गुरुवार, 24 जून 2010

मंत्री का हठ या गैंदाराम की दमदारी , सामने आ रही राज्यपाल की लाचारी

बलौदाबाजार में जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ गैंदाराम चंद्राकर पर कार्रवाई करने प्रदेश के राज्य ने दो दर्जनभर से अधिक पत्र शासन को लिखा है लेकिन शासन ने हटाने की बजाय उसे मालदार पद पर बिठाने का उपक्रम किया।
छत्तीसगढ़ के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग में चल रहे इस खेल की जानकारी मंत्री जी को भी हैं। गैंदाराम के खिलाफ दर्जनों शिकायतें हो चुकी है लेकिन पैसे और पहुंच के आगे मंत्री की दमदारी भी इस मामले में टांय-टांय फिस्स हो चुकी है। यहीं नहीं गैंदाराम के कारनामों को लेकर राज्यपाल तक से शिकायत की गई है और हर शिकायत के बाद राजभवन से शासन को पत्र भी लिखा जा चुका है लेकिन जिस गैंदाराम पर शिक्षा सचिव और लोकसेवा आयोग के सचिव की रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं हुई हो तो राज्यपाल की अनुशंसा पर क्या कार्रवाई हुई होगी आसानी से समझा जा सकता है।
ज्ञात हो कि गैंदाराम चंद्राकर ने पीएससी में चयन होने कुटरचित दस्तावेज प्रस्तुत किए थे जिसकी पुष्टि पीएससी के सचिव श्री पंत और तत्कालीन शिक्षा सचिव नंदकुमार ने भी की है लेकिन गैंदाराम के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई उल्टे प्रमोशन दिया गया। बताया जाता है कि गैंदाराम चंद्राकर की उच्च स्तरीय पहुंच की वजह से ही उन पर आज तक कार्रवाई नहीं हुई वहीं उनके द्वारा कार्रवाई से बचने बेतहाशा पैसा फेंके जाने की भी चर्चा है। इधर इस संबंध में यह भी पता चला है कि उन्हें शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का भी वरदहस्त प्राप्त है। हालांकि इस वरदहस्त के पीछे लेन देन की भी चर्चा है लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।
बहरहाल गैंदाराम चंद्राकर के मामले में जिस तरह से शिक्षा मंत्री का रवैया रहा है उससे न केवल सरकारी की छवि पर असर पड़़ रहा है बल्कि भ्रष्टाचार की नई परम्परा को भी जन्म दिया है।
गैंदाराम का दुस्साहस
कहते हैं कि जब गैंदाराम चंद्राकर शिक्षा अधिकारी बनकर बलौदाबाजार पदस्थ हुए तो उन्होंने कई कारनामे किए। यहां तक कि प्रभारी मंत्री के अनुमोदन पर हुए तबादलों में से अपने करीबी लोगों का तबादला रोकने का आदेश जारी कर दिया जबकि तबादला रोकने का कार्य मुख्यमंत्री द्वारा गठित समवन्य समिति का है लेकिन गैंदाराम के इस दुस्साहस पर भी उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका।

शराब बंदी और खिलाफत

पिछले दिनों गायत्री परिवार के लोगों ने पत्रकारों को बताया कि वे जेल में बंदियों को गायत्री मंत्र सिखा रहे हैं और जेलों में वाचनालय स्थापित कर रहे हैं ताकि गलत कार्यों से लोगों का ध्यान हटे नि:संदेह गायत्री परिवार की यह कोशिश सराहनीय है। गायत्री परिवार के लोग शराब के खिलाफ भी जनजागरण अभियान चला रहे हैं इसी तरह का जनजागरण अन्य कई संस्थाएं भी चला रही है। इन संस्थाओं का मानना है कि उनके जनजागरण अभियान से लोग शराब पीना छोड़ देंगे। कुछ लोग छोड़ भी रहे होंगे। दरअसल इस तरह की संस्थाओं का आशावादी दृष्टिकोण आश्चर्यजनक है शराब के खिलाफ बरसों से इस तरह के जनजागरण चलाने वालों को इसका परिणाम तो पता है लेकिन वे फिर भी जनजागरण चला रहे हैं कुछ सरकारी अनुदान प्राप्त संस्था हैं तो कुछ लोग शराब के खिलाफ ऐसे अभियान के बहाने अपना नाम को प्रसिद्ध कर लेना चाहते हैं।
गायत्री परिवार किसी नाम का मोहताज नहीं है लेकिन उनके कार्यकर्ताओं को यह बात समझनी होगी कि सिर्फ जनजागरण से शराब बंदी हो जाती तो 50 सालों से चल रहे जनजागरण अभियान के बाद शराब पीने वालों की संख्या में हर साल ईजाफा नहीं होता। ऐसा ही अन्य संस्थाओं को भी यह बात समझनी होगी। दरअसल यह सारा खेल प्रदेश को मिलने वाले राजस्व का नहीं है बल्कि शराब दुकानों के खोलने में शराब ठेकेदारों द्वारा मंत्रियों-नेताओं से लेकर अधिकारी-कर्मचारियों को बांटे जाने वाले राजस्व का है। नेता-अधिकारी यह बात जानते हैं कि ऐसे जनजागरण से शराब बंद नहीं होगा इसलिए वे जनजागरण अभियान की दुहाई देते हैं जबकि यह सच्चाई है कि सरकार बेचना बंद करेगा तभी लोग पीना बंद करेंगे लेकिन वोट बैंक की राजनीति और पैसा कमाने की भूख ने इन विनाशकारी को जीवित रखा है।
सरकार शराब बेच रही है लोग जनजागरण चला रहे हैं आखिर यह कब तक चलेगा। इसलिए ऐसी संस्थाएं जो सचमुच शराब बंदी चाहते हैं वे यदि मुख्यमंत्री निवास का जमकर घेराव कर दे तो सरकार मजबूर हो सकती है। छत्तीसगढ़ में ही गायत्री परिवार के लाखों लोग हैं इसी तरह दूसरी संस्थाएं भी हैं यदि वे एक दिन तय करके संघर्ष की घोषणा कर दें तो सरकार जनजागरण की दुहाई देना बंद कर देगी। दरअसल सरकार ही नहीं चाहती कि शराब बंदी हो इसकी वजह वह राजस्व को बताते नहीं थकती लेकिन आम लोगों को यह समझना होगा कि राजस्व बहाना है असली वजह तो शराब ठेकेदारों से मिलने वाला कमीशन है जो राजस्व से कहीं ज्यादा नेताओं और अधिकारियों को मिलता है।