मंगलवार, 3 अगस्त 2010

हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया...

सरकारी अंधेरगर्दी के सफर ने अर्धशतक पूरा कर लिया है। लेकिन अंधेरगर्दी थमने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अपनी मजबूरी है नौकरशाह बेलगाम है। गृहमंत्री ननकीराम कंवर को गुस्सा आ जाये तो कलेक्टर को दलाल और एसपी को निकम्मा कह देते हैं। बृजमोहन अग्रवाल हो या राजेश मूणत वे अपने में मस्त हैं। अन्य मंत्री तो अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं और कांग्रेसियों को क्या कहें वे तो सुप्रीम कोर्ट के आधे राय में शासन नहीं है कहने के बाद भी इसलिए चुप है कि उन्हें क्या करना है। मुख्यसचिव का हाल किसी से छिपा नहीं है और डीजीपी तो अपने प्रदेश के लोगों को मलाईदार विभाग में बिठाने में ही पूरी कसरत कर लेते है कुल मिलाकर सरकारी तंत्र गुडगाड है और जनता बेचारी तमाशाबीन है।
छत्तीसगढ़ राय ऐसा ही चल रहा है। अपनों को उपकृत करने की सरकारी कोशिश और कमाई का जरिया ढूंढता विपक्ष के बीच छत्तीसगढ़ बरबादी के कगार पर है। खनिजें बेच दी गई। पानी तक बेची जा रही है। उद्योगपतियों की दादागिरी से सरकार नतमस्तक है। न बालकों के अवैध कब्जे हटाये जाते है न जिंदल के ऐसे में रायखेड़ा में पावर प्लांट वाले बगैर अनुमति के कार्य शुरू करे तो किसकी हिम्मत है कि अपराध दर्ज कर लिया जाए और अपराध दर्ज करने से होगा भी क्या जब गिरफ्तारी ही न की जाए।
सरकार की योजना भी वोट बैंक को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। दो रूपये किलों चावल योजना का फर्जी वाड़ा किसी से छिपा नहीं है। मध्यम वर्ग इस त्रासदी को झेल रहा है और सरकार डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल से लेकर डॉ. सुनील खेमका को सरकारी जमीन कौड़ियों के मोल दे रही है।
शराब नीति तो सरकार की लाजवाब है। जनता मर जाए राजस्व की चिंता जरूरी है। क्योंकि राजस्व से अधिक कमाई अवैध शराब के जरिये सीधे अधिकारियों और नेताओं तक पहुंचती है। अवैध शराब के खिलाफ आन्दोलन करने वाले खरीद लिये जाते हैं या पुलिसिया कानून उन्हें निराश कर घर में बैठने मजबूर कर देता है। तब सरकार के पास जन-जागरण से शराब बंदी का राम बाण है जो सारी जिम्मेदारी जनता पर डालने के लिए काफी है।
इतनी अंधेरगर्दी के बाद जनता खामोश है। उन्हें खामोश रहना भी चाहिए क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है। नक्सली तो अपने ऐशो आराम के लिए मार काट मचा रहे हैं। उन्हें आदिवासियों की तकलीफों से क्या लेना देना। कुल मिलाकर सरकारी अंधेरगर्दी का सफर मजे से चल रहा है। कोई समझे तो ठीक न समझे तो ठीक। हम तो इसी आशा में अर्धशतक लगा चुके कि जनता जागेगी और अपना हक मांगेगी।