बृजमोहन अग्रवाल के विधायकी से इस्तीफे के बाद रायपुर दक्षिण विधानसमा के लिए भाजपा में दावेदारों की फेहरिश्त है लेकिन जब से रविशंकर विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अजय शुक्ला की दावेदारी सामने आई है अन्य दावेदारों में हड़कम्प मच गया है। हड़कम्प मचने की वजह उनका युवाओं में प्रभाव के अलावा राजनैतिक शैली है जो किसी को भी प्रभावित कर सकता है। कहा जाता है कि भाजपा के निर्धारित मापदंड में वे खरे तो उतरते ही हैं दक्षिण के रहवासी होने का भी उनको लाभ हैं।
दक्षिण के दावेदार...
भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज विधायक बृजमोहन अग्रवाल की विधायकी छुड़वाने के बाद अब पार्टी यहाँ किसे टिकिट देगी यह तो मोदी-शाह ही तय करेंगे लेकिन भाजपा में दावेदारों ने पार्टी की मुसिबत बढ़ा दी है।
दाबेदारों में ऐसे ऐसे नाम सामने आ रहे हैं जिनकी कल्पना ख़ुद भाजपा के स्थानीय नेताओं ने नहीं की थी, और इनमें से कुछ दावेदार तो ऐसे हैं जो वार्ड का चुनाव भी नहीं जीत पाये हैं लेकिन उन्हें लगता है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार और बृजमोहन अग्रवाल की बोई फ़्रसल आसानी से चुनाव जीतवा देगा। ऐसे में कई लोग ऐसे हैं जो खामोशी से अपनी टिकिट का इंतज़ार कर रहे हैं। पार्टी नेताओ का भी मानना है कि दक्षिण में इस बार जो नाम आयेगा वह चौंकाने वाला होगा।
चौकाने वालो नाम कौन होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन क्या वह दक्षिण विधानसभा का रहने वाला होगा ? यह सवाल अब बड़ा इसलिए हो गया है क्योंकि अब तक यहाँ चुनाव जीतने वाले मोहन सेठ पश्चिम के निवासी थे, और दक्षिण के दावेदार उनके नाम और ताकत की वजह से विरोध तो छोड़िये दावेदारी भी नहीं करते थे।
ऐसे में पार्टी के भीतर इस बार दक्षिण से ही किसी को टिकिट देने की माँग जोर शोर से उठाई जा रही है तो इसकी बड़ी वजह मोहन सेठ की पसंद की अनदेखी करना भी है।
कहा जाता है कि दक्षिण से ही उम्मीदवार हो यह माँग सबसे पहले केदार गुप्ता ने उठाई थी, और चर्चा तो इस बात की भी है कि उन्होंने इस मांग को हवा देने का खेल भी किया।जड़ी-बूटी वाले एक मामले में भूपेश सरकार के दौरान विवाद में आने वाले केदार गुप्ता पर लोकसभा चुनाव के दौरान मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर खेल होने और करने के भी किस्से हैं।
दरअसल टिकिट को लेकर पार्टी की दिक़्क़त यह भी है कि दक्षिण से ही कई नेता ऐसे हैं जो दमदार माने जाते हैं, बेमेतरा के लिए टिकिट वितरण में विलम्ब होने की वजह वाले योगेश तिवारी के लिए भी कई लोग लगे हैं तो, सिंधी समाज के गुरु भी दावेदार हैं, इसके अलावा मीनल चौबे, मृत्युंजय दुबे भी दावेदारों की फेहरिश्त में शामिल है तो कहा जा रहा है कि यूनिर्वसिटी प्रेसिडेंट रहे अंजय शुक्ला की दावेदारी भी बेहद मजबूत है। वे दक्षिण के रहवासी भी है तो काली माई मंदिर के ट्रस्टी भी है, यानी भाजपा जिस धर्म के घालमेल पर विश्वास करती है उसमें अंजय शुक्ला भी फिट बैठते हैं ,।
कहा जा रहा है कि छात्रनेता से राजनीति में आने वाले अजय शुक्ला को बृजमोहन अग्रवाल का बेहतर विकल्प भी माना जा रहा है। और कहा तो यहां तक जा रहा है कि अजय को टिकिट देने से पुराने छात्र नेताओ का साथ भाजपा को उसी तरह से मिलेगा जैसे बृजमोहन अग्रवाल को मिलता रहा है।
दावेदारों की लंबी सूची होने की एक बड़ी वजह प्रदेश में सरकार होना भी है। ऐसे में जब फैसला मोदीशाह की जोड़ी को करना है तो किसका भाग्य खुलेगा कहना मुश्किल है।
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