बुधवार, 9 जुलाई 2025

ऑपरेशन सिंदूर पर राफ़ेल का ये सच मोदी की नींद उड़ा देगा…

 ऑपरेशन सिंदूर पर राफ़ेल का ये

 सच मोदी की नींद उड़ा देगा…


आज फ्रांस से खबर आई है की राफेल विमान बनाने वाली कंपनी द साल्ट ने एक बयान जारी किया और उसमें कहा स्ट्राइक में एक ही राफेल गिरा है और उसकी वजह भी कुछ तकनीकी खामी है! द साल्ट ने यह भी कहा भारत में विमान की देखरेख उपयुक्त तरीके से नहीं हो रही है उल्लेखनीय है विमान की देखभाल का ठेका सरकार ने अनिल अंबानी को दिया था! 

द साल्ट यह भी कहा भारत की  ट्रेनिंग में कमी है इस वजह से उपयुक्त पायलट नहीं है! 


द सॉल्ट ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह एक ऑडिट कंपनी भारत भेजना चाहता है, जो बचे हुए राफेल की जांच करना चाहती है और यह भौतिक रूप से सत्यापित करना चाहती है कितने राफेल धारा शाही हुए लेकिन भारत सरकार ने द साल्ट को पूरी तरह मना कर दिया! सरकार ने कहा यह हमारे आंतरिक मामले में दखल होगा!

इस परिपेक्ष को यूं भी समझा जा सकता है भारत सरकार सच्चाई बताने की इच्छुक नहीं है! 

राहुल गांधी ने एक सवाल पूछा और एक विचारधारा ने उन्हें देशद्रोही करार  दे दिया! अब वही सवाल देश की जनता को परेशान कर रहा है! 

इधर भारत के मुख्य रक्षा अधिकारी सीडीएस चौहान साहब ने सिंगापुर में बयान दिया था, विमान के संदर्भ में सेना के पक्ष पर तकनीकी त्रुटियां हुई थी और फिर उसे हमने सुधारा और पाकिस्तान के ठिकानों पर आक्रमण किया? उन्होंने स्वीकार किया हमारे कुछ विमान गिरे थे! 

इंडोनेशिया में डिफेंस अटैची शिवकुमार ने कहा भारतीय सेना के हाथ सरकार ने बांधे हुए थे इस वजह से हमारे विमान गिरे! 

और 2 दिन पहले उप सेना अध्यक्ष राहुल  के सिंह का बयान भी सुर्खियों में रहा , जिसमें  भी उन्होंने यह सवाल उठाए की सरकार ने हमें पूरी इजाजत नहीं दी इस वजह से हमारे विमानो का नुकसान हुआ! 

भाजपा के सांसद सुब्रमण्यम स्वामी दावा करते हैं पांच राफेल गिरे! 

अंतरराष्ट्रीय मीडिया में रायटर के , अल जजीरा के अलग-अलग दावे हैं!

एक तरफ हमारे सेना के अधिकारी मान रहे हैं, हमारे एक से अधिक विमान का नुकसान हुआ वही द साल्ट का कहना है की एक ही राफेल गिरा! और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का अलग ही कहना है!

द साल्ट एक विमान कंपनी है और एक राफेल की कीमत ढाई हजार बिलियन डॉलर है ऐसे में यदि यह सिद्ध हो जाता है चीनी मिसाइल ने भारत के राफेल गिरा दिए तो अंतरराष्ट्रीय व्यापार में राफेल की मार्केटिंग बिल्कुल शून्य हो जाएगी क्योंकि इतने महंगे विमान पर लोगों का भरोसा खत्म हो जाएगा!

विश्लेषक यह भी मानते हैं राफेल का स्टैंड इसी के चलते पतली गली निकालने की कोशिश कर रहा है!

 लेकिन क्या सरकार का दायित्व नहीं बनता प्रमाणिकता से देश की जनता को सही बात बताएं ताकि एक तो यह कंट्रोवर्सी बंद हो और दूसरा सेना के पराक्रम को कोई प्रश्न चिन्हित नहीं कर सके?

और जवाब आने के बाद शायद देशद्रोही कौन इसका भी फैसला हो जाएगा! और सबसे बड़ी बात तो यह है कि साल्ट के इस सच ने मोदी सत्ता की करतूत खोल कर रख दी है…


क्योंकि कहीं-कहीं पूरे संदर्भ में और सेना के अधिकारियों के बयान के परिपेक्ष में ऐसा लगता है सरकार अपनी गलतियां सेना के सिर पर कर कर स्वयं बचना चाहती है!


जिस तरह सत्ता के प्रतिनिधियों ने सेना के अधिकारियों का 

अपमानित किया है, उनको आरोपित किया है, सेना के पराक्रम पर सवाल खड़े किए हैं उससे इस बात को और ज्यादा बल मिलता है!

मंगलवार, 8 जुलाई 2025

श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अंग्रेज और डबल इंजन…

 श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अंग्रेज और डबल इंजन… 

छत्तीसगढ़ में बैठी डबल इंजन की सरकार के मुखिया जब श्यामाप्रसाद मुखर्जी को याद कर रहे थे तब राजधानी के चारों विधायक और सांसद भी एक साथ याद करने की बजाय अपने अपने ढंग से अपनी सुविधा के अनुसार याद का रहे थे तब नई पीढ़ी के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर श्यामा प्रसाद को केवल भाजपाई क्यों याद कर रहे थे…


संलग्न छाया चित्र में एक चेहरा श्यामा प्रसाद मुखर्जी का  है ...

एक अन्य चेहरा जिन्ना का भी है ...

जब कांग्रेस ने अंग्रेजों के विरोध में भारत छोड़ो आंदोलन में शिरकत की थी ...

तब हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग ने अंग्रेजों की मदद से कई सूबों में सरकार बनाई थी ...

दरअसल तब यही दोनों दल हुकूमत ए बरतानिया की दलाली करते नजर आ रहे थे ...

इनाम स्वरूप इन्हीं दोनों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध आयद था ...

देश विभाजन कर अलग पाकिस्तान की मांग करने वाला ए के फजल हक बंगाल का मुख्यमंत्री बना ...

श्यामा प्रसाद मुखर्जी को वित्त मंत्री बनाया गया ...

हालांकि सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाला फॉरवर्ड ब्लॉक बंगाल में इस अद्भुत और परस्पर विरोधी साम्प्रदायिक विचार वाली सरकार को लेकर साथ था ...

मगर उनके भाई सरत चंद्र बोस के विरोध करने पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ही उन्हें गोली मारने के प्रार्थना अपने अंग्रेज आका से की थी ...

वित्त मंत्री के तौर पर ही इस व्यक्ति ने बंगाल के राज्यपाल को लिखे एक पत्र के अंत में स्पष्ट तौर पर वादा किया कि उनकी सरकार बंगाल में (भारत छोड़ो) आंदोलन को दबाने का कार्य करेगी ...

यह अकेला व्यक्ति बंगाल के विभाजन का भी जिम्मेदार है ...

दो मई 1947 को लार्ड लुईस माउंटबेटन को संबोधित पत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने लिखा था कि भारत का विभाजन हो न हो बंगाल का विभाजन जरूर होना चाहिए ..

बंगाल में आए भीषण अकाल के दौरान लगभग दो लाख बंगालियों की मौत का जिम्मेदार भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को माना जाता है ...

ख़ैर ये तो इतिहास है अब वर्तमान में देखिए कि राजधानी में शारदा चौक में लगी लगी मूर्ति  पर अलग अलग कैसे पहुँचे बीजेपी के नेता…













सोमवार, 7 जुलाई 2025

स्वामी के वार पर बीजेपी क्यों चुप

 स्वामी के वार पर बीजेपी क्यों चुप 

भाजपा के धुरंधर प्रवक्ताओं की बोलती बंद…


पिछले कई दिनों से सुब्रह्मण्यम स्वामी के द्वारा दिये जा रहे बयान भले ही मेन मीडिया में मुद्दा न बन पाया हो लेकिन सोशल मीडिया में यह हाहाकारी बन गया है, प्रधानमंत्री मोदी पर हो रहे इस हमले पर बीजेपी के प्रवक्ताओं ने भी चुप्पी ओढ़ ली है तब सवाल कई तरह के उठने लगे हैं कि आख़िर बात बात पर हमला करने में माहिर बीजेपी क्यों चुप है…

पिछले पखवाड़े से डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के पॉडकास्ट इंटरव्यू ने भारतीय राजनीति में तहलका मचा दिया है। उनके नरेंद्र मोदी के खिलाफ तीखे और सनसनीखेज खुलासे सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल रहे हैं। स्वामी, जो कभी भाजपा के कद्दावर नेता रहे और मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई, अब उसी नेतृत्व पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। उनके बयानों में भ्रष्टाचार, नीतिगत विफलताओं और व्यक्तिगत विश्वासघात जैसे आरोपों ने जनता का ध्यान खींचा है।

स्वामी का दावा है कि मोदी ने उनके विश्वास को तोड़ा और कई मौकों पर राष्ट्रीय हितों से समझौता किया। उन्होंने हरेन पांड्या की मौत से लेकर राम सेतु जैसे मुद्दों पर मोदी के रवैये को कठघरे में खड़ा किया। ये आरोप कोई मामूली नहीं हैं; ये सीधे देश के शीर्ष नेतृत्व की विश्वसनीयता पर चोट करते हैं। फिर भी, मुख्यधारा का मीडिया, जिसे स्वामी "पालतू" कहते हैं, इन खुलासों को छूने से परहेज कर रहा है। लेकिन सोशल मीडिया पर ये बयान वायरल हो रहे हैं, जहां लोग इन्हें साझा कर तीखी बहस छेड़ रहे हैं।

भाजपा की चुप्पी इस मसले पर सबसे चौंकाने वाली है। राहुल गांधी के एक सामान्य सवाल पर आक्रामक जवाब देने वाली पार्टी, जिसमें जे.पी. नड्डा, संबित पात्रा, रविशंकर प्रसाद, सुधांशु त्रिवेदी और अनुराग ठाकुर जैसे प्रवक्ता शामिल हैं, स्वामी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोल रही। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है। क्या पार्टी स्वामी के प्रभाव और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों की गंभीरता से डर रही है? या फिर स्वामी के पास ऐसी जानकारी है, जिसका खुलासा भाजपा के लिए और बड़ा संकट खड़ा कर सकता है?

स्वामी की विश्वसनीयता और उनके पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, उनकी बातों को पूरी तरह खारिज करना मुश्किल है। 2G घोटाले से लेकर नेशनल हेरल्ड केस तक, उन्होंने हमेशा बड़े मुद्दों को बेबाकी से उठाया है। लेकिन उनकी मौजूदा आलोचना को कुछ लोग व्यक्तिगत नाराजगी से जोड़कर देख रहे हैं, क्योंकि उन्हें मोदी सरकार में अहम भूमिका नहीं मिली। फिर भी, उनकी बातों का प्रभाव और भाजपा की चुप्पी इस मसले को और रहस्यमयी बनाती है।

यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि अगर स्वामी के आरोप झूठे हैं, तो भाजपा खुलकर जवाब क्यों नहीं दे रही? और अगर इनमें सच्चाई है, तो क्या देश की जनता को इसका जवाब नहीं मिलना चाहिए? यह चुप्पी न केवल स्वामी के खुलासों को बल दे रही है, बल्कि लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठा रही है।#साभार)

शनिवार, 5 जुलाई 2025

राष्ट्रवाद के नाम पर घिनौना व्यापार…

 राष्ट्रवाद के नाम पर घिनौना व्यापार…


वैसे तो संघ के चीन के रिश्ते की कहानी नई नहीं है और न ही मोदी राज में चीन से व्यापारिक रिश्ते, कल तक जो लोग कांग्रेस सरकार में चीनी समानों को छाती पीट पीट कर कोस रहे थे वे भी चुप है और अब विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद के बेटे ध्रुव जयशंकर को मिले चीनी फंड पर भी चुप हैं तो उन्हें अपने भीतर की दोगलाई को परखना चाहिये…

जिस देश में ‘राष्ट्रवाद’ सुबह की चाय से लेकर रात की थाली तक परोसा जाता हो, वहां यह सुनना कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर के बेटे ध्रुव जयशंकर के थिंक टैंक को चीन से 1.76 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली — यह न सिर्फ विस्फोटक है, बल्कि उस झूठ की तिजोरी खोलता है जिसमें पूरा राष्ट्र बंदी बना दिया गया है।

सवाल यह नहीं है कि ORF को चीनी दूतावास से पैसा क्यों मिला।

सवाल यह है कि जब यही आरोप कांग्रेस के राजीव गांधी फाउंडेशन पर लगे थे, तब पूरा सत्ता-वृत्त उसे 'देशद्रोह' की आड़ में लाठीचार्ज तक ले गया था।

और अब?


अब जब उसी भाजपा सरकार के विदेश मंत्री का बेटा एक ऐसे थिंक टैंक में कार्यरत है, जिसे खुद चीन ने फंड किया है — तो क्या वह पैसा 'देशहित' में गिना जाएगा?


क्या अब चीनी फंडिंग भी 'आत्मनिर्भर भारत' का हिस्सा है?


ORF यानी ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन — न सिर्फ भारत की विदेश नीति के विमर्श का एक प्रमुख केंद्र है, बल्कि सत्ता-तंत्र से उसका गहरा जुड़ाव है। 2016 में चीनी दूतावास, कोलकाता से 1.25 करोड़ रुपये और फिर 2017 में 50 लाख रुपये का दान — न यह छुपाया गया, न ही इसका कोई खंडन आया।


पर चुप्पी गूंज रही है।


ध्रुव जयशंकर ORF के US Initiative के डायरेक्टर हैं। उनके पिता एस. जयशंकर भारत के विदेश मंत्री हैं। भारत-चीन सीमा पर तनाव के बीच, इसी ORF को चीन से पैसा मिला — और इस बात पर कोई विशेष संसद समिति नहीं बैठती, न कोई न्यूज़ चैनल हेडलाइन बनाता है।


क्यों?


क्योंकि सत्ता को “राष्ट्रद्रोह” का प्रमाणपत्र बेचने में केवल वही चेहरे दिखते हैं जिनके नाम मुस्लिम, दलित या असहमति के ध्वजवाहक हों। उमर खालिद हो, नजीब हो, शरजील हो या फिर जीएन साईनाथ जैसे किसान पक्षधर पत्रकार — सबके लिए राष्ट्रवाद की कसौटी अलग है। मगर जब पूंजी, सत्ता, और विदेश नीति की गलियों में सत्ताधारी दल के बेटे को फंडिंग मिलती है — तब राष्ट्रवाद मौन साध लेता है।


यह केवल दोहरा मानदंड नहीं है। यह लोकतंत्र के गाल पर एक चुपचाप पड़ा तमाचा है।


और मज़ेदार विडंबना ये है कि उन्हीं दिनों भाजपा के प्रवक्ता कांग्रेस पर आरोप लगा रहे थे कि उन्होंने “चीन से पैसा लिया है” और “राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला” है।


भाजपा समर्थक थिंक टैंक ‘Vivekananda International Foundation’ के संदर्भ में भी फंडिंग का मुद्दा उठा, लेकिन वहाँ सब खामोश हैं। डोभाल जैसे एनएसए के संस्थापक रहते हुए, क्या उस फाउंडेशन को भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों से जुड़े “डोनेशन” नहीं मिले?


तो फिर कौन तय करेगा कि राष्ट्रभक्ति क्या है?

क्या उसकी परिभाषा अब यह है कि —

जब आप विपक्ष में हों तो विदेश से पैसे लेना देशद्रोह,

लेकिन सत्ता में हों तो वही विदेशी पैसा 'कूटनीतिक सहयोग'?


भारत को तय करना है:

राष्ट्रवाद को हम गाली बनायें या गहराई।

क्या राष्ट्र का अर्थ सिर्फ “हमारा झंडा” है, या “हमारा ज़मीर” भी?


अगर सचमुच राष्ट्र सर्वोपरि है,

तो फिर ORF की फंडिंग पर वही सवाल पूछे जाने चाहिए जो RGF से पूछे गए थे।

नहीं तो यह राष्ट्रवाद नहीं — एक घिनौना व्यापार है।(साभार)

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

नौशेरा के शेर…

 नौशेरा के शेर…


मेरी वाल की मेमोरी में आज ये पोस्ट दिखाई दे गई, इसलिए यहां शेयर कर रहा हूं..।


आज भारतीय सेना की गौरवशाली परंपरा की कड़ियों में एक ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का शहादत दिवस है। दुर्भाग्य है कि उनकी कुर्बानियों को देश अब विस्मृत कर चुका है। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ (संप्रति मऊ) जनपद के बीबीपुर में जन्मे उस्मान भारतीय सैन्य अधिकारियों के उस शुरुआती बैच में शामिल थे, जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ था।


1947 में भारत-पाक युद्ध के वक़्त वे उस पैरा ब्रिगेड के कमांडर थे, जिसने नौशेरा में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता है। उनकी बहादुरी और कुशल रणनीति के चर्चे इतने थे कि देश के बंटवारे के बाद उन्हें मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने चीफ बनाने का प्रलोभन देकर उन्हें पाक सेना में शामिल होने का निमंत्रण दिया था लेकिन उस्मान ने उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया। 


बंटवारे के बाद उनका बलूच रेजीमेंट पाकिस्तानी सेना के हिस्से में चला गया और वे स्वयं डोगरा रेजीमेंट में आ गये। पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे उस्मान सामरिक महत्व के क्षेत्र झनगड़ में तैनात हुए जिसे 25 दिसंबर ,1947 को पाकिस्तानी सेना ने कब्जे में ले लिया था। मार्च, 1948 में ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व-कौशल से झनगड़ भारत के कब्जे में आ गया। झनगड़ के इस अभियान में पाक की सेना के हजार जवान मरे थे और लगभग इतने ही घायल हुए थे।


झनगड़ के छिन जाने और बड़ी संख्या में अपने सैनिकों के हताहत होने से परेशान पाकिस्तानी सेना ने उस्मान का सिर कलम कर लाने वाले को 50 हजार रुपये का इनाम देने का ऐलान किया था।


3 जुलाई ,1948 की शाम उस्मान अपने टेंट से बाहर निकले ही थे कि पाक सेना ने उनपर 25 पाउंड का एक गोला दाग दिया जिससे उनकी शहादत हो गई। मरने के पहले उनके अंतिम शब्द थे – ‘हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न हो पाए।’


शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ ब्रिगेडियर उस्मान को जामिया मिलिया इसलामिया क़ब्रगाह, दिल्ली में दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में देश के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला शामिल थे।


 किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। यह सम्मान उनके बाद किसी फौजी को नहीं मिला। मरणोपरांत उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। अपने फौजी जीवन में बेहद कड़क माने जाने वाले उस्मान व्यक्तिगत जीवन में बेहद मानवीय और उदार थे। उन्होंने शादी नहीं की थी और अपने वेतन का बड़ा हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च कर दिया करते थे।


शहादत दिवस पर ‘नौशेरा के शेर’ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को खिराज-ए-अक़ीदत !

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

जहां हर घोटाला डायनासोर …

 जहां हर घोटाला डायनासोर …


मोदी सरकार का ग़ज़ब दौर है , धर्म की पट्टी बांध जिस तरह से उद्योगपतियों को इस दौर में मदद की गई उसकी परतें खुलने के बाद भी बेशर्मी जारी है, ताज़ा मामला अंबानी का है.. इसे कुछ यूँ समझे…


देश के उद्योगपति अनिल अंबानी के फ्रॉड को लेकर जो चर्चा है यह सिर्फ एक मामला नहीं है —

यह पूरी व्यवस्था की कॉर्पोरेट के चरणों में पड़ी लाश है।

सिर्फ ₹455 करोड़ देकर

अनिल अंबानी का ₹49,000,00,00,000 का लोन सेटल कर दिया गया।

(इसे पढ़िए और महसूस कीजिए — 49,000 करोड़)

उसके बाद SBI ने वही लोन “फ्रॉड” घोषित कर दिया।


मतलब?


पहले माफ करो,

फिर फ्रॉड बताओ,

फिर भूल जाओ।

यह एक दिन की गलती नहीं —

यह “जुरासिक पार्क” है —

जहां हर घोटाला एक डायनासोर है,

जिसे पालनेवाले उन्हीं के गार्डन में बैठकर चाय पी रहे हैं।


कोई विपक्ष भुनभुना भी नहीं रहा।

कोई न्यूज़ एंकर ‘ब्लैक बोर्ड’ पर नहीं चिल्ला रहा।

कोई स्टूडियो में #FraudAlert नहीं चला रहा।


क्यों?


क्योंकि लूट "क्लासीफाइड" है

और लुटेरे "क्रोनिक कैप्टन" हैं।


आइए समझें कैसे हुआ ये चमत्कार:


1. अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशन ने कई सरकारी बैंकों से लोन लिया —

कुल ₹49,000 करोड़ का।


2. उसके बाद कंपनी डिफॉल्ट कर गई।


3. सरकार की ‘क्लीनअप’ पॉलिसी के तहत

₹455 करोड़ में One Time Settlement (OTS) मंज़ूर कर दी गई।


4. और फिर उसी साल

SBI ने इस लोन को “Fraud” घोषित कर दिया।


तो सवाल यह है:


अगर ये फ्रॉड था, तो सेटलमेंट वैध कैसे?


और अगर सेटलमेंट वैध थी, तो अब फ्रॉड कैसे?


यह गणित नहीं,

यह राजनीति में छिपा अर्थशास्त्र है।


तुलना कीजिए:


आम आदमी के ₹10,000 के लोन पर EMI चूकी, तो:


कॉल सेंटर से धमकी


सिविल स्कोर तबाह


केस दर्ज


अपमान


लेकिन अनिल अंबानी ने ₹49,000,00,00,000 का लोन डुबाया —

और बदले में मिली:


सेटलमेंट छूट


फ्रॉड का सम्मान


यह अकेली घटना नहीं:


मेहुल चोकसी: ₹13,500 करोड़


निरव मोदी: ₹11,400 करोड़


विजय माल्या: ₹9,000 करोड़


IL&FS: ₹94,000 करोड़


DHFL: ₹31,000 करोड़


ESSAR-Rosneft डील में टैक्स चोरी: ₹20,000 करोड़+


इनमें से किसी को जनता का “गुनहगार” नहीं कहा गया।

बल्कि कहा गया — “बिजनसमैन रिस्क लेता है”।


अब क्या करें?


आपका पेट्रोल ₹100+

आपकी दाल ₹160+

आपकी EMI डिफॉल्ट

आपका PF कटा

आपकी शिक्षा GST में

और आपकी ग़रीबी का हल है — 'प्लेटफ़ॉर्म पर झाड़ू लगाओ' योजना।


जबकि...


अंबानी को फ्रॉड की छूट,

और मीडिया को मौन का इनाम।


अंतिम बात:


यह लेख कोई नारेबाज़ी नहीं।

यह 49,000 करोड़ की वो तारीख़ है

जिस दिन लोकतंत्र की रीढ़ को फोड़ा गया

बिना एक गोली, बिना एक क्रांति

बस एक दस्तख़त से।


जिस दिन पूरा देश

₹49,000,00,00,000 → ₹455,00,00,000

हो गया — और कोई रोया तक नहीं।(साभार)

बुधवार, 2 जुलाई 2025

पाकिस्तान के द्वारा यूएनएससी की कमान सँभालने का मतलब…

पाकिस्तान के द्वारा यूएनएससी की कमान सँभालने का मतलब…


भारत के लिए जुलाई माह  एक चुनौती है कि वह अपनी कूटनीति की धार तेज़ करे क्योंकि पाकिस्तान को अमेरिका जिस तरह से मदद कर रहा है और अब यूएनएससी का कमान… इसका क्या असर होगा…

1 जुलाई 2025 को पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मासिक अध्यक्षता हासिल की। यह उसके 2025-26 के गैर-स्थायी सदस्यता कार्यकाल का हिस्सा है। लेकिन सवाल ये है: क्या ये भारत और वैश्विक मंच के लिए गेम-चेंजर है? इसका भारत और दुनिया पर क्या असर होगा! 🇮🇳🌐

पाकिस्तान इस महीने दो बड़े आयोजन करेगा:

🔹 22 जुलाई: वैश्विक शांति और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर खुली बहस।

🔹 24 जुलाई: इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और UN के बीच सहयोग पर चर्चा।

ये दोनों मौके पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अपनी बात रखने का सुनहरा अवसर देंगे। लेकिन क्या वो इसका फायदा उठाकर भारत के खिलाफ अपनी चाल चलेगा, जैसे कश्मीर मुद्दे को उछालना या ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठाना? 😮


🇮🇳 भारत के लिए क्या मायने?


1. कश्मीर का खेल: पाकिस्तान पहले भी UNSC में कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंच पर लाने की नाकाम कोशिश कर चुका है। भारत, जो इसे द्विपक्षीय मुद्दा मानता है, अपनी मज़बूत कूटनीति से ऐसी कोशिशों को फिर से पटरी से उतार सकता है। 💪

2. आतंकवाद और सुरक्षा: पाकिस्तान तालिबान प्रतिबंध समिति का भी अध्यक्ष है। भारत ने बार-बार उस पर आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगाया है। क्या पाकिस्तान इस मंच का दुरुपयोग करेगा? भारत को अपनी नजरें खुली रखनी होंगी। 👀

3. आर्थिक दांव: पाकिस्तान अपनी छवि चमकाकर निवेश और सहायता हासिल करने की कोशिश कर सकता है। भारत को अपनी वैश्विक आर्थिक ताकत (G20, क्वाड) का इस्तेमाल कर इसकी काट ढूंढनी होगी।

4. मानवाधिकार का पाखंड?: पाकिस्तान की अपनी मानवाधिकार स्थिति (अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार) सवालों के घेरे में है। भारत अपनी लोकतांत्रिक छवि और उपलब्धियों (चंद्रयान, डिजिटल इंडिया) को उजागर कर इसका जवाब दे सकता है।

🌏 वैश्विक मंच पर असर?

▪️शांति या शोशेबाजी?: पाकिस्तान ने शांति और बहुपक्षीयता की बात की है, लेकिन उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। क्या वो यूक्रेन, मध्य पूर्व जैसे संकटों में निष्पक्ष भूमिका निभा पाएगा? 🤔

▪️UNSC सुधार: भारत स्थायी सीट की मांग कर रहा है, लेकिन पाकिस्तान इसका विरोध करता है। ये उसकी राह में रोड़ा बन सकता है।

▪️महाशक्तियों का खेल: चीन का समर्थन पाकिस्तान को ताकत देता है, लेकिन भारत की अमेरिका, फ्रांस, और जापान के साथ मज़बूत साझेदारी इसे बैलेंस कर सकती है।


🇮🇳 भारत की रणनीति?

🔥 अपनी कूटनीति को और धार देना।

🔥 वैश्विक मंच पर अपनी उपलब्धियों (इसरो, वैक्सीन कूटनीति) को ज़ोर-शोर से पेश करना।

🔥 आतंकवाद और जलवायु जैसे साझा मुद्दों पर नेतृत्व लेना।



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(साभार)