सोमवार, 4 मार्च 2019

अडानी को परसा कोल ब्लॉक देने राजस्थान का सहारा लिया मोदी सरकार ने


सत्ता बदली पर अडानी की सत्ता बरकरार
विशेष प्रतिनिधि
केन्द्र में बैठी नरेन्द्र मोदी   सरकार पर अडानी प्रेम का जो आरोप लगता है वह कितना सही है यह जानने के लिए सरगुजा के परसा कोल ब्लॉक के आंबटन प्रक्रिया को जानना समझना होगा। परसा कोल ब्लॉक आबंटित करने जिस तरह से राजस्थान बिजली बोर्ड को माध्यम बनाया गया उससे यह सवाल तो उठता ही है कि आखिर अपने निजी हित के लिए जल जंगल जमीन की बर्बादी कब तक की जाती रहेगी।
छत्तीसगढ़ में जल जंगल जमीन का मसला नया नहीं है। विकास के नाम पर संसाधनों की लूट और बरबादी का आलम यह है कि अपने ही जमीन से बेदखल होते आदिवासियों की पीड़ा कौन सुने? पिछले 15 सालों में जनसुनवाई की आड़ में सरकारी गुण्डागर्दी चरम पर रही और औद्योगिक आतंकवाद ने सवाल उठाने वालों की गर्दन दबोचने की कोशिश की। अडानी प्रेम ने तो परसा कोल ब्लॉक में आदिवासियों की ही नहीं जल जंगल जमीन पर्यावरण सब की बरबादी का नया इतिहास लिख दिया।
केन्द्र में बैठी नरेन्द्र मोदी के कार्पोरेट प्रेम को लेकर विरोधियों ने जो सवाल खड़ा किये है उसका प्रमाण परसा कोल ब्लॉक सबके सामने है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर भूपेश बघेल के द्वारा अडानी पर सीधे हमला किया जाता है तो इसकी वजह परसा कोल ब्लॉक के आबंटन की प्रक्रिया और इससे बरबाद होता पूरा क्षेत्र है।
सवाल तो यह भी उठ रहा है कि अब जब सत्ता बदल गई है तब भी अडानी की सत्ता बरकरार क्यों है? हालांकि केन्द्र की नीति के चलते छत्तीसगढ़ सरकार के पास परसा कोल ब्लॉक के आबंटन को रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन वह आदिवासियों के साथ खड़ी होकर जल जंगल जमीन की बरबादी को रोकने कड़ा कदम उठा सकती है।
हमने इसी जगह पर पहले ही परसा कोल ब्लाक के आबंटन के तरीके को लेकर सवाल उठाते हुए राज्य सरकार के अधिकारों के हनन का सवाल उठाया है।
दरअसल मोदी सरकार ने जिस तरह से कोल ब्लॉक के आबंटन के नियमों में बदलाव किया है उसके बाद राज्य के लिए ज्यादा कुछ करने को नहीं रह गया है। नये नियम के चलते ही छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग की आपत्ति के बाद भी अडानी को कोल ब्लॉक दे दिया गया। हालांकि तब राज्य में भाजपा की रमन सरकार थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के विपरित जब किसी भाजपा नेता में जाने का साहस नहीं रह गया हो तब राज्य की हित ही बेमानी हो जाती है।
सूत्रों की माने तो अडानी को परसा कोल ब्लॉक आबंटित करने जिस तरह से खेल खेला गया वह सत्ता और कार्पोरेट जगत के सांठगांठ का अनूठा उदाहरण है। केन्द्र पहले नीति बनाती  है कि कोल ब्लॉक के आबंटन में राज्य की राय कोई मायने नहीं रखेगा और सीधे आरोप से बचने के लिए नियम में यह भी जोड़ दिया जाता है कि कार्पोरेट घराने को कोल ब्लाक पाने का अधिकार तभी होगा जब वह किसी सरकारी या सार्वजनिक कंपनी से भागीदारी करनी होगी।
सूत्रों का कहना है कि अडानी को परसा कोल ब्लाक इसी नये नियम के तहत दिये गये और इसके लिए भाजपा शासित दो राज्यों को चुना गया। इस खेल के तहत सबसे पहले अडानी की कंपनी ने राजस्थान बिजली बोर्ड से समझौता करती है समझौते के तहत राजस्थान बिजली बोर्ड 76 फीसदी शेयर अडानी को देने राजी हो जाता है और सिर्फ 24 फीसदी में राजस्थान बिजली बोर्ड तैयार हो जाती है तो इसकी वजह राजस्थान में बैठी भाजपा सरकार को माना जाता है। 
सूत्रों की माने तो मोदी सरकार ने अडानी के लिए राजस्थान की वसुधरा रकार पर दबाव भी बनाया था और जैसे ही राजस्थान बिजली बोर्ड से अडानी की कंपनी का समझौता होता है। परसा कोल ब्लॉक को तमाम आपत्तियों और परिस्थितियों को नजर अंदाज कर अडानी की कंपनी को आबंटित कर दिया जाता है।
सूत्रों की माने तो इस आबंटन के बाद रमन सरकार पर अडानी को सहयोग करने का दबाव भी डाला गया। यही वजह है कि 21 सौ हेक्टेयर में परसा कोल ब्लाक के अंतर्गत आने वाले करीब दर्जनभर गांव के आदिवासियों की जमीन फर्जी जनसुनवाई और झूठे वादों के आधार पर कंपनी के पास चली जाती है। बताया जाता है कि जनसुनवाई के दौरान सामाजिक कार्यकर्ताओं को शांति भंग करने के आरोप में हिरासत में ले लिया जाता है तो जमीन नहीं देने पर अड़े आदिवासियों को भय दिखाया गया।
सूत्रों की माने तो कोल ब्लाक आबंटन से पहले यह क्षेत्र हाथी कारीडोर के लिए सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था, यही नहीं महत्वपूर्ण वन क्षेत्र के अलावा जीव जन्तुओं के लिए भी यह क्षेत्र सुरक्षित रहा है लेकिन खनन के लिए रोज होने वाले धमाकों ने इस क्षेत्र की सुख शांति छीन ली है और अब देखना है कि जब दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार सत्ता में है तब राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का रुख क्या होता है।