शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

उत्तर में कुलदीप को 'नमस्ते'

 उत्तर में कुलदीप को 'नमस्ते' 

हालत पतली, विरोधी सक्रिय 

मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव आप की ओर

(विशेष - प्रतिनिधि)


रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के चारों विधानस‌भा में अब स्थिति स्पष्ट होने लगा  है, चार में से दक्षिण और उत्तर में कांग्रेस को सीट जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है और लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि  वर्तमान विधायक कुलदीप जुनेजा के रवैये ने उत्तर विधानसभा को दक्षिण से भी कठिन बना दिया है |


पिछले विधानसभा में कांग्रेस ने राजधानी की चार में से तीन सीटें जीती थीं और इस बार चारों सीटों को जीतने का संकल्प लेकर खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सड़क पर उत्तर आये हैं लेकिन सबसे ज्यादा खराबस्थिति उत्तर विधानस‌भा सीट की है और इसकी वजह वर्तमान विधायक कुलदीप जुनेजा का वह रवैया है जिसके चलते कांग्रेस के कार्यकर्ता ही नहीं एक वर्ग भी बेहद नाराज है। और कहा जा रहा है कि  जुनेजा के इसी रवैये के चलते मुस्लिम मतदाताओ का झुकाव आम आदमी पार्टी की ओर बढने लगा है कल आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन में भी मुस्लिमों की संख्या अधिक थी और जिस तरह से आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन के दौरान उत्साह नजर आया उससे कांग्रेस के कई निष्ठावानों की नींद उड़ गई है।

सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस द्वारा कराये गए सर्वे में भी कुलदीप जुनेजा की  हालत पतली बताई गई है और कहा तो यहां तक जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने  भी कुलदीप जुनेजा को चेतावनी हुए स्थिति सुधारने कहा है जबकि संकल्प शिविर में जिस तरह से मंच से आनंद कुकरेजा को उतारा गया उसने भी सिंधी समाज की  नाराजगी की बात सामने आई है। उत्तर विधानसभा में सिंधी मतदाताओ की बहुलता है और यहां से भाजपा के श्रीचंद सुंदरानी विधायक भी रहे हैं।इधर कुलदीप जुनेजा के इसी रवैए के कारण उत्तर विधानानभा में टिकिट के दावेदारों की संख्या भी बढ़ गई है सूत्रों का तो दावा है कि सिटिंग एमएलए होने के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में दावेदार आमतौर पर तभी होते है जब स्थिति नाजूक हो।

उत्तर से अर्जुन वासवानी अजित कुकरेजा, पंकज मिश्रा, आकाश शर्मा सहित आधा दर्जन से अधिक दावेदारों की फेहरिश्त ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। ऊपर से आम आद‌मी पार्टी  की बढ़ती लोकप्रियता के चलते यदि कांग्रेस ने यहां कड़ा रूख अख्तियार नहीं किया तो 75 पार का वादा मुश्किल हो जायेगा।


बताया जाता है कि उत्तर विधानस‌भा को लेकर और कुलदीप जुनेजा के रवैये को लेकर कई तरह की चर्चा है। जिसमें सबसे बड़ी चर्चा तो भाजपा के नेताओं से कलदीप के नज़दीकी संबंध जो पार्टी के कार्यकर्ताओ को ज़रा भी रास नहीं आ रहा है।

रविवार, 25 जून 2023

फेल मोदी सत्ता को पास कराने ये सब करेगी विहिप...

 फेल मोदी सत्ता  को पास कराने ये सब  करेगी विहिप...



महगाई, बेरोजगारी, मित्र-प्रेम और विरोध के स्वर को कुचलने की वजह से मोदी सत्ता की छवि इतना बिगड़ चुकी है कि भाजपा के लिए किसी राज्य में भी चुनाव जीतना मुश्किल होता जा रहा है। आर्थिक मोर्चा हो या क़ानून व्यवस्था या विदेश नीति हर मोर्चे पर फ़ेल हो चुकी मोदी सत्ता के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में चिंता बढ़ गई है, फेल हो चुकी मोदी सत्ता को अब पास कराने आरएसएस नया नया उदिम करने में लगी है।

झूठ और अफ़वाह के आसरे नफ़रत की राजनीति साधने में माहिर संघ अब  अपने विभिन्न अनुशांगिक संगठनों को सक्रिय करने में लगी है, ताकि इस साल के अंत में होने वाले विधानस‌भा चुनाव के साथ-साथ अगले साल होने वाले लोकस‌भा में  भारतीय जनता पार्टी को बचा सके सके। 

इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में विश्व हिन्दू परिषद की केन्द्रीय प्रबंध समिति की बैठक हुई। बैठक में उन्ही मुद्दों  पर चर्चा हुई 

जिससे भाजपा की राजनीति साधी जा के।

 महंगाई और बेरोजगारी के अलावा  मित्र प्रेम और मणिपुर हिंसा, महिला पहलवानों को न्याय, किसानों  पर अत्याचार और अमरेरिकी दौरे से उठे सवाल से  ध्यान भटकाने अब विश्व हिन्दू परिषद समान नागरिक संहिता, लव जेहाद, धर्मान्तरण और मंदिरो पर सरकारी नियंत्रण को लेकर बवाल काटेगी। इसके तहत घर घर जाकर लोगों में भाजपा को जीताने मुसलमानो को लेकर  सवाल करेगी।

विहिप व क‌ट्टरवादी इस दौरान कश्मीर फाईल्स, द केरला स्टोरी पर बात करेगी और उस बजरंग दल की


शौर्य का बखान घर -घर पहुंचायेगी जिसके कारगुजारियो से लोग त्रस्त हैं।

विहिप के केंद्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार सहित दो सौ लोग इस बैठक में उपस्थित रहे।

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

स्कूल का हाल बेहाल-कैसे पढ़ेंगे नौनिहाल

 *पूर्व माध्यमिक शाला स्कूल नवागांव जर्जर भवन बना बच्चों के लिए खतरनाक,, कभी भी हो सकता है हादसा स्कूल का कई बार गिर चुका छज्जा...*


*रायपुर:-* आज भी कुछ स्कूल ऐसे हैं जिनके परिसर में पुराने अनुपयोगी स्कूल भवन खंडहर के रूप में अब भी खड़े हैं। यहां स्कूली बच्चे हमेशा पढ़ते लिखते और खेलते रहे हैं, जिससे उन्हें चोंट भी लगती है, यह खंडहर कभी गिर भी सकते हैं, जिससे बच्चों के लिए खतरा बन गए हैं। पालकों में इसी बात को लेकर नाराजगी है कि इन जर्जर भवन को ढहाने कोई पहल नहीं की जा रही है। जबकि पालक ग्राम पंचायत सरपंच, टीचर्स कई बार ऐसे जर्जर भवनों को गिराने की मांग कर चुके हैं।


कई प्राथमिक व मिडिल स्कूल के भवन जर्जर होने के बाद परिसर में नए भवन तो बना दिए गए। लेकिन कुछ पुराने भवन आज भी जर्जर स्थिति में खड़े हुए हैं। जिसमें अब कक्षाएं नहीं लगती और बच्चों और टीचरों पर भय का माहौल दिख रहा है वैसे ही एक मामला सामने निकल कर आया है जो ग्राम पंचायत नवागांव जनपद पंचायत आरंग का है जहां पूर्व माध्यमिक शाला पिछले पूर्व माध्यमिक शाला में पुराना भवन 2004-05 है। जब पिछले 3 साल से स्कूल जर्जर हो चुका है और पूरी तरह से खंडहर में परिवर्तित हो चुका है। बच्चों के लिए 2005 में नया भवन बनने के बाद काफी पुराने इस भवन में बच्चों की कक्षाएं  फिलहाल कोरोना महामारी के कारण स्कूल नहीं लग पा रही थी लेकिन अब जब स्कूल चालू हुई तो बच्चों के मन में स्कूल के छज्जा को देखकर डर का माहौल बना हुआ है ऐसे में बारिश के दौरान तेज अंधड़ में तो जर्जर भवन के गिरने का खतरा और बढ़ जाता है। सांप-बिच्छू का भी खतरा बना रहता है। ग्राम पंचायत सरपंच कई वर्षों से बच्चों की सुरक्षा के लिए जर्जर हो चुके भवन को गिराने का मांग प्रशासनिक अधिकारी और उच्च  अधिकारियों से कर चुके हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।


*संबंधित अधिकारियों को दी जानकारी, नहीं दे रहे ध्यान*


टीचर रंजना मिश्रा ने कहा कि संबंधित विभाग के अधिकारियों को जर्जर भवन के संबंध में जानकारी दी जा चुकी है। और आ के चेक भी कर चुके है। स्कूल में पुराना भवन भी पूरी तरह जर्जर होकर खंडहर में परिवर्तित हो चुका है।  पीछे भाग में बने कमरे जर्जर हो चुके हैं। स्कूल के अंदर सिपेज़ के कारण पानी का भराव हो जाता है जिससे बच्चों को बैठाने लायक भी स्थिति नहीं रह जाती और नाही पिक्चर को बैठने के लायक जगह बचता सिर्फ अधिकारी आते हैं देख कर जाते हैं पर अभी तक इस पर कोई अमल नहीं किया गया


*जर्जर भवनों को तुरंत गिराना चाहिए : सरपंच पति*


गांव के मुखिया सरपंच पति ने ने कहा कि स्कूली बच्चों के हित में जर्जर भवन को गिरा देना चाहिए। इसमें संबंधित अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।  सरपंच पति कहा कि  जर्जर भवन को गिराया जाना काफी जरूरी है। स्कूल के दो कमरे पूरी तरह से जर्जर हो चुके हैं। कई वर्षों से दोनों कमरों में कक्षाएं नहीं लग रही है।

कई बच्चे उसके निकट खेलते रहते है। जिनके लिए ये भवन खतरा बना हुआ है।

बुधवार, 21 जुलाई 2021

डरपोक सत्ता ही हमलावर होती है...

 

पेगासस स्पाईवेयर मामले में खुलासे के बाद मोदी सत्ता ने जिस तरह का जवाब देने की कोशिश की है वह विश्वास करने के कितना लायक है यह तो जनता तय करेगी लेकिन सत्ता हासिल करने के इस खेल ने लोकतंत्र के मर्यादा को ही तार-तार नहीं किया है बल्कि वह ऐसे तमाम लोगों के बेडरुम में झांकने की शर्मनाक कोशिश की है जो सत्ता की राह में रुकावट बन सकते थे।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या मोदी सरकार का इस तरह का सत्ता लोभ देश हित में कितना उचित है? विपक्ष और संवैधानिक संस्थानों को समाप्त कर मोदी सत्ता भारत को किस दिशा में ले जाना चाहती है और क्या सत्ता के इस खेल में हिन्दुओं का भला होगा? सवाल कई है लेकिन कांग्रेस मुक्त भारत की सपना तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ही है तब क्या हम भाजपा या मोदी के इस बात को स्वीकार कर लें कि जितने भी भाजपा के विरोधी है क्या वे सभी देशद्रोही है? क्या संवैधानिक संस्थानों में नकेल डालने फोन टेपिंग की जाती रही?

यह सवाल इसलिए उठाये जा रहे है क्योंकि सत्ता की भूख से बर्बादी के किस्से इतिहास में भरे पड़े हैं। सत्ता की मनमानी से न देश का कभी भला हुआ है और न ही समाज या व्यक्ति का। इतिहास हिटलर-मुसोलिनी और वर्तमान में साऊथ कोरिया के राजशाही के किस्से की विभत्सता और विकरालता इस बात के गवाह है कि सत्ता में बने रहने के खेल की कीमत पूरी दुनिया को किस हद तक चुकानी पड़ती है।

यदि हिन्दू-मुस्लिम या इसाई धर्मान्तरण ही देश का चुनावी मुद्दा रहा और वही जीत-हार तय करते रहेंगे तो फिर हमारा दावा है कि महंगाई और बेरोजगारी तो बढ़ेगी ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के बिकने का क्रम भी इसी तरह से चलता रहेगा। रक्षा तक यदि निजी क्षेत्रों को बेचे जाने की सोच इसी तरह बलवती रही तो फिर सरकार के लिए अपना कहने का क्या बचेगा। रेल-हवाई सेवा बैंक से लेकर सब कुछ निजी हाथों में सौंपकर सरकार इस देश का संचालन किस तरह से करना चाहती यह तो समझ से परे हैं तब सवाल यह भी है कि क्या नफरत की राजनीति  में झुलकर नया पौध कैसे फलेगा फूलेगा।

हम यह नहीं कहते कि मोदी सरकार इस देश को हिन्दू राष्ट्र बनाकर दूसरे धर्मों के लोगों का जीवन नारकीय बना देगा। क्योंकि यह किसी भी सत्ता के लिए संभव नहीं है तब हिन्दू राष्ट्र की सोच लेकर सड़कों पर मॉब लिचिंग करने वाले क्या यह बात नहीं जानते की आग हवा पानी का प्रहार जात-धर्म, अपना-पराया नहीं देखता। बहरहाल फोन टेपिंग को लेकर जिस तरह से सवाल खड़े हुए है उनका जवाब सिर्फ गृहमंत्री का इस्तीफा है?

सोमवार, 19 जुलाई 2021

'मोर रायपुर का दुख...

 छत्तीसगढ़ की बात -1


प्रदेश की सत्ता को बदले ढाई साल बीत गये लेकिन 'मोर रायपुरÓ का दुख यदि जस का तस मुंह चिढ़ा रहा हो तो फिर इसका मतलब क्या है? दरअसल सत्ता की अपनी सीमा है, उसकी अपनी प्राथमिकता है तब सवाल यही है कि क्या सत्ता बदलने से कुछ हो सकता है।

देश इन दिनों भाजपा के ध्यान भटकाने वाले मुद्दे में उलझा है। जनसंख्या नीति से लेकर हिन्दू मुस्लिम के भाजपाई खेल में आम लोगों की तकलीफें गुम हो जा रही है और लोग उफ भी नहीं कर पा रहे हैं तो उसकी राजनैतिक दलों की वह सफलता है जो युवाओं के गले में राजनीति का पट्टा दिखाई देने लगता है।

इस शहर ने राज्य बनने से पहले या युवाओं के राजनैतिक पट्टा पहनने से पहले आंदोलन का जो स्वरुप देखा है वह सिर्फ इतिहास की बात रह गई है, तब सवाल यही है कि क्या अव्यवस्था, महंगाई केवल राजनैतिक दलों के मुद्दे है? छात्र राजनीति के उस दौर में सिलाई की कीमत बढ़ जाने पर या सिनेमा टिकट की कीमत बढ़ जाने पर आंदोलन तोडफ़ोड़ और आगजनी तक पहुंच जाता था। निगम के जलकर बढ़ाने पर भी  आंदोलन की उग्रता इस शहर ने देखा है। तब सवाल यही है कि क्या सिर्फ पट्टा पहन लेने मात्र से असल मुद्दे गायब हो जाते हैं तो यकीन मानिये राजनीतिक दलों ने बड़ी समझदारी से पट्टा पहनाकर लोगों के अधिकार छिन लिये है।

छात्र राजनीति को समाप्त करने की वजह से भी शायद यही रही कि वे जरूरी मुद्दे न उठाये, जेएनयू या दूसरे विश्वविद्यालय पर सरकारी हमले भी इसी राजनीति का हिस्सा रहा है, ताकि अपनी लूट को बेरोकटोक जारी रखा जा सके। हम बात छत्तीसगढ़ की राजधानी की कर रहे हैं। जहां की राजनीति ने लोगों को इतने आश्वासन दिये कि अब तो लोग इन आश्वासनों से पक गए हैं।

धूल और मच्छर तथा औद्योगिक प्रदूषण से त्रस्त इस शहर में राज्य बनने के बाद एक से एक धुरंधर महापौर तो दिये ही है, सत्ता में दमदार माने जाने वाले विधायकों की भी लंबी फेहरिश्त है, लेकिन 'मोर रायपुरÓ का दुख यदि जस का तस है तो इसकी वजह जननेताओं की प्राथमिकता है जो खुद को चमकाने की रूचि ज्यादा है। राजधानी बनने के पहले से ही रायपुर का नाम यदि महंगे शहरों में शुमार है तो इसका मतलब क्या है? खाना-पीना, तो यहां महंगा है ही ट्रैफिक सेंस भी बदत्तर है। अपराध के आकड़े भी बढ़ रहे हैं तो अवैध कालोनी भी बेहिसाब है, जुआ-सट्टा से लेकर शराब-शबाब के मामले भी आये दिन सुर्खियों में रहते हैं क्योंकि मोर रायपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी है।

ऐसे में चिकित्सा सेवा के नाम पर लूट और स्लाटर हाउस कहलाते अस्पताल की फेहरिश्त में कैसे कमी हो सकती है। चार-चार बडे सरकारी अस्पताल वाले इस शहर में यदि निजी अस्पतालों में भीड़ अधिक है तो इसकी वजह सरकारी अस्पतालों की अव्यवस्था है। यदि मेडिकल कालेज  अस्पताल में चार माह से हार्ट की सर्जरी बंद है तो क्या यह निजी अस्पतालों की लूट को बढ़ावा देने की नीति नहीं है। मोर रायपुर का सबसे बड़ा दुख सड़क जाम, नाली जाम, बेतरतीब कचरा भी है इसे हम फिर भी विस्तार देंगे। क्या है शारदा चौक चौड़ीकरण का सच?

रविवार, 18 जुलाई 2021

लालबत्ती और फूल छाप

 छत्तीसगढ़ की बात -1


छत्तीसगढ़ में निगम मंडल में नियुक्ति को लेकर एक बार फिर कलह होने लगा है जिसे नहीं मिला है वे एक और सूची की प्रतिक्षा में है तो जिन्हें दे दिया गया है उनके नामों को लेकर कई तरह का विवाद है, जूनियर-सीनियर का चक्कर भी जबरदस्त है। ऐसे में इस सूची को लेकर जो अंधा पीसे कुत्ता खाये की बात कर रहे है वे जान ले कि कांग्रेस में यह परम्परा है।

कांग्रेस में जब भी जिसकी चली उसने अपनी नंगी चलाया है विद्याचरण शुक्ल के समय की कहानी कौन नहीं जानता, अर्जुन सिंह ने तो शुक्ल बंधुओं के खिलाफ कमर कसने वाले पटवा चोर नाका चोर को भी प्रमुखता दी। स्वरुपचंद जैन पर अपने नौकरों और ड्रायवरों को प्राथमिकता देने तो मोतीलाल वोरा राज में सुभाष शर्मा के किस्से क्या कम थे। ऐसे में वर्तमान में जिनके पास ताकत है वे अपने ऐसे लोगों को निगम मंडल में बिठा रहे हैं जिन्हें कांग्रेस जानते भी नहीं तो इसे परम्परा मान कर भूल जाना चाहिए।

उधर राहुल गांधी जी गुस्से में हैं, उनका गुस्सा क्या रंग लायेगा यह तो पता नहीं लेकिन छत्तीसगढ़ में फूल छाप कांग्रेसियों की चर्चा नई नहीं है, जब कांग्रेस को जरूरत नहीं थई तब अजीत जोगी ने दर्जनभर भाजपा विधायकों को कांग्रेस में लाये थे लेकिन उनकी ताकत कितनी बड़ी यह 2003 के चुनाव परिणाम से अंदाजा लग गया था। राजधानी में तो फूल छाप कांग्रेसियों की लंबी फेहरिश्त है भाजपा के शहर विधायक बृजमोहन अग्रवाल की जीत के पीछे यही फूल छाप कांग्रेसी है।

और जब 15 साल के निर्वासन के बाद कांग्रेस की सत्ता आई है तब भी कई मंत्रियों के बंगले में फूल छाप वालों का प्रभाव खुली आंखों से देखा जा सकता है। एक मंत्री ने कांग्रेसियों को काम दिलाने का प्रयास किया तो पता चला कि कांग्रेसी नेता काम करना ही नहीं चाहते। वे पांच-पचीस के चक्कर में उन्हीं भ्रष्ट ठेकेदारों को काम दिलाने लगे जो भाजपा सरकार में भी ठेकेदारी कर रहे थे। ज्यादातर कांग्रेसियों को बड़ी गाड़ी में घूमना और जमीन का काम करना ही रास आता है।

कोरोना का खेल

कोरोना की तीसरी लहर की तमाम चेतावनी के बाद भी बाजारों में भीड़ बढऩे लगी है, भीड़ से उत्साहित डीएम ने नाईट कफ्र्यू हटा दी। बकरा बाजार हो या महंगाई के खिलाफ पदयात्रा सब जगह बगैर मास्क का काम चल रहा है। इसकी वजह पता करने पर ठीक-ठाक तो कोई  नहीं बता पाया लेकिन कहते है पीएम ने सीएम पर छोड़ा तो सीएम ने डीएम पर छोड़ दिया, अब डीएम तो जिले का राजा होता है और राजा कुछ भी करे कौन रोकेगा।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

देशद्रोह कानून क्यों न समाप्त हो...

 

भारत की सर्वोच्च अदालत ने देशद्रोह कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए केन्द्र से पूछा है कि महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे महान लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले इस कानून की वर्तमान में क्या जरूरत है?

दरअसल पिछले सात सालों में धारा 124ए का जिस तरह से विरोध के स्वर को दबाने सत्ता ने इसका दुरुपयोग किया है वह किसी से छिपा नहीं है। फादर स्टेन की मौत के बाद तो पूरी दुनिया में जिस तरह से भारत की थू-थू हुई है उसके बाद सर्वोच्च अदालत भी सक्रिय हो गया है। हालांकि सर्वोच्च अदालत के सवाल पर भारत सरकार के अर्टानी जनरल ने इस कानून की वकालत करते हुए कहा कि रद्द किये जाने की जरूरत नहीं है बल्कि दिशा-निर्देश तय किये जाने की जरूरत है। लेकिन सच तो यह है कि इस कानून का हाल के सालों में जिस तरह से दुरुपयोग किया गया है उसके बाद इसके औचित्य पर ही सवाल उठने लगे है।

हालांकि कांग्रेस ने पिछले चुनाव में इस कानून को रद्द करने की बात अपने घोषणा पत्र में कही थई जिसे लेकर भारतीय जनता पार्टी ने खूब बवाल मचाया था और कांग्रेस के खिलाफ माहौल भी बनाया गया था कि वह देशद्रोहियों को बचाना चाहती है लेकिन सच तो यही है कि इस कानून ने आदिवासी क्षेत्रों में काम करने वाले, सत्ता की तानाशाही और मनमानी के खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने का काम किया और आंकड़े बताते है कि जिन लोगों पर राष्ट्रद्रोह कानून के तहत जेल में डाला गया था उनमें से 99 फीसदी से अधिक लोग बाद में रिहा हो गये। 

तब सवाल यही है कि क्या सरकारों के खिलाफ आंदोलन करना राष्ट्रद्रोह है, बढ़ती महंगाई और सरकार के मनमाने फैसले पर क्या चुप्पी साथ लेना चाहिए। सत्ता और उसके इशारे पर पुलिस कार्रवाई का सबसे बड़ा उदाहरण तो आईटी की धारा 66ए है जिसे  रद्द कर दिया गया है लेकिन पुलिस अब भी इस धारा के तहत अपराध दर्ज कर रही है। ऐसे में धारा 124ए के दुरुपयोग को लेकर जिस तरह विरोध के स्वर बढ़ते जा रहे है उसके बाद केन्द्र सरकार को इसे समाप्त करने की पहल खुद करनी चाहिए। क्योंकि यह तय हो चुका है कि विरोध के स्वर को दबाने के लिए राष्ट्रद्रोह कानून का बेजा इस्तेमाल कर प्रताडि़त किया गया है। देखना है कि सर्वोच्च न्यायालय इस पर आगे क्या करती है?