संसद का जवाब चुनाव आयोग का मज़ाक़ और कराहता तंत्र…
चुनाव आयोग किसके इशारे पर झूठ बोल रहा, बर्मा, नेपाल और बांग्लादेशी वोटरों का सच तो संसद में दिये मोदी सत्ता के जवाब में निहित है फिर चुनाव आयोग यह नारैटिव क्यों बना रहा है, संसद में मोदी सत्ता का जवाब जान लीजिए..,
अपनी रणनीति सरेआम हो जाने और लगातार आलोचना का पात्र बने देश का विश्वास खोते चुनाव आयोग का पत्रकार अजीत अंजुम के ख़िलाफ़ fir कराने का यह कदम इस बात को प्रमाणित करता है की सत्ता के साथ उसका गठबंधन चुनाव चोरी करने की कोशिश में लगातार लगा रहता है?
कल सारे देश के मेन मीडिया ने और आज भी कई प्रादेशिक समाचार पत्रों में यह समाचार प्रमुखता से छपा है, चुनाव आयोग के सूत्रों की माने तो बड़ी मात्रा में बर्मी नेपाली और बांग्लादेशी नागरिक बिहार में पाए गए हैं! लेकिन हम तथ्यों का अनुसंधान करें और चुनाव आयोग के पिछली घोषणाओं का विश्लेषण करते हैं करें तो अपने आप हमें समझ में आ जाएगा किस तरह देश के संवेदनों के साथ झूठ बोला जा रहा है
इसकी असली पोल खोली है इकोनामिक टाइम्स में अनुभूति बिश्नोई के इस खुलासे ने ,उन्होंने अपने खुलासे में बताया की जुलाई 2019 में संसद में एक सवाल पूछा गया था जिसमें भारत में रह रहे विदेशी मूल के लोगों की जिनकी नागरिकता पर संदेह है की, पिछले तीन वर्षों के साथ इस वर्ष की भी सूचना मांगी गई थी! संसद में ही
*उसके जवाब में 19 जुलाई 2019 को भारत के कानून मंत्रालय ने जो कहा वह आपको चौंका देगा*
*कानून मंत्रालय ने अपने जवाब मेंकहा 2016 ,2017 और 2019 मैं किसी भी मतदाता का नाम नहीं है 2018 में जरूर तीन मतदाता ऐसे पाए गए हैं उसमें भी आश्चर्यजनक बात यह है एक गुजरात में एक तेलंगाना में और एक बंगाल में पाया गया है*!
2019 से 2025 तक बिहार में नीतीश और भारतीय जनता पार्टी का राज है केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है सीमाओं पर चौकसी की जवाबदारी देश के गृह मंत्रालय की है अगर बिहार में जैसी चुनाव आयोग बता रहा है की हजारों वोट विदेशी लोगों के हैं तो फिर इसका जिम्मेवार कौन है?
इस पर भी विचार करना चाहिए!
*सीमांचल के जिन मुस्लिम बहुल जिलों को लेकर इस विवाद को प्रसारित किया जा रहा है* उसी सीमांचल में अभी जनवरी 2025 में *चुनाव आयोग ने स्पेशल समरी रिवीजन किया था* और उसमें हजारों की संख्या में नाम काटे गए थे, और खुद चुनाव आयोग ने यह वक्तव्य दिया था जो नाम काटे गए हैं वह तीन आधार पर काटे गए हैं उन लोगों की मौत हो गई है या वह लोग शिफ्ट हो गए हैं या वह दो जगह दर्ज हैं!
*अब फिर सवाल उठता है चुनाव आयोग स्पेशल समरी रिवीजन में सही था या इंटेंसिव समरी रिवीजन में उसकी बातों में यह दोहराव क्यों है
*बर्मी नागरिक यानी रोहिंग्या की स्थिति* इसकी सच्चाई जानकरभी आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी!
रोहिंग्याओं को मुद्दा बनाकर सीमांत प्रदेशों में जो हिंदू मुस्लिम नॉरेटिव बनाया जाता है उसकी असलियत क्या है!
रोहिंग्या वर्मा के रखाइन राज्य के एक आदिवासी जाति के लोग हैं जो मुसलमान धर्म को मानते हैं और वर्मा में 1982 के नागरिकता कानून के अनुसार उनके नागरिकता रद्द कर दी गई थी इसलिए बड़ी मात्रा में उन्होंने पलायन किया था और सीमांत देश में मसलन बांग्लादेश भारत और पाकिस्तान में उन्होंने शरण ली थी!
*भारत सरकार के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार*कुल 40000 रोहिंग्या भारत में विद्यमान है*
जिसमें सबसे ज्यादा वह कश्मीर में फिर दिल्ली में फिर हरियाणा में उनकी संख्या है!
संसद में जानकारी देते हुए भारत के कानून मंत्रालय ने बताया था पश्चिम बंगाल में 3724 त्रिपुरा में 1713 तमिलनाडु में 639 और महाराष्ट्र में 228 कुल रोहिंग्याकी संख्या है! बिहार का तो उसमें जिक्र तक नहीं है! ऐसे में चुनाव आयोग के दावे का रोहिंग्या के मामले में क्या अर्थ है?
सरकार के आंकड़ों पर ही हम विश्वास करें 28356 विदेशी लोग हैं जो आवर स्टे कर कर भारत में रह रहे हैं! और जो रोहिंग्या है 40000 उनमें से भी 14000 रोहिगयाUNHCR के तहत भारत सरकार के यहां रजिस्टर्ड हैं!
*नेपाल से लंबे समय तक भारत का रोटी बेटी का रिश्ता रहा है!*
भारत की सेना में भी एक *बहादुर गोरखा ब्रिगेड* हुआ करती थी जिसमें नेपाली नागरिकों को सेना में भर्ती किया जाता था!
गोरखा ब्रिगेड में देश की सेवा करने वाले कई सैनिक नौकरी के बाद भारत में रहने लगे हैं और उत्तर प्रदेश और बिहार में ऐसा कोई भी गांव नहीं होगा जहां एक समय में गोरखा लोग चौकीदारी नहीं करते हो!
ऐसे में उनकी नागरिकता पर सवाल उठाना अपने आप में ही एक प्रश्न चिन्ह है?
यह लोग अधिकांश 2003 के पहले ही भारत में बस चुके हैं इसलिए जब भी सघन जांच होगी नेपाली लोगों के मामले में चुनाव आयोग के दावों की पोल खुल जाएगी!
यहां एक बात और है *भारत सरकार ने अभी कानून बनाया है कि हिंदू शरणार्थी को भारत के नागरिकता दे दी जाएगी क्योंकि नेपाली मूल के जो लोग भारत में बस भी रहे हैं तो वह दरअसल इस परिभाषा के तहत भारत के नागरिक माने जा सकते हैं* ऐसे में उन पर सवाल उठाना सरकार के बनाए गए कानून पर प्रश्न चिन्ह है?
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*बांग्लादेश की समस्या किसी से छुपी हुई नहीं है 1972 में जब बांग्लादेश को अलग कराया गया तब स्वयं इंदिरा गांधी जो देश के प्रधानमंत्री थी उन्होंने पूरे विश्व में कहा के बांग्लादेश में कई लोग देश छोड़ रहे हैं और क्योंकि भारत पर भी शरणार्थियों का दबाव आ रहा है ऐसे में बांग्लादेश को आजाद कराना भारत के लिए जरूरी है वरना भारत की अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है!*
और उसके बाद बांग्लादेश अलग किया गया उसे दौर में बांग्लादेश के शरणार्थियों के लिए खुद सरकार ने कैंप लगाए और कई जगह उन्हें बसाने की व्यवस्था भी की गई!
*इसलिए यह माना जाना की वह शरणार्थियों की समस्या अब वोटर लिस्ट में परिलक्षित हो रही है चौंकाने वाली बात है!*
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*अब सवाल उठता है फिर यह नॉरेटिव क्यों बनाई जा रहे हैं किस आधार पर चुनाव आयोग सूत्रों की खबर बात कर इस बात को जन सामान्य का विचार बनाना चाहता है*
सीधा सा सवाल है देश के उच्चतम न्यायालय को गुमराह करने के लिए और जो वोट काटे जाएंगे उनको परिभाषित करने के लिए यह सारा नॉरेटिव भरा जा रहा है ताकि बिहार में भी चुनाव चोरी किया जा सके!
जैसा कि मैंने पूर्व के आकलन में भी लिखा है माइग्रेटेड पापुलेशन बिहार में बहुत बड़ी मात्रा में है और वह अधिकांश गरीब तबके की है, जिनके वोट काटे जाएंगे वह लोग रहते कहीं भी हो लेकिन अपना आधार और वोटिंग राइट बिहार में रखना पसंद करते हैं!
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यह नॉरेटिव मुसलमान के नाम पर फैलाया जा रहा है लेकिन इसके शिकार बनेंगे गरीब दलित आदिवासी और महा पिछड़े हिंदू!
पिछले चुनाव में सीटों में भले अंतर ज्यादा रहा हो महागठबंधन के और एनडीए के वोटो के बीच में बहुत महीन अंतर था उसी को आधार मानकर यह विश्लेषण किया जा रहा है यदि महागठबंधन के कुछ लाख वोट कम कर दिए जाएं तो बिहार दोहराना आसान हो जाएगा!
यह नॉरेटिव बनाकर जो गरीबों दलितों के अल्पसंख्यकों को वोट काटे जाएंगे, वह इसी सोच का परिणाम होगा! (साभार)
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