सोमवार, 31 मई 2021

ज्ञान पर नफरत का ध्वजारोहण-3


आजादी के बाद की सत्ता जानती थी कि नफरत के ध्वजारोहण ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को क्षति पहुंचाने का प्रयास आगे भी जारी रहेगा, इसलिए ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध भी लगाये गए।

सत्ता सचेत थी, नेहरु सचेत थे, सरदार वल्लभ भाई पटेल भी सचेत थे, इसलिए इनके रहते तक नफरत का खेल कुचल दिया गया। ये जहां भी जाते दंगा करवाते थे। लेकिन जब सरकारे सचेत हो तो हर मुश्किल घड़ी से निपटा जा सकता है। धर्म और जाति का सहारा लेकर सत्ता में आने के उपाय जारी थे। लेकिन जिस देश में विवेकानंद, सुभाष बाबू, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद जैसे लोग सर्वधर्म सद्भाव रखते हो वहां धार्मिक कुंठा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन हिटलर की तर्ज पर झूठ को बार-बार परोसा जाने लगा। ताकि झूठ और अफवाह सच लगे।

भगत सिंह से मिलने कोई नहीं गया, जब देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है तो भारत हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं, सुभाष बाबू की मौत का रहस्य पता नहीं कितने ही झूठ परोसे गए और फिर भी सत्ता नहीं मिली तो नेहरु मुसलमान थे, या हर वे नेता को मुसलमान बताये जाने लगे जो अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के पक्ष में खड़ा होने लगे। 70 के दशक में ज्ञान पर नफरत का ध्वजारोहण के लिए नई जमीन तलाश की जाने लगी। क्योंकि चीन और पाकिस्तान से युद्ध की वजह से भारत की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ा था लेकिन जब इंदिरा ने बैकों का सरकारीकरण, पंचवर्षीय योजना सहित पोखरण भी कर डाला तो एक बार फिर ज्ञान पर ध्वजारोहण का मंसूबा फेल गया।

लेकिन आपातकाल का वह दौर जिससे सारे राजनैतिक दल डरे हुए थे, इंदिरा गांधी की ताकत अहंकार में परिवर्तन होने लगा था, बेरोजगारी और महंगाई मुंह खोले खड़ा था तब हिन्दू कुंठा लिये लोगों ने अपना झंडा-डंडा चिन्ह सब दांव पर लगा दिया। और स्वयं को बचाने उनके साथ हो गये जो कांग्रेस के विरोधी थे। कांग्रेस के विरोधी दल भी यह नहीं समझ पाये कि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती। लेकिन सत्ता आते ही जब कुंठित हिन्दू एक बार फिर सिर उठाने लगा तो सरकार ही चली गई।

दरअसल हिन्दू कुंठा की यह एक तरह की रणनीति थी, 47 से लेकर 77 तक के सफर में वह जान चुका था कि इस देश में सिर्फ हिन्दुत्व के नाम पर वोट नहीं बटोरे जा सकते? इसलिए उन दलों के सहारे उस क्षेत्रों से भी चुनाव जीता गया जहां उनकी जीत कभी नहीं हो सकती थी। क्योंकि उनके लिए अब भी संविधान गलत था, उनके लिए झंडा में तीन रंग अशुभ था और राष्ट्रगीत भी गलत था। यही स्पष्ट है कि संघ ने अपने मुख्यालय में तिरंगा फहराने से परहेज किया। लेकिन इंदिरा गांधी के खौफ और सत्ता की चाहत ने सब कुछ अनदेखी किया।

नफरत के नए-नए बीज लाकर रोपण किया जाने लगा, कभी गौ हत्या के नाम पर तो कभी कश्मीर में धारा 370 के नाम पर। राम मंदिर तो एक मुद्दा था ही। लेकिन 77 में सत्ता आते ही पोल खुल गई, सरकार गई लेकिन उन्होंने अपनी ताकत बढ़ा ली थी, लेकिन सरकार नहीं चला पाने के दाग से कोई नहीं बच सका और 80 में एक बार फिर इंदिरा गांधी सत्ता सीन हुई। ये वह दौर था जब छोटे राज्यों के निर्माण को लेकर आंदोलन की हवा चलने लगी, राम मंदिर और धारा 370 को लेकर अफवाहों को हवा दी गई, पंजाब में खालिस्तान की मांग तेज हो गई, बेरोजगारी-महंगाई भी सिर उठाने लगा, एक बार फिर विपक्ष सत्ता के लिए ताकत लगाने लगा लेकिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या ने विपक्ष के मंसूबे पर पानी फेर दिया। नफरत की हवा तो इंदिरा गांधी ने पहले ही निकाल दी थी। कांग्रेस सत्तासीन हुई, लेकिन यह नेहरु-शाी और इंदिरा वाली कांग्रेस नहीं थी, यह राजनीति के अनाड़ी माने जाने वाले राजीव गांधी वाली कांग्रेस थी जो बगैर राजनीति के जनसेवा के लिए तत्पर रहने वाली थी, इसने केन्द्र से गांव तक पैसा पहुंचाने की स्थिति को भी नहीं छिपाया, न ही 84 के दंगे की वजह को ही छुपाया।

देश 84 के रक्तपात से हिल चुका था, सिखों ने कांग्रेस से दूरी बना ली यह भी नहीं देखा कि इंदिरा ने तमाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रिपोर्ट के बाद भी सिख सुरक्षा गार्डों को नहीं हटाया था। सद्भावना समाप्त सी हो गई थी और इसे हवा देने का राजनैतिक प्रयास शुरु हो चुका था लेकिन राजीव गांधी ने नए भारत की नींव रख दी थी, आधुनिकीकरण और कम्प्यूटर क्रांति का दौर शुरु हो चुका था। मिस्टर क्लीन के नाम से मिल रही प्रसिद्धि में बाफोर्स आ गया। और सत्ता की चाह में विपक्ष एक बार फिर इतिहास को भूल गठबंधन में आ गया। (जारी...)

शनिवार, 29 मई 2021

देश को कहां ले जा रहे हो साहेब...

 

क्या सचमुच इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देश की समझ नहीं है या यह जनसंख्या कम करने की कोई साजिश है? यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे है ताकि लोगों को यह पता तो चले कि आखिर इस देश की सत्ता पर काबिज सरकार की हकीकत का पता चल सके।

दरअसल यह सवाल इसलिए भी उठाये जा रहे हैं क्योंकि केन्द्र में जब से मोदी सरकार आई है, देश के माहौल में जो नफरत की हवा बहने लगी है उसका दुष्परिणाम सबके सामने है। मोदी सरकार ने वैसे तो दो सौ योजनाओं की घोषणा की है लेकिन वे सारी घोषणाएं हकीकत की धरातल पर बुरी तरह असफल रही है। स्मार्ट सिटी से लेकर आयुष्मान भारत योजना हो चाहे स्टार्टअप से लेकर उज्जवला योजना हो धरातल पर कहीं दिखाई नहीं देता। यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गोद लिये गांव की हालत देख लिजिए। 

ऐसे में कुछ ऐसे फैसलों पर भी निगाह जाती है जो साबित करने के लिए काफी है कि इस सरकार को देश की समझ ही नहीं है। नोटबंदी में डेढ़ सौ लोगों की मौत के अलावा भी कुछ हासिल हुआ हो तो जरूरत बताईयेगा। जीएसटी की असंगत से आज भी मध्यम श्रेणी के व्यापारी परेशान है। और कोरोना की लापरवाही ने तो लाखों लोगों की जान ले ली। अचानक लिये गए लॉकडाउन से कितने मजदूर सड़कों पर आ गये ये आंकड़े भले ही सरकार के पास न होने का दावा करे पर इससे हकीकत नहीं बदलने वाली। कोरोना की लापरवाही का यह आलम है कि दुनिया भर के देश वैक्सीन खरीदने का जुगाड़ कर रहे थे और हमारे देश की सत्ता लापरवाही का शतक पूरा करने में लगी थी।

लाशों का मंजर तो असहाय था ही अस्पतालों में बदइंतजामी और दवाइयों तथा आक्सीजन की कालाबाजारी ने सारी हदें पार कर दी। इस पर यदि सरकार को दोष न भी दे तो भूख से व्याकुल जनता और वैक्सीन के अभाव में छटपटाते लोगों की लाइनें क्या सत्ता को दिखाई नहीं दे रहा है। खाद्य तेल से लेकर जीवन के लिए जरूरी खाद्यानों की कीमत भी दिखाई नहीं दे तो फिर सत्ता की समझ क्या है। पेट्रोल-डीजल और गैस की बढ़ती कीमत भी क्या सरकार को दिखाई नहीं दे रहा है और इसकी कीमत बढऩे से महंगाई बढऩे की समझ भी सरकार के पास नहीं है तो फिर सरकार की समझ पर शक होना लाजिमी है। क्या सत्ता पाने झूठ-छल-प्रपंच अफवाह और नफरत फैलाने की समझ ही रह गई है इससे सत्ता तो मिल ही गई और आगे भी मिल जायेगी लेकिन देश की समझ कैसे होगी?

शुक्रवार, 28 मई 2021

देश को कहां ले जाओगे मोदी जी...


देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की पुण्यतिथि पर कुंठित हिन्दुओं ने सोशल मीडिया में जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया, अश्लीलता फैलाई वह न तो हिन्दू धर्म के अनुरुप है और न ही मानवता के।

पिछले कुछ सालों में इस देश में कुंठित हिन्दुओं ने एक नई परम्परा शुरु की है कि गांधी, नेहरु या ऐसा कोई भी नेता जो संघ और भाजपा के विचारधारा को नहीं मानता, उनके जयंती या पुण्यतिथि पर अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया जाता है। यह परम्परा अमानवीय ही नहीं उस कुंठा का प्रतीक भी है जो सत्ता के अहंकार में फलने फूलने लगा है। और यह सब खेल वही लोग कर रहे है जिनका कहीं न कहीं से संघ या भाजपा से संबंध है। ऐसे में हम समाज को कहां ले जा रहे हैं, मानवता की कौन सी परिभाषा गढ़ रहे है यह सवाल देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भई पूछना चाहिए क्योंकि बात-बात पर झूठ बोलना और अमर्यादित भाषा के इस्तमेाल भी वे ही करते हैं।

हालांकि यह पार्टी अपने को हिन्दुवादी या हिन्दुओं की रक्षक ही नहीं बताती बल्कि समय-समय पर धार्मिक का चोला भी ओढ़ती है तब यह बात जरूरी हो जाता है कि जिस हिन्दू धर्म ग्रंथ में झूठ, छल प्रपंच और अमर्यादित भाषा केवल असुरों की बताई जाती है उस धर्म ग्रंथ के कथित रक्षकों को यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही है। इस देश ने हमेशा ही मानवता के उस परम्परा को जिया है जिसके तहत मृतात्माओं की बुराई करने से बचा जा सके लेकिन हाल के सालों में जिस तरह की परम्परा को बढ़ावा दिया जा रहा है उसके बाद किसी के सम्मान को बचाये रखना मुश्किल हो जायेगा।

भारतीय जनता पार्टी में यह परम्परा क्यों शुरु हो गई यह कहना कठिन है क्योंकि पार्टी इस तरह के आरोपों को सिरे से खारिज भी कर सकती है लेकिन देखने वाली बात तो यही है कि इस तरह की हरकत सिर्फ उसी समूह के लोग ही कर रहे हैं और बेशर्मी से कर रहे हैं। तब सवाल यही उठता है कि यह हरकत क्या नीच किस्म का नहीं है? आप मेरी बातों से सहमत या असहमत हो सकते हैं। लेकिन परिवारवाद के विरोध के नाम पर जिस तरह से मर्यादा लांघी जा रही है उस पर रोक नहीं लगाई गई तो इस देश को रसातल में जाने से कोई बचा भी ले तो लोगों का जीवन नारकीय होना तय है।

सत्ता तो आती जाती रहती है लेकिन देश तभी बचेगा जब उसकी संस्कृति और परम्परा बची रहेगी वर्ना भूगोल को देश कहकर खुश तो हुआ जा सकता है लेकिन नफरत के बीच लोगों में खुशहाली नहीं ला पायेगा। इसलिए इस तरह की हरकत न केवल निंदनीय है बल्कि असुरों जैसी है जो हिन्दू धर्म के विपरीत है।

गुरुवार, 27 मई 2021

मोदी के सात साल में सत्तर हाल...

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सात साल का सफर पूरा कर लिया है लेकिन यकीन मानिये इन सात सालों में देश का सत्तर हाल हो गया है। विफलताओं का सारा रिकार्ड इन सात सालों में बना है लेकिन हिन्दू-मुस्लिम और राष्ट्रवाद का खेल अब भी जारी है और यही हाल रहा तो देश में आम नागरिकों का जीवन न केवल किसी बर्बाद हो चुके देश की तरह होगा, नारकीय होगा?

ये दावा हम उन आकड़ों के बल पर कर रहे हैं जो मोदी सत्ता की विफलता की कहानी तो कह रही है बल्कि गरीबों की संख्या में हो रही लगातार बढ़ोत्तरी है। मोदी सरकार जब 2014 में सत्ता में पहली बार आई तब वह अच्छे दिन आयेंगे के जुमले को लेकर आई थी, लोगों को इस सत्ता से उम्मीद भी बहुत रही लेकिन इन सात सालों में देश ने क्या खोया और क्या पाया इसकी समीक्षा नहीं की गई तो यह पता ही नहीं चलेगा कि यह देश किस तरह दुनिया के कमजोर देशों से भी नीचे जा रहा है।

आप बैकों के 8 लाख करोड़ रुपए के राइट ऑफ में गिनते जाईये। हालांकि मोदी समर्थक इस राइट ऑफ यानी कर्ज माफी को कहते हैं कि यह कर्ज माफी उन लोगों का हुआ है जो हिन्दू है और मोदी के रहते हिन्दुओं का कर्ज माफ नहीं होगा तो किसका होगा। हालांकि उनके पास कर्ज में डूबे किसानों की मौत मायने नहीं रखते क्योंकि किसान चंदा नहीं देते।

दूसरा सवाल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचने का है। सत्तर साल में किसी प्रधानमंत्री ने 19 कंपनियों को नहीं बेचा। इसी तरह 70 साल में कोई भी प्रधानमंत्री ने रिजर्व बैंक के रिजर्व फंड का उपयोग-दुरुपयोग इस स्तर पर कभी नहीं किया। सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे काले धन को विदेशों से लाने प्रतिबद्ध हैं और इसके लिए जरूरी कानून भी बनाना पड़ा तो वह भी बनायेंगे लेकिन इस बारे में सवाल पूछना ही मना है।

देश में हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देने के वादे का सच यह है कि केन्द्र सरकार ने सात साल में केवल 9 लाख लोगों को नौकरी दी और यदि राज्यों को भी जोड़ दें तो इन सात सालों में केवल 48 लाख लोगों को ही नौकरी मिल पाई है। जबकि नौकरी से हाथ धोने वालों की संख्या दो करोड़ से अधिक बताई जा रही है। महंगाई किसी से छिपी नहीं है। पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के अलावा रोजमर्रा के खानपान में भी दस फीसदी से अधिक महंगाई बढ़ी है।

नोटबंदी का सच तो पूरी दुनिया को मालूम है कि किस तरह से डेढ़ सौ लोग सड़कों में लाईन लगाकर मर गए। जबकि जीएसटी की विसंगति ने छोटे व्यापारियों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। आगे विफलता गिनाने से पहले जिसे वे सरकार की सफलता मानते है उस धारा 370 को हटाने का कोई फायदा आम लोगों को या देश को हुआ हो यह कहना मुश्किल है।

तब मध्यप्रदेश की सत्ता की चाह और नमस्ते ट्रम्प की लापरवाही से देश में कोरोना से त्राहिमाम् भी कोई कैसे छुपा सकता है। नासमझी में किये गये लॉकडाउन के चलते मजदूरों की सड़क में मरने की मजबूरी भी कोई कैसे भूल सकता है। सच तो यह है कि हम गरीबी भूखमरी तक में पाक और कल के बंग्लादेश से पीछे है। तब सत्ता की कौन सी उपलब्धि को सच माना जाए।

बुधवार, 26 मई 2021

लड़ाई धंधे की...

 

एलोपैथी और आयुर्वेद को लेकर जिस तरह से लड़ाई छिड़ी है उससे हैरान होने की जरूरत नहीं है, असल में यह लड़ाई धंधे में वर्चस्व की लड़ाई है और कोरोना काल में बाबा रामदेव की कंपनी को हुए घाटे ने इस लड़ाई को तेज कर दिया है।

यह लड़ाई झूठ-नफरत, अफवाह और कुंठित राष्ट्रवाद की लड़ाई भी कही जा सकती है। क्योंकि जब आप किसी एक से बेहद नफरत करते रहते हैं और लगातार नफरत करते रहते हैं तो यह आपकी आदतों में शुमार हो जाता है फिर यदि आप नफरत के लिए नये नये लक्ष्य ढूंढते हैं। बाबा रामदेव ने एलोपैथी चिकित्सा पद्धति को जिस तरह से कोसा है, वह हैरान कर देने वाला है, और यह हैरानी तब और बढ़ जाती है जब वे अपनी बीमारी का ईलाज एलोपैथी से करवाते है।

इसका मतलब क्या है? इस लड़ाई की प्रमुख रुप से दो ही वजह है पहली वजह अपना बिजनेस चमकाना है तो दूसरी वजह नफरत फैलाना है। दोनों ही कारण बेहद स्पष्ट है और यह सब सरकार के संरक्षण में हो रहा है कहा जाय तो गलत नहीं है। एक तरफ जब पूरी दुनिया लाईलाज कोरोना महामारी से जूझ रही हो लाशें लगातार गिर रही हो तब चिकित्सा पद्धति को लेकर विवाद क्या लोगों का ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है या अपनी नफरत की रोटी को सेंकने का उपक्रम मात्र है।

कहना कठिन है, यह सच है कि आयुर्वेद पद्धति विशुद्ध रुप से भारतीय चिकित्सा पद्धति है और अनेक मौकों पर यह कारगर भी रही है, और यह भी सच है कि एलोपैथी ने जमकर लूट मचाई है और यह एक ढंग से पैसों वालों के लिए है। लेकिन तमाम दोष के बाद भी एलोपैथी को सिरे से नकारने का मतलब क्या है। हालांकि यह खेल मोदी सत्ता के आने के बाद ही ज्यादा खेला गया क्योंकि यह धर्म की राजनीति करने वालों के लिए सुविधा देता है। इसलिए कोरोना की लड़ाई में भाजपा खेमे से जुड़े लोगों के गोबर गौमूत्र से लेकर हवन, भाभी जी पापड़, कोरोनिल की आवाजें आती रही है।

ऐसे में बाबा रामदेव का इस लड़ाई में कूदने का मतलब जो हनीं समझ रहे हैं वह भी एक तरह की रणनीति है। कोरोना के मामले ही नहीं दूसरे सभी मामलों में बुरी तरह असफल हो चुकी मोदी सत्ता में असल मुद्दों से ध्यान भटकाने का खेल नया नहीं है। तबलीकी जमात से लेकर फर्जी टूलकिट के ऐसे कई मामले है जो मोदी सत्ता की मंशा को एक्सपोज किया है। अब देखना है कि बाबा रामदेव के बिगड़े बोल का क्या असर होता है।

सोमवार, 24 मई 2021

उल्टा चोर कोतवाल को डांटे...

 

यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना कथित फर्जी दस्तावेज के सहारे कांग्रेस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के खुलासे के बाद 'गिरफ्तार करोÓ का न प्रदर्शन होता न ही बेतुका बयानबाजी होती।

दरअसल इस देश में एक कुनबे की पूरी राजनीति ही झूठ-नफरत और अफवाह के सहारे टिकी हुई है, और इसके चलते देश का नुकसान भी इसलिए हुआ क्योंकि झूठ के इस खेल के खिलाफ किसी भी सत्ता ने कार्रवाई नहीं की और अब हालत यह है कि फिंजा में नफरत की हवा ने सांस लेना दूभर कर दिया है।

ताजा मामला भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा के उस कथित दस्तावेज का है जिसे ट्वीट्र ने भी गलत मान लिया है। संबित पात्रा ने बकायदा प्रेस कांफ्रेंस लेकर कांग्रेस पर आरोप लगाये कि कांग्रेस पूरी दुनिया में भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि खराब करना चाहती है। पात्रा ने कहा कि इस टूलकिट की मंशा को पूरी नहीं होने देंगे।

पात्रा के इस दस्तावेज को चुनाव हारने के बाद अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने शेयर किया और कांग्रेस के खिलाफ विषवमन किया। इधर जैसे ही इस कथित दस्तावेज की झूठ सामने आई। एनएसयूआई के आकाश शर्मा सहित प्रदेशभर के कांग्रेसियों ने संबित पात्रा और डॉ. रमन सिंह के खिलाफ प्रदेश भर के कई थानों में जुर्म दर्ज कराया गया।

इधर जुर्म दर्ज होने के बाद भाजपा ने इसे गलत बताते हुए हमें भी गिरफ्तार करों का कैपेंने चला दिया। हालांकि जुर्म दर्ज होने के बाद और ट्विटर द्वारा गलत बता देने के बाद भी छत्तीसगढ़ की पुलिस अभी तक डॉ. रमन सिंह को गिरफ्तार नहीं की है। लेकिन भाजपा नेताओं ने अपने-अपने घरों में प्रदर्शन जारी रखा है। छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक इस मामले में डॉ. रमन सिंह से पूछताछ की गई। इसके लिए डॉ. रमन सिंह को नोटिस भी दे दिया गया था। नोटिस में चार बिन्दुओं पर पूछताछ हुई लेकिन गिरफ्तारी को लेकर पुलिस अभी भी बच रही है। इधर सक्रिय हो गये है जो 15 साल की सत्ता के दौरान सत्ता की रईसी का मजा ले रहे थे।

शनिवार, 22 मई 2021

प्रधानमंत्री के आंसू...

 

कोरोना के इस भीषण तबाही को लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुखी है, तो उन्हें दुखी होना भी चाहिए क्योंकि कोरोना की जो तबाही और नरसंहार इस देवभूमि के कतरे कतरे में दिखाई दे रहा है उसकी वजह किसी से छिपी भी नहीं है। सत्ता की लापरवाही के चलते हुए इस नरसंहार को लेकर दुखी होना और इसकी जिम्मेदारी लेना दोनों ही अलग बात है।

हम यह बिल्कुल भी नहीं कह रहे हैं कि नरसंहार के इस मंजर से प्रधानमंत्री जी दुखी होने का नाटक कर रहे हैं क्योंकि जिस तरह से रुदन और वेदना के स्वर आकाश से ऊंचा होता जा रहा है उसमें दुखी होने के अलावा कोई राह भी नहीं है। सत्ता या नेताओं को लेकर कितनी भई मोटी चमड़ी की बात कही जाए वह मोटी चमड़ी भी इस रुदन के आगे पिघल जायेगी फिर नरेन्द्र मोदी तो देश के प्रधानमंत्री है। 

ऐसे में उनके दुख के सच होने को लेकर आश्वस्त होना चाहिए हो यदि वे अपनी लापरवाही का बयान नमस्ते ट्रम्प से शुरु कर तमाम लापरवाही को गिना देते तो शायद उनके दुख पर सवाल नहीं उठता। लेकिन सत्ता के प्रमुख पदों पर बैठने वालों का अपना चरित्र होता है, फिर जिम्मेदारी को स्वीकार करने के लिए न केवल नैतिक साहस की जरूरत होती है बल्कि अपने भीतर के झूठ और छल को मारना पड़ता है। और यदि राजा जिम्मेदारी स्वीकार कर ले तो फिर वह कैसा राजा।

कोरोना के दौर में देश की सत्ता से लोगों की उम्मीद यदि बड़ी है तो इसके लिए प्रधानमंत्री को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सत्ता की जब पूरी रईसी लोगों के टैक्स पर निर्भर है, सेन्ट्रल विस्टा के लिए पैसे या प्रधानमंत्री के महल के लिए पैसे जब टैक्स से ही आना है तो वैक्सीन को टैक्स फ्री कैसे किया जा सकता है। आखिर जनता पेट्रोल, रसोई गैस पर टैक्स दे ही रही है, दवा से लेकर घरेलु उपयोग की वस्तुओं  की कालाबाजारी में अधिक पैसे दे ही रही है तब वैक्सीन में टैक्स देने से क्या परेशानी हो सकती है।

इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर टैक्स नहीं लेने का दबाव डालना ही गलत है, वैसे भी सत्ता चलाना आसान काम तो है नहीं। फिर आपदा के समय तो यह और भी मुश्किल भरा काम है। सलाह देने या आलोचना करने वालों का क्या है उनका कौन सा पैसा लगना है तब उनकी सलाह तो बेमानी ही हुई और फिर मुफ्त की सलाह की कोई कीमत भी तो नहीं होती। देश को प्रधानमंत्री को धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि वे न केवल दुखी है बल्कि उन्होंने मृतकों को श्रद्धांजलि भी दे दी है और अब क्या किसी को सुली पर चढ़ाओगे?

शुक्रवार, 21 मई 2021

मरद हो तो चिल्लाओ राजा नंगा...

 

मोदी सरकार की लापरवाही के चलते कोरोना ने जिस तरह से इस देवभूमि पर तबाही और नरसंहार किया है उसके बाद तो इस सरकार को सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। ऐसे में जब तमाम बुद्धिजीवी, कलाकार, साहित्याकर, कवि सिर्फ इस डर से खामोश बैठे हो कि ट्रोल आर्मी और वाट्सअप युनिवर्सिटी उन्हें देशद्रोही घोषित कर देंगे तब एक महिला कवियत्रि की कविता 'शववाहिनी गंगाÓ इन दिनों सोशल मीडिया में तहलका मचा रही है।

गुजरात की मशहूर गुजराती कवियित्री पारुल खखर की शववाहिनी गंगा की हिम्मत की दाद इसलिए भी देनी चाहिए क्योंकि बीस हजार से ज्यादा गाली गलौज के बाद भी उसने इस कविता को अपने फेसबुक से डिलीट नहीं किया है। यही नहीं इस कविता की सफलता साफ बताती है कि मोदी सरकार की कार्यशैली को लेकर लोग कितने नाराज है।

पारुल की इस कविता की सफलता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि गुजराती में लिखी इस कविता इस कविता का अब तक पंजाबी, मराठई, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और हिन्दी सहित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर सोशल मीडिया में डाला जा रहा है। पारुख खखर को इस कविता के लिए शबासी भी खूब मिल रही है। रातों रात चर्चित हुई इस कविता से नाराज मोदी समर्थकों ने तो गालियों की ऐसी बौछार कर दी है कि एक बार फिर भाजपा के संस्कार पर  सवाल उठने लगे है। महिला को लेकर की जा रही इस तरह की टिप्पणी से साफ पता चलता है कि कुंठित हिन्दुओं के लिए पार्टी से बड़ा कोई नहीं। 

आप खुद ही पढिय़े इस कविता को हम पाठकों की सुविधा के लिए हिन्दी अनुवाद ही प्रकाशित कर रहे हैं-

मरद हो तो आगे आओ, चिल्लाओ, ' राजा नंगाÓ ...,


एक स्वर में मुर्दे बोले, जब कुछ चंगा चंगा

राज, आपके रामराज्यमें शबवाहिनी गंगा


राज, आपके मसान कम हैं,कम है चिता लकड़ी,

राज, हमारे मातम करनेवाले कम हैं,कम हैं रोनेवाले,


घर घर जा कर यमटोली करती नाच बेढंगा

राज, आपके रामराज्यमें शबवाहिनी गंगा


राज, आपकी धुआं उगलती  चिमनी चाहे  चैन,

राज, हमारे कंकण टूटे तड़ाक, सीना टूटे,


जलता सब कुछ देख फीडल बजाये 'बिल्ला रंगाÓ

राज, आपके रामराज्य में शबवाहिनी गंगा


राज , दिव्य आपकी  ज्योति , दिव्य आपके वस्त्र 

राज, आपको असली रूपमें देखे पूरी नगरी,


मरद हो तो आगे आओ, चिल्लाओ, ' राजा नंगाÓ

राज आप के रामराज्यमें शबवाहिनी गंगा।

(आज के दौर मे भारतीय नागरिको के दर्द को आक्रोशित करती पारूल खखर की गुजराती कविता हिंदी अनुवाद। अनुवाद : डॉ. जी. के. वणकर)

गुरुवार, 20 मई 2021

लापरवाही की हद पार तबाही और नरसंहार...(2)

 

हमने पहले ही बताया था कि किस तरह से मोदी सरकार की लापरवाही ने इस देश में तबाही और नरसंहार मचाई थी और लापरवाही की हद पार हो गई कब कहीं संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सरकार पर निशाना साधा। पहली लहर की लापरवाही से सबक सिखने की बजाय मोदी सत्ता ने तो दूसरी लहर की चेतावनी के बाद तो लापरवाही की सारी हदें पार कर दी।

पहली लहर को रोकने राज्य सरकारों ने खूब मेहनत की लेकिन कोरोना का प्रभाव थोड़ा सा ही कम हुआ कि प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ने न केवल अपनी पीठ थपथपाई बल्कि जनवरी में कोरोना ने जंग जीत लेने का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी ऐलान कर दिया। दुनियाभर के एक्सपर्ट का मजाक भी उड़ाया। यही नहीं एक्सपर्ट कमेटी की न बैठक बुलाई गई और न ही बढ़ते केस पर प्रोटोकॉल में दी महिनों बदलाव किया गया। एक्सपर्ट कह रहे थे दूसरी लहर में ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ेगी लेकिन मोदी सरकार ने 9 मिलियन टन ऑक्सीजन विदेशों को बेच दी। एक्सपर्ट कह रहे थे दूसरी लहर भयावह होगी लेकिन कुंभ के आयोजन की अनुमति दी जाने लगी। बंगाल चुनाव में रैलियों के लिए सब कुछ खोल दिया। जबकि पूरे देश में कोरोना का कहर त्राहिमाम् मचा रहा था, कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल मोदी के बंगाल सत्ता का लोभ पर सवाल उठा रहे थे लेकिन पूरी भाजपा अपने विरोधियों का उपहास उड़ाने में लगी रही।

इस लापरवाही का भयानक परिणाम सबके सामने आने लगा। कोरोना से ज्यादा आक्सीजन और अस्पताल की बेइंतजामी में लोग मरने लगे। और सत्ता में बैठे लोग गौमूत्र, गोबर, कोरोनिल, हवन और पता नहीं क्या-क्या बोलने लगे। जबकि सरकार कुंभ के आयोजन को मना कर सकती थी, बंगाल चुनाव में प्रत्यक्ष रैली और प्रचार के लिए वर्चुअल या दूसरा तरीका अपना सकती थी, लेकिन सत्ता का दंभ और लोभ कब किसका सुनता है दंभ और लोभ हमेशा ही तबाही मचाता है लेकिन सत्ता आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि उसकी लापरवाही की वजह से इस देश में तबाही और नरसंहार का मंजर हुआ।

विदेशी मीडिया से लेकर अब तक संघ प्रमुख भी मोदी सरकार की आलोचना कर चुके है, न्यायालय ने तो जिस तरह से लानत भेजी वह डूब मरने वाली है लेकिन जब दंभ और लोभ हावी हो तो शरम कहां बचता है। कुंभ का दुष्परिणाम गंगा में बहती लाशों के रुप में सामने आई, मौत के तमाम आंकड़े छुपाने के बाद भी हम दुनिया के नक्शे में काला धब्बा की तरह दिखाई देने लगे हैं, कल्पना कीजिए की यदि आंकड़े न छुपाये तो दुनिया क्या कहेगी। हालांकि कई विशेषज्ञ अब तो मौत के आंकड़ों को दस लाख के पार बता रही है लेकिन सत्ता के पास कब शर्म रही गई।

मंगलवार, 18 मई 2021

लापरवाही की हद पार तबाही और नरसंहार...(1)

 

पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने जब कहा कि केन्द्र सरकार से बेहद लापरवाही हुई है तो इस बात की गंभीरता को समझना होगा कि आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किस हद तक और कहां कहां लापरवाही की क्या इस देश में कोरोना की वजह से हुई तबाही और मौतों की जिम्मेदारी उनकी नहीं होनी चाहिए।

मोदी सत्ता की लापरवाही को आप गिनते-गिनते थक जाओगे? हालांकि इस सत्ता का प्राय: हर निर्णय आम लोगों की तकलीफों में ईजाफा करने वाला रहा है, तब मोहन भागवत का पहली बार मोदी सरकार पर निशाने को पानी का सिर से उपर चढ़ जाने के महावरे को चरितार्थ करता है वरना संघ तो ऐसे ही सत्ता चहती रही है। 

कोरोना काल में हुई बेहिसाब मौते, परिवार का परिवार तबाह होना, सैकड़ों बच्चों का अनाथ होना और लाखों लोगों का गरीब हो जाने की जिम्मेदारी मोदी सत्ता की इसलिए भी है क्योंकि इस आपदा को लेकर पूरी दुनिया ने पहले ही चेतावनी दे दी थी और यहां की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने भी सरकार को लापरवाही न बरत इसे गंभीरता से लेने कहा था लेकिन बहुमत का दम्भ ने किसी की नहीं सुनी और हालात सबके सामने है।

कोरोना को लेकर डब्ल्यूएचओ सहित दुनिया के कई देशों ने दिसम्बर 2019 में पहली चेतावनी दी थी, लेकिन मोदी सरकार ने कुछ भी नहीं  किया। तब जनवरी के अंतिम दिनों में भारत में कोरोना का पहला मामला सामने आया और फरवरी में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चेताया कि सत्ता अभी भी कुछ नहीं कर रही है शीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए। लेकिन बढ़ते केस के बावजूद मोदी सरकार खामोश रही और कोरोना से लडऩे की बजाय तत्कालीन अमरीका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को जीताने के अभियान के तहत गरीबी छुपाने दिवाल खड़ी करते हुए नमस्ते ट्रम्प का भीड़ भाड़ वाला आयोजन कर डाला। 

कोरोना की रफ्तार लगातार बढ़ रही थी, अब तो लोग मरने भी लगे थे कई जगह से हाहाकार मचने की खबरें आने लगी लेकिन मोदी सरकार ने कोरोना के खिलाफ तब तक कुछ नहीं किया जब तक मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की सरकार नहीं बनी। जिस तरह से सरकार बनते ही लॉकडाउन का निर्णय लिया गया उससे स्पष्ट है कि केवल सत्ता के लिए विलंब किया गया वरना गंभीरता को सरकार समझ रही थी नहीं तो अचानक लॉकडाउन का निर्णय नहीं लेती।

मोदी सरकार की लापरवाही यही नहीं रुकती है, सत्ता के मोह में अचानक लिये गए निर्णय से देशभर में राशन से लेकर दूसरी जरूरतों का  अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया, इसके बाद लॉकडाउन की तारीख बढ़ते ही देशभर में अफरातफरी मच गई, क्योंकि सरकार ने अब तक लॉकडाउन में फंसे लोगों के लिए कोई उपाय नहीं किया था, फंसे लोग ही नहीं अनिश्चितता की वजह से बड़ी संख्या में मजदूरों की घर वापसी शुरु हो गई।

मजदूरों की घर वापसी का मंजर बेहद खौफनाक, दर्दनाक था, कई किलोमीटर की दूरी तय करने परिवार के परिवार निकल पड़े, छोटे बच्चे,  महिलाएं कोई नहीं रुक रहा था और घर वापसी थी मौत का कहर बनकर टूटने लगा, रास्ते में, पटरियों में मौतों का मंजर भयावह था। इतने रुदन और वेदना के बाद कहीं मोदी सत्ता ने गरीबों के लिए मदद की घोषणा की लेकिन मध्यम वर्ग के लिए सरकार के पास कोई योजना न तब थी न अब है। (जारी)

बिग ब्रेकिंग: छत्तीसगढ में जुआ एक्ट में अब तक की सबसे बडी कार्यवाही 11 जुआडियों से नगद 41लाख 24 हजार



  • ➡️ ग्राम सम्हर थाना तेन्दूकोना नेचर बास्केट फाॅर्म हाउस में सजने वाले गुल जुआ फड में पुलिस का छापा।
  • ➡️ 11 जुआडियों से नगद 41,24,705/- (इक्तालीत लाख चैबीस हजार सात सौ पाच) रूपये नगद के साथ 5 लक्जरी वाहन व 12 नग मोबाईल जुमला कीमती 1,27,78,705/-(एक करोड़ सत्ताईस लाख अढातर हजार सात सौ पांच रुपये) रूपये जप्त
महासमुन्द
छत्तीसगढ सम्पूर्ण राज्य में व्याप्त कोरोना महामारी के मद्देनजर पुलिस अधीक्षक श्री प्रफुल्ल कुमार ठाकुर ने जुआ/सट्टा, अवैध शराब, अवैध गांजा परिवहन आदि संदिग्ध गतिविधयों पर रोक लगाने एवं उनके विरूध्द कार्यवाही करने हेतु जिले के समस्त थाना/चैकी प्रभारियों तथा सायबर सेल महामुन्द की टीम को निर्देशित किया गया था। जिसके तहत् सायबर सेल महासमुन्द व थाना/चैकी क्षेत्रों में ऐसे गतिविधियों पर निगाहे रख रही थी कि इसी दौरान दिनांक 17.05.2021 को मुखबीर से सूचना मिली की थाना तेन्दूकोना क्षेत्र ग्राम सम्हर के नेचर बास्केट फाॅर्म हाउस में गुल नामक जुआ खेल रहे है, कि सूचना को गम्भीरता से लेते हुये पुलिस अधीक्षक महासमुन्द, महोदय ने सायबर सेल महासमुन्द की टीम व थाना तेन्दूकोना पुलिस की टीम को पकडने हेतु निर्देशित किया। खिलाडी इतने शातिर थे कि पुलिस पार्टी की आने की सूचना देने के लिए आने-जाने वाले रास्तों पर वाचर लगाये थे और फाॅर्म हाउस से दूर अपनी वाहनों को लगाकर खडे किये थे। सायबर सेल महासमुन्द की टीम व थाना तेन्दूकोना पुलिस की टीम के लिए यह एक चुनौती थी सायबर सेल महासमुन्द पुलिस के द्वारा अलग-अलग टीम बनाकर बाईक व कार के माध्यम से फड तक पहुची और चारों ओर से घेराबंदी कर 11 जुआडियों को पकडा गया। जिसमें जुआडियान 01. टोनू उर्फ प्रशांत अग्रवाल पिता सूरज अग्रवाल उम्र 45 वर्ष सा. बागबाहरा महासमुन्द।  02. मनमीत गुरूदत्ता पिता बालसिंह गुरूदत्ता उम्र 41 वर्ष सा. गणेशपारा खरियार रोड ओडिसा। 03. मोहम्मद नवाब पिता मोहम्मद सुलेमान उम्र 38 वर्ष सा. हनुमान नगर कालीबाडी, रायपुर। 04. गणेश प्रसाद शुक्ला पिता देवी प्रसाद शुक्ला उम्र 62 वर्ष सा. देवेन्द्र नगर रायपुर। 05. सन्टी उर्फ हरपाल सिंह सलूजा पिता सुरजीत सिंह सलूजा उम्र 46 वर्ष सा. गुरूद्वारा पारा बागबाहरा महासमुन्द। 06. राकेश प्रसाद पिता जगन्नाथ प्रसाद उम्र 47 वर्ष सा. खुर्सीपार भिलाई, दुर्ग। 07. प्रदीप मोटवानी पिता सहजान मोटवानी उम्र 38 वर्ष सा. दीनदयाल काॅलोनी, भिलाई, दुर्ग। 08. देव कुम्हार पिता अवधराम कुम्हार उम्र 57 वर्ष सा. शितला मंदिर के पिछे पुरानी बस्ती, रायपुर। 09. सुनील कुमार पिता रमेश कुमार उम्र 42 वर्ष सा. गंजपारा, रायपुर। 10. सौरभ कुमार जैन पिता सुभाष कुमार जैन उम्र 30 वर्ष सा. दीनदयाल उपाध्याय नगर, गोल चैक रायपुर। 11. योगेन्द्र गण्डेचा पिता मनसुखलाल गण्डेचा उम्र 54 वर्ष सा. बागबाहरा, महासमुन्द के निवासी है। जुआडियान के पास से कुल नगदी रकम 4124705/- रूपये तथा 05 लक्जरी कार एवं 12 नग विभिन्न कंपनियों के मंहगे मोबाईल कुल जुमला कीमती लगभग 12778705/- रू एवं गुल पासा (डाईस), टाईल्स जप्त कर जुआ एक्ट के तहत् थाना तेन्दूकोना में कार्यवाही की गयी है। यह सम्पूर्ण कार्यवाही पुलिस अधीक्षक श्रीमान प्रफुल्ल कुमार ठाकुर के मार्गदर्शन में अति0 पुलिस अधीक्षक श्रीमती मेघा टेम्भुरकर साहू एवं अनु0अधिकारी(पु) बागबाहरा सुश्री लितेश सिंह के निर्देशन में सायबर सेल महासमुन्द प्रभारी उप निरीक्षक संजय सिंह राजपूत व थाना प्रभारी तेन्दूकोना हर्ष धुरंधर सउनि विजय मिश्रा, प्रआर श्रवण कुमार दास, प्रवीण शुक्ला, मिनेश ध्रुव, प्रेमलाल कर, भुनेश्वर टण्डन आर. रवि यादव, चम्पलेश ठाकुर, शुभम पाण्डेय, पीयूष शर्मा, दिनेश साहू, देव कोसरिया, शैलेन्द्र ठाकुर, संदीप भोई, ललित यादव, हेमन्त नायक, योगेन्द्र दुबे, विरेन्द्र नेताम, राजकुमार रात्रे, किशोर साहू, कमल जांगडे, त्रिलोक ठाकुर, रवि बरिहा, दुर्गा प्रसाद दीवान, लितक ठाकुर, इन्द्रजीत ठाकुर, मआर. मीरा यादव की टीम द्वारा किया गया।
नाम आरोपी:-
01. टोनू उर्फ प्रशांत अग्रवाल पिता सूरज अग्रवाल उम्र 45 वर्ष सा. बागबाहरा महासमुन्द।
02. मनमीत गुरूदत्ता पिता बलसिंह गुरूदत्ता उम्र 41 वर्ष सा. गणेशपारा खरियार रोड  ओडिसा।
03. मोहम्मद नवाब पिता मोहम्मद सुलेमान उम्र 38 वर्ष सा. हनुमान नगर कालीबाडी, रायपुर। 
04. गणेश प्रसाद शुक्ला पिता देवी प्रसाद शुक्ला उम्र 62 वर्ष सा. देवेन्द्र नगर रायपुर।
05. सन्टी उर्फ हरपाल सिंह सलूजा पिता सुरजीत सिंह सलूजा उम्र 46 वर्ष सा. गुरूद्वारा पारा  बागबाहरा महासमुन्द। 
06. राकेश प्रसाद पिता जगन्नाथ प्रसाद उम्र 47 वर्ष सा. खुर्सीपार भिलाई, दुर्ग।
07. प्रदीप मोटवानी पिता सहजान मोटवानी उम्र 38 वर्ष सा. दीनदयाल काॅलोनी, भिलाई, दुर्ग।
08. देव कुम्हार पिता अवधराम कुम्हार उम्र 57 वर्ष सा. शितला मंदिर के पिछे पुरानी बस्ती,  रायपुर।
09. साजीद मेमन पिता अब्दुल मेमन उम्र 38 वर्ष सा. रमन मंदिर वार्ड फाफाडीह रायपुर।
10. सौरभ कुमार जैन पिता सुभाष कुमार जैन उम्र 30 वर्ष सा. दीनदयाल उपाध्याय नगर,  गोल चैक रायपुर।
11. योगेन्द्र गण्डेचा पिता मनसुखलाल गण्डेचा उम्र 54 वर्ष सा. बागबाहरा, महासमुन्द

जप्त सामग्री:-
01. फड एवं पास से नगदी रकम 4124705/- रूपये।
02. एम.जी. हैक्टर कार क्रमांक CG 04 NB 9236 कीमति लगभग 15,00,000/- रूपये।
03. फाॅच्र्यूनर कार क्रमांक CG 07 T 4275 कीमति लगभग 25,00,000/- रूपये।
04. फाॅच्र्यूनर कार क्रमांक CG 04 ME 0470 कीमति लगभग 30,00,000/- रूपये।
05. मारूती ब्रेजा कार क्रमांक CG 04 LS 9994 कीमति लगभग 6,00,000/- रूपये।
06. महिन्द्रा KUV100 कार क्रमांक CG 13 Y 7508 कीमति लगभग 7,00,000/-रूपये।
07. 12 नग विभिन्न कंपनियों के मंहगे मोबाईल कीमति लगभग 3,54,000/- रूपये।

सोमवार, 17 मई 2021

नैतिक सत्ता तो बची नहीं!

 

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या नैतिक सत्ता खो चुके हैं? हालांकि नरेन्द्र मोदी पर पार्टी का भरोसा अब भी कायम है इसलिए सत्ता जाने का सवाल ही नहीं है लेकिन सात साल में इस शख्स की छवि को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितना पलीता लगा है उतना किसी भी प्रधानमंत्री पर नहीं लगा हैं।

बात-बात पर झूठ और अमर्यादित भाषा शैली और भाजपा के प्रचार में दिन-रात लगे रहने की शैली ने उनके हर काम पर संशय का बादल खड़ा कर दिया है। नेता की ताकत होती है जनता का विश्वास, सक्षमता और दूर दृष्टि पर। लेकिन जब नियत ही साफ न हो या शंकास्पद हो तो फिर वह लाख जतन कर ले इतिहास में वह दर्ज होने लायक नहीं बच सकता है। 

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास केवल तीन साल बचे हैं लेकिन बीते बरस में अविश्वास की जो खाई बड़ी है उसके बाद यह कहना कठिन है कि वे कोई नया करिश्मा कर पायेंगे क्योंकि इस कोरोना काल में प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितनी आलोचना हुई है उसकी भरपाई हो पाना असंभव सा है। पिछले सात साल के शासन में घोर पक्षपात, अपने पराए का भाव, स्वार्थी भाव और पूरी सरकारी मशीनरी को प्रोपोगेंडा चेम्बर में बदल दिया गया, असहमति के स्वर को ट्रोल करना और सरकार की इसी नीति के चलते बीते सात साल में इस देश की नागरिकता छोड़कर जाने वालों की संख्या सात लाख के पार होने लगी है। असुरक्षा और अशांति के इस दौर में पैसे वालों में जिस तरह की घबराहट बढ़ी है और देश छोडऩे का चलन बढ़ा है वह इस देश की आर्थिक ढांचे को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचा चुके हैं।

लोकतंत्र की सबसे बड़ी खासियत विपक्ष या अहसमति के स्वर को तवज्जों देना है। आप नेहरु से लाख चिढिय़े लेकिन याद रखिये कि इस देश को महान लोकतांत्रिक बनाने में उन्होंने अपना पूरा जीवन होम कर दिया था। जब संसद में जनसंघ की चार सीट थी और सेवियत नेता निकिता खुश्वेच भारत आए तो नेहरु ने उम्दा भाषण की वजह से अटल बिहारी वाजपेयी को खुश्वेच से मिलाने न केवल बुला लिये बल्कि वाजपेयी का परिचय देते हुए कहा कि ये हमारे भावी प्रधानमंत्री है, नेहरु जानते थे कि ये तभी होगा जब कांग्रेस हार जायेगी। लेकिन उनमें हीनभावना नहीं थी। परिचय सुनकर खुश्चेन तुरंत बोले फिर ये यहां क्या कर रहे है? हमारे देश में तो हम उन्हें गुलग (राजनैतिक विरोधियों की जेल) में भेज देते हैं।

नेहरु जानते थे कि लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए विपक्ष का होना जरुरी है इनके जैसे कांग्रेस मुक्त वाले नेहरु नहीं थे। असहमति के स्वर को बीते सात साल में प्रताडि़त करने के सैकड़ों उदाहरण है और हद तो तब हो गई जब कोरोना के इस भीषण आपदा में मदद करने वालों के हाथ काटने की कोशिश हुई। 

गुजरात में जारी हुए सवा लाख डेथ सर्टिफिकेट और गंगा में कुत्ते नोचते लाश का जवाब मोदी सत्ता को इसलिए भी देना चाहिए क्योंकि गुजरात, उत्तराखंड, बिहार और उत्तरप्रदेश में भाजपा की ही सरकार है। मोहन भागवत जब कहते हैं कि सत्ता से लापरवाही हुई है तब भी यदि हिन्दुस्तान में आएगा तो मोदी ही गूंज सुनाई देने लगे तो मान लीजिए कि इस देश को अभी और नीचे जाना है, और भी लाशें गिननी है और बौद्धिक और उद्यमशीनों का देश से पलायन जारी रहना है।

रविवार, 16 मई 2021

देश को मझधार में खड़ा कर दिया...

 

मोदी सरकार ने कोरोना वैक्सीनेशन के मामले में देश को मझधार में खड़ा कर दिया है। हर तरफ हाहाकार है, मौत के आकड़े छुपाये जा रहे है। वैक्सीन की पहली और दूसरी डोज को लेकर बार-बार नीतियों में परिवर्तन किया जा रहा है। हालत बदतर होते जा रहा है और प्रधानमंत्री की अभी भी प्राथमिकता सेन्ट्रल विस्टा में महल बनाने की है।

याद कीजिए तो मोदी सरकार का हर निर्णय लोगों में भ्रम फैलाने और जान लेने वाला रहा है। नोटबंदी के समय 8 नवम्बर 2016 से लेकर 31 दिसम्बर 2016 तक सौ तरह के आदेश जारी हुए इसका परिणाम क्या हुआ 150 से अधिक लोग मारे गए। फिर जीएसटी को नयी आर्थिक आजादी का सूरज के रुप में पेश किया गया और इसकी वजह से भी सैकड़ों व्यापारी बर्बाद हो गए। न नोटबंदी के मास्टर स्टोक का फायदा मिला न जीएसटी के मास्टर स्ट्रोक से फायदा हुआ।

भारत के कोविड वर्किंग ग्रुप के चेयरमेन डॉक्टर एन.के. अरोरा ने कुछ दिन पहले कहा था कि दो डोज के अंतराल को बढ़ाने से बेहतर परिणाम का कोई सबूत नहीं है ऐसा वही देश कर रहे है जहां वैक्सीन की कमी है। देश में वैक्सीनेशन को लेकर सत्ता ने बार-बार नियम बदले 60 वर्ष से 45 फिर 18 वर्ष किया गया पिछले चार माह में सरकार का बयान देखे तो या तो वह विरोधाभाषी है या अस्पष्ट है। ऐसा लगता है कि सरकार ने इस देश में नरसंहार का फैसला ही कर लिया है ताकि जनसंख्या के कथित समस्या से मुक्ति मिल सके। यह इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि मोदी सरकार ने अगस्त 2020 में निर्णय लिया कि कोई भी राज्य सरकारे, अपने स्तर पर वैक्सीन के संबंध में कोई भी प्रयास न करें। जितनी भी जरूरत होगी, वह केन्द्रीय स्तर पर भारत सरकार खरीदेगी। जबकि इस समय पूरी दुनिया के देश अपनी-अपनी जरूरत के हिसाब से ग्लोबल टेंडर दे रहे थे तब मोदी सरकार केवल सीरम इंस्टीट्यूट को आर्डर देकर अपने चेहते टीवी चैनलों पर वैक्सीन गुरु का खिताब बटोर रहे थे।

अचानक मोदी सरकार के इस भ्रमित निर्णय के चलते वैक्सीनेशन में कमी आ गई तो फिर राज्य सरकारों के सामने ग्लोबल टेंडर जारी करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। उत्तरप्रदेश, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, राजस्थान की सरकारें ग्लोबल टेंडर जारी कर रही है या कर दी है। सवाल यही है कि जब ग्लोबल टेंडर राज्यों को ही जारी करना था तब यह काम पर पहले क्यों मना किया गया। इस सरकार के सारे फैसले आग लगने के बाद कुआं खोदने वाली होने की वजह से देश की हालत हर मोर्चे पर खराब होते जा रही है और कोरोना ने तो भयावह तबाही मचाई है।

इस सरकार की आदतों में शुमार भ्रमित निर्णय के बाद भी यह सरकार श्रेय लेने की होड़ में भी लगी रहती है जबकि हकीकत में देखा जाए तो इस सत्ता ने 6 साल में देश को इतना पीछे ढकेल दिया है, लोगों के जीवन को नरक बना दिया है जिसकी कल्पना ही बेमानी है। देश में टीकाकरण का इतिहास उपलब्धियों से भरा रहा है, पोलियों, चेचक, टीवी, हेपेटाईटिस बी जैसे मामले में नि:शुल्क टीकाकरण सफलतापूर्वक होता रहा है। और उसके परिणाम भी सुखद रहे हैं लेकिन इस सत्ता ने वर्तमान वैक्सीनेशन अभियान के काला अध्याय बना दिया।

शनिवार, 15 मई 2021

नीच कर्म...

 

दान, दया, प्रेम, सत्य, तप ये धर्म के मूल आधार है, और यह समाज का भी महत्वपूर्ण अंग है। हम कितने सामाजिक और धार्मिक है यह व्यक्ति के इन्ही गुणों से पता चलता है। कोरोना ने हमारी सामाजिक और धार्मिक आस्था पर प्रहार भी किया है। बावजूद इस संकट की घड़ी में दान और दया ने ही हमारे जीवन में नया आशा का संचार किया है।

लोक एक दूसरे के मदद करने नहीं आते और सत्ता के भरोसे रहते तो कितनी ही जाने चली जाती क्योंकि वर्तमान सत्ता को अपनी रईसी और सेन्ट्रल विस्टा में महल बनाने की चिंता है। उसका हर निर्णय रईसी और महल में केन्द्रित है। वे अपनी रईसी कब तक बरकरार रखेंगे, इसकी चौतरफा आलोचना होने लगी है। लेकिन सवाल यह है कि सत्ता अब क्या नहीं चाहती कि लोगों के मदद के हाथ उठे। कालाबाजारी जैसे नीच कर्म करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से असहाय सत्ता यदि मदद करने वालों के हाथ रोकने की कोशिश करे तो यह कौन सा कर्म कहलायेगा? आप खुद सोचिये?

इस देश में आपदा से पहले भी दान देने वालों ने अभूतपूर्व कार्य करके लोगों की जिन्दगी बचाई है, कितने ही बच्चों की पढ़ाई, कितने ही लोगों का ईलाज और कितने ही लोगों के भोजन की व्यवस्था की है और अब भी कर रहे हैं। और यह पूरी दुनिया में होता है, खुद इस देश ने आपदा में दूसरे देशों के लोगों की मदद की है तब इस कोरोना के दौर में मदद करने वालों के पीछे पुलिस लगाना कौन सा हिन्दू ग्रंथ में लिखा है। 

दिल्ली पुलिस के क्राईम ब्रांच ने युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास के अलावा भाजपा के सांसद गौतम गंभीर और हरीश खुराना से भी पूछताछ  की है कि वे लोगों की मदद कैसे कर रहे हैं। भले ही इस मामले को खुद भाजपा के लोग हल्के में लेने की बात कर रहे हैं लेकिन खुद कुछ भी नहीं करने वाली सरकार का यह कृत्य हैरान ही नहीं उन लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है जो दिन रात सड़कों, अस्पतालों में घुम-घुम कर भोजन दवाई या दूसरी मदद कर रहे है।

सवाल यही तक नहीं है, सबसे दुखद और पाशविक तो मोदी सरकार का वह निर्णय की वजह से सामे आ रहा है जिसके तहत किसी भई स्वयंसेवी एनजीओ के सीधे विदेशी मदद को अपराध बना दिया गया था, यह तो हाथ में जख्म हो तो हाथ ही काट देने वाला कानून है यह बात इस कोरोना में स्पष्ट हो गया। इस कानून की वजह लोगों तक आक्सीजन कॉन्सटेटर्स की आपूर्ति तो बाधित हुई है दूसरी जरूरत भी बाधित हुई है।

याद कीजिए पिछले वर्ष जब कोरोना की पहली लहर चल रही थई तब मोदी सरकार ने फॉरेन कन्ट्रीब्यूशन रजिस्ट्रेशन एक्स यानी एफसीआर में संशोधन किया था, तब इसकी कई संस्थाओं ने इसका विरोध भी किया था लेकिन मोदी सत्ता ने इसे पारदर्शी होने की बात कहकर सबको चुप करा दिया था। अब कहा जा रहा है कि यह संशोधन लोगों की जान बचाने में बन रही है एक एनजीओ के सह संस्थापक जेनीफर लियांत कहती है कि विदेशी कई दानदाता आक्सीजन कान्सेटेटर्स और जरूरी सामान मुहैया करा रहे हैं लेकिन इस कानून की वजह से जरुरतमंदों तक पहुंचाने में देर हो रही है।

शुक्रवार, 14 मई 2021

कनक-कनक तै सौ गुनी...

 

जिस तरह से रुदन और वेदना के स्वर दिनों दिन आकाश से ऊंचा होने लगा है, यकीन मानिये ये किसी नरमेघ से कम नहीं है। और इन लाशों को देखकर भी यदि हम को उसके अपराध के लिए बचा रहे हैं तो फिर हमारे भीतर का मानव मर चुका है और हम वापस जानवर बन रहे हैं।

हम यहां मोदी सरकार की पिछली लापरवाही के इस त्रासदीपूर्ण दुष्परिणाम को नहीं गिना रहे हैं बल्कि वर्तमान में मोदी सत्ता को क्या करना चाहिए पर चर्चा कर रहे हैं। सत्ता ने पूर्व में जो गलतियां की वह अक्षम्य है लेकिन इस देश में कब सत्ता ने अपनी जिम्मेदारी मानी है, ईलाज के अभाव में दम तोड़ती जिन्दगी, भूख से मौत और सत्ता की रईसी को बरकरार रखने की कोशिश में आम जनों का खून निचोडऩे वाला टैक्स।

ऐसे में जो हुआ सो हुआ लेकिन अब क्या आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा। क्या आगे भी ऐसी लाशें नदी में बहती रहेगी, इतनी रुदन और वेदना के बाद भी यदि करुणआ न जगे और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो इस पर क्या सचेत रहने की जरूरत नहीं है। बड़े शौक से नेहरु और गांधी को गली देने वाले जरा सोचिये इस भीषण महामारी में यदि वे होते तो क्या वे घरों में दुबके बैठे होते, आजादी के भीषण त्रासदी के बाद क्या वे चुप िबैठे थे? इसलिए जब बात इस त्रासदी की हो रही है और देश का प्रधानमंत्री मुंह में दही जमाकर अपने निवास पर बैठा हो तब जिम्मेदारी को लेकर सवाल उठेंगे और जिन्हें ये सवाल पसंद नहीं वे अपने भीतर झांके और पूछे यदि उन्हें आक्सीजन, दवाई और खाना न मिले तब भी क्या वे अपनी किस्मत को ही कोसेंगे?

जब कांग्रेस ने सेंट्रल विस्टा का शिलान्यास किया था तब भी मैं इसका विरोध कर रहा था और आज जब सेंट्रल विस्टा में प्रधानमंत्री का महल बनाया जा रहा है तब हमें सोचना चाहिए कि क्या हम उस राजतंत्र को वापस देखना चाहते है जो राजमहल के बगैर अकल्पनीय था। लोकतंत्र में हम प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की जरूरत इसलिए महसूस नहीं की गई थी कि वे महलों में रहे, बल्कि यह व्यवस्था इसलिए की गई थी ताकि हर व्यक्ति को मूलभूत सुविधा मिले, उनके जीवन जीने का संघर्ष कम हो सके लेकिन आम आदमी के जीने का संघर्ष बढ़ गया और जनप्रतिनिधियों की सुविधा में बढ़ोत्तरी हो गई।

जनप्रतिनिधियों की सुविधा बढऩी चाहिए लेकिन वह लाशों के महल में कदापि स्वीकार नहीं है। क्या देश के प्रधानमंत्री सहित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और तमाम जनप्रतिनिधियों को अस्पतालों का दौरा नहीं करना चाहिए? इस त्रासदी के शिकार लोगों की पीड़ा जानकर भविष्य के हिसाब से व्यवस्था करने में ध्यान नहीं देना चाहिए।

सेन्ट्रल विस्टा में महल तो कदापि नहीं बनना चाहिए और यह बनता है तो कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष को यह घोषणा कर देना चाहिए कि जब तक इस देश में भूख से एक भी व्यक्ति की मौत होती है, ईलाज के अभाव में कोई दम तोड़ देता है तब तक वे इस महल में सत्ता आने के बाद भी नहीं रहने वाले। कांग्रेस तो महात्मा गांधी की पार्टी कहलाती है फिर इस तरह की घोषणा से परहेज क्यों? 

कोरोना की वजह से बर्बाद हुए परिवार और अनाथ बच्चों के लिए जो काम देश के प्रधानमंत्री को करना चाहिए वह छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने किया है। यह एक तरह से उस केन्द्रीय सत्ता के मुंह में तमाचा है जो अपने को देश की सरकार कहती है। हालांकि जिस तरह से चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री का झूठ, अमर्यादित भाषा रही है, उसके बाद तो वे भाजपा के संघ संस्कारित प्रधानमंत्री ही ज्यादा रहे हैं। तब लोकतंत्र में जनता की जिम्मेदारी है कि वे सरकार को मजबूर करे। क्योंकि सत्ता का मतलब रईसी हो गया है।

गुरुवार, 13 मई 2021

घोर लापरवाही का ब्लैक फंगस...

 

कोरोना से जंग जीत चुके लोगों में ब्लैक फंगस का कहर साफ बतलाता है कि ईलाज के दौरान अस्पतालों में घोर लापरवाही हुई है, इतने बड़े सबूत के बाद भी अस्पतालों को एक नोटिस तक नहीं दिया जाना साफ बतलाता है कि सत्ता किस कदर लापरवाह है और अस्पतालों में मरीजों के साथ किस तरह की लापरवाही हो रही है।

भिलाई में एक अधेड़ की ब्लैक फंगस से मौत हो गई। आज के अखबारों में यह खबर सुर्खियों में है जबकि ब्लैक फंगस का शिकार 15 मरीजों का एम्स में ईलाज चल रहा है। यह कई राज्यों में कहर बरपा चुका है। दरअसल कोरोना के ईलाज के दौरान सिस्टमिक स्टेरॉयड का प्रयोग किया जाता है। मरीजों को जल्दी ठीक करने के चक्कर में कई बार इसका गलत प्रयोग कर दिया जाता है। एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा भी था कि कोविड के उपचार के शुरुआती चरणों में ही स्टेरॉयड लेने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं लेकिन इसे नजरअदांज कर शुरुआती दौर में ही स्टेरॉयड के हाई डोज दिए गए। दिक्कत यह है कि कोविड के ईलाज के लिए सरकार द्वारा जारी गाईड लाईन का यह हिस्सा है जिसकी वजह से कई अस्पतालों में इसका मनमाने ढंग से उपयोग हुआ। रिकवरी ट्रायल में कोविड के कारण हास्पिटलाईज्ड मरीजों में तथा रेस्पिरेट्री फैल्योर के कारण जिनकों बाहरी आक्सीजन या मेकेनिकल वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है उनमें ब्लैक फंगस बेहद ही प्रभावशाली है। विशेषज्ञों की चेतावनी के बाद भी स्टेरॉयड का जिस तरीके से अंधाधुंध प्रयोग किया गया जबकि कई लोग तो सीधे मेडिकल स्टोर्स में जाकर दवाईयां खी ली।

ब्लैक फंगस को लेकर सबसे बड़ी चेतावनी तो यह है कि इसकी चपेट में आने वाले मरीजों की आंखे तो जाती ही है जान भी चली जाती है। मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में ब्लैक फंगस से मरने वालों की तादात बहुत ज्यादा हैं। छत्तीसगढ़ में ब्लैक फंगस से मौत का भिलाई का यह पहला मामला है।

हालांकि अभी तक स्टेरॉयड के प्रयोग से होने वाली इस नई तरह की मौत को लेकर किसी तरह की कानून नियम नहीं है जबकि विशेषज्ञों का दावा है कि यह ईलाज के दौरान हुई चूक का ही नतीजा है। हालांकि विशेषज्ञों इसे लापरवाही नहीं बता रहे हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह से ब्लैक फंगस के मामले बढ़ते जा रहे हैं वह गंभीर मामला है।

दूसरी तरफ कोरोना से मौतों का रफ्तार थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। कई राज्यों में वैक्सिन की से टिकाकरण की रफ्तार में कमी आना केन्द्र की मोदी सत्ता की लापरवाही को ही उजागर करता है। इधर गंगा नदी के अलावा मध्यप्रदेश की नदी में भी लाशें बहते देखे जाने के बाद इसकी विभिषिका का अंदाजा लगाया जा सकता है। सत्ता की चूक को लेकर उठ रहे सवालों से बचने भाजपा और संघ जिस तरह से फेक न्यूज और अफवाह का सहारा लेने लगी है वह आने वाले दिनों में घातक है।

बुधवार, 12 मई 2021

महानिद्रा में मोदी


बिस्तरा है न चारपाई है,

सत्ता हमने खूब पाई है।

आदमी जी रहा है मरने को

क्या यही इस सत्ता की सच्चाई है।।

क्या सत्ता सचमुच बड़ी मुश्किल से हाथ आने वाली दुधारु गाय हो चुकी है जिसे केवल दुहना है। जनता तो अपना बचाव कर रही ही लेगी, अपने जीवन के लिए संघर्ष कर ही लेगी। सत्ता की घोर लापरवाही का असर नदियों में बहती लाशें, चिताओं के ढेर, अस्पताल की अव्यवस्था और अब लॉकडाउन में परिवार पालने की समस्या के रुप में सामने आ चुकी है। इतनी त्रासदी देखने के बाद भी सत्ता में बैठे लोगों की प्राथमिकता सेन्ट्रल विस्टा इसलिए है क्योंकि वहां महल जैसे प्रधानमंत्री आवास में इसी कार्यकाल में रहना है।

हालांकि यह रोने का समय नहीं है, हम पर लादी गई मुसिबत से छुटकारा पाने मार्ग ढंंढूने का समय है, रूदन और वेदना के इस दौर में भी जो लोग नफरत की भाषा में प्राणघातक आ लगा रहे हैं वह उनके आदमी होने पर सवाल खड़ा करता है। यह ठीक है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास भाषण देने की अद्भूत कला है, मानसिक रुप से सामने वाले व्यक्ति को अस्त-व्यस्त करने की इस अद्भूत कला ने ही उन्हें सत्ता में पहुंचाया है, लेकिन यह समय जागने का है और महानिद्रा में सोए सत्ता को झकझोर देने का है।

न्यायालय ने जिस तरीके से नरसंहार की बात कही है, जिस तरह से नदियों में लाशें बह रही है, जिस तरह से सदन का स्वर आकाश को छूने लगा है यह किसी सत्ता की लापरवाही का पाशविक  कार्य है। गांधी और बुद्ध के देश में नफरत का विषवमन से पूरी दुनिया हैरान ही नहीं है बल्कि लोकतंत्र के लिए घातक बता चुकी है।

कोरोना की त्रासदी को पूरी दुनिया ने मोदी सत्ता की लापरवाही कहा है, भारत में हो रही मौतों के लिए केन्द्र को दोषी माना है तब भी महानिद्रा टूटने का नाम नहीं ले रहा है। क्षणभर पहले ही आनंदित होती जिन्दगी का प्रवाह लाशों का रेला बन जा रहा है। इस भयावह त्रासदी से धरती वेदना से चित्कार उठी है, आकाश धुंधला-नीला हो गया है, हवा में सन्नाटा है। लेकिन सत्ता से जुड़े लोग अब भी इस त्रासदी के लिए नए-नए तरीके ढूंढ रहे हैं। शब्दों के जहरीले बम फेंके जा रहे हैं, वह फट भी रहा है और उसके तीक्षण टुकड़े हवा में उड़कर विनाश को आमंत्रित कर रहे हैं।

सिर्फ महीनेभर में कितनी-कितनी जिन्दगियों का अंत, अस्तित्व समाप्त हो गया वेदना पिघले बिना ही जम गई और विरोध के स्वर ऐसे गूंजने लगे मानों हरी-भरी, देवभूमि इस कोरोना से ही नहीं इस सत्ता से भी मुक्त होने तड़प रही है। सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया, अंतिम संस्कार समाज की जिम्मेदारी हुआ करती थई, लेकिन कोरोना ने वह भी छिन ली। मेरी बात सत्ता में बैठे लोगों को बुरी लग सकती है क्योंकि मेरा मानना है सत्ता की पहली जिम्मेदारी थी कि वह अपने कार्यकर्ताओं को लोगों की सेवा में झोंक दे लेकिन सत्ता ने आपदा में अवसर तलाशने की बात कही, तब यह कहना उचित है कि आदमी तो कब का मर गया भीतर केवल जानवर है, जानवर!

मंगलवार, 11 मई 2021

विचारधारा की शून्यता...

 

भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह से असम में कांग्रेस से आए हिमत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर आये शुभेन्द्रु अधिकारी को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है उसके बाद तो साफ हो गया है कि सत्ता के लालच में भाजपा बुरी तरह फंस चुकी है और अब संघ या भाजपा के सिद्धांतों की बजाय सत्ता के सिद्धांत पर चलना होगा।

हालांकि भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र में सरकार कभी भी अपने दम पर नहीं बनी है, वह दर्जनों दलों के गठबंधन के साथ ही चलती है तो  इसकी वजह उस पर लगने वाले साम्प्रदायिकता का वह आरोप है जो समय-समय पर परिलक्षित होता रहता है। 2014 में नरेन्द्र मोदी सत्ता में आये तब भी दूसरे दलों से भाजपा में आये सांसदों की संख्या ही वजह थी।

दरअसल भाजपा अब भी नहीं समझ पा रही है कि इस देश का मिजाज क्या है, यदि देश का मिजाज संघ के मिजाज से मेल खाता तो भाजपा या जनसंघ बहुत पहले ही सत्ता में आ गई होती। यह देश पूरी दुनिया को अनेकता में एकता का सिर्फ संदेश ही नहीं देता, बल्कि उसे जीता भी है। कुंठित हिन्दु  और कुंठित मुस्लिम लीग को हवा देकर अंग्रेजों ने भले ही देश का विभाजन धर्म के आधार पर कर दिया हो लेकिन भारत आज भी धर्म निरपेक्ष को जीता है।

यही वजह है कि संघ या भारतीय जनता पार्टी केन्द्र की सत्ता पर काबिज होने उन दलों की बैसाखी पर सवार होते हैं जो महत्वाकांक्षी होते है, भाजपा ऐसे दलों से भी समझौता करने से परहेज नहीं करती जो मुश्किल से एक-दो सीट ही जीत सकते हैं। भले ही संघ या भाजपा के समर्थक यह दावा करे कि वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है या सबसे बड़ा संगठन है उनके सदस्य करोड़ों में है लेकिन सच तो यह है कि संघ या भाजपा के सिद्धांत पर चलने वालों की संख्या दहाई तक भी नहीं पहुंची है।

यही वजह है कि आजादी के सालों बाद पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी सत्ता तक पहुंचे तो 23 दलों का सहयोग था और अब मोदी सत्ता में आये है तब भी दर्जनभर दल के सहयोग के अलावा ऐसे लोगों के कारण सत्ता पर पहुंचे है जो अपने दलों से बगावत कर भाजपा में आये हैं। ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश का है यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बगावत नहीं करते तो मध्यप्रदेश में भाजपा सत्ता से बाहर थी।

हिन्दू राष्ट्र का सपना देखने वाले शायद भूल गए हैं कि इस देश में दूसरे धर्म के लोग भी रहते हैं और भारतीय संविधान उन्हें वो सारे अधिकार देता है जो हिन्दुओं को देता है। ऐसे में यदि कुछ लोग सोचते है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हिन्दू राष्ट्र का निर्माण कर देंगे तो यह बचकानी सोच है क्योंकि अब तो भाजपा में इतनी बड़ी संख्या में दूसरे दलों से लोग आ गए हैं जो कभी भी संघ के लिए मुसिबत खड़ी कर सकते हैं।

आखिर असम में पूरी भाजपा को सरमा के सामने झुकना पड़ा हालांकि बंगाल में शुभेन्द्रु अधिकारी को नेता प्रतिपक्ष बनाना भाजपा की रणनीति हो सकती है लेकिन शुभेन्द्रु अधिकारी को संघ के विचारधारा में ढाल लेना नामुमकिन है और कोई बड़ी बात नहीं कि भाजपा इस मामले में धोखा खा जाए।

सोमवार, 10 मई 2021

बेज़ुबानो की जान बनी गुप्ता परिवार


बेजुबानों की जान बनी गुप्ता परिवाररायपुर। वैसे तो कोरोना के इस भीषण महामारी में सेवा करने वालों की कमी नहीं है, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी आपको सेवाभावी लोग चौक चौराहों पर भूखों को खाना खिलाते या फल-फूल बांटते दिख जायेंगे लेकिन आज हम आपको अहमद जी कालोनी निवासी ओसीमा गुप्ता और शीला गुप्ता के बारे में बताना चाह रहे है कि वे किस तरह से जब से लॉकडाउन लगा है तब से बेजुबान जानवरों की सेवा कर रहे हैं। इन तस्वीरों में दिखाई देने वाली युवतियां किस तन्मयता से कुत्तों को खाना खिला रही है। हर हाल में बेजुबान खाना खा ले इसलिए वे हर तरह का उपक्रम करती है। ओसीमा गुप्ता ने हमसे बातचीत करते हुए बताया कि वे अपने घर के 500 मीटर रेडियेस में बेजुबानों को खाना खिलाती है। वे स्कूटर से आती है और फिर कागज की प्लेटों में खाना निकालकर खिलाती है।अब तो इस क्षेत्र के बेजुबानों ने भी स्कूटर की आवाज पहचान ली है और उनके आते ही वे पूछ हिलाते हुए प्यार जताती है। ओसीमा कहती है कि उनके घर में भी डॉग है जिन्हें वे बहुत प्यार करते है इसलिए जब लॉकडाउन लगा तो उन्हें यह बात भीतर तक हिला गया कि इस लॉकडाउन में जब लोग घरों के भीतर हैं तब सड़कों पर भटकने वाले इन बेजुबानों को कौन खाना दे रहा होगा। और बस तभी से ये दोनों युवतियां रोज शाम को इन बेजुबानों को खाना खिलाने घर से निकल पड़ती है।कोरोना के इस भीषण महामारी में ऐसे कितने ही लोग है जो बेजुबानों की सेवा में लगे हैं। यही सेवाभाव ही हमारे जीवन का ध्येय है और भारतीय समाज के भीतर आज भी मानवता बची है तो इन जैसे लोगों की वजह से।

 

अब तो समझ जाओं...

 

आपने फिल्म मदारी नहीं देखी है, तो एक बार जरूर देख ले। खासकर, उन लोगों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए जो नरेन्द्र मोदी या मोहन भागवत जैसे लोगों को भगवान समझते हैं ताकि वे अपनों को खोने से पहले ही समझ जाये। अपनों के खोने का दुख बेहद दर्दनामक होता है और फिर बाद में पछतावा के सिवाय कुछ हासिल नहीं होता। आदमी यही सोचता रह जाता है कि काश!...

मदारी में मंत्री का बेटा कहता है मुझे 5-10 वर्ष नहीं लगेगा समझने में, मैं समझ गया! यह उन लोगों के लिए भी है जो आंख मूंद कर बैठे हैं। याद कीजिए गोरखपुर का वह आक्सीजन कांड जिसने कितने ही बच्चों की जान ले ली थी तभी सत्ता की जवाबदेही तय हो जाती तो आक्सीजन की आपूर्ति सुधर सकती थी।

आज हम यह बात आपसे इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस देश को कोरोना के भीषण संकट में डालने का काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपनी महत्वाकांक्षा ने किया है। नमस्ते ट्रम्प और मध्यप्रदेश में सरकार बनाने की पहली बड़ी गलती को माफ कर भी दे तो उसके बाद कोरोना की दूसरी लहर की चेतावनी को नजर अंदाज कर बडे आयोजनों की अनुमति के कारण देश में त्राहिमाम् मचा हुआ है।

सत्ता की इस लापरवाही की वजह से ही सुप्रीम कोर्ट को टास्क फोर्स बनाना पड़ा और कोर्ट को कहना पड़ा कि हम लोगों को इस तरह से मरते नहीं देख सकते। हैरानी की बात तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट को वह काम अपने हाथ में लेना पड़ा जिस काम को सरकार को करना था। यह किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए बेहद दुखद है और सत्ता के लिए तो शर्मसार कर देने वाला निर्णय है। लेकिन जब सत्ता में शर्म नाम की चीज ही न बची हो तो पूरी दुनिया हंसेगी। और यही हो रहा है। समूचा दुनिया ने भारत के इस मौजूदा संकट के लिए केन्द्र की सरकार को दोषी माना है। मेड़िकल जर्नल की सम्पादकीय में मोदी सत्ता के लिए जिस तरह के शब्दों को इस्तेमाल करते हुए लानत भेजी है वह चौकाने वाला है।

हालांकि इससे पहले कई राज्यों के न्यायालय ने नरसंहार जैसे शब्दों का उपयोग करते हुए यहां तक कहा कि चोरी करो डाका डालो लेकिन आक्सीजन और दवाई का इंतजाम करो। इस तरह की टिप्पणी के बाद अब सरकार कोरोना की बजाय अपनी छवि चमकाने पूरी पार्टी को झोंक दे और पार्टी के पढ़े-लिखे लोग यदि सरकार की छवि सुधारने छल-प्रपंच, झूठ, अफवाह, हिन्दू-मुस्लिम करने लगे तो कोरोना का यह रुप नरसंहार बन जायेगा।

इसलिए हमने जब कहा कि ऐसे लोगों को फिल्म मदारी इसलिए भी देख लेना चाहिए क्योंकि फिल्म समाज का आईना होता है। और वह सिखाता है कि देश के प्रति प्रेम और मानवता की रक्षा के लिए किस तरह से हर व्यक्ति की जवाबदारी है। ऐसे कितने ही उदाहरण है कि इस देश के लोगों ने पट्टा उतारकर देश हित में कड़े फैसले लिये है लेकिन जिस तरह का दुरंगी पट्टा पहनाकर लोगों की आंखों में भी पट्टा बांधी गई है उनके लिए फिल्म का यह डायलॉग महत्वपूर्ण है तुम मेरी दुनिया छिनोगे, मैं तुम्हारी दुनिया में घुस जाउंगा। यह कहता है अब भी देर हुई  है सवाल कीजिए, रोज कीजिए! नहीं तो अपनी बारी का इंतजार कीजिए।

रविवार, 9 मई 2021

हमने किसे चुन लिया !

 

यह सवाल भले ही छोटा हो लेकिन अब महत्वपूर्ण इसलिए हो गया है क्योंकि भाजपा ने जिसे प्रधानमंत्री बनाया है वह अपनी रईसी में इस तरह डूब गया है कि उसे इस महामारी काल में भी सिर्फ और सिर्फ सत्ता की रईसी और चुनाव जीतने की रणनीति से ही मतलब है।

रोम जल रहा था तब वहां राजा नीरो चैन की बंशी बजा रहा था, इस मिथक के दुहराने की बात हम कभी स्वीकार नहीं कर पाते यदि इस देश में कोरोना का प्रकोप नहीं आता। लेकिन कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है! कोरोना के इस बढ़ते प्रकोप के बाद भी यदि सरकार का ध्यान सिर्फ कर वसूली हो तो क्या हमें रावण की कर वसूली को याद नहीं कर लेना चाहिए जो ऋषि-मुनियों से कर के बदले में खून तक निकाल लेता था। 

देश की कई राज्यों की सरकारें वैक्सीन को टैक्स फ्री या मुफ्त में देने की मांग कर रही है लेकिन प्रधानमंत्री को केवल टैक्स की पड़ी है। यही वजह है कि बंगाल चुनाव के बाद लगातार पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ रही है। इस लॉकडाउन के दौर में पेट्रोल-डीजल का ज्यादा उपयोग वही लोग कर रहे हैं जो कोरोना से पीडि़त है, जिन्हें अस्पताल, मेडिकल स्टोर्स जाना है तब कीमतों में लगातार वृद्धि होना क्या उनका खून निचोडऩा नहीं हुआ।

मोदी समर्थकों या भाजपाईयों को यह छोटी बात को बड़ा करने की कोशिश लग सकती है लेकिन यह बेहद ही शर्मसार कर देने वाली बात है। इससे भी बड़ी बात तो किसानों को जीते जी मार डालने की कोशिश है। प्रधानमंत्री ने खाद की कीमत 58 फीसदी बढ़ा दी है। चुनाव के दौरान जारी आदेश की लीपापोती का सच सबके सामने है केवल डीएपी की कीमत सात सौ रुपये बढ़ा दी गई यह खेती के लिए बड़ा संकट है। ऐसे में इसे किसान आंदोलन की प्रतिक्रिया में लिया गया फैसला नहीं तो और क्या कहेंगे।

इस कोरोना के दौर में जब केवल किसान ही देश के आर्थिक तंत्र को ही नहीं जान की रक्षा की है तब इस तरह के फैसले को आप क्या कहेंगे। सेन्ट्रल विस्टा के निर्माण कार्य को आवश्यक सेवा बताकर लॉकडाउन में भी बीस हजार करोड़ फूंकने की कोशिश क्या बेईमानी नहीं है। उसमें भई सबसे पहले प्रधानमंत्री का महल बनेगा और यह 2022 तक इसलिए बना दी जायेगी क्योंकि महल में रहने की मंशा 2024 में पता नहीं पूरी होगी या नहीं।

हैरानी तो इस बात की है कि सेन्ट्रल विस्टा को लेकर जिस तरह से पूरी दुनिया में थू-थू हो रहा है वह भी बेशर्मी से देखा जा रहा है। ऐसे में जब कोरोना काल में प्रधानमंत्री के आपदा में अवसर को अमलीजामा पहनाने वालों को भी शर्म नहीं है तब इसका क्या मतलब है। सवाल कई है लेकिन एक सवाल जो सबसे महत्वपूर्ण है कि क्या संघ के संस्कार इसी तरह के हैं, हालांकि संघ को आज भी संविधान पर विश्वास नहीं  है, यह दावा नहीं हकीकत है इसलिए वह हमेशा ही वह दरवाजा चुनती है जिससे वह पकड़ा न जाए। और दोष किसी व्यक्ति पर मढ़ सके। आडवानी की चुप्पी को लेकर भी सवाल है! लेकिन जब सत्ता ही खून चुसने को आमदा हो तो निंदा के अलावा और क्या किया जा सकता है। जरा सोचिए जरुर!

शनिवार, 8 मई 2021

प्रधानमंत्री की प्राथमिकता...

 

दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए जब कहा कि कड़ी कार्रवाई के लिए मजबूर न करें! तो यह सवाल उठाया जाना चाहिए कि इस भीषण महामारी में भी केन्द्र की सरकार आखिर लोगों की जान से खिलवाड़ क्यों कर रही है, उसकी प्राथमिकता क्या जनकल्याण नहीं होनी चाहिए? आखिर वह एक कदम आगे बढ़कर देश के लोगों के कल्याण की बात क्यों नहीं कर रही है। क्या वह जानती है कि कुछ भी नहीं करने के बाद भी सिर्फ हिन्दु-मुस्लिम के सहारे वह सत्ता में फिर से आ जायेगी?

यह सवाल अब हर उस देशप्रेमी की जुबान बनने लगी है जो भीषण महामारी से तड़पते जिन्दगी को अपनी खुली आंखों से देख पा रहे हैं। बंगाल चुनाव के नतीजे आने के बाद जिस तरह से वहां भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की लड़ाई को हिन्दू-मुस्लिम का रुप देने की कोशिश की गई, उसका सच सामने आने लगा है, दुनियाभर की हिंसा की तस्वीरों को बंगाल की हिंसा बताकर नफरत फैलाने की कोशिश किस तरह की गई, भारतीय जनता पार्टी ने किस तरह से देशभर में धरना प्रदर्शन किया वह अब स्पष्ट होने लगा है।

ऐसे में एक बात तो तय है कि इस भीषण महामारी से अब इस देश की जनता को खुद ही निपटना है, क्योंकि बीस हजार करोड़ के सेन्ट्रल विस्टा को लेकर दायर याचिका पर न्यायालय ने भी हाथ खड़े कर दिये हैं। तब सवाल यही है कि मोदी सत्ता की प्राथमिकता क्या है। महामारी से निपटने मोदी सत्ता को राष्ट्रीय प्लान बनाने, आक्सीजन की सुचारु आपूर्ति और वैक्सीन को लेकर न्यायालयों ने लगातार लानत भेजी है लेकिन सरकार ने रईसी बरकरार रखने का उपाय अपनी प्राथमिकता में रखी है। यही वजह है कि तमाम विरोध के बाद भी इस महामारी में सेन्ट्रल विस्टा का काम बेधड़क चल रहा है और उसमें भी महल जैसे प्रधानमंत्री आवास सबसे पहली प्राथमिकता है जिसे हर हाल में दिसम्बर 2022 तक पूरा किया जाना है।

सरकार की दूसरी प्राथमिकता की रईसी बरकरार रखने की है इसलिए इस महामारी के दौर में सिर्फ आईडीबीआई बैक को बेचने के लिए कैबिनेट की बैठक बुलाई जाती है। इस सरकार की प्राथमिकता तो शुरु ही राज्यों में सत्ता प्राप्ति की रही है इसलिए जब भी किसी राज्य में चुनाव होता है प्रधानमंत्री सहित पूरी कैबिनेट वहां होती है और कई बार तो साफ लगता है कि ये प्रधानमंत्री देश के नहीं सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के नेता बस हैं। यही नहीं ट्रम्प को जिताने भी रैलियां होती है और कोरोना की अनदेखई तब तक की जाती रही जब तक मध्यप्रदेश में सरकार नहीं बन गई।

सवाल बहुत से है लेकिन कोरोना काल में भी सरकार की प्राथमिकता यदि सत्ता की रईसी बरकरार रखने की है तो फिर दूसरी-तीसरी क्या चौथी लहर में भी कुछ नहीं होने वाला है। क्या देश के प्रधानमंत्री को इस भीषण महामारी से निपटने कोई योजना नहीं बनानी चाहिए? क्या मध्यम व लघु व्यापारियों या उद्योगपतियों के लिए कोई योजना नहीं बनानी चाहिए? क्या मध्यम वर्ग के लोगों की तकलीफ दूर करने योजना नहीं बनानी चाहिए। क्या रोज कमाने-खाने वालों के लिए इस सरकार ने कोई योजना बनाई है। सभी को आक्सीजन और वैक्सीन मिल जाये इसकी कोई योजना है। महामारी से बर्बाद हो चुके परिवार के परिवार और अनाथ हो चुके बच्चों के लिए कौन सी योजना है। 

सरकार जानती है कि बेबसी में तड़पते लोग भले ही आज गाली दे रहे है लेकिन वोट उन्हें ही देंगे क्योंकि हिन्दुत्व खतरे में है? राहुल गांधी के परिवार ने देश के लिए कुछ नहीं किया? तब इन सवालों का क्या अर्थ रह जाता है। जिस तरह से असम जीते वैसे ही 2024 में देश जीत लेंगे?

शुक्रवार, 7 मई 2021

घबराईये मत ,आयेगा तो मोदी ही!


 

जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तभी से इस देश में नई-नई मुसिबत आई है जब कोई यह बात कहता है तो उन्हें अनुपम खेर का वह ट्वीट जरूर पड़ लेना चाहिए जिसमें उन्होंने दस दिन पहले ही कह दिया था। घबराईये मत, आएगा तो मोदी ही। जय हो।

यह विश्वास अकेले अनुपम खेर का नहीं है, कितने ही कुंठित हिन्दु है जो इस विश्वास के साथ कोरोना और दूसरी तकलीफों से ओतप्रोत होकर चले गए। क्योंकि मोदी नहीं होगा तो हिन्दु खतरे में पड़ जायेंगे इसलिए हिन्दुओं को बचाना है तो मोदी को लाना है। देख लेना बंगाल अब कश्मीर बन जायेगा। कोई हिन्दु सुरक्षित नहीं रहेगा। आदि-आदि। 

इस तरह के पोस्ट से सोशल मीडिया में वाट्सअप युर्निवसिटी और ट्रोल आर्मी के सदस्यों द्वारा लाखों की तादात में रोज की जा रही है। उन्हें इस भीषण महामारी से ज्यादा जरूरी मोदी को बचाना लगता है और सरकार क्या कर रही है यह तो बताने की जरूरत ही नहीं है। एक भक्त तो अनुपम खेर से भी आगे निकल कर कहने लगे एक सौ तीस करोड़ का इस देश का कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ सकता यदि रोज एक लाख मौते होंगी तब भी इस देश की आबादी को खत्म होने में दशकों लग जायेंगे क्योंकि लोग पैदा भी तो हो रहे हैं।

हालांकि इस बात को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है लेकिन कुंठित हिन्दुओं की सोच को लेकर चिंता जरूर की जानी चाहिए कि आखिर कोई सरकार इतनी लापरवाही और लाशों का ताडंव मचाने के बाद भी कुर्सी से कैसे चिपके रह सकती है। पिछले सप्ताहभर से देश के तमाम तरह के एक्सपर्ट कोरोना की तीसरी लहर को लेकर गंभीर चेतावनी दे रही है, न्यायालय रोज लानत भेज रही है लेकिन सरकार ने अभी तक दूसरी लहर से निपटने ही कोई मास्टर प्लान नहीं बनाया है।

दूसरी लहर में जिस तरह से 25 से 45 साल के उम्र के लोगों की ौत हुई है उसके चलते परिवार का परिवार बर्बाद हो गया है, बच्चे अनाथ हो गये हैं। 18 से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाने की सिर्फ घोषणा ही हुई है। जब वैक्सीन ही नहीं होगा तो फिर इस तरह की घोषणा का मतलब ही क्या है।

एक तरफ एक्सपर्ट तीसरी लहर में बच्चों पर कहर बरपाने की चेतावनी दे रहे है तो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी हिन्दु-मुस्लिम करते घुम रही है। हिन्दुओं की ठेकेदारी में व्यस्त संगठनों का कहीं पता नहीं है, संघ, बजरंग दल, विश्व हिन्दु परिषद के पदाधिकारी शायद इसलिए चुप है कि भले ही हिन्दुओं की आबादी थोड़ी कम हो जायेगी लेकिन मुसलमान भी तो मर रहे हैं। इतनी भयावह लापरवाही और आम लोगें का मोदी सरकार को लेकर जो गुस्सा साफ दिखाई दे रहा है, इसके बाद भी सरकार कुछ नहीं कर रही है तो इसकी वजह वह पंच लाईन है जो हर व्यक्ति के जेहन में राज कर रहा है। घबराईये नहीं, आयेगा तो मोदी ही!

गुरुवार, 6 मई 2021

बंगाल हिंसा- सौ चूहे खाकर बिल्ली हज...

 

जिस राजनैतिक पार्टी भाजपा के 150 से अधिक सांसद और सैकड़ों विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हो, जिसने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में सौ से अधिक ऐसे लोगों को प्रत्याशी बनाया हो जिसके खिलाफ आपराधिक प्रकरण हो वह भाजपा बंगाल चुनाव में राजनैतिक हिंसा पर देशभर में धरना दे तो इसे आप नौटंकी, घडिय़ाली आंसू बहाना नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे।

इसका यह कतई मतलब नहीं कि पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा का हम समर्थन करते हैं, हम इस देश-दुनिया में किसी भी तरह की हिंसा और अपराध की न केवल निंदा करते हैं बल्कि न्यायोचित निर्णय के लिए प्रतिबद्ध हैं। पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा में अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक लोग जान गंवा चुके है जबकि उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव के बाद हुई हिंसा में भी आधा दर्जन लोगों की जान जा चुकी है लेकिन उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार है इसलिए भारतीय जनता पार्टी ने केवल बंगाल में हुई हिंसा के खिलाफ ही धरना दिया। इसका मतलब साफ है कि उनके लिए हिंसा या हत्या सिर्फ राजनैतिक फायदे के लिए है।

वैसे तो चुनावी हिंसा भारतीय राजनीति में नया नहीं है लेकिन जिस तरह से राजनैतिक फायदे के लिए राजनैतिक दल तत्पर रहते हैं वह न केवल शर्मनाक है बल्कि बेशर्मी की पराकाष्ठा है। सत्ता के नशे में हिंसा की शुरुआत कहां से हुई कहना मुश्किल है लेकिन हम यहां भारतीय जनता पार्टी की भूमिका पर ही केन्द्रीय करेंगे अन्य दलों की भूमिका पर भी विस्तार देंगे।

हमने शुरुआत में ही कहा है कि जिस तरह से भाजपा में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को हाल के सालों में बढ़ावा दिया गया वह शर्मनाक है। याद कीजिए राजनीति के अपराधीकरण को लेकर अटल-आडवानी के दौर में क्या कुछ नहीं कहा गया लेकिन मोदी का दौर अपराधियों को भाजपा में लाकर शुद्धिकरण करने का दौर है। यही वजह है कि 2014 में सत्ता में आते ही संसद में जनप्रतिनिधियों के अपराधिक प्रकरण को निपटाने के लिए स्पेशल कमेटी, स्पेशल कोर्ट बनाने की बात धरी की धरी रह गई, यहां तक कि लोकायुक्त का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया।

सत्ता मद में अपराध को पिछले सालों में जिस तरह से भाजपा ने प्रोत्साहित किया, उसे भी इस देश ने देखा है, हत्या और बलात्कार जैसे मामलों के अपराधियों को मोदी सत्ता के आने के बाद न केवल संरक्षण मिला बल्कि सम्मानित करने जैसा घृणित कार्य भी किया गया। जो भाजपा आज बंगाल चुनाव के बाद हिंसा में दर्जनभर लोगों की हत्या के बाद क्रोधित दिखाई दे रही है वह भाजपा शायद भूल गई कि इसी देश में अखलाक से लेकर इंस्पेक्टर सुबोध सिंह सहित 64 लोगों की सड़कों पर ही हत्या कर दी गई। मॉबलिंचिंग से लेकर गौ मांस और पता नहीं कितने ही तरह के आरोप लगा कर हत्या की गई तब किसी भाजपा नेता को धरना प्रदर्शन का ध्यान नहीं आया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नमस्ते ट्रम्प और लापरवाही के चलते कोरोना और सड़कों में मरते मजदूरों के लिए भी उनकी संवेदना का स्तर नीचे ही रहा। उसी बंगाल में राजनैतिक हिंसा के दौरान तीन दिन में पांच सौ लोग कोरोना से मर गये। देश में सैकड़ों लोग मोदी सत्ता की आक्सीजन नीति के चलते प्राणवायु के अभाव में दम तोड़ते रहे, और अब भी मौतों का सिलसिला जारी है तब भी पार्टी चुप है पूरी सत्ता का ध्यान अब भी कोरोना से निपटने की बजाय छवि सुधारने में लगी है तब कोई कैसे मान ले कि भाजपा बंगाल हिंसा को लेकर सचमुच दुखी है और राजनैतिक नौटंकी नहीं कर रही है। यदि भाजपा सचमुच राजनैतिक हिंसा को लेकर दुखी है तो उसे सबसे पहले आपराधिक छवि के सांसद-विधायकों से इस्तीफा लेना चाहिए? गृहमंत्री अमित शाह के बारे में फिर कभी....?

बुधवार, 5 मई 2021

साजिश...

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता यदि इस भीषण आपदा में भी सेन्ट्रल विस्टा है तो यकीन मानिये ये सत्ता देश के लाखों लोगों की जान लेने का क्या षडयंत्र नहीं कर रही है। यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे है ताकि लोग अपने घरों में चुपचाप बैठे रहे और कोरोना से बचे।

वैसे भी पूरी दुनिया में भारत ऐसा देश होगा जिसकी सत्ता हर समस्या के लिए अपने नागरिकों को ही दोष देती है, बेरोजगारी, महंगाई के लिए सत्ता ने बढ़ती जनसंख्या को वजह बताती है। तो कुंठित हिन्दुओं को लगता है कि आबादी बढऩे की वजह मुसलमान है। वैसे कुंठित हिन्दु तो हर समस्या के लिए ही मुसलमानों या अल्पसंख्यकों पर निशाना साधते रहे है।

ये कुंठित हिन्दू जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपाय भी बताती है तो मानसिक रुप से दिवालिया हो चुके वे लोग हिन्दुओं को अधिकाधिक बच्चा पैदा करने की सलाह भी देते हैं। कोरोना की पहली लहर के लिए नरेन्द्र मोदी की नाकामी छुपाने जिस तरह से तब्लिकी जमात पर निशाना साधा गया वह किसी से छिपा नहीं है। नोटबंदी के दौरान मां को लाईन में लगाना और किसान आंदोलन के दौरान अल्पसंख्यक सिखों को खालिस्तानी और देशद्रोही बताकर निशाने में लेने की कोशिश को भी इस देश ने देखा है। बंगाल चुनाव में भाजपा नेताओं की टिप्पणी तो विभाजनकारी थी ही खुद प्रधानमंत्री की भाषा ने सारी मर्यादाओं को लांघकर पूरी दुनिया में भारत को शर्मसार करने में कोई कमी नहीं रखा था। उनके नेताओं ने जिस तरीके से दो र्म को ममता के जाने के बाद टीएमसी को सबक सिखाने की धमकी देते रहे उसका दुष्परिणाम सबके सामने है।

स्व. इंदिरा गांधी ने 80 के दशक में मेरठ दंगे के बाद अटल बिहारी बाजपेयी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि यह अजीब संयोग है कि संघ के लोगों के जाने के बाद ही दंगे भड़कते हैं? सवाल बंगाल चुनाव के बाद की हिंसा निश्चित रुप से निंदनीय है लेकिन इसके लिए संघ और भाजपा को भी आत्ममंथन की जरूरत है कि उनका तेवर कितना आक्रमक होना चाहिए। कंगना रनौत जैसी फिल्म अभिनेत्री के नफरत भरा ट्वीट का मतलब क्या है?

आज जब देश कोरोना के भीषण महामारी की चपेट में है और न्यायालय लगातार सरकार के क्रिया कलापों को लेकर नाराजगी जाहिर कर रही है तब भी यदि सरकार कोई योजना नहीं बना रही है और तो और दुनियाभर के देशों से प्राप्त राहत सामग्री को भी हवाई अड्डे से जरुरतमंदों तक नहीं पहुंचा रही है तब क्या यह लोगों को मौत के मुंह में ढकेलने का उपक्रम नहीं है। 

दिल्ली के बीचों बीच बन रहे प्रधानमंत्री के आवास को जल्द से जल्द पूरा करने की प्राथमिकता को लेकर अब तो प्रधानमंत्री की नियत को लेकर चौतरफा सवाल उठने लगे हैं? सरकार द्वारा मौतों के आंकड़े छुपाने का आरोप लगने के बावजूद यदि सरकार का यही रवैया रहा तो मई में एक लाख से उपर मौत होना तय है।

तब यह भी सवाल उठेगा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए क्या महामारी को जरिया बनाया जा रहा है। या महामारी की आड़ में एक झटके में जनसंख्या कम करने की कोशिश हो रही है।

मंगलवार, 4 मई 2021

सबसे बड़ा लुजर...

 

न कोरोना से मौते ही थम रही है और न ही सरकार अपनी गैर जिम्मेदाराना हरकत से ही बाज आ रही है! सरकार लाख दावा करे कि सब कुछ ठीक हो गया है, लेकिन जमीन में माजरा दिल दहला देने वाला है। कोर्ट ने सरकार को दो महत्वपूर्ण सुझाव दिये है पहला इस आपदा से निपटने राष्ट्रीय योजना बनाने की और दूसरा फ्री में वेक्सिन देने की लेकिन  आज की तारीख तक सरकार ने इन दोनों ही सुझाव पर अमल नहीं किया है।

इसका मतलब साफ है कि मोदी सरकार लोगों की मौत को लेकर जरा भी चिंतित नहीं है, वह सिर्फ हवा में बात कर रही है। मोदी सत्ता का दावा जमीन में पूरी तरह असफल है, अब भी आक्सीजन की कमी है, वेक्सिन की कमी से जूझ रही राज्य सरकार के सामने कानून व्यवस्था की चुनौती खड़ी हो गई है।

इतनी निर्दयी सत्ता... कितनों ने देखी है। इस आपदा से परिवार के परिवार बरबाद होते जा रहा है, बच्चे अनाथ होते जा रहे है, लघु और मध्यम व्यापारियों के सामने जीवन और परिवार बचाने का संकट खड़ा हो गया है लेकिन सत्ता के पास किसी भी तरह की योजना नहीं है। हैरानी तो इस बात की है कि भाजपा की राज्य इकाई और राज्य सरकारें भी खामोशी से जलती चिता और बिलखते लोगों को तमाशाबीन बनी देख रही है। सत्ता की निष्ठुरता का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि उसने मान्य परम्पराओं तक को तिलांजलि दे दी है और बंगाल चुनाव में ममता बैनर्जी को प्रधानमंत्री ने बधाई तक नहीं दी। शायद वे कोरोना से हो रही मौत से दुखी होंगे। लेकिन जिस बेशर्मी से वह सब ठीक ठाक व्यवस्था  यानी आक्सीजन सप्लाई की बात कर रही है वह हैरान कर देने वाला है।

यदि देखा जाये तो केन्द्र की यह सत्ता हर मोर्चे में बुरी तरह फेल हो चुकी है। इतिहास में अब तक के सबसे लूजर प्रधानमंत्री के रुप में यह दर्ज हो चुका है। और पूरी दुनिया में जिस तरह से प्रतिक्रिया आ रही है वह बेहद शर्मनाक है। इसके बाद भी कोई सत्ता में कैसे बना रह सकता है। लेकिन तमाम असफलता के बाद भी हम खामोश है, सवाल नहीं पूछ रहे हैं तो इसका मतलब है हम अपने भीतर की आदमियत को धीरे-धीरे मार रहे हैं और अपने दिलों दिमाग में राज करने वालों के हाथ में एक पट्टा गले में डाल कर दे चुके हैं। अंत में-

शरम!

तुम्हे क्या लगता है

वह पहली बार

बेशरम तब हुआ था

जब उसकी दस लाख

की सूट उतरवाई गई थी

नहीं।

उसकी बेशर्मी बहुत

पहले की है

शायद जब राष्ट्रधर्म

की नसीयत मिलने

से पहले ही वह

बेशरम हो चुका था

लेकिन वह कब

कहना कठिन है लेकिन

शायद बीस साल की

उम्र में अपनी पत्नी 

को छोड़ देने से

बहुत पहले ही

उसने शरम छोड़ दी थी।

या उससे भी पहले...। (केटी)

सोमवार, 3 मई 2021

मोदी की मात...

 

सवाल यह नहीं है कि पश्चिम बंगाल चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के लिए कौन दोषी है, जबकि पार्टी ने जीत के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखा था? बल्कि सवाल यह है कि क्या कोई प्रधानमंत्री एक राज्य में जीत हासिल करने पूरे देश को दांव पर कैसे लगा सकता है। हर मोर्चे में बुरी तरह विफल रहने के बाद भी यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बरकरार रखने का दावा किया जा रहा है तो इसका मतलब साफ है कि छल-प्रपंच, झूठ-नफरत के इस खेल को चंद पैसों की लालच में बढ़ावा देने वालों की रणनीति सफल हो रही है।

जिस ढंग से संघ का मैनेजमेंट काम कर रहा है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में घृणा की खाई और चौड़ी होगी और देश में तरक्की बात बेमानी हो जानी है। कोविड के पहली लहर में जिस तरह से तबगिली जममात को निशाने पर लेकर नफरत फैलाई गई ुसका भांडा फूट जाने के बाद भी यदि देश के लोग सचेत होने की बजाय नफरत के रास्ते को ही चुन रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि संघ ने अपनी ताकत ही नहीं बढ़ाई है बल्कि उसने अपने मैनेजमेंट को भी इतना तगड़ा कर लिया है कि उससे निपटना आसान नहीं है।

बंगाल चुनाव में भले ही ममता बैनर्जी ने उम्दा प्रदर्शन किया है लेकिन भाजपा के तीन से करीब 80 सीट हासिल करना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है और यह एक तरह से समूचे देश को चेतावनी है कि आने वाले दिनों में नरेन्द्र मोदी को मात देना आसान नहीं है। बंगाल के चुनाव परिणाम के बाद समूचा विपक्ष ममता बैनर्जी की ओर देख रहा है। यह ठीक है कि ममता ने बंगाल बचा लिया लेकिन फिल्म तारिका कंगना रनौत के ट्वीट ने भविष्य का संकेत दे दिया है। रनौत ने जिस तरह से ममता की जीत पर ट्वीट किया है क्या वह नफरत का सैलाब नहीं है, कंगना अपने ट्वीट में कहती है कि अब वहां बहुमत में हिन्दू नहीं बचे हैं, एक और कश्मीर जन्म ले रहा है?

भले ही लोग इसे भाजपा का हार का झल्लाहत बता रहे हैं लेकिन यह झल्लाहत नहीं संघ की रणनीति का हिस्सा है, हिन्दुओं में खौफ पैदा करने का तरीका है, बहुसंख्यक समाज को उत्तेजित करने का कार्यक्रम है। बंगाल चुनाव से पहले ही जिस तरह से ममता बैनर्जी पर हमला हुआ है वह कम खतरनाक नहीं है। एक ब्राम्हण महिला पर जिस तरह से नफरती बाण चलाए गए, विष वमन किया गया यदि कोई धर्मनिरपेक्ष दल के लोग किसी दक्षिणपंथी विचारधारा के नेता पर इस तरह का दुष्प्रचार करते तो अभी तक उसका समाज जाग जाता। लेकिन सूती साड़ी और हवाई चप्पल पहनकर भी ममता ने क्षत्राणी जैसा रुप दिखला कर भाजपा को करारी शिकस्त दी।

जो लोग बंगाल चुनाव के दुरगामी परिणाम की आशा में डूबे है उनके लिए यह जानना जरूरी है कि प्रेम और घृणा की लड़ाई आसान नहीं होती, और जिन्हें लगता है कि प्रेम की जीत तो होनी ही है वे महाभारत फिर से पढ़ लें क्योंकि धर्मराज की जीत के बाद भी क्या बचा रह गया था। इसलिए सच की जीत जो चाह रहे हैं वे त्याग, कुर्बानी और दुनिया भर के आक्षेप के लिए खुद को तैयार कर लें।

रविवार, 2 मई 2021

पागलपन का फटना...

 

कहते हैं जब सत्ता अचानक मिल जाती है तो फिर उनके भीतर का पागलपन फट पड़ता है और उसकों तबाही और अपने मन की बात करने के अलावा कुछ नहीं सुझता? वह अपनी करतूत को छुपाने सब-कुछ आग के हवाले कर देना चाहता है? और सब तरफ जलती लाशों का धुंआ होता है? यह धुंआ भी उसे विषैला नहीं लगता बल्कि वह आखरी दम तक बड़ी मासूमियत और भोलेपन से यही कहता है कि उसने तो जो कुछ किया देश हित में किया जबकि वह अपने भीतर के नफरत को तबाही में बदल रहा होता है।

आज के दौर में सच को पकडऩा कितना दुश्वार हो गया है, पहली बार संसद भवन की सीढ़ी में माथा टेकना सच था या उसके बाद उस संसद भवन को ही नेस्तनाबूत कर देने की कोशिश सच है? पहली बार हिन्दू प्रधानमंत्री बनने का उद्घोष सच था या अब्दुल कलाम आजाद को राष्ट्रपति बनाना सच था। न्यायालय के फैसले से बन रहा राम मंदिर सच था या सत्ता की ताकत से बन रहा राम मंदिर सच है? नोट बंदी की वजह से लाईन में मर रहे लोग सच था या नोटबंदी की वजह से कालाधन की वापसी, आतंकवाद की कमर टूट जाना सच था?

मॉब लिचिंग, हिन्दू राष्ट्र, जीएसटी के अव्यवहारिक होने से आत्महत्या को मजबूर व्यापारी, कोरोना की चेतावनी को नजर अंदाज करते नमस्ते ट्रम्प, एमपी की सत्ता लोभ, कुंभ, चुनावी भीड़, आक्सीजन की कमी से मरते लोग, रेमडेसिविर का 25 हजार में बिकना, किसान बिल, सीएए, आप ऐसे कितने ही सच को पकड़ते-पकड़ते थक जाओगे लेकिन सत्ता न अपनी जिम्मेदारी मानेगी और न ही लापरवाही?

आज तक के एंकर रोहित सरदाना के दुखद निधन को लेकर किस तरह की प्रतिक्रिया सोशल मीडिया में आती रही, वह हैरान और परेशान कर देने वाला है! मेरा दावा है कि ये देश ऐसा कभी नहीं रहा, किसी की मौत पर ऐसी प्रतिक्रिया सभ्य समाज, या विश्व गुरु के लिए लालायित देश का नहीं हो सकता लेकिन आप पायेंगे कि शुरुआत उन्हीं से हुई है।

मैं उदाहरण के साथ कह सकता हूं कि सिने अभिनेता ऋषि कपूर के निधन पर कुंठित हिन्दुओं की प्रतिक्रिया थी, गौ मांस खाने वालों का यही हश्र होना था, मॉब लिचिंग के प्रवक्ता को काहे की श्रद्धांजलि। सिने अभिनेता इरफान खान को लेकर भी नफरत भरी टिप्पणी और आजकल चर्चित एक साधु ने तो अब्दुल कलाम आजाद की देश के प्रति वफादारी पर तो सवाल उठाये ही है उन्हें गद्दार तक कह डाला। 

ये सच है कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय लेकिन हम अपने देश को किस रास्ते पर ले जा रहे हैं। क्या नफरती लोगों को ये नहीं लगता कि ये हालात हमारी आने वाली पीढ़ी को कैसा जीवन देगी। इस पागलपन के दौर में कोरोना संक्रमण से निपटने जिस तरह से हर धर्म, हर जाति के लोग कंधा से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं उसके बाद भी यदि किसी को लगता है कि ये छलावा है तो इसका मतलब साफ है कि राजनीति में बैठे लोग अपनी कुर्सी के लिए इस देश को बेच देना चाहते हैं, अपने पागलपन से तबाही मचाकर कुर्सी बचाना चाहते है। सिर्फ एक रेल दुर्घटना से व्यथित रेल मंत्री का इस्तीफा सच है या गिरते लाशों के बीच सत्ता का अट्टाहास सच है। एक मिनट रुक कर सच को पकडऩे की कोशिश जरुर कीजिएगा।

शनिवार, 1 मई 2021

लाशें ही तो हैं !


 लाशें ही तो हैं!


वे आते हैं,

अपने साथ लाते हैं,

नफरत का बीज

और रोप देते हैं

हमारे दिमाग में,

और हमारा दिल

दिमाग हो जाता है।


वे आते हैं

ढूंढते है कुछ ज्ञानी, कुछ नामी गिरामी,

पैसे वाले रईस,

या बदमाशों की टोली

और रोप देते हैं 

नफरत के बीज।


धीरे धीरे पनपने

लगता है बीज

दंगे के रुप में

फुटता है अंकुर

खाद पानी के

रुप में मिलता 

रहता है झूठ

अफवाह!


फिर एक दिन

हां एक दिन

पौधा फूटता है

उस बीज से

हम श्रेष्ठ हैं

कुंठित होता पौधा

बड़ा होता है।

पौधों को अब नहीं

चाहिए रोजगार

बढ़ती महंगाई से भी

उसे फर्क नहीं पड़ता


वह तो आतुर है

एक ऐसा फल देने

जिनमें, हमारी भावना हो,

आस्था हो,

सपने हो।

और यह फल ही सत्ता है।

जिसे वे तब तक

खाते रहेंगे

जब तक हम जल

न जाये 

मर न जाये

फना न हो जाये

क्योंकि हम लाशें ही तो हैं। (केटी)

(रोहित सरदाना और उन जैसे पढ़े-लिखे को समर्पित)