रविवार, 30 जून 2024

विजय की नासमझी…

 विजय की नासमझी...


दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से लगातार दूसरी बार सांसद बनने वाले विजय बघेल को उम्मीद थी कि मोदी मंत्रिमंडल में और नहीं तो राज्यमंत्री बनने का मौक़ा तो मिल ही जायोगा, और इस उम्मीद की वजह पार्टी के निर्देश पर चाचा भूपेश बघेल के खिलाफ विधानसमा चुनाव लड़‌ना है। लेकिन मोदी मंत्रिमंडल में जगह तो दूर प्रदेश सरकार में भी अब उनकी पूछ परख कम हो गई है। संतोष पांडे के निवास में हुई भोज कार्यक्रम में कोई उनसे ठीक से बात करने वाला नहीं था।

लेकिन विजय बघेल ने उम्मीद नहीं छोड़ी है तो इसकी वजह कुर्मी वाद की वह राजनीति है जो उन्हें दुर्ग जिले में मजबूत नेता की छवि के रूप प्रस्तुत करता है। 

लेकिन शायद वे यह भूल गए है कि उनका भाजपा से नाता तो विद्याचरण शुक्ल की वजह से हुआ है और जब पार्टी में मोहन सेठ जैसे संघी - भाजपाईयों की कद्र नहीं है तो किर दूसरी पार्टी से आने वालों का क्या उपयोग करना है यह मोही शाह से बेहतर कौन जान सकता है। और वैसे भी मोदी-शाह को यह गाना खूब पसंद है कि - मतलब निकल गया है तो, पहचानते नहीं…

लोगों का तो यहां तक कहना है कि विजय बघेल ने तो मोदी- शाह उन्हें कभी मंत्री नहीं बनाने वाले हैं और हसका ईशारा तो उन्होंने विधानसभा चुनाव में ही तब कर दिया था, जब विजय बघेल को भूपेश के खिलाफ टिकिट दिया था और समझने  वालों के लिए ईशारा ही काफ़ी होता है। और फिर कल भोज में संगठन से लेकर सत्ता वालों का व्यवहार के बाद तो सब कुछ साफ़ हो जाने की बात कही जा रही हैं, तो अपनी पूछ परख का हवाला दे दे कर सांसद जिस तरह से एक दूसरे का पोल खोल रहे हैं , उसमें भी सब कुछ साफ़ हो गया है।

लेकिन विजय बघेल यह समझने को तैयार नहीं है और उन्हें लगता है कि देर-सबेर मंत्री बना ही दिया जायेगा...!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें