बुधवार, 30 जून 2010

जब अखबार को माफी मांगनी पड़ी

जनसंपर्क विभाग की दादागिरी कोई असमान्य बात नहीं है और यदि सचिव स्तर का अधिकारी बात बात पर अखबारों की जमीन नपवाने या फिर विज्ञापन बंद करने की धमकी दे तो गले तक गफलत में डूबे अखबार मालिकों का चूहा बनना स्वाभाविक है।
छत्तीसगढ़ में इन दिनों यही सब हो रहा है। पिछले दिनों दुनिया को नई बनाने के फेर में लगे एक अखबार ने मुख्यमंत्री के जनदर्शन कार्यक्रम को लेकर खबर छापी कि जनदर्शन में दलाल सक्रिय हो गए हैं जो पैसे लेकर कार्य करते हैं। खबर सच थी या झूठ यह तो वह अखबार ही जाने लेकिन कहा जाता है कि इस खबर ने मुख्यमंत्री निवास में हड़कम्प मचा दी और दलाल पर कार्रवाई की बजाय अखबार पर दबाव बनाया जाने लगा। खबर का खंडन दूसरी बात है लेकिन यहां तो अखबार को लिखित में माफीनामा देना पड़ा। कुल मिलाकर यह अच्छा संकेत कतई नहीं है लेकिन अखबार मालिक जिस तरह सरकारी विज्ञापन और जमीन के लिए लगे हैं उसकी वजह से ही उनके साथ इस तरह का सलूक होता है। अखबार की आड़ में अपने दूसरे धंधों का विस्तार करने की भूख ने इस पेशे को बदनामी के गर्त में ढकेल दिया है और जब संपादक ही दो-पांच के चक्कर में लगा हो तो माफीनामा लिखवाना कोई मुश्किल नहीं है। विज्ञापन बंद करने की धमकी या जमीन नपवाने की धमकी का चलन इन दिनों निष्पक्ष पत्रकारिता को कलंकित करने वाला है।
और अंत में...
अखबारों पर सिर्फ मंत्रियों की ही दादागिरी नहीं उसके विभाग के अधिकारी भी दादागिरी करने लगे हैं यही वजह है कि दमदार मंत्री के विभाग के अधिकारी दमदारी से लूट रहे हैं पत्रकारों को धमकाते हैं कि छाप लो हमारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा तुम्हारा विज्ञापन बंद हो जाएगा।

मंगलवार, 29 जून 2010

आंखों में बेशरमी और जीवन का सच...

छत्तीसगढ में बैठी भाजपा सरकार जिस तरह से कार्य कर रही है वह आने वाले दिनों के लिए कहीं से शुभ संकेत नहीं है। अधिकारी और नेताओं के बीच तालमेल से विकास तो हो नहीं रहा है केवल छत्तीसगढ़ को लूटने की साजिश चल रही है। चौतरफा अंधेरगर्दी ने आने वाले दिनों में इस राय के सुनहरे भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।
मेरे एक मित्र बाबूलाल शर्मा जो पेशे से पत्रकार भी हैं ने मुझे मेरे ब्लाक पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि भाई जी मेरा मानना है कि सिर्फ भ्रष्टाचार उजागर करना समाचार विचार नहीं है। कुछ हट कर हमें जनहित के लिए भी लिखना चाहिए। मैं भी श्री शर्मा जी के विचार से पूरी तरह इतेफाक रखता हूं लेकिन जब पूरी व्यवस्था भ्रष्ट हो और सरकार की आंखों में शर्म की बजाय बेशरमी झलकती हो तथा आम जनता केवल अपने लिए सोचती हो वहां से रास्ते निकालने की कोशिश में मैं भी लगा हूं।
इस कोशिश में मैं एक-एक ऐसे सच से दोचार हुआ हूं जिससे आज हर कोई दूर भागता है। क्या किसी के समझाने से कोई समझ पाया है। मेरा जवाब भी नहीं है। क्योंकि समझाने से गलत कार्य छोड़ दिए जाते तो फिर भगवान राम को न तो रावण का वध करना पड़ता और न ही श्रीकृष्ण को ही कंस को मारना पड़ता। यदि गलत कार्य कोई छोड़ता है तो किसी के जनजागरण से नहीं बल्कि वाल्मिकी की तरह स्वयं हृदय परिवर्तन होता है। पिछले सदियों से पर्यावरण को लेकर हो या शराब की बुराई की बात हो जनगारण चल रहा है और इसका परिणाम यह है कि पर्यावरण लगातार खराब होते जा रहा है और शराब पीने वालों की संख्या लगातार बढ़ते जा रही है।
इसलिए ऐसे जनजागरण की बात वे लोग करते हैं जो या तो महात्मा बनना चाहते हैं या लोगों से छल करते हैं। इसलिए यदि कोई चीज गलत है असमाजिक है तो उसे जड़ से नष्ट करना होगा। शराब बंदी जनजागरण से हो जाता तो कब का हो चुका होता क्योंकि इसके खिलाफ हजारों लोग जनजागरण चला रहे हैं। छत्तीसगढ में भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है सत्तारुढ़ दल के नेताओं से लेकर अधिकारी भ्रष्टाचार कर रहे हैं तो इनका सामाजिक बहिष्कार जरूरी है क्योंकि बाबूलाल अग्रवाल प्रकरण ने साबित कर दिया है कि सरकार में आंखों की शर्म भी नहीं बची है ऐसे में भ्रष्ट लोगों के बारे में लोग जाने और आज नहीं तो कल आखों की बेशरमी खत्म हो सके। राजस्व के मामले में पूरे देश में बेहतर छत्तीसगढ क़ी मांग इसलिए नहीं की गई थी कि नेता और अधिकारी इस राजस्व को लूट सके।

जब मुख्यमंत्री की खरी-खोटी पर मंत्री ने दलाल को निकाला!

विधायक ने पीड़ित को सीएम से रूबरू कराया
प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री को अपने एक दलाल राजेन्द्र अग्रवाल को मन मसोस कर बंगले से निकालना पड़ा क्योंकि इस दलाल की दादागिरी की सीधी शिकायत विधायक ने की थी और मुख्यमंत्री ने मंत्री को जमकर खरी खोटी सुनाई।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मामला ठेकेदारी से संबंधित है। कहा जाता है कि मंत्री के लिए विभाग में वसूली का जिम्मा संभालने वाले राजेन्द्र अग्रवाल ने मुख्यमंत्री के गृह जिले के एक ठेकेदार को जमकर लताड़ लगाई और धमकी भी दी थी। ठेकेदार ने इसकी शिकायत विधायक से की और मामला मुख्यमंत्री तक जा पहुंचा। बताया जाता है कि विधायक ने ठेकेदार को सीधे मुख्यमंत्री के पास ले गया जहां ठेकेदार ने आपबीती सुनाई। यह सुनकर मुख्यमंत्री बेहद नाराज हुए।
बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने इस दमदार मंत्री को न केवल खरी खोटी सुनाई बल्कि निर्देश भी दिया कि यह राजेन्द्र अग्रवाल आपके बंगले में नहीं आना चाहिए ऐसे लोगों की करतूत से सरकार कभी भी मुसीबत में पड़ सकती है। बताया जाता है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए इस दमदार मंत्री की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई और उन्होंने तत्काल राजेन्द्र अग्रवाल को बुलाकर कहा कि वे बंगले में न आए।
सूत्रों के मुताबिक तब से राजेन्द्र अग्रवाल बिलासपुर और लौट गए हैं। हालांकि सूत्र बताते हैं कि वे बंगले नहीं आ रहे हैं लेकिन अभी भी मंत्री के लिए काम कर रहे हैं। बताया जाता है कि पुस्तक सप्लाई के मामले में भी इस राजेन्द्र अग्रवाल की जबरदस्त भूमिका रही है और उनके द्वारा होटल मयूरा में रूके कुछ प्रकाशकों को रातो रात छत्तीसगढ़ से चले जाने की धमकी देते हुए गोली मारने की बात भी कह चुके हैं।
ऐसे ही एक प्रकाशक ने हमें दूरभाष पर बताया कि उन्हें काम करना है लेकिन लफड़े में नहीं पड़ना चाहते इसलिए पुलिस तक नहीं गए। बहरहाल राजेन्द्र अग्रवाल के कारनामों की यहां जबरदस्त चर्चा है और कहा जा रहा है कि अमर अग्रवाल के इस विरोधी ने बिलासपुर में भी कई गुल खिलाए हैं।

रविवार, 27 जून 2010

प्लांट को स्वीकृति मिली नहीं संविदा भर्ती का विज्ञापन निकल गया

बीज निगम का गोरखधंधा या मंत्री या खेल
छत्तीसगढ़ सरकार में बैठे मंत्रियों व अधिकारियों ने किस कदर अंधेरगर्दी मचा रखी है इसका एक उदाहरण मात्र है कि छत्तीसगढ़ में बायो फर्टिलाईजर प्लांट को अभी स्वीकृति मिली नहीं है और बीज निगम ने यहां 8-10 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी कर दिया है।
वैसे तो छत्तीसगढ़ का कोई विभाग नहीं है जहां मनमानी, अंधेरगर्दी नहीं मची हो। लूट खसोट के इस खेल में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग सर्वाधिक चर्चा में है। अब इस कड़ी में कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू का विभाग भी आ गया है और कहा जा रहा है कि यदि बीज निगम के उनके अध्यक्षीय कार्यकाल की जांच कराई जाए तो कई बड़े घोटाले सामने आएंगे।
वाहन खरीदी से लेकर नियुक्ति पदोन्नति के मामले में विवाद में रहे छत्तीसगढ़ बीज विकास निगम में घोटाले व घपलों की कहानी के अलावा यहां के अफसरों की करतूतें भी बाहर आने लगी है। ताजा मामला अभनपुर में बायो फर्टिलाईजर प्लांट के प्रस्ताव का है बताया जाता है कि ढाई सौ करोड़ रूपए का सालाना बिजनेस करने वाले इस बीज विकास निगम ने अभनपुर में बायो फर्टिलाईजर प्लांट डालने का निर्णय लिया है और इसका प्रस्ताव ऊपर भेजा है किन्तु अभी तक प्रस्ताव को मंजूरी नहीं मिली है। बताया जाता है कि स्वीकृति में विलंब होने से प्लांट की आड़ में पैसा कमाने का मंसूबा रखने वाले अफसरों में अब धैर्य खोता जा रहा है और वे यहां संविदा नियुक्ति के लिए विज्ञापन तक प्रकाशित कर डाले।
सूत्रों के मुताबिक 8-10 पदों पर संविदा नियुक्ति का विज्ञापन एक साजिश के तहत निकाला गया है और इसके पीछे उच्चस्तरीय षड़यंत्र की बात भी सामने आने लगी है। जब प्लांट ही स्वीकृत नहीं हुआ है तब संविदा नियुक्ति की बात आश्चर्यजनक ही नहीं विभाग के मंसूबों को भी दर्शाता है। बताया जाता है कि इस मामले में नवनियुक्त अध्यक्ष श्याम बैस को भी अंधेरे में रखा गया है। बहरहाल बीज विकास निगम के इस कारनामें से आसानी से समझा जा सकता है कि यहां किस तरह का खेल चल रहा है।

संवाद में चुपचाप दर्जनभर लोगों की संविदा नियुक्ति

संवाद में चुपचाप दर्जनभर लोगों की संविदा नियुक्ति
छत्तीसगढ़ जनसंपर्क के अधीन संवाद में भर्राशाही का आलम यह है कि गुपचुप तरीके से दर्जनभर लोगों को संविदा नियुक्ति दे दी गई। इस मामले की शिकायत भी सचिव व विभागीय मंत्री डॉ. रमन सिंह से की गई है।
छत्तीसगढ़ संवाद में भर्राशाही और भ्रष्टाचार थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के इस विभाग में चल रहे घपलेबाजी व अनियमितता की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो कई अधिकारियों को जेल जाना पड़ सकता है। आडिट आपत्ति के बाद भी मुख्यमंत्री की खामोशी ने कई सवाल खड़े किए हैं जिसके चलते यहां के अधिकारियों की मनमानी बढ़ गई है। हालत यह है कि पिछले दो माह में दर्जनभर लोगों को गुपचुप तरीके से संविदा नियुक्ति दे दी गई और अब तो संवाद को अय्याशी का अड्डा तक बताया जाने लगा है।हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि पिछले दो माह में नादिर कुरैशी, चमनजीत वर्मा, स्वाती शुक्ला, बबीता राय, दीप्ति वर्मा, सतीश जायसवाल, गोकुल यादव, सत्यनारायण प्रजापति व टिकेश्वर वर्मा को संविदा नियुक्ति दिए जाने की चर्चा है। यहीं नहीं भ्रष्टाचार में लिप्त कई संविदा कर्मियों को आने वाले दिनों में नियमित किए जाने की कोशिश का भी पता चला है। बहरहाल संवाद में चल रहे इस गोरखधंधे को लेकर कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि अधिकारियों की करतूत शर्मनाक स्थिति पर पहुंच गई है।

शनिवार, 26 जून 2010

इसलिए जनसंपर्क करता है दादागिरी

छत्तीसगढ़ जनसंपर्क हो या इसकी सहयोगी माने जाने वाली संवाद हो भ्रष्टाचार की गंगा बहने लगी है। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के इस विभाग की करतूतों पर किताबें लिखी जा सकती है। संविदा नियुक्ति से लेकर विज्ञापनों में कमीशनखोरी की बात हो या नियम-कानून की बात हो। इस विभाग में इन सबका कोई महत्व नहीं है।
कहने को तो इस विभाग का काम सरकार और मुख्यमंत्री की छवि बनाना है लेकिन वास्तव में इन दिनों जनसंपर्क-संवाद के अधिकारी ही सरकार और डा. रमन सिंह की छवि बिगाडऩे में लगे हैं। यहां हो रही अनियमितता की खबरें नहीं छप पाती क्योंकि अखबारों को विज्ञापन यहीं से मिलता है इसलिए स्वेच्छाचरिता यहां चरम पर है। संविदा नियुक्तियों में जिस तरह की मनमानी हुई है और प्रकाशन से लेकर विज्ञापन में जिस तरह से कमीशनखोरी की गई है उससे यहां के कई अधिकारियों के चरित्र पर भी उंगली उठाए जाने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि इसकी शिकायतें मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंची है लेकिन कार्रवाई कभी नहीं हुई। दरअसल 40 करोड़ के घपले की कहानी आडिट आपत्ति के बाद सामने आ चुकी है लेकिन दुनियाभर की खबरें छापने वाले स्थानीय अखबार इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं।
कलेक्टरों से लेकर सचिवों तक को धमकाने की ताकत रखने वाले इस विभाग के अफसरों का यह दंभ है कि वे यह कहते नहीं थकते कि छवि बिगाड़ देंगे। अब भला मुख्यमंत्री का ये लोग कौन सी छवि बना रहे हैं यह तो वही जाने लेकिन आम आदमी के सामने सरकार की छवि क्या रह गई है किसी से छिपा नहीं है।
और अंत में....
संवाद में चल रहे मनमाने संविदा नियुक्ति और 40 करोड़ की घपले की कहानी को लेकर एक कांग्रेसी नेता को प्रेस कांफ्रेंस की सलाह दी गई तो उसका जवाब था। अरे भैय्या पर्यटन के पत्रकार वार्ता का हश्र देखे हो। संवाद के खिलाफ कांफ्रेंस ली तो उतना भी नहीं छपेगा।

शुक्रवार, 25 जून 2010

चम्पू का कारनामा


बीज निगम में इकलौता प्रमोशन वह भी पूनम के भाई का
इसे कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू का चौधराहट कहें या सत्ता की ताकत यह तो वही जाने लेकिन जब वे बीज विकास निगम के अध्यक्ष थे तब उन्होंने पूर्व मंत्री पूनम चंद्राकर के भाई डी.के. चंद्राकर को पदोन्नति दी। बीज निगम बनने के बाद यह अब तक का इकलौता पदोन्नति आदेश है जबकि हाईकोर्ट से जीत कर आने वाले तक को पदोन्नति नहीं दिया गया।
छत्तीसगढ़ में ऐसा कोई विभाग नहीं हैं जहां भाजपाई लूट के किस्से चर्चित नहीं है। कृषि मंत्री की चौधराहट के किस्से भी कम नहीं है। बताया जाता है कि बीज विकास निगम के अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार उनके कार्यकाल में तो और अधिक होने लगा था। वसूली अधिकारियों की करतूतों पर परदा डालने की परम्परा ने बीज विकास निगम का बेड़ा गर्क कर दिया है। बताया जाता है कि बीज विकास निगम का सेटअप नहीं बना है जिसके चलते अधिकारियों कर्मचारियों में जबरदस्त रोष है। इस मांग को लेकर उच्च स्तर पर कई बार चर्चा हो चुकी है लेकिन सरकार ने भी कभी ध्यान नहीं दिया।
सूत्रों के मुताबिक सरकार की उदासीनता के चलते कई अधिकारी हाईकोर्ट से भी केस जीत चुके हैं लेकिन सेटअप नहीं होने का बहाना कर पदोन्नति नहीं दी गई। जिसके चलते अधिकारी-कर्मचारियों में जबरदस्त रोष व्याप्त है। बताया जाता है कि जब से छत्तीसगढ़ बीज विकास निगम का गठन किया गया है तब से यहां सेटअप का बहाना बना कर किसी को पदोन्नति नहीं दी गई लेकिन जैसे ही चंद्रशेखर साहू बीज विकास निगम का अध्यक्ष बने उन्होंने डी.के. चंद्राकर को डीजीएम के पद पर पदोन्नति देने का आदेश दे दिया।
सूत्रों ने बताया कि डी.के. चंद्राकर को पदोन्नति सिर्फ इसलिए दी गई क्योंकि वे भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री पूरन चंद्राकर के भाई हैं और पूनम का संबंध चंद्रशेखर साहू से बेहद मधुर है। बताया जाता है कि जब चंद्रशेखर साहू ने महासमुंद लोकसभा का चुनाव लड़ा था तब पूनम चंद्राकर ने उनकी खूब मदद की थी। पूनम चंद्राकर महासमुंद भाजपा जिला के अध्यक्ष भी रहे हैं लेकिन ननकीराम कंवर के द्वारा डॉ. रमन सिंह के खिलाफ चलाए अभियान में हिस्सा लेने की वजह से उन्हें विधानसभा की टिकिट से वंचित होना पड़ा था। जिस व्यक्ति की मुख्यमंत्री से अदावत हो उसके भाई को पदोन्नति देने के मामले में चंद्रशेखर साहू की भूमिका को दुस्साहस माना जा रहा है। बहरहाल श्याम बैस के अध्यक्ष बनने के बाद पुराने अध्यक्षों के कारनामें बाहर आने लगे हैं और इसे राजनैतिक रंग भी दिए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

गुरुवार, 24 जून 2010

मंत्री का हठ या गैंदाराम की दमदारी , सामने आ रही राज्यपाल की लाचारी

बलौदाबाजार में जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ गैंदाराम चंद्राकर पर कार्रवाई करने प्रदेश के राज्य ने दो दर्जनभर से अधिक पत्र शासन को लिखा है लेकिन शासन ने हटाने की बजाय उसे मालदार पद पर बिठाने का उपक्रम किया।
छत्तीसगढ़ के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग में चल रहे इस खेल की जानकारी मंत्री जी को भी हैं। गैंदाराम के खिलाफ दर्जनों शिकायतें हो चुकी है लेकिन पैसे और पहुंच के आगे मंत्री की दमदारी भी इस मामले में टांय-टांय फिस्स हो चुकी है। यहीं नहीं गैंदाराम के कारनामों को लेकर राज्यपाल तक से शिकायत की गई है और हर शिकायत के बाद राजभवन से शासन को पत्र भी लिखा जा चुका है लेकिन जिस गैंदाराम पर शिक्षा सचिव और लोकसेवा आयोग के सचिव की रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं हुई हो तो राज्यपाल की अनुशंसा पर क्या कार्रवाई हुई होगी आसानी से समझा जा सकता है।
ज्ञात हो कि गैंदाराम चंद्राकर ने पीएससी में चयन होने कुटरचित दस्तावेज प्रस्तुत किए थे जिसकी पुष्टि पीएससी के सचिव श्री पंत और तत्कालीन शिक्षा सचिव नंदकुमार ने भी की है लेकिन गैंदाराम के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई उल्टे प्रमोशन दिया गया। बताया जाता है कि गैंदाराम चंद्राकर की उच्च स्तरीय पहुंच की वजह से ही उन पर आज तक कार्रवाई नहीं हुई वहीं उनके द्वारा कार्रवाई से बचने बेतहाशा पैसा फेंके जाने की भी चर्चा है। इधर इस संबंध में यह भी पता चला है कि उन्हें शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का भी वरदहस्त प्राप्त है। हालांकि इस वरदहस्त के पीछे लेन देन की भी चर्चा है लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।
बहरहाल गैंदाराम चंद्राकर के मामले में जिस तरह से शिक्षा मंत्री का रवैया रहा है उससे न केवल सरकारी की छवि पर असर पड़़ रहा है बल्कि भ्रष्टाचार की नई परम्परा को भी जन्म दिया है।
गैंदाराम का दुस्साहस
कहते हैं कि जब गैंदाराम चंद्राकर शिक्षा अधिकारी बनकर बलौदाबाजार पदस्थ हुए तो उन्होंने कई कारनामे किए। यहां तक कि प्रभारी मंत्री के अनुमोदन पर हुए तबादलों में से अपने करीबी लोगों का तबादला रोकने का आदेश जारी कर दिया जबकि तबादला रोकने का कार्य मुख्यमंत्री द्वारा गठित समवन्य समिति का है लेकिन गैंदाराम के इस दुस्साहस पर भी उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सका।

शराब बंदी और खिलाफत

पिछले दिनों गायत्री परिवार के लोगों ने पत्रकारों को बताया कि वे जेल में बंदियों को गायत्री मंत्र सिखा रहे हैं और जेलों में वाचनालय स्थापित कर रहे हैं ताकि गलत कार्यों से लोगों का ध्यान हटे नि:संदेह गायत्री परिवार की यह कोशिश सराहनीय है। गायत्री परिवार के लोग शराब के खिलाफ भी जनजागरण अभियान चला रहे हैं इसी तरह का जनजागरण अन्य कई संस्थाएं भी चला रही है। इन संस्थाओं का मानना है कि उनके जनजागरण अभियान से लोग शराब पीना छोड़ देंगे। कुछ लोग छोड़ भी रहे होंगे। दरअसल इस तरह की संस्थाओं का आशावादी दृष्टिकोण आश्चर्यजनक है शराब के खिलाफ बरसों से इस तरह के जनजागरण चलाने वालों को इसका परिणाम तो पता है लेकिन वे फिर भी जनजागरण चला रहे हैं कुछ सरकारी अनुदान प्राप्त संस्था हैं तो कुछ लोग शराब के खिलाफ ऐसे अभियान के बहाने अपना नाम को प्रसिद्ध कर लेना चाहते हैं।
गायत्री परिवार किसी नाम का मोहताज नहीं है लेकिन उनके कार्यकर्ताओं को यह बात समझनी होगी कि सिर्फ जनजागरण से शराब बंदी हो जाती तो 50 सालों से चल रहे जनजागरण अभियान के बाद शराब पीने वालों की संख्या में हर साल ईजाफा नहीं होता। ऐसा ही अन्य संस्थाओं को भी यह बात समझनी होगी। दरअसल यह सारा खेल प्रदेश को मिलने वाले राजस्व का नहीं है बल्कि शराब दुकानों के खोलने में शराब ठेकेदारों द्वारा मंत्रियों-नेताओं से लेकर अधिकारी-कर्मचारियों को बांटे जाने वाले राजस्व का है। नेता-अधिकारी यह बात जानते हैं कि ऐसे जनजागरण से शराब बंद नहीं होगा इसलिए वे जनजागरण अभियान की दुहाई देते हैं जबकि यह सच्चाई है कि सरकार बेचना बंद करेगा तभी लोग पीना बंद करेंगे लेकिन वोट बैंक की राजनीति और पैसा कमाने की भूख ने इन विनाशकारी को जीवित रखा है।
सरकार शराब बेच रही है लोग जनजागरण चला रहे हैं आखिर यह कब तक चलेगा। इसलिए ऐसी संस्थाएं जो सचमुच शराब बंदी चाहते हैं वे यदि मुख्यमंत्री निवास का जमकर घेराव कर दे तो सरकार मजबूर हो सकती है। छत्तीसगढ़ में ही गायत्री परिवार के लाखों लोग हैं इसी तरह दूसरी संस्थाएं भी हैं यदि वे एक दिन तय करके संघर्ष की घोषणा कर दें तो सरकार जनजागरण की दुहाई देना बंद कर देगी। दरअसल सरकार ही नहीं चाहती कि शराब बंदी हो इसकी वजह वह राजस्व को बताते नहीं थकती लेकिन आम लोगों को यह समझना होगा कि राजस्व बहाना है असली वजह तो शराब ठेकेदारों से मिलने वाला कमीशन है जो राजस्व से कहीं ज्यादा नेताओं और अधिकारियों को मिलता है।

रविवार, 20 जून 2010

श्रीमद् भागवत गीता का अपमान!


ठाकुर की ठकुराई या मूणत की मुर्खताई
स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह की तस्वीर वाली गीता वितरित
इसे सत्ता का दंभ कहें या व्यवस्था की मुर्खता लेकिन डॉ. रमन सिंह के पिताजी के तेरहवीं कार्यक्रम में जिस तरह से हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ ‘श्रीमद् भागवत गीता’ का अपमान किया गया उससे न केवल आम आदमी आक्रोशित है बल्कि उनकी टिप्पणी भी बेहद तीखी है। कोई इसे गीता का अपमान कह रहा है तो कोई इसे सत्ता का दंभ बता रहा है। मामले को तूल पकडऩे से रोकने सरकारी प्रयास भी जारी है। बावजूद इस करतूत की शिकायत नागपुर से लेकर दिल्ली तक की जा चुकी है।
विवाद की शुरुआत तब हुई जब प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह के पिताश्री स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह के तेरहवीं में 16 जून को कवर्धा में श्रद्धांजलि कार्यक्रम के दौरान श्रीमद् भागवत गीता बांटी गई। तेरहवीं कार्यक्रम में गीता का वितरण नया नहीं है लेकिन यहां जिस गीता का वितरण किया गया उसमें स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह जी की रंगीन तस्वीर छापी गई थी। दरअसल हिन्दुओं के लिए गीता का महत्व किसी से छीपा नहीं है और वे इसे अपने पूजा स्थल पर रखते हैं ऐसे में स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह की तस्वीर वाली गीता कोई अपने पूजा स्थल पर क्यों रखेगा और जब पूजा स्थल पर नहीं रखा जाएगा तो फिर इस पवित्र ग्रंथ को रका कहां जाएगा। हमारे भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि तेरहवीं में वितरित किए जाने वाले श्रीमद् भागवत गीता में स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह की तस्वीर छापने के पिछे स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सहमति रही है जबकि सलाहकार के रुप में पूरे कार्यक्रम की व्यवस्था करने वाले नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत का नाम सामने आया है।
बताया जाता है कि यह तस्वीर मूणत आफसेट में छापी गई है और करीब डेढ़ लाख लोगों को यह किताब वितरित की गई है। आम लोगों की इस मामले में बेहद तीखी प्रतिक्रिया है और कई लोगों ने तो यहां तक कह डाला कि जो जितना बड़ा अधर्मी है आज वह उतना ही बड़ा धर्म का ठेकेदार हैं।
कई लोगों ने तो यहां तक कहा कि धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा के नेताओं की ऐसी करतूतों के कारण ही देश में भाजपा को मुंह की खानी पड़ेगी और केन्द्रीय नेतृत्व ने यदि कड़े कदम नहीें उठाये तो छत्तीसगढ़ में भी भाजपा को मुंह की खानी पड़ सकती है। बहरहाल स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह की तस्वीर वाले श्रीमद् भागवत गीता का मामला किस करवट बैठेगा यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन यह तय है कि इस मामले को लेकर पुजारियों और आम लोगों में बेहद आक्रोश है।
क्या करें इसगीताका...
हमने स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह की तस्वीर वाले ‘श्रीमद् भागवत गीता’ के उपयोग पर चर्चा की तो कई पंडितों ने कहा कि इसे नदी-तालाब में विसर्जित किया जाना ही सबसे उचित होगा क्योंकि यदि तस्वीर फाडक़र इसे पूजा स्थल पर रखेंगे तो ठाकुर साहब का अपमान होगा। भले ही तस्वीर छपाने वालों ने इस अपमान को नहीं समझा हो लेकिन आम आदमी को यह ध्यान रखना होगा कि उनकी हरकत से किसी का अपमान न हो।
कांग्रेसी अब क्या करेंगे
धर्म को लेकर हमेशा ही कांग्रेस पर हमला होता रहा है ऐसे में विपक्ष में बैठी कांग्रेस क्या रूख अख्तियार करती है इसे लेकर कई तरह की चर्चा है। खासकर उन कांग्रेसियों की दुकानदारी या ठेकेदारी बंद होने की बात कही जा रही है जो थोड़े बहुत लालच में अपने मुंह पर ताला जड़े हुए हैं।
अब कहां है हिन्दू संगठन...
छत्तीसगढ़ में हिन्दुओं के हित में बोलने वाले चार दर्जन से अधिक संगठन काम कर रहे हैं लकिन आश्चर्य का विषय तो यह है कि इतने बड़े मामले में अब तक कोई भी सामने नहीं आया है। हिन्दुत्व की दुहाई देने वाले सबसे बड़े संगठन आरएसएस हो या विश्वहिन्दू परिषद से लेकर बजरंग दल सभी ने खामोशी ओढ़ ली है बात-बात में मिशनरियों को ललकारने वाली धर्म सेना तो इस मामले में कुछ भी बोलने से कतराती रही जबकि छोटे-मोटे संगठनों ने हमें ही सलाह दे दिया कि इस मामले को तूल मत दो। हमारा भी इस मामले को तूल देने का ईरादा नहीं है लेकिन जिस हिसाब से हमें आम लोगों ने ‘गीता’ के अपमान को लेकर अपनी भावनाएं व्यक्त की हम उन्हें भावनाओं को सिर्फ शब्द दे रहे हैं।
धर्म की राजनीति करने वाले दिग्गज भी पहुंचे थे...
स्व. ठाकुर विघ्नहरण सिंह जी के तेरहवीं कार्यक्रम में वे लोग भी आए थे जिन्हें कट्टर हिन्दुवाद के रुप में जाने जाते हैं। लालकृष्ण आडवानी, उमा भारती तो कट्टर हिन्दूवादी चेहरे हैं। जबकि राजनाथ सिंह, सुंदरलाल पटवा, धर्मेन्द्र प्रधान, रविशंकर प्रसाद, प्रभात झा, उमाशंकर गुप्ता सहित अनेक लोगों का ध्यान भी इस ओर नहीं गया। क्या वे जानबूझकर चुप थे यह तो वहीं जाने।
धर्म ग्रन्थ किसी की जागीर नहीं
प्रतिक्रियाएं : आम लोगों में आक्रोश
महादेव घाट स्थित हटकेश्वर नाथ मंदिर के पुजारी श्री लोचन गिरी गोस्वामी जी हमारे धर्मग्रंथ के साथ छेड़छाड़ करना गलत बात है इस तरह से फोटो लगाना उचित नहीं है यह हक किसी को नहीं है ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
महादेवघाट स्थित काली मंदिर के महंत संतोष गिरी महाराज फोटो लगाने का अधिकार किसने दिया। ये तो बर्दाश्त के बाहर की बात है और इस पाप के लिए सजा जरूर मिलेगी।
श्री कमल गिरी जी महाराज- इन्होंने इस तरह से गीता के अपमान की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इसके खिलाफ आवाज उठाने का आह्वान किया।
श्री डगेश्वर शर्मा जी महाराज ने कहा कि इस तरह का कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है और दंड भी तय होने चाहिए।
फायर ब्रिगेड चौक हनुमान मंदिर के पुजारी पं. भूषण शर्मा जी ने गीता में फोटो देखते ही आग बबूला हो उठे और इसे पाप करार देते हुए गीता के दुरुपयोग पर रोक लगाने की बात कही।
श्याम नगर स्थित शिव मंदिर के पुजारी पं. यदुवंशमणि त्रिपाठीजी ने इस ‘गीता’ को देखते ही कहा कि लगता है डॉ. रमन सिंह पर भी कलयुग का प्रभाव आ गया है और कहा कि जब राजा ही ऐसा अधर्म काम करे तो प्रजा क्या करेंगे। पद के प्रभाव में धार्मिक ग्रंथों का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
आर्तेक जायसवाल अंबिकापुर- इन्होंने कहा कि पद का ऐसा दुरुपयोग कभी नहीं देखा इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
बल्ला महाराज- डंगनिया बम्लेश्वरी मंदिर के पुजारी ने भी कहा कि इस तरह का फोटो लगाना गलत है। धर्मग्रंथ के साथ छेड़छाड़ की ईजाजत किसी को नहीं दी जानी चाहिए। हम इसका कड़ा विरोध करते हैं।
ट्रांसपोर्टर संजय पाण्डे रायपुरा ने कहा कि कोई हिन्दु ही कैसे अपने ग्रंथ का अपमान कर सकता है आज हिन्दु संगठन चुप रहा तो हिन्दुओं की रक्षा में कौन आगे आएगा।
पत्रकार दामू अम्बाडोरे ने कहा कि अब तो जो जितना बड़ा अधर्मी है उतना बड़ा धर्म का ठेकेदार हो गया है ऐसे लोगों का बहिष्कार किया जाना चाहिए।
कवर्धा निवासी शेषनारायण पाण्डे ने कहा कि यह तो पद का दंभ है और किसी को अपने परिवार का प्रचार करना है तो कम से कम धर्म ग्रंथों को तो बख्श दें।
कोण्डागांव निवासी इसरार अहमद गोलू ने कहा कि किसी भी धर्मग्रंथ का अपमान उचित नहीं है और ऐसे मामले में कार्रवाई तय हो। धर्मग्रंथ किसी की जागिर नहीं है जिसे तो चाहे जैसा उपयोग कर ले।
विजन पब्लिक स्कूल के संरक्षक श्री सभाजीत पाण्डेय ने गीता में तस्वीर देखते ही भडक़ उठे। उन्होंने कहा कि पद में बैठकर लोग धर्म को जागिर बनाना आम लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ है ऐसे लोगों को न केवल पद से निकालना चाहिए बल्कि कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
अजय दुबे संपादक खबर भूमि ने कहा कि भाजपा केवल धर्म की रक्षा की बात कर सत्त में आई है और उनके नेता इस तरह की हरकत कर रहे हैं ऐसे लोगों को पद पर बने रहने का एक दिन का भी हक नहीं है।

शुक्रवार, 18 जून 2010

निकम को फिर संविदा में रखने की कोशिश...

छत्तीसगढ़ राय बीज एवं कृषि विकास निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार को नए अध्यक्ष श्याम बैस किस तरह काबू में करेंगे यह तो वही जाने लेकिन जिस जिला प्रबंधक के पद रहे एनसी निकम के पुन: नौकरी देने के प्रस्ताव को आईएएस डीएस मिश्रा ने खारिज कर दिया है उसी निकम को पुन: संविदा नियुक्ति देने की कोशिश चल रही है।
छत्तीसगढ राय बीज एवं कृषि विकास निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार चरम पर है और कहा जाता है कि जिला प्रबंधक जैसे पदों पर 20 लाख रुपए सालाना से अधिक आवक है। इसी परिपेक्ष्य में इस बात की जबरदस्त चर्चा है कि 30 जून 2010 को सेवानिवृत्त हुए एनसी निकम को पुन: संविदा नियुक्ति देने की तैयारी की जा रही है ताकि उच्चाधिकारियों के वसूली अधिकारी के रूप में चर्चित निकम के माध्यम से भ्रष्टाचार की मान्य परम्परा को कायम रखी जा सके।
हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक एनसी निकम को संविदा नियुक्ति देने की कोशिश पहले भी हो चुकी है। जब आईएएस डीएस मिश्रा निगम के अध्यक्ष थे तब 30 मार्च 2010 को बोर्ड की बैठक हुई थी इस बैठक में एनसी निकम को संविदा नियुक्ति देने का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन निकम के कारनामों से परिचित डीएस मिश्रा ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। सूत्रों ने बताया कि मिश्रा के हटते ही और श्याम बैस के अध्यक्ष बनते ही एक बार पुन: निगम में पदस्थ भ्रष्टाचारी चौकड़ी हाल ही में होने वाली बोर्ड की बैठक में पुन: एनसी निकम को संविदा नियुक्ति देने का प्रस्ताव लाने की कोशिश में हैं।
सूत्रों ने बताया कि इसके लिए उच्चस्तरीय प्रयास और बड़ी राशि के लेन-देन की खबरें आने लगी है। बहरहाल बीज निगम में चल रहे नए खेल को लेकर यहां कई तरह की चर्चा है और यह भी कहा जा रहा है कि पुराने अध्यक्षों के कारनामों को लेकर नए अध्यक्ष श्याम बैस की भूमिका क्या होगी।

गुरुवार, 17 जून 2010

किसने रोका अखबारों में खबर छपने से ?

मंत्री बृजमोहन अग्रवाल या पर्यटन अधिकारी
जिला कांग्रेस कमेटी ने सोचा भी नहीं रहा होगा कि जिस पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग के दो अधिकारियों के कारनामों पर जब वे पत्रकार वार्ता लेंगे तो यह खबर छप भी नहीं पायेंगी। यह पत्रकार वार्ता की खबरें किसने रुकवाई या विज्ञापन देने वाले पर्यटन मंडल की खबर खुद अखबारों ने रोकी यह जांच का विषय हो सकता है लेकिन खबर रुकने को लेकर पत्रकार वार्ता लेने वाले हैरान है।
जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल महामंत्री डॉ. निरंजन हरितवाल ने गुरुवार 10 जून को प्रेस क्लब में पत्रकार वार्ता लेकर पर्यटन मंडलके दो अधिकारियों एमजी श्रीवास्तव और अजय श्रीवास्तव पर न केवल गंभीर आरोप लगाए बल्कि पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भी इसके लिए दोषी ठहराया। हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक वैसे तो इस पत्रकार वार्ता की सूचना के दौरान ही कई अखबारों में निर्देश जारी हो चुके थे। इधर गुरुवार को कुछ इलेक्ट्रानिक चैनलों में भी इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ खबरें प्रसारित होने लगी थी। लेकिन इस मामले में प्रिंट मीडिया की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। जितनी मुंह उतनी बातें। कोई खबर रोकने के लिए मंत्री का दबाव बता रहे हैं तो कुछ पर्यटन अधिकारियों की दमदारी। हालांकि यह भी चर्चा है कि पर्यटन से मिलने वाले विज्ञापनों के मोह ने भी खबर को प्रसारित नहीं करने में बड़ी भूमिका निभाई है।
पत्रकार वार्ता में वितरित सामग्री
प्रदेश के कद्दवार मंत्री कहे जाने वाली मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग पर्यटन मंडल को भ्रष्टाचार मंडल कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पर्यटन मंडल में पिछले कुछ वर्षों से एमजी श्रीवास्तव द्वारा महाप्रबंधक पद पर रहते हुए तथा अजय श्रीवास्तव जनसंपर्क अधिकारी एवं वरिष्ठ पर्यटन अधिकारी जिन पर धारा 302, 201, 34 का आरोप है के द्वारा मनमाने ढंग से भ्रष्टाचार, घोटाले, तानाशाही रवैय्या अपनाया जा रहा है। उसके बाद भी श्री बृजमोहन अग्रवाल द्वारा इन पर कोई कार्रवाई न करना। यह अपने आप में संदेहस्पद है। उपरोक्त जानकारी शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल प्रभारी महामंत्री डा. निरंजन हरितवाल ने यहां एक पत्रकार वार्ता में दी। शहर
कांग्रेस के महामंत्री डा. निरंजन हरितवाल ने बताया कि छत्तीसगढ़ पर्यटन मंत्री को भ्रष्टाचार मंडल बनाने वाले मध्यप्रदेश पर्यटन से आए लेखाधिकारी मंदन गोपाल श्रीवास्तव के तानाशाही मनमानी बेखौफ निडरता का उदाहरण है कि पर्यटन मंडल में सीएसआईडीसी से कार्यपालन अभियंता के पद पर प्रतिनियुक्ति पर कार्य किए हुए अभियंता जी.एल. ठाकुर को कार्यपालन यंत्री के पद पर संविलियन करने का अनुमोदन एवं आदेश मंत्री बृजमोहन अग्रवाल एवं प्रमुख सचिव द्वारा नोटशीट में आदेश सन् 2008 से 2010 तक अनेको बार निर्देश दिए गए है, किन्तु मदन गोपाल श्रीवास्तव जो उपसचिव भी है ने बखूबी फाईल को उलझाकर मंत्री महोदय के निर्देश की धाियां उड़ाकर अपने आप को प्रमुख सचिव एवं मंत्री से यादा पावरफुल समझता है। आश्चर्य तो इस बात का है कि मंत्री महोदय बार-बार नोटशीट में पेज नं. 24 में दिए गए आदेश का पालन करें। लिखते है किन्तु कभी उन्होंने मदनगोपाल श्रीवास्तव से यह नहीं जानना चाहा कि अभी तक ठाकुर का आदेश क्यों नहीं निकाला? क्या यह महाप्रबंधक एमजी श्रीवास्तव एवं बृजमोजन अग्रवाल द्वारा जी.एल. ठाकुर को बहलाने की साजिश थी जबकि जीएल ठाकुर द्वारा अपने साथ हुए इस अन्याय के खिलाफ कई दिनों तक गोहार लगाते रहे। मंत्री एवं सचिव को अनेकों आवेदन 3 वर्षों में दिए। लेकिन इन्हें न्याय तो नहीं मिला, हां इस चिंता से उन्हें हृदयघात जरूर हुआ। श्री धाड़ीवाल, डा. हरितवाल ने आगे कहा कि भोपाली मदन गोपाल श्रीवास्तव के प्रताड़ना के फलस्वरुप जीएल ठाकुर इतने विवश हो गए कि वे अपने मूल विभाग सीएसआईडीसी में जाने के लिए मजबूर हो गए है। इन सब के पीछे मुख्य कारण यह है कि विभाग में समस्त निर्माण कार्य श्री ठाकुर द्वारा संभवत: नियमानुसार कराने से श्री श्रीवास्तव को भ्रष्टाचार करने का मौका नहीं मिलता। इस कारण श्री ठाकुर को इंजीनियरिंग सेक्शन के पूरे कार्य से हटाया जाकर स्वयं श्रीवास्तव जी इंजीनियर बन गए है और जहां बिल पास करने के लिए जीएल ठाकुर अधिकृत है वहां सर्विस प्रोबाइटर अभियंता से नाममात्र हस्ताक्षर करवाकर मोटलों एवं निर्माण कार्यों में खूब भ्रष्टाचार किया जा रहा है। श्री श्रीवास्तव एकाउंटेंट होते हुए भी महाप्रबंधक अभियंत्री की पर्यटन मंडल है तथा छत्तीसगढ़ शासन में उपसचिव पर्यटन है एवं होटल प्रबंध संस्थान में प्राचार्य है। ठेकेदारों के बिलों को बिना तकनीकी मापदंड एवं चेकिंग के डमी सर्विस प्रोपाइटर इंजीनियर से हस्ताक्षर कराकर कमीशन बटोरना ही इनका मुख्य कार्य है। श्री धाड़ीवाल, डॉ. हरितवाल ने कहा है कि एमजी श्रीवास्तव ने भ्रष्टाचार की चरमसीमा पार कर दी। इसका उदाहरण उनका ग्रीन सीटी विशाल नगर में आलीशान बंगला है। मध्यप्रदेश पर्यटन मंडल में भ्रष्टाचार के दस्तावेज भी इनके अतीत का भ्रष्टाचार प्रमाणित करता है।
इनकी कार्यशैली का एक उदाहरण यह है कि इनके जात भाई अजय श्रीवास्तव जो कि दुग्ध संघ में प्रतिनियुक्ति पर वरिष्ठ पर्यटन अधिकारी के उच्च पद पर आए थे, उनका संविलियन उच्च पद पर भी किया गया है। जबकि जीएल ठाकुर को मंत्री एवं प्रमुख सचिव के अनुमोदन आदेश के विपरीत निम्न पद पर आदेश निकाला गया, जो कि मदन गोपाल श्रीवास्तव का शासन के मुंह पर तमाचा साबित हो चुका है। कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि अजय श्रीवास्तव वरिष्ठ पर्यटन अधिकारी जिस पर सिमगा पुलिस रिकार्ड के अनुसार धारा 302 के तहत अपराध है तथा सिमगा पुलिस थाने से जनसूचना के अधिकार के तहत निकाली गई जानकारी के अनुसार फरार घोषित किया गया है तथा शैक्षणिक योग्यता के अनुसार (टूरिम एवं होटल मैंनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा) वरिष्ठ पर्यटन अधिकारी के लिए आवश्यक योग्यता नहीं होने के बाद भी ऐसे व्यक्ति का छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल को बढ़ावा देने के लिए चयन किया जाना ही विभाग की विभागीय मंत्री जी के लिए प्रश्नचिन्ह है। 11 माह का मोटल निर्माण कार्य आज 5 वर्ष में भी पूर्ण नहीं किया गया और खंडहर की स्थिति में आ चुका है तथा नक्सली लोगों के रूकने का अड्डा बन चुका है। ठेकेदारों को लम्बी अवधि का भी भुगतान किया गया है। जिससे प्रत्येक मोटलों में 50 लाख का अतिरिक्त व्यय हुआ है। इस प्रकार मदन गोपाल श्रीवास्तव द्वारा 20 करोड़ रुपए का भुगतान एवं मोटी राशि लेकर किया गया है। इस तरह के और भी ना जाने इतने भ्रष्टाचार श्रीवास्तव बन्धुओं ने किए हैं, जिसकी जानकारी अभी आना बाकी है।
शहर अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल और महामंत्री डॉ. निरंजन हरितवाल ने पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल एवं मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह से इस पूरे मामले की जांच कराया जाकर मदन गोपाल श्रीवास्तव एवं अजय श्रीवास्तव को तत्काल कार्य से निलंबित करने की मांग की है तथा कार्यवाही न होने पर 5 दिवस पश्चात पर्यटन मंडल कार्यालय में धरना प्रदर्शन किया जाएगा तथा बृजमोहन अग्रवाल एवं मुख्यमंत्री से मिलकर कार्यवाही की भी मांग की जाएगी।
नई दुनिया में खबरें तो छपी लेकिन...
पत्रकारवार्ता की खभरें सब जगह रुक गई और थोड़ी दमदारी नई दुनिया ने दिखाई और खबरें तो छापी लेकिन किस तरह छापी है आप स्वयं देख लें....
पर्यटन मंडल के अफसरों पर भ्रष्टाचार का आरोप:- शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल और प्रभारी महामंत्री डा. निरंजन हरितवाल ने पर्यटन मंडल के दो अधिकारियों पर भ्रष्टाचार, घोटाला और तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। कांग्रेस नेताओं ने गुरुवार को पत्रकारवार्ता में बताया कि दोनों अधिकारियों के खिलाफ धारा 302, 201 व 24 का मामला दर्ज है। वे अपने आपको पावरफुल समझते हैं और उन्होंने सीएसआईडीसी के एक अभियंता की पर्यटन मंडल में संविलियन संबंधी फाइल को उलझा दिया है। मोटल निर्माण कार्य भी अधूरा है। ठेकेदारों को लंबी अवधि का भुगतान किया गया है। जिससे प्रत्येक मोटलों में 50-50 लाख का अतिरिक्त व्यय हुआ है। कांग्रेस नेताओं ने पूरे मामले की जांच कराकर दोनों अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने की मांग की है। पांच दिन के भीतर कार्रवाई न होने पर पर्यटन मंडल कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन किया जाएगा। साथ ही मुख्यमंत्री रमन सिंह और पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को ज्ञापन सौंपा जाएगा।

निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों ने की करोड़ों रुपए की घोटाला

छात्र भटक रहे, सरकार खामोश
छत्तीसगढ़ के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की मनमानी पर छत्तीसगढ़ सरकार की चुप्पी से नाराज कांग्रेसियों ने बड़ा आंदोलन करने की घोषणा की है। निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों पर करीब 300 छात्रों की करोड़ों रुपए दबा लेने के मामले को लेकर शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल और महामंत्री डॉ. निरंजन हरितवाल ने संचालनालय को ज्ञापन भी सौंपा है।
छत्तीसगढ़ शासन उच्च शिक्षा तकनीकी, शिक्षा, जनशक्ति नियोजन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग मंत्रालय दिनांक 19 मई 2005 के आदेशानुसार समस्त गैर अनुदान प्राप्त व्यवसायिक शैक्षणिक संस्थानों के लिए शैक्षणिक शुल्कों का निर्धारण किया गया जिसके मुताबिक निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों का वर्ष 2005-06 से कोर्स पूरा होते तक प्रतिवर्ष संलग्न प्रपत्र के अनुसार विभिन्न कालेजों को सूची के अनुसार 20 हजार से 30 हजार तक छात्र-छात्राओं से फीस लेने की पात्रता थी। इसके बाद पुन: दिनांक 19 मार्च 2010 को वर्ष 2008-09 में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राआें के लिए सलंग्न प्रपत्र के अनुसार प्रति सेमेस्टर फीस निर्धारित की गई। सभी निजी इंजीनियरिंग कालेजों द्वारा वर्ष 2008-09 में प्रवेश लेने वाले छात्रों के लिए निर्धारित फीस का फायदा उठाते हुए उन समस्त छात्रों से भी जिन्होंने 2005-06, 2006-07, 2007-08 में प्रवेश लिया है से भी 2008-09 की बड़ी हुई फीस 20 हजार 150 रुपए से लेकर 24 हजार 150 रुपए प्रति सेमेस्टर के हिसाब से वसूल कर लिया। जबकि उन पुराने छात्रों पर बढ़ी हुई दर लागू नहीं है। वर्ष 2008-09 इस प्रकार संलग्न सूची में उल्लेखित 24 निजी इंजीनियरिंग कालेजों द्वारा 103 करोड़ रुपए की अधिक फीस छात्र-छात्राओं के साथ धोखाधड़ी कर नियम विरुध्द वसूल कर ली है। जिन्हें ब्याज सहित वापस दिलाए जावे।
इस प्रकार 24 निजी इंजीनियरिंग कालेजों के सभी 300 छात्रों को इनसे 2 वर्षों तक की अधिक फीस वसूली गई है जो 60 हजार रुपए प्रति छात्र ब्याज सहित होती है, को 15 दिनों के अंदर वापस दिलाया जावे अन्यथा कांग्रेसजन, आपके एवं निजी इंजीनियरिंग कालेजों के विरुध्द आंदोलन प्रदर्शन एवं घेराव किया जावेगा। इसके अलावा लेट फीस के नाम पर 1 हजार रुपए तक छात्रों से वसूल किया गया है, जबकि नियमानुसार 25 रुपए प्रतिदिन से अधिक लेटफीस नहीं ली जा सकती है इस प्रकार लाखों रुपए लेटफीस के नाम से छात्रों से वसूला गया है जिसे भी जांचकर वापस दिलाया जाए।
इस प्रकार पुराने छात्रों से अभी तक 103 करोड़ 68 लाख रुपए अधिक फीस वसूली गई। इसके अतिरिक्त 2010-11 में इसी दर से अतिरिक्त फीस वसूल की जावेगी। जिस पर भी रोक लगाना आवश्यक है। अत: अनुरोध है कि उन समस्त पुराने छात्रों को जिन्होंने वर्ष 2005-06 से 2007-08 तक प्रवेश किया है उन समस्त छात्रों से जो 2009-10 तक उपरोक्तानुसार अधिक फीस वसूल की गई 24 हजार रुपए प्रतिवर्ष से 2 वर्ष की याने 48 हजार रुपए की दर से तथा उस पर दो वर्ष का ब्याज जो करीब 18 हजार रुपए 18 प्रतिशत वार्षिक दर से इस प्रकार प्रत्येक छात्रों को 60 हजार रुपए अधिक वसूल की गई फीस वापस की जावे।

बुधवार, 16 जून 2010

अखबार की जमीन पर बनते कॉम्पलेक्स

यह सरकारी भर्राशाही है या अखबार वालों की बेशर्मी यह तो आम लोग तय करे लेकिन कभी प्रेस काम्पलेक्स के नाम पर चर्चित रजबंधा मैदान में इन दिनों काम्पलेक्स खड़ा होने लगा है सरकार ने अखबारों की दादागिरी बर्दाश्त की तो हालत इंदौर जैसे हो जाएगी जहां कभी बारूद लगाकर अखबारों के बिल्डिंग उड़ाए गए थे।
अखबार वैसे तो एक मिशन के रूप में जाना जाता रहा है जिसका काम आम लोगों के हित साधना है लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में अब यह एक व्यवसाय का रुप ले चुका है और आम आदमी में भी अखबार के प्रति यही सोच बलवती होने लगी है तो इसकी वजह बड़े अखबारों का व्यवहार है जो अखबार के लिए दी गई सरकारी जमीन के उपयोग से सीधे परिलक्षित होती है। अमृत संदेश हो या नवभारत, देशबंधु हो या दैनिक भास्कर यहां तक कि तरुण छत्तीसगढ़ से लेकर छत्तीसगढ़ में यही हाल है। अखबार के दफ्तर कम काम्पलेक्स नजर आने वाले इन मीडिया वाले भले गलतफहमी पाल ले कि इससे आम लोग में कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा लेकिन जो लोग जानते हैं कि अखबार खोलने के नाम पर दी गई सरकारी जमीनों को दादागिरी के दम पर कैसे काम्पलेक्स में बदला जा रहा है।
पिछले कुछ दिनों से भास्कर के 14 मॉले के काम्पलेक्स की राजधानी में जमकर चर्चा है और यह भी कहा जा रहा है कि इसके भूउपयोग से लेकर नक्शे तक की स्वीकृति में जमकर दादागिरी चली है और यह चर्चा सच है तो सरकार को भी सोचना चाहिए कि अब अखबारों को सस्ते दर पर जमीनें क्यों दी जाए।
और अंत में....
एक अखबार वाले ने तो नई राजधानी में ही नए प्रेस काम्पलेक्स का प्रस्ताव बना लिया है जबकि शुक्ला पेट्रोल पम्प को दूसरे जगह जमीन देने पर बस स्टैण्ड की जमीन खाली करने की खबरें इसी के यहां सबसे यादा छपती रही है।

धनेन्द्र साहू के गांव में चंद्रशेखर की दमदारी

तोरला में अवैध कब्जे की बाढ क़ो संरक्षण
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष धनेन्द्र साहू चुनाव क्या हारे उन्हें अपने गांव में ही चुनौती मिलने लगी है कहा जाता है कि कृषि मंत्री चन्द्रशेखर साहू ने यहां अपने समर्थकों की फौज खड़ी करना शुरू कर दिया है और तोरला में हो रहे बेतहाशा अवैध कब्जों को इसी राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है।
अभनपुर विधानसभा क्षेत्र में वैसे तो कई गांवों में अवैध कब्जों की शिकायत आने लगी है लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष धनेन्द्र साहू के गृह ग्राम तोरला में जिस बड़े पैमाने पर सरकारी जमीनों पर कब्जे किए जा रहे हैं उससे गांव वाले परेशान है। बताया जाता है कि सरकारी जमीनों पर हो रहे अवैध निर्माण की शिकायत तहसीलदार पटवारी से भी कई गई है। लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा समर्थकों की फौज खड़ी करने पूरे विधानसभा क्षेत्र में इस तरह की रणनीति बनाई गई है और इस कार्य में तहसीलदार व पटवारियों को भी मदद करने के मौखिक निर्देश दिए गए है।
हमारे सूत्रों ने बताया कि जिन गांवों में भाजपा समर्थित पंचायत पदाधिकारी है वहां रणनीति के तहत अवैध कब्जों को प्रश्रय दिया जा रहा है। इधर तोरला में ग्रामीणों ने कहा कि जिस स्तर पर यहां सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे किए जा रहे हैं उससे आने वाले दिनों में नई मुसिबतों का सामना करना पड़ सकता है। ग्रामीणों ने बताया कि अवैध कब्जों की शिकायत लिखित में पटवारियों व तहसीलदार से करते हुए कब्जे तोड़ने की मांग की गई है लेकिन राजनैतिक संरक्षण के चलते अधिकारी भी चुप है।
दूसरी तरफ तोरला में चल रहे अवैध कब्जों को राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा रहा है और कहा जा रहा है कि धनेन्द्र साहू के गढ़ में सेंध मारने नई टीम तैयार की जा रही है। बहरहाल अभनपुर क्षेत्र में बढ रहे अवैध कब्जों की शिकायतों पर अधिकारियों की खामोशी से मामला गंभीर होता जा रहा है और जिस हिसाब से नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं उससे रमन सरकार की छवि पर असर पड़ सकता है।

मंगलवार, 15 जून 2010

क्या पोल-खोल की धमकी की वजह से हुई बाबूलाल की बहाली

बाबूलाल और डा. प्रमोद पहुंचाते थे सीधे पैसा?
करोड़ों रुपए की अघोषित संपत्ति के आरोप में निलंबित आईएएस बाबूलाल अग्रवाल की बहाली को लेकर आम लोगों में जबरदस्त हैरानी है और कहा जा रहा है कि उनके द्वारा पोल खोल देने की धमकी की वजह से ही उनकी बहाली आनन-फानन में की गई और राजस्व मंडल जैसे न्यायालयीन विभाग में बिठाया गया।
ज्ञात हो कि आयकर विभाग ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के घर छापे की कार्रवाई कर करोड़ों रुपए के अघोषित आय की संपत्ति बरामद होने की घोषणा की थी इसके बाद सरकार ने बाबूलाल अग्रवाल को निलंबित किया था वह भी निलंबित नहीं करने को लेकर जब हल्ला मचाया गया। बताया जाता है कि तभी से यह अंदेशा था कि बाबूलाल अग्रवाल यादा दिन निलंबित नहीं रह पाएंगे। हमारे एक भरोसेमंद सूत्रों का तो दावा था कि बाबूलाल के पास कई ऐसे सबूत हैं जिससे सरकार को परेशानी हो सकती है। स्वास्थ्य विभाग के एक सूत्र का तो दावा था कि यहां के बाबूलाल और डा. प्रमोद दो ऐसे अधिकारी रहे हैं जो सीधे पैसा पहुंचाते थे। हालांकि इस आरोप की कोई पुष्टि नहीं हुई है लेकिन जिस तरह से आनन-फानन में बाबूलाल अग्रवाल की बहाली हुई है इसके पीछे पोल-खोल की धमकी का परिणाम ही बताया जा रहा है।
दूसरी तरफ शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष इंदरचंद धाड़ीवाल और महामंत्री डॉ. निरंजन हरितवाल ने बाबूलाल अग्रवाल की बहाली पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार गलत और अपराधिक लोगों को संरक्षण दे रही है। अभी ठीक से मामले की जांच भी नहीं हुई है और सरकार ने न केवल बहाली आदेश निकाल दिया बल्कि राजस्व मंडल जैसे न्यायालीन जगह में सदस्य बना दिया। शहर कांग्रेस कमेटी ने बाबूलाल अग्रवाल की बहाली पर बड़ी राशि का लेन-देन होने का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग भी की है। बहरहाल बाबूलाल अग्रवाल की बहाली को लेकर कई तरह की चर्चा है और इस प्रकरण से सरकार की छवि पर भी असर पड़ा है।

सोमवार, 14 जून 2010

वेदांता की दादागिरी,गैस त्रासदी पर न्याय?

न्याय प्रणाली को लेकर इन दिनों पूरे देश में बहस चल पड़ी है। प्रक्रिया से विलंब होते फैसले ने नैसर्गिक न्याय के सिध्दांत को तो पीछे छोड़ा ही है आम लोगों का विश्वास भी तोड़ा है। पिछले दिनों न्यायालय के दो फैसले ऐसे आए जिन पर आम जनमानस कहीं से भी सहमत नहीं है और लोकतंत्र के लिए ऐसे फैसलों को उचित भी कैसे माना जा सकता है जिस पर आम लोग ही सहमत न हो।
पहला फैसला छत्तीसगढ क़े न्यायालय से आया कि बालकों ने जो 6 सौ एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है उसे सरकार पैसा ले कर बालको को उपयोग के लिए दे दे। इस पर आम आदमी अवाक है कि अपने लिए अशियाना बनाने वालों को हटा देने वाली सरकार किस तरह से बालको को कोर्ट के फैसले की आड़ पर जमीन देने आमदा है। ऐसी बेशर्मी बहुत कम देखने को मिलती है लेकिन छत्तीसगढ सरकार ने कुछ एक मंत्रियों की असहमति के बाद भी बालको को उसके अवैध कब्जे को देने आमदा है। संवैधानिक व्यवस्था के तहत बने सरकारों को ऐसे फैसलों से इसलिए रोकना चाहिए क्योंकि छत्तीसगढ़ की रमन सरकार को जनादेश नहीं मिला है वह 40-42 प्रतिशत वोट पाकर सकरार बना सकी है यानी उसके खिलाफ 58 से 60 प्रतिशत लोग हैं। ऐसी दशा में नीतिगत फैसले की बात ही बेमानी है।
दूसरा फैसला भोपाल गैस कांड का है और यहां भी भाजपा की सरकार ही बैठी है और जिस तरह से 15 हजार मौतों पर 2 साल की सजा सुनाई गई उससे लोक आवक है। हम यहां यह नहीं कह रहे हैं कि ऐसे फैसले सिर्फ भाजपा शासित रायों में हो रहे हैं और न ही हम यह कहते हैं कि न्यायालय का फैसला ही गलत है लेकिन न्यायप्रणाली के इस दो फैसलों ने आम लोगों में सवाल तो खड़ा किया ही है कि क्या बालको का अवैध कब्जा उचित है और आम आदमी के द्वारा किया गया कब्जा गलता है। क्या उद्योगों और आम आदमी के जमीन कब्जे अलग-अलग श्रेणी में आते हैं तो फिर समान न्याय की बात कहां होगी। ऊपर से न्यायालय के फैसले के बाद डॉ. रमन सरकार ने जिस बेशर्मी से बालको को जमीन देने आमदा दिखी वह सरकार की नीति और नियत बताने के लिए काफी है। एक तरफ राजधानी में पीढ़ियों से व्यापार करने वालों को हटाने की बात की जा रही है और दूसरी तरफ बालको को जमीन देने की बात हो रही है यह सरकार की नीति अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। ऐसे में अरूंधति राय यदि नक्सलियों का समर्थन करती है तो यह उसकी हिमाकत तो है लेकिन गांधी के देश में उसकी प्रासंगिता पर भी सवाल उठने लगेंगे। सरकार अंधेरगर्दी बंद करे वरना जनता का फैसला नई मुसीबत खड़ी सकती है।

रविवार, 13 जून 2010

गेंदाराम चन्द्राकर के आगे स्कूली शिक्षा विभाग बेबस



जांच रिपोर्ट के बाद भी गेंदाराम पर कार्रवाई नहीं
मंत्री को महिना पहुंचाने की चर्चा?
क्या कोई कल्पना कर सकता है कि पीएससी में चयन के लिए दस्तावेजों में धोखाधड़ी करने के आरोप सिध्द होने के बाद भी कोई व्यक्ति पर कार्रवाई न हो। लेकिन प्रदेश के दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के इस विभाग में गेंदाराम चंद्राकर ने यह कारनामा दिखलाया है। तत्कालीन शिक्षा सचिव नंद कुमार और पीएससी के सचिव प्रदीप पंत के द्वारा अलग-अलग की गई जांच के बाद पेश रिपोर्ट में गेंदाराम चंद्राकर को दोषी तो पाया गया लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई। कार्रवाई नहीं होने की वजह उनके राजनैतिक पहुंच के अलावा ऊपर तक पैसा पहुंचाने को बताया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ सरकार में बैठे लोग किस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और कैसे अपराधियों को बचा रहे हैं यह गेंदाराम चन्द्राकर के मामले में देखा जा सकता है। वैसे तो पीएससी ने जो परीक्षा ली थी उसके चयन प्रक्रिया पर ही सवाल उठाये जाते रहे हैं और गेंदाराम चन्द्राकर का मामला तो सरकार के मुंह पर कालिख है। पीएससी में गेंदाराम चन्द्राकर को सर्वाधिक अंक दिए गए इसकी वजह भी उनके राजनैतिक एप्रोच और परीक्षा नियंत्रक रहे उनके सहपाठी बद्रीप्रसाद कश्यप को बताया जा रहा है।
दरअसल पीएससी की इस गड़बड़ी की जब शिकायत हुई तो सबसे पहले उनके चयन और उनके द्वारा चयन हेतु दिए गए दस्तावेज की जांच पीएससी ने ही की और पीएससी के सचिव प्रदीप पंत ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा है कि गेंदाराम चन्द्राकर द्वारा कूट रचित दस्तावेज प्रस्तुत किया जाना एवं उसके आधार पर चयनित हो जाना परिलक्षित हुआ है और उन्होंने शिक्षा सचिव नंदकुमार को कार्रवाई करने पत्र लिखा। इस पत्र के शिक्षा विभाग में आते ही हड़कम्प मच गया और प्रकरण की जांच कराने के बाद शिक्षा सचिव नंदकुमार ने माना कि गेंदाराम चन्द्राकर ने पीएससी में चयनित होने दस्तावेजों में कूट रचना की है।
बताया जाता है कि जैसे ही गेंदाराम को अपने खिलाफ होने वाली कार्रवाई का पता चला उन्होंने अपनी पहुंच का इस्तेमाल किया। कहा तो यहां तक जाता है कि भाजपा के एक सांसद से लेकर विभागीय मंत्री तक पैसा पहुंचाया गया और फाईल दबा दी गई।
छत्तीसगढ शिक्षा विभाग का यह इकलौता कारनामा नहीं है और न ही गेंदाराम चन्द्राकर का यह इकलौता प्रकरण है। उच्च स्तरीय लेन-देन कर जिस तरह से शिक्षा विभाग में खेल चल रहा है यदि इसकी उच्चस्तरीय जांच कराई जाए तो कई लोग जेल के सलाखों तक पहुंच सकते हैं। बहरहाल गेंदाराम चन्द्राकर के मामले में सचिव स्तर के रिपोर्ट के बाद भी कार्रवाई नहीं होना अनेक संदेहों को जन्म देता है साथ ही सरकार की नियत पर भी सवालिया निशान लगाता है।

संवाद के प्रबंध समिति हैं,भ्रष्ट अफसरों के मोहरे!

खास लोगों को नियमित करने की कोशिश
जनसंपर्क की सहयोगी माने जाने वाली संवाद में लूट खसोट चरम पर है और इसके संचालन के लिए बनी प्रबंध समिति के सदस्य सिर्फ अफसरों के हितों का ही ध्यान रखते हैं यही वजह है कि इस बैठक में अफसरों को भुगतान की स्वीकृति दी जाती है और अब तो गलत ढंग से संविदा नियुक्ति वालों को अफसरों के इशारे पर नियमित करने की योजना बनाई जा रही है।
संवाद में चल रहे खेल पर शासन का ध्यान क्यों नहीं है इसे लेकर कई तरह की चर्चा है। बताया जाता है कि अब भ्रष्ट अफसरों ने संविदा के पदों से उनके कमीशनखोरी और हेराफेरी में साथ देने वालों की एक टीम बना ली है। पिछले दिनों 40 करोड़ रुपयों की आडिट आपत्तियां की गई। इन आपत्तियों के बाद से टीम भावना बढ़ती देखी जा रही है। जिस आडिट रिपोर्ट में आपत्तियां का उल्लेख हैं, उसे दबाने के कुकर्म में सभी एकजुट दिख रहे हैं। भ्रष्ट अफसरों द्वारा अपने ऐसे संविदा साथियों को संवाद में कथित प्रबंध समिति की आड़ में नियमित करने की कोशिश की जा रही है। प्रबंध समिति के अध्यक्ष मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह है इसलिए कुछ लिखकर पास करा लो आपत्ति कोई कर नहीं सकता।
संवाद के संचालन के लिए एक प्रबंध समिति बनी है। प्रबंध समिति के माध्यम से लिए गए फैसले को देखकर ऐसा नहीं लगता कि इसके सदस्यों ने कभी संस्था के हित में कुछ सोचा भी होगा। कोई भी कह सकता है कि समिति के सदस्यों को संवाद के फैसलों में उनके अधिकारों और दायित्वों की सीमा तक का पता नहीं होगा। यही कारण है कि सदस्य संवाद पर शासन करने वाले जनसंपर्क अफसरों के लिए मोहरों के समान है। दरअसल प्रबंध समिति के नाम पर कुछ भी किया जा सकता है। प्रबंध समिति के सदस्य अफसर गांधीजी के तीन बंदरों की तरह हैं जो पिछले दस सालों में कुछ भी न देख पाए, न सुन पाए और न ही कुछ बोल ही पाए। किसी भी सदस्य ने कभी किसी मामले में पूछताछ करना भी जरूरी नहीं समझा तो आपत्ति करने की हिम्मत दिखाना तो बहुत दूर की बात है। मुख्यमंत्री का विभाग होने से कोई भी पूछताछ के बारे में सोच भी कैसे सकता है। ऐसी समिति के नाम पर किए गए फैसलो को क्यों मान्य किया जाना चाहिए जिनके सदस्यों को किसी बात पर सहमत और असहमत होने का अधिकार न हो तो। जनसंपर्क और संवाद के प्रभारी अधिकारियों ने बहुत अच्छी तरह से गांधीजी के इन बंदरों को इस्तेमाल किया है यही कारण है कि राय के बाहर के लोग यहां बिना सर्टिफिकेट के नौकरी कर रहे हैं। संवाद के संविदा के सबसे बड़े पद पर एक पश्चिम बंगाल का आदमी बैठा है जिसके पास संबंधित पद की अनिवार्य शैक्षिणक योग्यता नहीं है। उसने ऐसी पढ़ाई की है कि कहीं भी उसके प्रमाण पत्रों के आधार पर रोजगार पंजीयन नहीं हो सका। बर्थ डेट सर्टिफाई करने के लिए उसे 10 कक्षा का प्रवेश पत्र आवेदन के साथ संलग्न करना पड़ा है। अनुभव प्रमाण पत्र भी फर्जी है, जिस संस्था को खुद बने 3 साल हुए थे उसने अपने यहां काम करने का 5 साल का अनुभव प्रमाण पत्र दिया।

शनिवार, 12 जून 2010

सेटिंग और दलाली का मजा...

राज्य बनने के पहले भोपाल के पत्रकारों और पत्रकारिता की स्थिति को लेक रायपुर में अक्सर निंदा की जाती थी कि वहां किस तरह की पत्रकारिता होती है कैसे पत्रकार दो-पांच के लिए मंत्रियों और अधिकारियों से सेटिंग कर लेते हैं।
छत्तीसगढ़ राय बनने के बाद एक-दो साल तक तो सब ठीक-ठाक रहा लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। मत्था बदल अखबार से लेकर मंत्रियों व अधिकारियों के दलाली करते पत्रकार नजर आने लगे हैं। पिछले दिनों एक अखबार में जब एक अधिकारी के खिलाफ लगातार खबरें छपने लगी तो साप्ताहिक निकालने वाले अखबार के कथित पत्रकार ने खबर रूकवाने सौदेबाजी की और सेटिंग के एवज में न केवल अधिकारी से पैसे लिए बल्कि पत्रकार से भी कमीशन ले लिया। सौदा भी बड़ा नहीं था लेकिन इसकी चर्चा काफी हाउस तक जा पहुंचा है।
छत्तीसगढ में चल रहे इस दलाली और सेटिंग के खेल में कुछ प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार भी शामिल है कुछ इश्योरेंस पालिसी बेच रहे हैं तो कुछ काम ले रहे हैं। इस पत्रकार के द्वारा तो एक मंत्री से भी सेटिंग कर खबर रुकवाने का काम करने की चर्चा जोर पकड़ने लगी है। पत्रकारिता के इस नए परिवादी से आम लोगों का कितना भला होगा यह कहना मुश्किल है लेकिन नेताओं और अधिकारियों की डकैती जोर-शोर से चल पड़ी है।
और अंत में...
प्रतिष्ठित माने जाने वाले एक अखबार के पत्रकार को एक अधिकारी की खबर लग गई। पहले उसने उससे खबर पर चर्चा की और उठते हुए एक पॉलिसी थमा दी।

शुक्रवार, 11 जून 2010

विकास या विनाश

पर्यावरण की चिंता में दुबले हो रहे लोगों के लिए यह खबर और भी दुखदायी होगी कि मोवा से विधानसभा के बीच सड़क चौड़ीकरण के नाम से डेढ़ हजार से अधिक पेड़ काट डाले गए। यह पेड़ तब काटे जा रहे थे जब प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह के द्वारा शिवनाथ नदी को बचाने फावड़ा उठाया जा रहा था। छत्तीसगढ़ को वन प्रदेश कहने वालों के लिए यह दुखद स्थिति है कि सरकार विकास के नाम पर विनाश करने में लगी है। उसके पास आने वाले पीढ़ी को सुखद जिंदगी देने की कोई योजना नहीं है वह तो सिर्फ अपने राजनैतिक फायदे के लिए ही कार्य करती है। फावड़ा उठाया फोटो खिंचवाया काम खत्म। पिछले 6 सालों में रमन सरकार की पर्यावरण के क्षेत्र में यही भूमिका रही है।
राजधानी के ही आमापारा स्थित कारी तालाब को बचाने कितने ही बार अपील की जा चुकी है लेकिन सरकार को इससे कोई लेना देना नहीं है वह तो गौरव पथ के नाम पर तेलीबांधा तालाब को पटवा रही है। विधानसभा मार्ग को चौड़ा करने डेढ-दो हजार वृक्ष काट डाले गए और इसमें भी सबसे दुखद पहलु यह है कि हर साल सैकड़ों वृक्ष लगाने का दावा करने वाले समाजसेवी भी इस बारे में खामोश है। सरकार बेशक सड़क चौड़ी कराये, तालाबों का सौंदर्यीकरण करें लेकिन वह यह ध्यान रखे कि इससे पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचेगा और इसकी भरपाई के उपाय भी सरकार को करने चाहिए। सड़कें किसी भी राय के विकास की कहानी कहती है लेकिन यदि हम विकास के नाम पर अप्रैल में ही 45 डिग्री पारे का तपन झेलते रहे तो ऐसा विकास किस काम का है।
क्या विधानसभा मार्ग के चौड़ीकरण में वृक्षों को काटना जरूरी था? और यदि वृक्ष हटाना जरूरी था तब इन वृक्षों को काटने की बजाय इसे आसपास की सरकारी जमीनों पर क्यों नहीं रोपा गया। सरकार की नीतियां यदि पर्यावरण को लेकर इस तरह लापरवाह रही तो फिर वे समाज प्रेमी कहां है जो हर साल पर्यावरण दिवस के दिन पर्यावरण बचाने के नाम पर अखबारों में फोटो छपवाते रहते हैं। क्या उनकी जिम्मेदारी अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए इतना भी नहीं है कि वे तालाब पाटे जाने या वृक्ष काटे जाने का विरोध तक कर सके।
आश्चर्य विषय तो विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी की भूमिका का भी है। वे तक ऐसे मामले में चुप बैठे हैें। क्या ऐसी खामोशी छत्तीसगढ़ के पर्यावरण बिगाड़ने में उन्हें देषी नहीं ठहराती। अब भी समय है पर्यावरण के हिमायती चाहे तो एक ठोस नीति के लिए सरकार पर दबाव बनाए अन्यथा छत्तीसगढ़ में चल रहे विनाश लीला आम लोगों का जीवन दूभर कर देगी और इस अंधेरगर्दी के लिए आने वाली पीढ़ी से सिर्फ गाली ही मिलेगी?

गुरुवार, 10 जून 2010

जमकर पैसा खिलाओं,अवैध निर्माण कराओं

एमजीरोड में अवैध निर्माण से परिवार परेशान
क्या राजधानी में नियम कानून के मायने बदल गए हैं या पैसा या पहुंच वालों के सामने निगम प्रशासन पंगु बन गया है। यह सब नामदेव परिवार की व्यथा के रुप में सामने आई है। यह परिवार अवैध निर्माण और अपने साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ चिखता रहा लेकिन निगम के अधिकारियों के कान संजय जादवानी के रुपयों ने ऐसा भर दिया था कि न अवैध निर्माण रुका और न ही निगम के किसी अफसर पर कार्रवाई ही हुई।
जब राजधानी का यह आलम है तो प्रदेश का हाल क्या होगा सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। इसकी शिकायत नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत से भी की गई लेकिन वहां भी कुछ नहीं हुआ सब जगह जांच का नाम लिया गया और मामले को दबा दिया गया। इस तरह के अवैध निर्माण तो निगम के अफसरों के संरक्षण में नया नहीं है और इसका पता तब लगता है जब निर्माण पूरा हो जाता है लेकिन इस मामले में तो शिकायत के बाद भी अवैध निर्माण होता रहा।
निगम में जब सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया गया तो पता चला कि आवासीय क्षेत्र में यह व्यवसायिक प्रतिष्ठान बन गया और जोन कमिश्नर ने स्वीकार किया कि यह निर्माण त्रटिपूर्ण है। इसके बाद भी यह निर्माण हटाया नहीं जा रहा है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इस अवैध निर्माण के चलते नामदेव परिवार का जीना दूभर हो गया है। जबकि सूचना अधिकारी जोन क्रमांक 7 ने भी स्वीकार किया है कि निगम ने संजय जादवानी को केवल प्रथम तल के निर्माण की अनुमति दी है द्वितीय तल का निर्माण पूरी तरह अवैध है।
हालत यह है कि इस अवैध निर्माण से पीढित नामदेव परिवार ने मुख्यमंत्री तक को शिकायत की है लेकिन संजय की पहुंच के आगे सब बेकार हो रहा है और पीड़ित पक्ष अब न्यायालय की शरण में जाने मजबूर है। बहरहाल इस संबंध में मंत्री और कमिश्नर तक पैसा पहुंचाने की चर्चा है और यही स्थिति रही तो नए महापौर किरणमयी नायक पर भी उंगली उठ सकती है।

बुधवार, 9 जून 2010

बाबूलाल दमदार,लाचार है सरकार!

ऐसे फैसलों से ही ईमानदार होते हैं हताश
वैसे तो पहले से ही इस बात का अंदेशा था कि आईएएस बाबूलाल अग्रवाल साफ बच निकलेंगे। अपनी दमदारी का लोहा मनवा चुके पूर्व कृषि सचिव बाबूलाल को जिस तरह से निलंबित करने में सरकार ने विलंब किया था उतनी ही जल्दी आनन फानन में बहाली का आदेश भी निकाल दिया। प्रदेश सरकार के इस निर्णय ने एक बार फिर ईमानदारों में हताशा पैदा हुई है वहीं बाबूलाल अग्रवाल की दमदारी भी सामने आई है।
कभी स्वास्थ्य सचिव रहे बाबूलाल अग्रवाल के कार्यकाल में हुए घपले की कहानी अभी लोग ठीक से भूले भी नहीं थे और उन पर होने वाली कार्रवाई से निगाह भी नहीं हटी थी कि उनकी बहाली आदेश ने आम लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया कि आखिर सरकार को हो क्या गया है। राजनैतिक सुचिता और नैतिकता की दुहाई देने वाली भाजपा अचानक सत्ता पाते ही कैसे बदल गई।
बाबूलाल अग्रवाल के निवास में जब आयकर विभाग ने छापे की कार्रवाई की तब देर है अंधेर नहीं का राग अलापने वाले भी सरकार के इस फैसले से हतप्रभ है। तब आयकर विभाग ने बाबूलाल अग्रवाल पर आय से अधिक संपत्ति का मामला बनाया था दो-चार सौ करोड़ की अनुपातहीन संपत्ति का दावा किया गया और कहा जाने लगा था कि बाबूलाल अग्रवाल का बच पाना आसा नहीं है। हालांकि अंदेशा तब भी था कि अपनी पहुंच और ताकत के बल पर राज करने वालों पर कार्रवाई आसान नहीं है।
इधर पता चला है कि उच्च स्तरीय राजनैतिक दबाव के चलते सरकार ने निर्णय लिया है इसके लिए मध्यप्रदेश में भाजपा विधायक ने भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं से चर्चा की थी और मुलाकात भी कराई थी। कहा जाता है कि सरकार पर भाजपा के ही राष्ट्रीय नेताओं का जबरदस्त दबाव था और इसके चलते ही यह तय माना जा रहा था कि बाबूलाल अग्रवाल की बहाली शीघ्र हो जाएगी। इधर सरकार के इस फैसले से आम आदमी में तीखी प्रतिक्रिया व्याप्त है और कहा जा रहा है कि इससे सरकार की छवि पर भी विपरित प्रभाव पड़ने वाला है।
गौरतलब है कि इस छापे में आयकर दस्ते ने श्री अग्रवाल व उनके परिजनों के यहां से 70 करोड़ रुपए से अधिक की अघोषित संपत्ति का खुलासा किया था। 4 फरवरी से 7 मार्च तक आयकर दस्ते की जांच में पारिवारिक व्यवसाय में श्री अग्रवाल के निवेश के भी दस्तावेज जब्त किए थे। इससे उन पर अपनी आय से अधिक अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने के भी आरोप लगाए थे। आयकर विभाग की फौरी रिपोर्ट के आधार पर राय शासन ने 12 फरवरी को एक आदेश जारी कर श्री अग्रवाल को निलंबित कर दिया था। इसके बाद से श्री अग्रवाल अपनी बहाली के लिए प्रयासरत थे। उनकी बहाली में छापे को लेकर आयकर विभाग की मुकम्मल रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा था। इस रिपोर्ट के लिए आयकर विभाग की लंबी जांच प्रक्रिया जारी थी। 90 दिनों के भीतर राय सरकार को आयकर रिपोर्ट के हवाले से श्री अग्रवाल को आरोप पत्र दिया जाना था। जो संभव नहीं हो पाया। इसे देखते हुए राय सरकार ने अपनी तरफ से (बिना आयकर रिपोर्ट के) जांच शुरु करते हुए श्री अग्रवाल से अघोषित व आय से अधिक संपत्ति के मामले में पूछताछ की थी। इस पर श्री अग्रवाल ने मय दस्तावेज अपनी आय व चल अचल संपत्ति का ब्यौरा के साथ अपनी बहाली के लिए राय शासन को आवेदन भी प्रस्तुत किया था। जवाब के परीक्षण के बाद राय शासन ने गुरुवार को श्री अग्रवाल का निलंबन खत्म कर सेवा में बहाल कर दिया है। सूत्रों के मुताबिक श्री अग्रवाल को राजस्व मंडल बिलासपुर में सदस्य नियुक्त किया गया है। इन्हें मिलाकर राजस्व मंडल में दो सदस्य हो गए हैं। श्री अग्रवाल के अलावा आर.सी. सिन्हा भी सदस्य है। बहरहाल अग्रवाल की बहाली ने राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल तो उठाये ही है साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि यह कदम भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला होगा।

नक्सलियों से सिर्फ भरमार ,क्यों खेलती है सरकार!

नक्सलियों को बड़ा आतंकवादी मानने वाले प्रदेश के मुखिया ने क्या कभी यह सोचा है कि नक्सलियों से मुठभेड़ के बाद हथियार के नाम पर सिर्फ भरमार बंदूक ही क्यों बरामद होती है जबकि दूसरी तरफ नक्सलियों के अत्याधुनिक हथियार से लैस बताया जाता है। इसके पीछे सरकार और पुलिस की मंशा की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ इन दिनों नक्सली आतंकवाद की चपेट में है कभी सिर्फ पुलिस को निशाना बनाने वाले लोग अब आम लोगों की जान के पीछे पड़ गए है और यह सरकार की दिवालिया पन नहीं तो और क्या है कि मुखबीर के नाम पर आम लोगों की हत्या करने पर भी कभी यह नहीं कहा गया कि वे आम आदमी को कत्लेआम कर रहे हैं।
80 के दशक से छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या ने घर करना शुरु किया तब पूर्ववर्ती सरकारों ने इसे सामाजिक समस्या का हवाला देकर इसे नजरअंदाज किया धीरे-धीरे नक्सली ताकतवर होते गए और आज समूचे बस्तर में उनकी सकरार कही जाए तो अतिसंयोक्ति नहीं होगी। इन सबके बीच सरकार और पुलिस की भूमिका भी कई मामले में संदेहास्पद रही है। सरकार और पुलिस ही दावा करती है कि नक्सली अत्याधुनिक हथियारों से लैस है लेकिन पिछले 5-6 सालों में नक्सली मुठभेड़ से बरामद हथियारों की पड़ताल करे तो कुछ एक मामले को छोड़कर कभी भी पुलिस ने मुठभेड़ के बाद आधुनिक हथियार बरामद करने की बात नहीं की।
इस संबंध में यह भी चर्चा है कि पुलिस जानबूझकर अपने पुराने स्टाक से भरमार बंदूक लाकर रख देती है और हथियार बरामद करने का दावा करती है। सूत्रों का दावा है कि यदि उच्च स्तरीय जांच कराई जाए तो कई बातें सामने आएंगी। बहरहाल मुठभेड़ में सिर्फ भरमार बंदूकों की जब्ती को लेकर सवाल तो उठाए ही जा रहे है सरकार की भूमिका की भी जमकर आलोचना की जा रही है।

सोमवार, 7 जून 2010

न्याय-मंदिर को भी नहीं बख्शा!



घोटालों की कहानी चढी लोगों की जुबानी
प्रदेश के दमदार माने जाने वाले पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभागीय अफसरों ने बिलासपुर हाईकोर्ट के भवन निर्माण में भी लागत मूल्य बढाकर उच्च स्तर पर जमकर कमीशनखोरी की। मंत्री के संरक्षण में हुए इस काम में न्याय मंदिर को भी नहीं बख्शे जाने की चर्चा आम लोगों के जुबान पर है और इसे अतिवादी बताया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ पीडब्ल्यूडी विभाग में चल रहे कमीशनखोरी की कहानी अब आम लोगों तक पहुंच गई है। घोटाले से लेकर कमीशनखोरी से बिलासपुर स्थित हाईकोर्ट भवन भी नहीं बच पाया है कहा जाता है कि जिस तरह से न्यू सर्किट हाउस को बनाने में घपलेबाजी की गई लगभग वही तरीका यहां भी अपनाया गया और ठेकेदारों से मिलीभगत कर शासन को करोड़ों रुपए का चुना लगाया गया है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पीडब्ल्यूडी विभाग ने हाईकोर्ट भवन बनाने की लागत में लगातार वृध्दि होते रही और कहा जाता है कि लागत मूल्य बढ़ाने के पीछे सीधे-सीधे डकैती रही है। न्याय मंदिर के भवन निर्माण में हुए इस घपलेबाजी पर तो यहां तक कहा जाता है कि इस मामले में उच्चस्तरीय लेन-देन हुआ है और करोड़ों रुपए की इस घपलेबाजी की जांच हुई तो कई बड़े मगरमच्छ जेल की सलाखों में जाएंगे।
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ पीडब्ल्यूडी में जब से नए मंत्री ने पदभार संभाला है तभी से कमीशनखोरी बढ़ गई है और चहेते अफसरों को पदोन्नति देकर अनापशनाप काम कराया जाने लगा है। बताया जाता है कि प्राय: हर निर्माण का लागत मूल्य बढ़ाकर उच्च स्तर पर ठेकेदारों से मिलीभगत कर लाखों करोड़ों रुपए डकारे जा रहे हैं और इसी कड़ी में न्याय मंदिर के भवन निर्माण पर भी खूब जेबें गरम की गई है। बहरहाल न्याय मंदिर के निर्माण में हुए इस घपलेबाजी पर आम प्रतिक्रिया यह है कि राम को नहीं छोड़ने वाले लोगों से और क्या उम्मीद की जा सकती है।

शुक्रवार, 4 जून 2010

मंत्री को फटकार,अफसर को दुलार!

वेयर हाउसिंग का उमेश अग्रवाल हैं ताकतवर
अनुमति के विदेश यात्रा पर गए खाद्य मंत्री पुन्नुलाल मोहिले को मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के द्वारा फटकार लगाए जाने के बीच यह चर्चा भी जोर पकड़ने लगी है कि विदेश यात्रा के सूत्रधार उमेश अग्रवाल को शासन द्वारा कुछ भी नहीं किया गया जबकि सचिव विवेक ढांड से भी जवाब तलब किए जाने की खबर है।
छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउसिंग में अफसरों की भर्राशाही का इससे दूसरा उदाहरण और क्या होगा कि मुख्यमंत्री के द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद भी वेयर हाउसिंग के खर्चे पर विदेश यात्रा की गई। बताया जाता है कि विदेश यात्रा को लेकर मुख्यमंत्री ने न केवल खाद्य मंत्री बल्कि सचिव को भी फटकार लगाई है लेकिन उमेश अग्रवाल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई जबकि उनकी मनमानी की ढेरों शिकायतों मुख्मयंत्री तक की जा चुकी है।
सदैव चर्चा में रहे राय शासन के अफसर उमेश अग्रवाल जिनके कारनामों से छत्तीसगढ़ स्टेट वेयर हाउसिंग कार्पोरेशन के कर्मचारी त्रस्त है। बताया जाता है कि उक्त अफसर का संपूर्ण सेवा काल विवादित ही रहा है, निगम के इस गरिमापूर्ण पद पर आने से पहले वे रायपुर जनपद के सी.ओ.के. पद पर अपनी हठी मानसिकता के कारण इतने अधिक विवादित रहे कि जनपद के त्रस्त कर्मचारियों को सड़क पर अआकर विरोध प्रदर्शन करना पड़ा। जिसके कारण शासन को मजबूरन इन्हें सी.ओ. पद से हटाना पड़ा था।
जिस छत्तीसगढ़ राय में मुख्यमंत्री गरीबों एवं मैदानी स्तर के कर्मचारियों के उत्थान के लिए प्रत्यनशील है उन्हीं के शासनकाल में राय की एकमात्र स्टोरेज एजेन्सी के कर्मचारी प्रताड़ना एवं भय के साम्राय में जीवन काट रहे हैं जिसकी वास्तविक तस्वीर समय-समय पर बुलंद छत्तीसगढ़ में प्रकाशित की है। सूत्रों के मुताबिक अफसर की मनमानी से आश्चर्य होता है कि शाखा रायगढ़ एवं शाखा जगदलपुर में भारी मात्रा मे ंचावल के बोरे कम पाए गए परन्तु शाखा रायगढ़ के शाखा प्रबंधक को रायगढ़ से हटाकर पुन: अन्य शाखा पर प्रबंधक पदस्थ किया गया एवं शाखा जगदलपुर के शाखा प्रबंधक पर प्रभावशाली सांसद के दबाव में उमेश अग्रवाल द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई जबकि इस वर्ष के अलावा पूर्व वर्ष भी उक्त प्रबंधक द्वारा लगभग 1100 बोरी की अफरातफरी की गई थी आज भी उसे जगदलपुर शाखा पर प्रबंधक बना कर रखा गया है। यह भी एक मिसाल है कि शाखा अम्बिकापुर के घोटालेबाज प्रबंधक को मात्र दिखावे के लिए कुछ समय के लिए शाखा दुर्ग अटैच किया गया एवं शीघ्र ही उसे शाखा खरोरा पर प्रबंधक की हैसियत से नवाजा गया। जबकि नियमानुसार इस तरह के अपराधिक कृत्य करने वाले कर्मचारी को शाखा प्रबंधक जैसे जिम्मेदार पद से हमेशा के लिए पृथक कर दिया जाता है।
निरंकुशता एवं मनमानी की इससे बड़ी मिसाल और क्या होगी कि निगम के प्रबंध संचालक के पद पर विराजित उक्त अफसर ने 18 मई को निगम के जिला शाखा प्रबंधकों की बैठक में खुला ऐलान किया कि मैं इस निगम से अपनी इच्छा से जाऊंगा कोई मेरी इच्छा के बगैर मुझे नहीं हटा सकता है। जो कि परोक्ष रुप में शाखा को खुली चुनौती का दर्जा रखती है। शासन के इस अफसर ने नवपदस्थ एवं अनुभवहीन तकनीकि सहायकों को जिनकी परिवीक्षा अवधि समाप्त नहीं हुई है तथा निगम में मात्र 8 माह पूर्व ही पदस्थ हुए है को विभि शाखाओं पर शाखा प्रबंधक बना कर पूर्व में पदस्थ अनुभवी एवं वरिष्ठ कर्मचारियों को जो कि शाखा प्रबंधक की हैसियत से कार्य कर रहे थे उन्हें नवपदस्थ तकनीकि सहायकों के अधीनस्थ कार्य करने का गैर जिम्मेदाराना आदेश जारी कर दिया गया है।
जहां पूरे प्रदेश में समस्त शासकीय एवं निगम मंडल के कर्मचारियों को छठवां वेतन दिया जा चुका है एवं एरियस की द्वितीय किश्त देने की घोषणा की जा चुकी है वहीं सदैव लाभ देने वाले इस निगम के कर्मचारियों को पुनरीक्षित वेतनमान का आदेश जारी करने के बाद भी नए वेतनमान से आज तक वेतन नही दिया गया है। प्रश्न यह उठता है कि निगम के प्रबंध संचालक के ऐसे कई मनमानीपूर्ण एवं तुगलकी रवैये को क्या शासन अंकुश लगा पाएगा। या राय के जिम्मेदार अफसरों को शासन ने मनमानी करने की खुली छूट एवं अभयदान दिया है। क्या ऐसे अफसरों के माध्यम से शासन की छवि विश्वसनीय एवं साफ-सुथरी रह सकती है। बहरहाल उमेश अग्रवाल को एक मंत्री का रिश्तेदार बताया जाता है और सिर्फ यही वजह से कार्रवाई नहीं होने को लेकर कर्मचारियों में रोष व्याप्त है।

गुरुवार, 3 जून 2010

सूर्या का कमाल , सौदान का धमाल

छत्तीसगढ़ की भाजपाई राजनीति में धीरे-धीरे कब्जा जमा रहे सूर्या फाउण्डेशन को लेकर आम भाजपाईयों में नाराजगी तो है लेकिन वे इसके पीछे सौदान सिंह का हाथ होने की चर्चा की वजह से खामोश है। हालत यह है कि असंतुष्ट भाजपाईयों ने सूर्या फाउण्डेशन के लोगों के खिलाफ रणनीति बनाने जुट गए हैं।
वैसे तो सूर्या फाउण्डेशन का गठन 18 साल पहले हुआ था लेकिन छत्तीसगढ़ में यह तब सक्रिय हुआ जब यहां भाजपा की सरकार बनी। कहा जाता है कि सूर्या फाउण्डेशन के प्रशिक्षित युवकों को यहां लाने का काम भाजपा के दमदार नेता सौदान सिंह ने किया। एक तरह से इसे सौदान सिंह का निजी जासूस भी कहा जाने लगा है।
बताया जाता है कि इन युवकों को सुनियोजित ढंग से छत्तीसगढ़ के सभी भाजपा कार्यालयों में ही नहीं बल्कि भाजपाई मंत्री व विधायकों के बंगलों पर भी काम पर लगाया गया है। नेताओं पर लगाम कसने की रणनीति ने सौदान सिंह को ताकतवर बनाया है। हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक राजधानी के एकात्म परिसर में इन दिनों सूर्या फाउण्डेशन से जुड़े युवाओं का भारी दबदबा है और कहा जाता है कि मीडिया विभाग से लेकर कार्यालय चलाने और भोजन कक्ष में भी इनकी जबरदस्त घुसपैठ है। किस नेता को क्या बोलना है कितना बोलना है यह निर्देश भी यही से आने की चर्चा है।
दूसरी तरफ इस नए व्यवस्था से स्थानीय भाजपाईयों में जबरदस्त रोष व्याप्त है। कहा जाता है कि एकात्म परिसर में आधा दर्जन युवा सालों से काम कर रहे हैं उन्हें नए-नए तरीके से प्रताड़ित किए जाने की चर्चा है। कहा जाता है कि यहां काम करने वाले लोग पहले यहां काम की अधिकता पर भोजन वगैरह कर लेते थे इस पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसी तरह कई मामलों में उन पर दबाव डाला जाता है। बताया जाता है कि इस बात का दुखड़ा यहां आए दिन सुना जा सकता है।
बताया जाता है कि एकात्म परिसर आने वाले भाजपाईयों के साथ भी इनका कई बार विवाद हो चुका है कौन कहां तक जाएगा यह भी यही लोग तय करते हैं। बहरहाल चर्चा के पीछे सौदान सिंह का हाथ होने की खबर ने स्थानीय नेताओ के मुंह में ताला जड़ दिया है जो कभी भी विस्फोटक रुप ले सकती है।

बुधवार, 2 जून 2010

उद्योगपति है भाता , अपराध से है नाता

एसईसीएल के सीएमडी एम.पी. दीक्षित रिश्वत लेते गिरफ्तार क्या हुए सारा संसार बताने वाले एक अखबार के मालिक की पोल खुलने लगी है। शराब के धंधे से अखबार के धंधे होते हुए लोहे के धंधे में आए इस अखबार मालिक का संबंध हीरा ग्र्ुप से बताया जा रहा है और यह खबर सच है तो अखबार जगत की यह सबसे अनोखी खबर होगी।
हालांकि अपराधियों के द्वारा अखबार के धंधे में पर्दापण नया नहीं है लेकिन अखबार के दबाव में खदानें से लेकर कीमती जमीनें डकारने की कहानियां आम चर्चा में आने लगी है जो पत्रकारिता के लिहाज से उचित नहीं माना जाता। छत्तीसगढ़ में ऐसी पत्रकारिता को कभी भी जगह नहीं मिली जो सरकारी विज्ञापन के लिए सरकार की गोद में जा बैठे हो या अपराध जगत से आकर अखबार निकाल रहे हो। लेकिन समय के साथ बदलाव जरूर आया है और ऐसे लोगों की घुसपैठ भी हुई है। रायपुर में ही ऐसे कुछ अखबार निकाले जा रहे हैं जिनके धंधे कुछ और हैं और इन धंधों को संरक्षण देने अखबार निकाले जा रहे हैं।
और अंत में...
संवाद में एक अधिकारी के पुत्र की शादी का खर्चा निकालने की कई तरह की चर्चा है। इन चर्चाओं में सबसे बड़ी चर्चा बगैर विज्ञापन के आधा दर्जन लोगों की संविदा नियुक्ति से हुई कमाई को लेकर है।

मंगलवार, 1 जून 2010

संवाद में करोड़ों की घपलेबाजी

घपलों की कहानी
आडिट की जुबानी
सालों से जमें अफसर किस तरह का खेल खेलकर लाखों-करोड़ों की घपलेबाजी करते हैं यह देखना हो तो आडिट रिपोर्ट देखी जा सकती है। नियम कानून ताक पर रखकर सरकारी प्रचार के लिए जिस तरह से कमीशन देने वालों को करोड़ों रुपए बांटे गए वह आश्चर्यजनक इसलिए है क्योंकि इस विभाग के मुखिया डॉ. रमन सिंह है जो प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं।
पिछली बार संजीवनी एग्रोविजन इंटरप्राइजेस को किए गए भुगतान पर आडिट आपत्ति की खबर प्रकाशित किया था। इस बार ऐसे ही संवाद के कारनामें प्रकाशित किए जा रहे हैं। जिसके भुगतान पर आपत्ति की गई है। जनसंपर्क विभाग ने संवाद के माध्यम से रमन सरकार के चार साल पूरे होने पर विज्ञापन जारी किया था। इसके निर्माण व प्रसारण के लिए संवाद ने न तो कोई निविदा ही बुलाई और न ही किसी तरह का कोटेशन ही मंगाया। यही नहीं यह काम 1 लाख रुपए पर सेकण्ड के हिसाब से टीवी स्पॉट के लिए भुगतान किया गया वह भी 30 से 60 सेकेण्ड समय का भुगतान किया गया यह भुगतान बीएसआर फिल्म को किया गया। इसके लिए न तो किसी तरह के नियम बनाए गए और न ही कोई मापदंड ही तय किया गया।
यह बीएसआर फिल्म को लेकर भी कई तरह की चर्चा है। बहरहाल संवाद में चल रहे घपलेबाजी की वजह सालों से बैठे अधिकारियों की कमीशनखोरी में रूचि को बताया जा रहा है।