सत्ता से समृद्धि...
कभी राजनीति समाज सेवा का सबसे सशक्त माध्यम हुआ करता था । सादा जीवन उच्च विचार के मूलमंत्र से अभिभूत राजनीति में आने वाले की सेवा भाव देखते ही बनती थी । कांग्रेस हो या भाजपा, समाजवादी हो या कम्यूनिष्ट सबके लिए समाज सेवा प्रथम लक्ष्य रहा । ऐसे कितने ही उदाहरण रहे जब इस देश में नेताओं ने राजनैतिक सुचिता के लिए सत्ता की कुरसी को लात मारने से भी परहेज नहीं किया । खुद छत्तीसगढ़ में बैठी रमन सरकार की पार्टी में ही अटल-आडवानी से लेकर कई नाम लोगों को जुबानी याद हैं जिन्होंने राजनैतिक सुचिता के लिए अपना सब कुछ होम कर दिया । लेकिन क्या अब इसी पार्टी में ऐसा हो रहा है । भाजपा ही क्यों किसी भी पार्टी में ऐसा नहीं हो रहा है । अपराधियों को संरक्षण से लेकर खुद भ्रष्टाचार में डुबे लोग सत्ता का केन्द्र बने हुए है और ऐसे लोग बड़ी बेशर्मी से राजनैतिक सुचिता, ईमानदारी की बात करते नहीं थकते ।
सत्ता के साथ बुराई के घालमेल को स्वाभाविकता की चासनी में पिरोने में भी किसी को शर्म नहीं आती और न ही अपने लिए समृद्धि का टापू बनाने से ही इन्हें कोई दिक्कत होती है । तभी तो छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में शिक्षा-स्वास्थ के अभाव को नजर अंदाज कर नई राजधानी के नाम पर समृद्धि का टापू खड़ा कर दिया जाता है । इस टापू के एक-एक रास्ते के लिए रोशनी का ऐसा इंतजाम किया जाता है ताकि बिजली विहिन गांव की तरफ कभी ध्यान ही न जाए ।
मंत्रियों व अधिकारियों के बैठने के कमरों की भव्यता इतनी बढ़ा दी जाती है कि एक आम आदमी इस चकाचौंध में अपनी पीड़ा व्यस्त करने की हिमामत न कर सके ।
इस भव्यता पर गांधी के विचार पर चलने वाले कांग्रेसियों को भी इसलिए फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वे भी कतार में है ।
ऐसे में राजनीति समाज सेवा का माध्यम की बजाय कार्पोरेट सेक्टरों की भव्यता की तरह व्यवसाय का जरिया बन गया हो तो भला किस पार्टी को आपत्ति होगी ? क्योंकि दूकानें तो किसी न किसी की चलनी ही है और जनता ही ठगी जायेगी । इस राजधानी ने ऐसे बहुत से लोगों को राजनीति में आते ही करोड़ पति अरबपति बनते देखा है जिनकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं रही । जिनके घर दो टाईम का चूल्हा बमुश्किल से जलता था वे आज इस शहर के दान दाता बने है । जिनके खुद के मकान नहीं थे वे सैकड़ो एकड़ के मालिक है और जिनकी औकात एक पाव पीने की नहीं थी ओर आधा पाव का पैसा मिलाने शाम से ही टकटकी लगाए बैठे होते थे वे आज सबसे महंगी शराब ही नही पिलाते बल्कि अपने बेटे की शादी भी इतनी भव्यता से करते है कि सब देखते रह जाए ।
सत्ता से आई इस समृद्धि का यह सफर राजनीति को किस मुकाम तक ले जायेगा यह तो पता नहीं लेकिन एक बात तय है कि जनता की हाय लेकर की गई कमाई का एक बड़ा हिस्सा या तो बिगडै़ल औलाद उड़ा देते हें या फिर डाक्टर ले जाते हैं ।
जियो और जीने दो की संस्कृति से ओत प्रोत छत्तीसगढ़ में राज्य बनते ही जो परिवर्तन आया है उसकी कल्पना किसी ने नहीं की रही होगी । सत्ता से आ रही समृद्धि ने संवेदनहीनता को तो बढ़ाया ही हैे नैतिकता और राजनैतिक सुचिता पर भी चोंट की हैे ।
बेलगाम नौकर शाह और बढ़ते भ्रष्टाचार ने इस नये नवेले राज्य के विकास में रोड़ा अटका रहे हैं तो इसकी वजह जनप्रतिनिधियों की तामसी प्रवृति है जो वातानुकूलित कक्ष से ऐसे बुनियाद रखना चाहती है जिसका रास्ता विकास नहीं विनाश की ओर जाता है । क्या भाजयुमों के युवा सम्मेलन में समृद्धि का तामझाम सत्ता के रास्ते से नहीं आया है । और सत्ता की समृद्धि से विकास की सोच नहीं खुद की एय्याशी का बंदोबस्त ही होता है...
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