दबंगई फिर विवाद में...भाजपाई नैतिकता पर सवाल...राजनैतिक सुचिता और नैतिकता का राग अलापने वाली भाजपा सत्ता पाते ही किस तरह से कारनामें कर रहे है यह किसी से छिपा नहीं है ताजा मामला राज्योत्सव के बहाने लुटोत्सव का है जिसमें संस्कृति विभाग के द्वारा विवादास्पद और काले हिरण को मारने के आरोपी सलमान खान पर लाखों रुपए खर्च  कर रही है। आम लोग इसकी कटु आलोचना कर रहे हैं कि किसी अपराधिक तत्व को सरकार कैसे मंच दे सकती है?ज्ञात हो कि फिल्म कलाकार सलमान खान पर एक नहीं कई आरोप है। सोए हुए लोगों पर कार चढ़ाने सहित विलुप्त प्राय या कहे संरक्षित काले हिरण के शिकार मामले के वे आरोपी है और उन्हें जेल तक जाना पड़ा है। फिल्मी अफेयर से लेकर बात
इधर सलमान खान को बुलाने को लेकर एक ओर कुछ युवा वर्ग उत्साहित है तो एक वर्ग ऐसा भी है जो इसका यह कहकर विरोध कर रहे हैं कि इतनी बड़ी राशि खर्च कर अपराधिक छवि वाले अभिनेता को बुलाने का कोई औचित्य नहीं है। एक ने तो मंत्री की करतूत पर ही सवालिया निशान लगा दिया। संजय शर्मा नामक इस युवक का कहना था कि विवादास्पद रहना और विवादास्पद छवि वालों से संबंध रखना मंत्री की आदत बन चुकी है। सलमान खान को बुलाने का फार्मूला किसका था और क्यों बुलाया जा रहा है इसे लेकर भी तीखी प्रतिक्रिया है। कहा जाता है कि एक मंत्री भाई की निजी रूचि के चलते यह सब तय किया गया है। बहरहाल इस मामले में आम लोगों की तीखी प्रतिक्रिया तो है ही। कांग्रेसियों की चुप्पी भी आश्चर्यजनक है।
-बात में कई लोगों पर हाथ उठाने को लेकर भी सलमान खान विवादों में रहे हैं। हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक संस्कृति विभाग ने सलमान खान को 50 लाख रुपए का भुगतान कर रहा है और यह मंत्री परिवार और संस्कृति आयुक्त की निजी रूचि के चलते ही हो रहा है।सलमान का दस का दम
खास आरोप या अपराध
1. 26 27 सितम्बर 1997 राजस्थान में काले हिरण का शिकार।2. 2 अक्टूबर को 50 हजार के बांड पर रिहा।3. 1998 में सोमी अली का आरोप।4. 1999 में एश्वर्या रॉय परिवार का आरोप।5. 28 सितम्बर 2002 को फुटपाथ पर सोए लोगों पर चढ़ाई कार। एक मृत तीन घायल।6. सलमान को रोड एक्सीडेंट में जमानत 29 सितम्बर को।7. शराब पीकर गाली गलौच, मारपीट।8. 12 मार्च 2006 को चिंकारा मामले में एक साल सजा मिली।9. 10 अप्रैल 2007 को चिंकारा मामले में पांच साल की सजा।10. जेल में सलमान खान बने कैदी नंबर 210

सेना के जवानों का शानदार प्रदर्शन की तस्वीर



शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

चुनौती देकर पीछे हटना...

छत्तीसगढ़ में वैसे तो अखबार का व्यवसाय सबसे चोखा धंधा है इसकी आड़ में बड़े बड़े खेल खेले जा रहे हैं जमीन से लेकर खदान और उद्योग से लेकर लोगों को ठगने में अखबार की भूमिका जबरदस्त रुप से हावी है। हाल ही में आए अखबार ने तो यहां पहले से स्थापित अखबारों को चुनौती दी कि हम खबरें नहीं गढ़ते, हालात बदलते हैं, जनता की आवाज उठाने वाला कौन जैसे जुमले से शुरु हुआ अखबार अब उसी ढर्रे पर उतर आया है। मंत्रियों के प्रति निष्ठा ने गोल मोल खबरें देने मजबूर कर दिया और उसकी चुनौती को लेकर दूसरे अखबारों ने जो कदम उठाया यह नया नवेला अखबार उतना भी नहीं कर पाया है। जनता जान गई अरे इसे भी तो धंधा ही करना है।
हग--मूत ही रहेंगे?
कभी अर्जुन सिंह का खास रहकर वीसी शुक्ला के पीछे पड़े रहने वाले इस अखबार की अपनी कहानी है। कहने को तो यह दलाली करने वाले अखबार की श्रेणी में भी नहीं आते हैं और खिलाफत भी जमकर करते हैं लेकिन चमचाई में भी इनकी सोच सारी लकीरों को बौनी साबित कर देती है अब 15 अक्टूबर को ही देख लिजिए? है किसी में इतना घूसने की हिम्मत?रंगा-बिल्ला की सेटिंग-
नागपुर में बंटवारा क्या हुआ रायपुर में रंगा
-बिल्ला की निकल पड़ी है। प्रतिष्ठित माने जाने वो इस अखबार के संपादक-प्रबंधक यानी रंगा-बिल्ला सेटिंग में उतर आए हैं। जब पत्रिका उसके दुश्मन भास्कर को ही निपटाने में पूरी ताकत लगा दे तो फिर इन्हें क्या फर्क पडऩा है। वेटरों से मार खाकर भी शर्म बेचने वाले इन रंगा-बिल्ला को पैसा देने वाले कुछ भी कह देते हैं लेकिन इसका कोई फर्क नहीं पड़ता?
लुक में बेचैनी
डाल्फिन स्कूल के शिक्षकों ने अपने ही छात्र से अप्राकृतिक कृत्य क्या किया नेशनल लुक के रिपोर्टरों की बेचैनी बढ़ गई है। उन्हें जवाब देते नहीं बन रहा है कि यह सब कैसे हो गया आखिर तनख्वाह भी तो स्कूल के पैसे ही मिलती है। कुछ तो पाप न लगे इसलिए मंदिरों में मत्था टेक रहे हैं
?
ड्रेस कोड के बाद
जूता जरूरी
...

हरिभूमि में हर शनिवार को सफेद टी शर्ट पहनना जरूरी है बेचारे इस बैंडपार्टी से बेचैन है कि पत्रिका में अप टू डेट रखने की मुहिम छिड़ गई है भले ही वेतन कम मिले जूता पहनना जरूरी है वह भी चमकदार व साफ सुथरा हो?
और अंत में...
घर का भेदी की कहावत इन दिनों जनसंपर्क में पूरी तरह हावी है। यहां की हर बात चर्चा में है। चर्चा इस बात की भी है कि एक अधिकारी जो वर्तमान में निगम में है वह किस तरह से संवाद को चूना लगा रहा है और पैसा अखबार में लगा रहा है नाम किसी भी भिखारी का दो पता तो लोगों को चल ही जाता है।

पर कोई बोलता नहीं...

पूरे छत्तीसगढ़ को मालूम है कि यहां उद्योगपतियों ने सरकार के साथ मिलकर या सरकार के संरक्षण में जल
प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने लगातार कम होती जमीनों और उद्योगों की दादागिरी व सरकार की मनमानी पर ऐसे चिंता जता रहे थे मानों यह सब नई बात हो। अजीत जोगी नि
, जंगल और जमीन को लूट रहे हैं। अवैध कब्जा की बात हो या अवैध उत्खनन सब कुछ सरकार की जानकारी में हो रहा है। आम लोग तो कभी बोलते नहीं है और जब कोई बोलता है तो उसे वर्दी वाले गुण्डों के सहारे चुप करा दिए जाते हैंं।:संदेह मॉस लिडर हैं उन्हें प्रदेश में चल रही सरकारी अंधेरगर्दी की पल पल की खबर भी है लेकिन उनकी चिंता भी सिर्फ राजनैतिक हो कर रह गई है। वे बस्तर में ट्रेन के लिए आंदोलन तो कर लेते हैं लेकिन गरीब आदिवासियों व किसानों की छिनती जमीन पर आंदोलन इसलिए नहीं करते क्योंकि इस आंदोलन से उद्योगपति नाराज हो जाएंगे। वे अधिकारी भी नाराज हो जाएंगे जो उद्योगपतियों की गोद में बैठकर अपनी सुख सुविधा का साधन जुटा रहे हैं। उनकी चिंता तो अब स्वयं पत्नी व पुत्र तक सिमट कर रह गया है। कांग्रेस की राजनीति ने क्या छत्तीसगढ़ को कम बर्बाद किया है जो भाजपाई राजनीति को कोसा जाए?विकास के नाम पर जिस तरह से सडक़ों व भवनों का जाल बिछाया जा रहा है क्या इससे छत्तीसगढ़ का विकास होगा। बल्कि गांव-गांव में सडक़ें बनाने का मतलब शोषण के नए रास्ते खोलना है। हमारे पत्रकार मित्र कमल शुक्ला ने पिछले हफ्ते इसी तरह की बात कही है। प्रदेश में भूख से कोई न मरे इसकी जिम्मेदारी सरकार की है और सरकार की यह भी जिम्मेदारी है कि आने वाले पीढि़ नशे के गर्त में न चला जाए लेकिन रुपया किलो चावल और गांव-गांव में खुलते शराब दुकानों ने छत्तीसगढ़ की आने वाली पीढिय़ों को बर्बाद कर रही है और यह सब सरकार की नीति की वजह से है। इस पर न तो कोई बोलता है और न ही कोई प्रदेशव्यापी आंदोलन करता है क्योंकि जब प्रदेश का गृहमंत्री ननकीराम कंवर स्वीकार कर चुके हैं कि शराब माफिया के गुण्डे थाना चलाते है तब भला इससे बुरी बात और क्या होगी। कांग्रेसी भी इन शराब माफियाओं के साथ मिलकर चल रहे हैं वे भी इन शराब माफियाओं से अवैध उगाही करते हैं तथा एक सांसद के तो शराब माफियाओं से पार्टनरशिप की कहानी पूरा छत्तीसगढ़ जानता है।

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

खाओ गुटखा पियो शराब, किसने कहा ये है खराब?

इन दिनों पूरे देश ही नहीं छत्तीसगढ़ में जिसे देखो वही गुटखा-शराब के खिलाफत में उतर आया है। साधु संतों की बात करें या समाज सेवियों की सभी गुटखा-शराब के पीछे पड़ गए हैं। उन्हें लगता है कि ये आने वाले पीढिय़ों को बर्बाद कर देगी? उनके सामने घर-परिवार टूटने के कई उदाहरण भी है और वे इन्हीं उदाहरणों के साथ गुटखा व शराब के खिलाफ आम लोगों को सीख देते हैं? बहुत कम लोग यह बात समझते हैं कि वे ऐसा नहीं करेंगे तो न तो वे साधु संत कहलायेंगे और न ही समाजसेवी?भाजपा के एक नेता अशोक बजाज को तो फितूर सवार ही है और अब पुरन्दर मिश्रा भी गुटखा छुड़वाने निकल पड़े हैं। उनका दावा है कि गांधी पदयात्रा के दौरान बसना क्षेत्र के
जहां तक गुटखा और शराब की बात है तो इसका सेवन में अति करने से ही नुकसान है
513 बच्चों ने गुटखा नहीं खाने का संकल्प लिया है। कुछ माह पहले जैन सम्प्रदाय के रतन मुनि ने तो मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और उनकी सरकार को ही नसीहत दे डाली कि शराब बंद करों इस दौरान मौजूद उनके समाज के मंत्री राजेश मूणत को भी वे मुख्यमंत्री बनने का आशीर्वाद दे गए। अब मुनि संत की बात कौन मानता है? इतनी सी बात मुनि जी या संतों को क्यों नहीं समझ आता कि आकल प्रवचन से लेकर हर आयोजन में राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। ? और अति तो सर्वत्र वर्तते है फिर गुटखा-शराब के पीछे क्यों पड़ गए है लोग यह कई लोगों के समझ में ही नहीं आता। पीने वालों का अपना तर्क है। वे तो इसे दवा तक बना देते हैं या मूड फ्रेशनर? सरकार भी जानती है कि यह खराब नहीं है? तभी तो वह बिकवा रही है? अब भला यह खराब चीज होती तो क्यों बेची जाती? सिर्फ रुपयों के लालच में सरकार और उसके धर्म परायण मंत्री तो इतना निकृष्ट कार्य नहीं कर सकते? कम से कम धर्म को आधार मानने वाली भाजपा सरकार तो साधु संतों का कहा जरूर मानेगी? इसलिए भाजपा सरकार में भी शराब गुटखे बिकवाये जा रहे हो तो भला इसे गलत ठहराना कहां तक उचित होगा? भाजपा के ही अशोक बजाज और पुरन्दर मिश्रा इस तरह का अभियान चलाकर पार्टी और सरकार विरोधी काम कर रहे है। बजाज भले कांग्रेसी न रहे हो लेकिन पुरन्दर मिश्रा कांग्रेसी रहे हैं और कांग्रेसी मानसिकता की वजह से ही वे लोग गुटखा-शराब का विरोध कर रहे हैं?छत्तीसगढ़ में तो शराब की गंगा बह रही है? पानी जब उद्योगपतियों को बेच दी जाए तो पीने की दूसरी व्यवस्था सरकार ने कर दी है। गांव-गांव में साफ पानी भेजने में दिक्कत है और फिर ग्रामीण लोग पीने के लिए पानी पर खर्च करेंगे नहीं इसलिए शराब बेचने के फायदे भी है? पेट के किटाणु भी मर जाते हैं और प्यास भी बूझ जाती है? पता नहीं ननकीराम कंवर क्यों शराब ठेकेदारों से चिढ़ते हैं बेवजह थानेदारों को कोस रहे हैं कि वे शराब माफियाओं के इशारे पर चल रहे हैं। क्या गृहमंत्री इतने कमजोर है कि थानेदार उनकी नहीं सुनता? दरअसल यह गृहमंत्री की चालाकी है वे अच्छा बने रहने के लिए उपाय ढूंढते रहते हैं तभी तो वे कभी एसपी को निकम्मा तो कलेक्टर को दलाल कह देते हैं? छत्तीसगढ़ में शराब और गुटखा के राजस्व की वजह से ही विकास हो रहा है वरना केन्द्र में बैठी कांग्रेस सरकार तो विकास के लिए फूटी कौड़ी ही न दें? फिर महंगाई में वेतन कहां पूरता है इसलिए गुटखा शराब को कोसने वालों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होना चाहिए सिर्फ पुलिस से पिटवाने से काम नहीं चलेगा।

सटोरिए तक को नहीं छोड़ते कांग्रेसी ...

रायपुर। सभी को मालूम है कि यहां टम्पू
इस नेता के साथ एक कांग्रेस विधायक की भी वसूलीबाजी से लोग हैरान है। बड़ा भाई जितना सज्जन छोटा उतना ही दुर्जन के नाम से चर्चित इस विधायक पर तो रोड डिवाईडर के नाम से पैसा खाने के आरोपों के साथ सटोरियों जुआडिय़ों को भी संरक्षण देने का आरोप है। यही नहीं कोयला चोर को बचाने का आरोप तो कांग्रेस के एक पूर्व मुख्यमंत्री पर भी लगने लगा है। इन दिनों दिल्ली का राजनीति में सक्रिय इस नेता को क्या मिला पार्टी को क्या मिला यह तो चर्चा का विषय है ही। कोयला चोर के जमानत से लेकर उसे बचाने की चर्चा चौबे कालोनी में कोयला चोर के दफ्तर में ढहाके के साथ सुनी जा सकती है।
, टोनी, जय सिंघानी, गुड्डू त्रिपाठीष फुंसी, लेसी, संतोष जैन, तेजू जैसे नामी सटोरिए हैं जो क्रिकेट पर सट्टा खिलवाते हैं। इनसे पुलिस वाले ही नहीं वर्तमान में संगठन के खास लोग भी महिना लेते हैं। शहर अध्यक्ष की दौड़ में शामिल फाफाडीह छाप एक नेता पर तो इनसे तीन लाख रुपए महिना संगठन के नाम से लेने की चर्चा है। जबकि इस पर निगम के सभापति चुनाव में ही नहीं भटगांव उपचुनाव में भी भाजपा से पैसा लेने का आरोप है।

३जि मोबाईल सेवा बीजापुर और बस्तर में भी शुरू

बी एस एन एल का ३जि मोबाईल सेवा बीजापुर और बस्तर में भी शुरू  

निगम का पैसा अफसरों के घर में .

निगम अफसर एन .एस . राठौर के पास से  एंटी करप्सन को मिले बेहिसाब सम्प्पति . रायपुर दुर्ग बिलासपुर में जमीन जायदाद .

गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

सात विभागों का सात हाल भ्रष्टाचार से हुआ बुरा हाल

सबसे ज्यादा विभाग वाले बृजमोहन के पौ बारह
 छत्तीसगढ़ के सबसे दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल विभागों के मामले में न केवल अन्य मंत्रियों से भारी है बल्कि उनके विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार के चर्चे चौक-चौराहे पर सुनाई देते हैं। यही नहीं बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ कोई कांग्रेसी इसलिए भी आवाज नहीं उठाते क्योंकि उनकी जबरदस्त सेटिंग है। यही नहीं इस स्थिति के फायदे को लेकर अब भाई वाद के चर्चे भी आम होने लगे हैं।
चुनाव प्रबंधन ही नहीं अफसरों के साथ कांग्रेसियों के प्रबंधन में भी माहिर बृजमोहन अग्रवाल के पीडब्ल्यूडी सबसे भ्रष्ट विभाग के रुप में जाना जाता है। डामर घोटाले से लेकर उखड़ती सडक़ें इस विभाग की सच्चाई है जबकि हर ठेके में 20 फीसदी कमीशन से अब ठेकेदार भी परेशान है। पूरे प्रदेश में सडक़ों के निर्माण में जिस तरह से कमीशनखोरी की जा रही है उसकी जांच की जाए तो कई लोग जेल के सलाखों परनजर आएंगे। यही नहीं हर साल 50 करोड़ से उपर के बजट वाले पर्यटन विभाग का हाल भी सबसे बुरा है। पर्यटन के प्रचार प्रसार के नाम पर इन सात वर्षों में जितना भ्रष्टाचार हुआ उसकी अपनी ही कहानी है। यहां स्टेशनरी घोटाले से लेकर रोप वे तथा मोटल निर्माण में हुए घोटाले की कहानी भी सडक़ों पर सुनी जा सकती है। जबकि विवादास्पद अधिकारियों एम.जी. श्रीवास्तव और अजय श्रीवास्तव से मंत्री जी की गलबतियां ने आम लोगों को सोचने मजबूर करता है कि रावण इसलिए नहीं मरता है? शिक्षा विभाग का तो सर्वाधिक बुरा हाल है। केबिनेट के फैसलों का सर्वाधिक उल्लंघन इसी विभाग में हो रहा है। जबकि तवारिस जैसे आरोपियों की बहाली से बृजमोहन अग्रवाल स्वयं चर्चा में है जबकि यहां भी विवादास्पद अफसरों का जमावड़ा है। श्रीमती बाम्बरा, डॉ. एच.आर. शर्मा, जैसे लोग प्रमुख पदों पर बैठे हुए हैं। शिक्षा विभाग में पुस्तक खरीदी का मामला तो सर चढक़र बोलने लगा है।
नियम कानून को ताक पर रखकर जिस तरह से मनमाने कीमतों में पुस्तक खरीदी की गई और कमीशन खोरी हुई उसे लेकर दांतों तले उगली दबाया जा रहा है। संस्कृति विभाग में तो उनके लाड़ले भाई योगेश अग्रवाल के कारनामें समय-समय पर अखबारों में छपते रहे हैं। जबकि राज्योत्सव को तो अब लोग लुटोत्सव की संज्ञा तक देने लगे हैं। यही नहीं सबै भूमि गोपाल की कहावत भी खूब चर्चा में है। नामी बेनामी जमीनों के अलावा सिरपुर की जमीन पर पीडब्ल्यूडी का बाउण्ड्रीवाल इन दिनों चर्चा है। बृजमोहन अग्रवाल ने मंत्री बनने के बाद उनके भाईयों का पेट्रोल पंप और लोडिंग अनलोडिंग के धंधे में आने की खबर पर तो लोगों की प्रतिक्रिया असंवैधानिक होने लगी है। हालांकि मोहन परिवार का अनाज व्यवसाय के संगठनों में मोनोपल्ली रहा है। बड़ा भआई गोपाल अग्रवाल जहां सालों से दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष है तो छोटा भाई योगेश अग्रवाल राईस मिल एसोसिएशन में बैठे हैं। योगेश का फिल्मी पक्ष भी जबरदस्त विवादास्पद रहा है। जबकि उन्हें हाल ही में बृजमोहन अग्रवाल के ससुराल गोदिया में पुरस्कार भी मिला है। इधर बृजमोहन अग्रवाल की कांग्रेसियों से सेटिंग की चर्चा सदैव रही है कहा जाता है कि एक दूसरे को सहयोग करने के वादे ने ही बृजमोहन के खिलाफ कांग्रेसियों को चुप रहने मजबूर किया है। बड़े से बड़े नेता उनके खिलाफ बोलने से घबराते हैं और भटगांव चुनाव के परिणाम को भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। बहरहाल बृजमोहन अग्रवाल के विभागों में भ्रष्टाचार चरम पर है और इस पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की भूमिका को लेकर आम लोगों में तीखी प्रतिक्रिया है।

बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...

कार्रवाई की बजाय पुलिस का संरक्षण
 छत्तीसगढ़ में अपराधियों के हौसले किस तरह से बुलंद है इसका ताजा उदाहरण ऋषभ काम्पलेक्स से लोगों का करोड़ों रुपया उड़ा लेने वाले फायनेंस कंपनी के मालिकों की दादागिरी से लगाया जा सकता है। अब तो दुकान मालिक सेट्टी ने अखबार को नोटिस भिजवाई है। उनका कहना है कि उनका फरार आरोपी से कोई लेना देना नहीं है जबरन उनका नाम घसीटा जा रहा है लेकिन हमें कर्मचारियों ने जो जानकारी दी है उसके बाद सारे सबूत कुछ और ही कहानी बयान कर रही है।
उल्लेखनीय है कि करीब 15 दिन पहले ऋषभ काम्पलेक्स स्थित वैष्णव फायनेंस के द्वारा करीब चार सौ लोगों का करोड़ों रुपया लेकर फरार हो गया। इसकी खबर पर जब तहकीकात की गई तो पता चला कि यह आफिस न्यू शांति नगर निवासी मदनमोहन राये सेट्टी की है और वे लोग भी इस कंपनी से जुड़े हुए थे। मदन मोहन सेट्टी ने नोटिस में कहा है कि कमल सेट्टी वहां नौकरी करता था जबकि कर्मचारियों व पीडि़तों ने हमें जो शिकायत लिखकर दी है उसके मुताबिक कमल सेट्टी वहां पार्टनर था और उसके पास ही आफिस की चाबी व पैसे रहते थे जिस दिन आखरी बार आफिस बंद हुआ तब भी चाबी कमल सेट्टी के पास ही थी और उस दिन लगभग ढाई लाख रुपए भी आफिस में रहा है। यही नहीं इस मामले में पुलिस की भूमिका शुरु से ही संदेहास्पद रही है। जिस आरोपी शिवकुमार शर्मा को फरार बताया जा रहा है उससे पुलिस न केवल मुलाकात कर चुकी है बल्कि पुलिस पर यह आरोप भी है कि उसने साढ़े तीन लाख रुपए लेकर आरोपी को छोड़ दिया। मामूली अपराध में मकान मालिक के खिलाफ जुर्म दर्ज करने वाली पुलिस इस मामले में पीछे क्यों है? यही बात अनेक संदेहों को जन्म देता है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक मैादाहापारा थाना में अब तक चार दर्जन से अधिक पीडि़तों ने लिखित में शिकायत की है लेकिन पुलिस द्वारा जांच के नाम पर अपराध दर्ज नहीं करना भी पुलिस की करतूत को ही उजागर करता है। इधर हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि यदि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की जाए तो कई और मुजरिम भी पकड़ में आएंगे। इधर मदनमोहन राय सेट्टी ने पुलिस में शिवकुमार शर्मा द्वारा बगैर किराये दिए भाग जाने की शिकायत की है और उनके पुत्र व कुछ कर्मचारियों ने वेतन नहीं दिए जाने की शिकायत की है। वह भी घटना के दो दिन बाद।
बताया जाता है कि राजनैतिक एप्रोच के चलते मामले को दबाया जा रहा है जबकि आम लोगों से करोड़ों रुपए दबाने वाले पुलिस की करतूत की वजह से बेखौफ घूम रहे हैं। बहरहाल इस मामले के पीडि़त अब मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश में है जबकि इस मामले में दुकान मालिक-फायनेंस कंपनी व पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं ऐसे में देखना है कि इस मामले में जुर्म दर्ज कर गिरफ्तारी होती है या अन्य मामलों की तरह इसे भी भूला दिया जाएगा।

छत्तीसगढ़ बुनकर संघ की जमीन पर बालकृष्ण अग्रवाल का कब्ज़ा हटाने रैली व् आमसभा




छत्तीसगढ़ के तमाम समाज के लोगो ने आज छत्तीसगढ़ बुनकर संघ की जमीन पर बालकृष्ण अग्रवाल का कब्ज़ा हटाने की मांग को लेकर रैली व् आमसभा की साथ ही यंहा से शराब दुकान हटाने की मांग भी की .समाज प्रमुखों ने इस दौरान सरकार की जमकर खिंचाई भी की

ट्रक ने साईकिल सवार लड़की को कुचल दिया






पचपेड़ी नका रायपुर के पास ट्रक ने साईकिल सवार १४ साल की लड़की शीतल  को कुचल दिया लड़की की मौके पर ही मौत हो गई .

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

कांग्रेस के चर्चित दलाल

 शंकर नगर के इस दलाल का संबंध राजा महाराजाओं के अलावा भाजपा के नगर मंत्री से है। कांग्रेस की बुराई में माहिर इस दलाल को बड़े नेता भी अपने बगल में बिठाते हैं ताकि काम चलता रहे।
ऐसे ही कई दलालों की चर्चा कांग्रेस में आम रुप से सुनी जा सकती है। टिकरापारा क्षेत्र के एक दलाल की सांसद व नगर मंत्री से सेटिंग की बात हो या ब्राम्हणपारा के कुछ कांग्रेसियों की नगर मंत्री से सेटिंग की बात आम है। समता कालोनी के पास के वीसी के करीबी रहे अब जोगी के करीबी एक नेता की भी भूमिका सभापति चुनाव में दलाली की रही है। जबकि सुंदरनगर के शराब खोर पदाधिकारी का तो नाम ही दलाल रख दिया गया है। जबकि इसके खास फाफाडीह वाले को तो दलाल का दलाल कहा जाता है।
राजधानी के बाहर के भी कई नेताओं को दलाल के नाम से संबोधित किया जाता है। जबकि कई विधायक की भाजपाईयों से सेटिंग की चर्चा आम है। ऐसे में कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष वीसी-जोगी जैसा दमदार नहीं होगा तो स्थिति विकराल हो सकती है।

पार्टी में दलाल, कांग्रेस हुई हलाल

भाजपा नेताओं से संबंध, गुटबाजी

चरम पर, पैसा कमाना उद्देश्य
 कमजोर नेतृत्व गुटबाजी और पार्टी में दलालों की सक्रियता ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बदतर स्थिति में ला खड़ा किया है। हालत यह है कि कांग्रेस के नेताओं को भाजपा नेताओं के हार में दो-पांच हजार के चक्कर में लाईन लगाते देखा जा सकता है। अनुशासन का डर खत्म हो चुका है और संगठन में भाजपा की दलाली करने वालों का बोलबाला है?
छत्तीसगढ़ में इन दिनों नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कवायद चल रही है। प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा, किस गुट का होगा इसे लेकर सवाल चर्चा में है। छत्तीसगढ़ में मुख्यत: विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी और मोतीलाल वोरा जैसे लोग गुटबाजी को हवा देने में लगे है। जिसकी वजह से आम कार्यकर्ताओं में आक्रोश है और वे चौक चौराहों में इन नेताओं की बुराई करते देखे जा सकते हैं।
वास्तव में देखा जाए तो कार्यकर्ताओं की फौज और जमीनी ताकत सिर्फ विद्याचरण और अजीत जोगी के पास है जबकि मोतीलाल वोरा के साथ जुडऩे की वजह उनका हाईकमान के साथ सिर्फ संबंध होना है? और पार्टी का छत्तीसगढ़ में बदतर स्थिति के लिए इस गुट का ही सबसे बड़ा हाथ है। हाईकमान से संबंधों के चलते जानबूझकर ऐसे लोगों को प्रदेश का नेतृत्व दिया गया जिनकी औकात अपने विधानसभा या लोकसभा क्षेत्र तक ही रही और इन अध्यक्षों ने अपनी कुर्सी बचाने भाजपा के साथ मिलकर दलाली ज्यादा की है।
दूसरी ओर अजीत जोगी और विद्याचरण शुक्ल के साथ भी ऐसे लोग जुड़ते चले गए हैं जिनका काम सिर्फ व्यापार करना है ऐसे लोगों ने अपने नेताओं को भाजपा के खिलाफ यह कहकर नहीं खड़ा होने दिया कि इससे वोरा गुट मजबूत होगा? लगातार सत्ता से दूर रहने की वजह से कांग्रेस में बेचैनी तो है लेकिन सत्ता से मिल रहे फायदे ने इन्हें संघर्ष करने से रोका। सर्वाधिक बुरी स्थिति राजधानी व आदिवासी क्षेत्रों की है। सरकार की मनमानी के खिलाफ उतना ही बोला गया जितने में पैसा मिल सके? इस स्थिति के चलते आम कार्यकर्ताओं में भी यह चर्चा होने लगी है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भाजपा से सेटिंग कर ली है जबकि विधायकों व संगठन के पदाधिकारियों पर बिक जाने का आरोप लगाया जा रहा है।
टिकिट वितरण से लेकर पद देने में जिस तरह से खरीदी बिक्री के आरोप लग रहे हैं उसकी वजह से भी कांग्रेस की स्थिति बदतर होते जा रही है। ऐसे में नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर जिस तरह से बड़े नेताओं में रूचि और आम कार्यकर्ताओं में बेरुखी देखी जा रही है इससे भी कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। दरअसल जोगी वर्सेस ऑल की राजनीति ने कांग्रेस को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है और भाजपा की दलाली में भी जोगी विरोधी गुट के लोग ही अधिक नजर आते हैं। इस स्थिति में यदि प्रदेश अध्यक्ष किसी दमदार नेता को नहीं बनाया गया तो एक बार फिर कांग्रेस हाशिये में चली जाएगी। वैसे कांग्रेस के हित में विद्याचरण शुक्ल या अजीत जोगी को ही प्रदेशाध्यक्ष बना दिए जाने की मांग निष्ठावान कांग्रेसी कर रहे है लेकिन वोरा गुट कभी नहीं चाहेगा कि उसके लोगों की दलाली बंद हो और प्रदेश से उसकी जमीन खिसके।
बहरहाल कांग्रेस में सक्रिय दलालों ने कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा है हालत यह है कि इन दलालों को लेकर आम लोगों में चर्चा है लेकिन बड़े नेताओं को भी ये दलाल ज्यादा पसंद आते हैं?

प्रदेश कांग्रेस प्रभारी नारायण सामी को कालिख पोता









प्रदेश कांग्रेस के डेलिगेट्स की बैठक लेने आये  प्रभारी नारायण सामी को चार लड़कों ने कालिख पोत दी 

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

विवादास्पद सिंह साहब भी मोहन के बंगले में...

अजय को डुबाया अब...!
 छत्तीसगढ़ के दमदार माने जाने वाले पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का विवादों से पुराना नाता है इन दिनों उनके बंगले में आर.एन. सिंह का दबदबा है और कभी इनका दबदबा अजय चंद्राकर के बंगले में रहा है। पीएसी में चयन को लेकर विवाद में रहे आर.एन. सिंह इन दिनों अपने दबदबे से सुर्खियों में हैं।
छत्तीसगढ़ में वैसे तो अफसरराज ही नहीं चल रहा है बल्कि दागी और विवादास्पद छवि के लोगों को सरकार द्वारा प्रश्रय भी दिया जा रहा है। दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग में सर्वाधिक दागी और विवादास्पद अधिकारियों का जमावड़ा है। दंतेवाड़ा शिक्षा अधिकारी डा.एच. आर. शर्मा, श्रीमती आर.बाम्बरा, मैडम तवारिस, अजय श्रीवास्तव, एमजी श्रीवास्तव, सुब्रत साहू, एम.के. राउत के अलावा अब मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के बंगले में पदस्थ आर.एन. सिंह का नाम भी विवादास्पद अधिकारियों में जुड़ गया है।
कहा जाता है कि जिन अधिकारियों को उनकी करतूतों के कारण बर्खास्त कर देना चाहिए उन लोगों को सरकार द्वारा प्रश्रय दिया जा रहा है। बताया जाता है कि पीएससी में चयन के दौरान आर.एन. सिंह भी सुर्खियों में रहे हैं। दरअसल सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी मिली है उसके तहत यह बात स्पष्ट होने लगा है कि आर.एन. शर्मा का चयन न केवल गलत ढंग से हुआ है बल्कि वे चयन के पात्र ही नहीं थे। सूत्रों के मुताबिक पीएससी चयन में लिे गए साक्षात्कार में आरएन शर्मा को आठवां स्थान मिला था और जब मेरिट बनी तो वे तीसरे नम्बर पर पहुंच गए। यह गोलमाल कहा और केसे हुआ यह जांच का विषय है। लेकिन कहा जाता है कि तब तत्कालीन मंत्री अजय चंद्राकर के बंगले में आर.एन. शर्मा को पदस्थ किया गया।
बताया जाता है कि अजय चंद्राकर को अपनी करतूत के कारण विधानसभा में हार का मुंह देखना पड़ा तब आर.एन. सिंह के लिए बृजमोहन अग्रवाल का दरबार सज गया। सूत्रों की माने तो श्री सिंह को बृजमोहन अग्रवाल के बंगले में पदस्थ करने में अजय चंद्राकर ने ही सिफारिश की थी। इधर आर.एन. सिंह के चयन को लेकर जब सवाल उठने लगे तो एक बार फिर मामले की लीपापोती की जा रही है। बताया जाता है कि इन दिनों मंत्री के बंगले में उनके व्यवहार को लेकर कार्यकर्ताओं में नाराजगी है और इसकी शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं होने से मोहन समर्थक ही गड़े-मुर्दे उखाड़ने में लगे हैं। बहरहाल दागी और विवादास्पद अधिकारियों के जमावड़े ने एक बार फिर दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को सुर्खियों में ला दिया है।

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

विवादास्पद आई पी एस विश्वरंजन

0 गृहमंत्री फूटी आंख नहीं भाते?
0 जातिवाद व क्षेत्रियता का आरोप?
0 नक्सली मामले में संदेहास्पद भूमिका?
0 साहित्यिक गतिविधियों पर अवैध वसूली?
छत्तीसगढ़ के डीजीपी यानी विश्वरंजन की विवादास्पद छवि के चलते न केवल सरकार की छवि खराब होने लगी है बल्कि पुलिस में गुटबाजी उभर कर सामने आई है। लगातार विवादों में रहना विश्वरंजन का शगल बन चुका है और अब तो उन्हें कारण बताओं नोटिस पर नोटिस जारी होने लगे हैं।
छत्तीसगढ क़े डीजीपी विश्वरंजन को गृहमंत्री ननकीराम कंवर फूटी आंख नहीं सुहाते खबर सिर्फ इतनी नहीं है। खबर इसके आगे की यह है कि डीजीपी विश्वरंजन पर अब गंभीर आरोप लगने लगे हैं और प्रदेश सरकार ने उन्हें दो मामलों में कारण बताओं नोटिस भी थमा दिया है। दरअसल डीजीपी विश्वरंजन की नियुक्ति के तरीके को लेकर शुरु हुआ विवाद ही प्रदेश सरकार खासकर मुख्यमंत्री रमन सिंह के लिए गले की हड्डी बन चुका है। कभी बस्तर और रायगढ़ में पदस्थ रहे डीजीपी विश्वरंजन को केन्द्र सरकार से विशेष अनुरोध कर यहां लाया गया। यदि विश्वरंजन के आने के बाद अपराध के आंकड़े पर नजर डाले तो हर क्षेत्र में अपराधों में जबरदस्त बढ़ोत्तरी नजर आएगी। खासकर नक्सली और शहरी क्षेत्रों में लूट की वारदातों ने तो सरकार की नींद उठा दी है।
सर्वाधिक विवाद तो उनके प्रमोद वर्मा स्मृति साहित्यिक गतिविधियों की रही है। कार्यक्रम के लिए दबावपूर्वक वसूली की शिकायतों से तो थानेदार तक परेशान है और राजनांदगांव जिले में विनोद शंकर चौबे की शहादत के दौरान उनकी भूमिका और गतिविधियों को लेकर जबरदस्त विवाद रहा है। प्रदेश सरकार ने इस मामले में बढ़ती शिकायतों पर कितनी गंभीरता दिखाई है यह तो बाद में ही पता चलेगा लेकिन इस मामले में नोटिस जारी कर उनसे जवाब तलब किया गया है।
सिर्फ यही एक मामला नहीं है इसके अलावा गृहमंत्री ननकीराम कंवर से उनका विवाद भी सुर्खियों में रहा है। गृहमंत्री ने डीजीपी को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी भी कर चुके हैं। मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र कवर्धा में एसपी को निकम्मा व कलेक्टर को दलाल कहने वाले गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने विधानसभा तक में पुलिस की गतिविधियों का भर्त्सना कर चुके हैं। इतना ही नहीं डीजीपी विश्वरंजन पर नक्सली मामले में भूमिका पर भी आरोप लगते रहे हैं। कहा जाता है कि बस्तर पदस्थापना के दौरान उनके कार्य को लेकर आलोचना भी हुई थी जबकि मुखबिरी व गोपनीय सैनिकों को दी जाने वाली रकमों को लेकर डीजीपी पर कांग्रेस ने गंभीर आरोप लगाए हैं।
इधर पीएचक्यू में चल रहे गुटबाजी का असर भी पुलिस की कार्यप्रणाली पर हुआ है। कहा जाता है बिहारी-यूपी की क्षेत्रियता वाली गुटबाजी के चलते पुलिस मुख्यालय में कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इस मामले में गृहमंत्री ननकीराम कंवर से शिकायत के बाद गृहमंत्री द्वारा जांच करवाने का फरमान जारी कर दिया गया है और श्री नवानी को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि डीजीपी विश्वरंजन की गतिविधियों को सरकार को मुंह चिढ़ाने वाला बताया जा रहा है लेकिन कार्रवाई सिर्फ नोटिस व जांच तक ही सिमट गया है। इस संबंध में डीजीपी से जब संपर्क की कोशिश की गई तो वे उपलब्ध नहीं हुए। बहरहाल डीजीपी को नोटिस व उनके खिलाफ जांच के फरमान को लेकर सरकार की चौतरफा किरकिरी हो रही है। जो आने वाले दिनों में विवाद और भी बढ़ने की संभावना है।

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

सरकारी जमीनों का बंदरबांट अब बंद करो...

जब से रमन सरकार सत्ता में आई है सरकारी जमीनों को बांटने में दस गुणा से यादा तेजी आई है। कभी उद्योगों के नाम पर तो कभी कस्बों या नई राजधानी के विस्तार के नाम पर सरकारी जमीनों को कौड़ियों के मोल हड़पा जा रहा है। यही स्थिति ही तो न चारागान के लिए जमीनें बचेंगी न ही खुली हवा में सांस लेने के लिए ही जमीन बचेंगी। कांक्रीट के जंगल ने पहले ही राजधानी रायपुर के लोगों को गर्मी में रहने मजबूर कर दिया है। ऐसे में सरकार शहर या उद्योगों की बजाय गांवों के विकास न कृषि के विकास पर सिर्फ इसलिए योजना नहीं बनाती क्योंकि इससे आम लोग ख्रुशहाल होंगे और फिर उनके भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति पर अंकुश लग जाएगी।
ताजा मामला राजधानी से लगे ग्राम अछोली का है। यहां श्मशान की जमीन एक उद्योगपति को आबंटित की जा रही है। लोग जब विरोध पर सड़कों तक आएं तब पता चला कि यहां की सरकारी जमीनों पर किस तरह से उद्योगपतियों ने अवैध कब्जा कर रखा है। अवैध कब्जों में निश्चित रुप से पटवारी से लेकर मुख्यमंत्री तक की सहमति होगी अन्यथा पटवारियों व तहसीलदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती।
अब तो गृह निर्माण मंडल ने भी कस्बों में अपनी योजना को विस्तार करना शुरु कर दिया है और कस्बों की सरकारी जमीनों पर कांक्रीट के जंगल खड़ा किया जाने लगा है। गृह निर्माण मंडल के पदाधिकारी से लेकर इंजीनियरों ने एक साजिश के तहत पैसा कमाने का खेल खेला है। चूंकि निर्माण में भ्रष्टाचार और कमीशन का लंबा चौड़ा खेल है इसलिए शहर से कस्बों तक सरकारी जमीनों को हड़पा जा रहा है। पूरी सरकार इस खेल में शामिल है और छत्तीसगढ़ की सरकारी जमीनों को साजिश के तहत हड़पा जा रहा है। भाजपा सरकार में ही नहीं कांग्रेस ने भी कमोबेश यही काम किया है। विद्याचरण शुक्ल को अपोलो अस्पताल के लिए दी गई जमीन का क्या हुआ। किसी में हिम्मत है कि पूछा जा सके? और जब विद्याचरण शुक्ल अस्पताल के नाम पर जमीन हड़पने लगे तो फिर भाजपाई क्यों पीछे रहे इसलिए भाजपा नेता गौरीशंकर अग्रवाल के रिश्तेदार डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई देवेन्द्र अग्रवाल के साढू डॉ. सुनील खेमका को कौड़ी के मोल सरकारी जमीन देने का कोई कांग्रेसी कैसे विरोध कर सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल पर तो बंगले, प्रेस और पेट्रोल पम्प के नाम पर सरकारी जमीनों को लीज पर लेने का मामला सुर्खियों में रहा है।
अखबारों द्वारा सरकारी जमीनें जब हड़पी जाने लगी तो फिर चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर खेल को कौन रोक सकता है। लीज की जमीनें और उस पर अवैध निर्माण के खेल ने छत्तीसगढ़ की सरकारी जमीनों को तहस-नहस तो किया ही पर्यावरण को भी अच्छा नुकसान पहुंचाया है। खुली हवा में सांस लेने को दुर्लभ बनाते इन सरकारी योजनाओं पर आम आदमी केवल दुख जाहिर ही कर सकता है। हम सरकारी जमीन के ऐसे किसी भी बंदरबांट के विरोधी है यदि स्वयंसेवी संगठनों को भी ऐसे जमीनें दी जाती है तो वह भी गलत है और राजनैतिक पार्टियों को तो बिल्कुल भी सरकारी जमीनें नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि व्यवसाय का रुप ले चुकी राजनीति ने आम आदमी की बजाय अपने हितों को ही अधिक साधा है।

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

शिक्षा पर सवाल मोबाइल का कमाल

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अपराध के ग्राफ में तेजी आई है। अनाप-शनाप पैसे कमाने की धुन ने जीवन स्तर को विवादित बना दिया है। सरकार के पास कोई योजना नहीं है और शिक्षा के सफल उद्योग के रुप में विकसित होने लगा है जहां पढ़ाई के अलावा झूठे-फरेब-छल और मौज-मस्ती अधिक होने लगी है। सरकार भी इन शिक्षण संस्थाओं पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। सर्वाधिक दुखद स्थिति पेट काटकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने वाले पालकों की है। स्कूल फीस से लेकर बस और अन्य कार्यक्रमों में होने वाले खर्च ने पालकों की चिंता बढ़ा दी है और अभाव में अच्छी संस्थाओं में पढ़ने वाले मध्यम वर्ग के बच्चों में अपराध पनपते जा रहा है।
महंगी चाकलेट, मॉल और मोबाईल ने इस मध्यम वर्गीय बच्चों को एक नए अपराध में ढकेल दिया है जिसकी भयावकता की कल्पना से ही शरीर सिंहर जाता है। मेरे परिचित की एक बिटिया 11वीं कक्षा में एक नामी शिक्षा के लिए नामी संस्थान में भर्ती किया है। उसे मोबाइल भी दी गई ताकि आने जाने में कहीं दिक्कतें न हो। शुरु में तो सब कुछ ठीक-ठाक चलने लगा लेकिन जब वह मोबाइल से कुछ अधिक ही बातें करने लगी तो मेरे परिचित ने इसे गंभीरता से लिया सिर्फ 300 से 500 रुपए में इतनी लम्बी बात पर वे विचलित हुए और जब पता लगाया तो उनके पैरों से जमीन खिसक गई पिछले 3-4 माह से उसके मोबाइल में ढाई-तीन हजार का रिचार्ज किया जा रहा था। उसने अपनी बिटिया से पूछा तो वह साफ मुकर गई। क्योंकि यह रिचार्ज उसके कथित फ्रेंड्स करवाते थे। यह स्थिति अमूमन शहर के अधिकांश छात्र-छात्राओं की है। अमीरजादों से दोस्ती और फिर आपस में लेन-देन ने शर्म-हया तक को बेच दिया है। मां-बाप अच्छी शिक्षा के फेर में महंगे संस्थानों में भर्ती कर मोबाइल देकर भूल जाते है और बच्चे बिगड़ते जा रहे हैं।
इसके लिए शिक्षा पध्दति ही दोषी है मैं यह नहीं कहता कि मां-बाप दोषी नहीं है लेकिन बेहतर शिक्षा को लेकर सरकार के रवैये की अनदेखी बेमानी होगी। हम सिर्फ मां-बाप को दोष देकर इससे मुक्ति नहीं पा सकते। छत्तीसगढ़ की राजधानी में ही मैं ऐसे दर्जनों छात्र-छात्राओं को जानता हूं जिनके एक से अधिक लोगों से अंतरंग संबंध है। सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वे अच्छी शिक्षा की व्यवस्था तो करें लेकिन महंगे शिक्षा पर प्रतिबंध लगाए। अन्यथा एक झूठ सौ झूठ बुलवाता है की कहावत की तरह एक अपराध किसी को भी अपराध के दलदल में ले जाने की कहावत तैयार हो जाएगी। मां-बाप भी अपने बच्चों पर नजर रखे। खासकर मोबाइल देने वाले मां-बाप समय-समय पर यह जरूर चेक करे कि रिचार्ज कितने का हो रहा है। क्योंकि झूठ सीखाने वाले इस मंत्र ने आदमी को संस्कार और नैतिकता से परे ढकेल रहा है और इसकी अनदेखी से गंभीर परिणाम आएंगे जो कलंक साबित हो सकते हैं।

स्वराज दास की मनमानी की कहानी...

कुरेटी के कारनामों की कहानी अभी लोगों की जुबान से उतर भी नहीं पाई है कि जनसंपर्क के एक और अधिकारी स्वराज दास की मनमानी चर्चे में हैं। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के घर पदस्थ इस अधिकारी स्वराज दास पर अब अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मनमानी किए जाने को लेकर पत्र मिला है। पत्र को हम हू-बहू प्रकाशित नहीं कर सकते इसलिए उसके अर्थ ही प्रकाशित किए जा रहे हैं।
पत्र के अनुसार किसी समय अजीत जोगी के करीबी रहकर राजनीति का गुण सीखने वाले स्वराज दास ने अब जनसंपर्क में अपने प्रभाव के चलते राजनीति कर रहे हैं। चूंकि सचिव बैजेन्द्र कुमार जनसंपर्क से यादा पर्यावरण विभाग में यादा रूचि रखते हैं इसलिए भी यहां सब कुछ ठीक नहीं है। स्वराज दास जी जनसंपर्क के स्थापना व समाचार शाखा के भी प्रभारी है और उन पर पदोन्नति संबंधी फाईल दो सालों से रोक लेने का आरोप है। शासकीय कार्यक्रमों के कव्हरेज के लिए गाड़ी नहीं देकर कर्मचारियों को परेशान करने के अलावा संविदा कम्प्यूटर कर्मचारी को अनावश्यक परेशान करने का भी आरोप लगााया गया है। यही नहीं अखबारों को विलंब से समाचार भेजने व फोटोग्राफरों से दर्ुव्यवहार की भी शिकायत है।
पत्र के अनुसार मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने 27 सितम्बर 2008 की बैठक में संचालनालय व बड़े जिलों में फोटो ग्राफरों की सीधी भर्ती का निर्णय लिया था लेकिन जानबूझकर भर्ती नहीं की जा रही है जिसकी वजह से कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के कव्हरेज में दिक्कत आ रही है और अनुबंधित फोटोग्राफरों की सेवा ली जा रही है।
प्रताड़ित पत्रकार की पीड़ा
रामनगर से साप्ताहिक समाचार ओम दर्पण निकालने वाले पत्रकार ओम प्रकाश सिंह की पीड़ा यह है कि उसके साथ पुलिस वालों ने तो बदतमीजी की ही महिला सीएसपी श्वेता सिन्हा ने उन्हें एनकाउंडर करने की धमकी भी दी अब उन्हें झूठे केस में फंसा लेने का डर सता रहा है और उसने अपने साथ हुई घटना की शिकायत उच्चाधिकारियों से भी की है लेकिन कार्रवाई कोई नहीं कर रहा है।
चौथे स्तम्भ की शान
वफादार साथी द्वारा कथित रुप से प्रताड़ित होने वाले रेंजर एमआर साहू ने पत्रकार वार्ता लेकर अपनी आप बीती सुनाई है। श्री साहू का कहना है कि वे दुखी हैं एक तो नक्सली क्षेत्र में काम कर रहे हैं और उनके साथ गलत हो रहा है उनके साथ हो रहे गलत को छापने से चौथे स्तम्भ की शान बचाई जा सकती है।
और अंत में...
सीधे भास्कर के खिलाफ छापने वाली पत्रिका को अब सचेत होना होगा क्योंकि भास्कर भी बड़ी तैयारी में है और बलात छापने से भास्कर परहेज भी नहीं करने वाला है।

डाल्फीन स्कूल के शिक्षकों ने छात्र से की अप्राकृतिक कृत्य

एक शिक्षक गिरफ्तार, दो फरार
डाल्फिन इंटरनेशनल स्कूल भाटापारा के तीन शिक्षकों द्वारा एक नाबालिग छात्र से अप्राकृतिक कृत्य करने का सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है। इस मामले में एक शिक्षक आशीष प्रधान गिरफ्तार कर लिए गए हैं। जबकि दो शिक्षक फरार बताए जा रहे हैं। इस मामले का दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि पूरे मामले को दबाने की कोशिश मंत्री स्तर पर की गई जबकि स्कूल संचालक एक अखबार मालिक होने की वजह से भी मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही है और फरार शिक्षकों को बचाया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि डाल्फिन इंटरनेशनल स्कूल द्वारा छत्तीसगढ़ के विभिन्न कस्बों व शहरों में स्कूल संचालित किया जा रहा है और 50 हजार दो 12वीं तक पढ़ों स्कीम भी चला रहा है। यही नहीं अधिकांश जगहों पर दूसरे शहर के लोगों की नियुक्ति की गई है। भाटापारा में संचालित डाल्फिन स्कूल में भी इसी तरह से दूसरे शहर के ही शिक्षकों की भर्ती की गई है जिन्हें सिर्फ पैसों से मतलब है। बताया जाता है कि भाटापारा में जिस बच्चे के साथ दूराचार किया गया वह प्रतिष्ठित परिवार का है इसलिए तत्काल एक शिक्षक आशीष प्रधान की धारा 37, 511 व 292 के तहत गिरफ्तार किया गया। जबकि दबाव में सहयोगी दो शिक्षकों को फरार होने का मौका दिया गया।
सूत्रों की माने तो शर्म की वजह से कुछ बच्चे सामने नहीं आ रहे हैं। बताया जाता है कि घर में समझा देने के नाम पर शिक्षकों द्वारा बच्चों को बुलाकर यह कृत्य किया गया और बच्चे ने जैसे ही इसकी जानकारी अपने परिजनों को दी तो वे सीधे पुलिस के पास जा पहुंचे और आनन-फानन में पुलिस को दबाव में कार्रवाई करनी पड़ी।
इधर इस मामले को लेकर भाटापारा में जबरदस्त आक्रोश व्याप्त है। सूत्रों के मुताबिक भाटापारा के लोगों ने बताया कि शिक्षकों से लेकर पूरा स्टाफ बाहरी है और अधिकांश कर्मचारी किराये का मकान लेकर अकेले रहते हैं। दरअसल घटना की प्रमुख वजह भी यही मानी जा रही है कि बाहरी शिक्षकों की वजह से ही इस तरह की घटनाएं हो रही है। दूसरी तरफ इस मामले में फरार शिक्षकों का बचाने का प्रयास किया जा रहा है। सूत्रों की माने तो इन दोनों शिक्षकों को छुट्टी पर जाना बताया जा रहा है। इधर हमारे पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस मामले को गुपचुप तरीके से निपटाने एक मंत्री द्वारा थानेदार को फोन भी किया गया जबकि ऐसे घिनौने कृत्य पर डाल्फिन स्कूल के संचालक की भूमिका को भी शर्मनाक बताया जा रहा है। इधर डाल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे जबकि भाटापारा स्कूल के प्रचार्य की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।

बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

वाह रे छग पुलिस

फरार फायनेंस कंपनी के संचालक
के खिलाफ जुर्म दर्ज करने
से कतरा रही है पुलिस
ऋषभ काम्पलेक्स में फर्जी फायनेंस कंपनी के संचालक शिवकुमार शर्मा व दुकान मालिक कथित पार्टनर मदनमोहन सेट्टी के खिलाफ जुर्म दर्ज करने से पुलिस अब भी कतरा रही है। जबकि कंपनी के खिलाफ लगभग 40 लोगों ने धोखाधड़ी की शिकायत की है।
वैसे भी छत्तीसगढ़ में जिस तरह से गृहमंत्री ननकीराम कंवर और डीजीपी विश्वरंजन की भूमिका रही है उसके बाद पुलिस थानों का भगवान ही मालिक है। स्वयं गृहमंत्री थानों को शराब माफिया के आगे बिक जाना बता चुके हैं। यही नहीं धनंजय सिंह परिहार के बार डांस से महिना लेना या तपन सरकार के पार्टनर को बचाना पुलिसिया करतूत बन चुकी है। ताजा मामला शिवकुमार शर्मा और दुकान मालिक मदनमोहन सेट्टी के वैष्णव फायनेंस कंपनी के द्वारा धोखाधड़ी का है। फायनेंस कंपनी द्वारा धोखाधड़ी की सूचना पर जिस तरह से शिवकुमार को छोड़ा गया उससे साढ़े तीन लाख रुपए लेकर मामले को रफा-दफा करने की कहानी सामने आई है।
इधर इस कहानी को इससे भी बल मिलता है कि लगभग 40 लोगों ने अपने साथ धोखाधड़ी करने की शिकायत मौदाहापारा थाने में की है लेकिन थाने में जांच के नाम पर जुर्म दर्ज ही नहीं किया है। दूसरी तरफ मामूली अपराधों में भी मकान मालिक के खिलाफ कार्रवाई करने वाली पुलिस ने इस मामले में मकान मालिक मदनमोहन सेट्टी से पूछताछ की जरूरत भी नहीं समझी है जबकि शिकायत कर्ताओं ने मदनमोहन राये सेट्टी और उसके पुत्र कमल सेट्टी को पार्टनर बताया है। इधर यहां कार्यरत कर्मचारियों ने पुलिस को भी बताया है कि शिवकुमार शर्मा जब फरार हुए तब आफिस में मौजूद करीब ढाई लाख रुपए कमल सेट्टी द्वारा ले जाया गया। इतना सब कुछ होने के बाद भी पुलिस द्वारा अब तक किसी से भी पूछताछ नहीं करने पर कई सवाल खड़े होने लगे हैं। इधर इस मामले में एक निर्दलीय व एक भाजपा के पार्षद द्वारा थाने में दबाव बनाने की चर्चा है।
एक और कंपनी फरार...
इधर अभनपुर क्षेत्र में कार्यरत समाधान इंडिया फायनेंस के द्वारा भी लोगों से पैसा वसूलकर फरार होने की खबर है। शंकरदास गुप्ता (जयप्रकाश दास) सम्बलपुर उड़ीसा का निवासी है, जो छत्तीसगढ़ में समाधान इंडिया फायनेंस प्रा.लि. कंपनी के प्रभारी बतलाकर (बनकर) पूरे प्रदेश में घूम रहे थे और शरद कुमार मसीह जो कि कंपनी के इ.डी. के पोस्ट में थे, कमलेश्वर निर्मलकर रायपुर पचपेढ़ी नाका का निवासी है जिसका ससुराल शंकरनगर गौरव वाटिका मंदिर के पास आशीष डेनियल के यहां किराये से रहते हैं। ये दोनों युवकों ने कमलेश्वर निर्मलकर को 27 जून 2010 अभनपुर ब्लाक में ब्रांच मैनेजर के पद पर चयनित किया था और नियुक्ति पत्र बाद में देने का बात कहकर चले गए। इस दौरान लोगों से फाईनेंस करने के नाम से प्रोसेसिंग एवं डाक्यूमेंट चार्ज के नाम से एवं पर्सनल लोन हेतु 5150 रुपए प्रति व्यक्ति एवं ग्रुप लोन हेतु 550 रुपए प्रति व्यक्ति 10 लोगों के ग्रुप के हिसाब से समाधान इंडिया फायनेंस प्रा. लि. का ब्रांच अभनपुर नयापारा, राजिम, महासमुंद, बसना, पिथौरा, पाटन, भिलाई, रायपुर, धमधा इन सभी जगहाें पर आफिस खुला था और सभी ब्रांचों से लोन फाइनेंस करने हेतु पैसा लिया गया। अभनपुर ब्रांच से श्री कमलेश्वर निर्मलकर जो कि धमतरी रोड मंडी गेट के सामने थाना मोड अभनपुर का रहने वाला से 70 हजार रुपए, शंकरदास गुप्ता और शरद कुमार मसीह ने डी.ओ. आफिसर रायपुर में जमा करवाया। डी.ओ. आफिस श्री रामनगर एफ-2, जी-108 नंबर रुप में खुला था। शंकरदास गुप्ता का ठहरने का स्थान मौदाहापारा गुरु कृपा होटल में विगत 9 माह से रह रहा था। शंकरलाल गुप्ता ने 24 अगस्त 2010 को महासमुंद में 2.00 नगद और 6 लाख रुपए का चेक ब्रांच मैनेजर को दिया। 26 अगस्त 2010 को अभनपुर ब्रांच में पैसा देने का वादा किया था और अन्य ब्रांचों से रुपए लिए। 27 अगस्त 2010 को मालूम हुआ कि सभी चेक बाउंस हो गए हैं। शंकरदास गुप्ता और कुमार मसीह दोनों पिथौड़ा ब्रांच में लोन देना है करके और शरद कुमार मसीह को शंकर दास गुप्ता को आदमी प्लान करके घेरे में ले लिया व रास्ते में रुककर रुपए लेकर चले गए। 30 अगस्त 2010 तक मोबाइल नंबर 8018410092, 9589780517 नंबरों पर उन्होंने कहा कि हम आ रहे हैं लेकिन अब मोबाइल भी बंद है। दिल्ली या उड़ीसा से समाधान फाईनेंस प्रा.लि. कौन से संस्था के द्वारा अनुमति लिया था जिसकी पूर्ण जानकारी शरद कुमार मसीह रायपुर वाले के पास है, ऐसा बताया गया है। शरद कुमार मसीह पूरे छत्तीसगढ़ के प्रभारी के रुप में चुना गया और उसी के द्वारा बाकी व्यवस्था छत्तीसगढ़ के अंदर किया गया। अत: लोगों के साथ कूटरचित रुप से एवं लोगों को गलत जानकारी देकर समाधान फाइनेंस प्रा. लि. के द्वारा लोगों से पूरे क्षेत्र में लगभग डेढ़ करोड़ रुपए वसूली कर चम्पत हो गए है। इनके द्वारा बताए गए मोबाइल नंबर से शरद मसीह से मोबाइल में बात करने पर पैसे वापस करने के संबंध में कहने से इन्होंने कहा कि हमारी काफी उंची सेटिंग है हम पैसा वापस नहीं करेंगे आप हमारा कुछ नहीं कर सकते।

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

भटगांव में भीतरघात कांग्रेस को लगा आघात

विधायकद्वय कुलदीप जुनेजा, अमरजीत भगत तथा सूरजपुर के अब्दुल रसीद, वासु चक्रवर्ती और संजय पाठक?

भटगांव चुनाव में कांग्रेस की करारी शिकस्त ने न केवल कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष धनेन्द्र साहू बल्कि प्रभारी नारायण सामी के अस्तित्व पर ही सवाल उठाये हैं। ऐसे में भाजपा के प्रभारी बृजमोहन अग्रवाल ने कांग्रेसियों के सहयोग की बात कहकर कांग्रेसियों के गाल पर तमाचा जड़ा है जबकि भाजपा से पैसे लेकर भीतरघात करने वालों में विधायक द्वय कुलदीप जुनेजा, अमरजीत भगत के अलावा सूरजपुर के अब्दुल रसीद, शहर अध्यक्ष के दावेदार संजय पाठक, वासु चक्रवर्ती और अरुण भद्रा का नाम सुर्खियों में है।
वैसे तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पूरी तरह से गुटबाजी में उलझी हुई है। कहा जाता है कि राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जिस तरह से संगठन को अपना पिछलग्गू और वसूलीबाज बनाया है उससे निष्ठावान कांग्रेसियों में हताशा है। भाजपा से सांठगांठ के आरोपों की एक वजह यह भी बताई जाती है कि मोतीलाल वोरा के बाद से जितने भी कांग्रेसी अध्यक्ष बने इन लोगों ने कभी भी भाजपा के खिलाफ बड़ा आंदोलन नहीं किया। हालत यह है कि कांग्रेस गुटबाजी में उलझ गई। दूसरे बड़े नेता विद्याचरण शुक्ल और अजीत जोगी की गुटबाजी है। दोनों ही छत्तीसगढ़ में मोतीलाल वोरा से यादा पकड़ रखते हैं लेकिन संगठन में इनकी नहीं चलती जिसकी वजह से एक दूसरे को नीचा दिखाने के जिम्मेदारी इन नेताओं के समर्थकों ने उठा रखी है। इनके बयान से लेकर एक-एक चाल पर गौर करें तो पता चलेगा कि अपने मतलब के लिए ये लोग कांग्रेस को गर्त पर पहुंचा सकते हैं।
भटगांव चुनाव इसका उदाहरण नहीं है इसके पहले रायपुर में नगर निगम के सभापति के चुनाव में भी भाजपा ने कांग्रेसियों को खरीदकर करारी शिकस्त दी थी। इस मामले में हुए लेन-देन की शिकायत पर जांच की नौटंकी भी हुई लेकिन लाचार प्रदेशाध्यक्ष धनेन्द्र साहू कुछ नहीं कर पाए। उनकी इन्हीं कमजोरी को भांपकर भटगांव चुनाव में कांग्रेस के लोगों ने भाजपा से पैसा लेकर जमकर भीतरघात किया। बताया जाता है कि बृजमोहन अग्रवाल ने रायपुर के कांग्रेसियों से हमेशा ही मधुर संबंध के चलते जीतते रहे हैं। उनके लिए कांग्रेसी भीतरघात करते रहे हैं। ऐसे में भटगांव चुनाव में जब उन्हें प्रभारी बनाया गया तो बृजमोहन अग्रवाल से संबंध रखने वाले शहर के कांग्रेसियों ने भटगांव में जाकर बैठ गए और सारी गतिविधियों की जानकारी भाजपा तक पहुंचने लगी।
इधर इस बात की शिकायत प्रदेशाध्यक्ष धनेन्द्र साहू से की गई है जिसमें विधायक कुलदीप जुनेजा और अमरजीत भगत के क्रियाकलापों पर न केवल सवाल उठाए गए हैं बल्कि उन पर लेन देन के आरोप भी लगे हैं। शिकायत कर्ताओं ने यहां तक कहा है कि इन दोनों विधायकों की जिन बूथों पर डयूटी लगाई गई थी वहां एजेंट ही नहीं बैठाए गए या भाजपा से सांठगांठ कर भाजपा के एजेंट ही बिठा दिए गए। शिकायत में महल विरोधी रहे सूरजपुर के अब्दुल रसीद के अलावा वासु चक्रवर्ती, संजय पाठक और अरुण भद्रा पर भी बृजमोहन अग्रवाल से मधुर संबंध के चलते भीतरघात करने और लेन देन का आरोप लगाया गया है।
इधर विधायक द्वय से पूछताछ की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे जबकि बाकी ने इसे छवि धूमिल करने वाला बताया। इधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सूत्रों के मुताबिक उन तक भीतरघातियों की शिकायत तो पहुंच गई है लेकिन वे अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश में यादा ध्यान दे रहे हैं। हालांकि यह भी चर्चा है कि इस बार भीतरघातियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो कांग्रेस में जबरदस्त बिखराव आएगा और इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ेगा।

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

जब मंत्री ही नियम तोड़ें तो सरकार से क्या बोलें...

मुख्यमंत्री के निर्देश का दूसरी बार उल्लंघन किया मंत्री मोहिले ने
रायपुर। अयोध्या विवाद के फैसले पर जुलूस रैली निकालकर प्रदेश सरकार के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहिले ने जिस तरह से नियम कानून की धाियां उड़ाई है उसके बाद इस सरकार से कोई उम्मीद बेमानी ही मानी जाएगी। पुन्नूलाल मोहिले ने मुख्यमंत्री के निर्देश का दूसरी बार उल्लंघन किया है। पहली बार वे प्रतिबंध के बाद विदेश यात्रा पर चले गए थे। डा. रमन सिंह ने अयोध्या विवाद के फैसले पर किसी भी तरह का जुलूस-रैली और पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था। पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू रही और पूरे देश े इस विवाद के बाद शांति बनाए रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखा।
वहीं दूसरी ओर प्रदेश के खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहिले ने अपने निर्वाचन क्षेत्र तखतपुर में जिस तरह से फैसले के बाद जुलूस निकाला वह न केवल घोर आपत्तिजनक मानी जा रही है बल्कि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के अस्तित्व के लिए भी चुनौती मानी जा रही है। ऐसा नहीं है कि खाद्य मंत्री पुन्नूलाल मोहिले ने डा. रमन सिंह के निर्देश को पहली बार चुनौती दी हो। इसके पहले भी वे मुख्यमंत्री के निर्देश को धत्ता बता विदेश यात्रा पर जा चुके है तब हमारी खबर पर मुख्यमंत्री ने न केवल पुन्नूलाल मोहिले को जमकर फटकारा था बल्कि उनके साथ विदेश जाने वाले अफसर उमेश अग्रवाल को हटा दिया गया था जबकि विवेक ढांड को भी खूब लताड़ा गया था।
बताया जाता है कि सांसद से विधायक बने पुन्नूलाल मोहिले काफी वरिष्ठ हैं और वे ऐसे में मुख्यमंत्री की सुनना पसंद नहीं करते। बहरहाल उनकी इस जुलूस को लेकर कांग्रेसियों ने जहां उन्हें पद से हटाने की मांग की है वहीं भाजपा खेमा में भी जबरदस्त हलचल है और कहा जा रहा है कि मंत्री की इस करतूत की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की गई है।

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

राजधानी में दुर्गोत्सव की धूम

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इन दिनों भक्ति भाव से दुर्गोत्सव मनाया जा रहा है जगह -जगह झांकी व् मंदिरों को सजाया गया है. मां देवी की भक्ति में लोग राम गए है . यंहा की ज्यादातर प्रतिमा मन ग्राम में निर्मित होती है यंहा बंगालियों की बस्ती है . सबसे ज्यादा भीड़ पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर में होती है जबकि सबसे पुरानी दुर्गित्सव पंडाल आजाद चौक ब्रह्मण पारा की है