रविवार, 17 मार्च 2019

विरासत संस्कृति और काशी...



अब तक सरकारों पर जल-जंगल जमीन और आदिवासी संस्कृति को समाप्त करने का आरोप लगता रहा है लेकिन बनारस के सौंदर्यीकरण के नाम पर जो कुछ काशी में हुआ उससे हमारी सभ्यता, संस्कृति और विरासत पर खतरे के बादल मंडराने लगे है और यह सब वह सरकार कर रही है जो भारतीय संस्कृति की झलक के रुप में अपनी पहचान बताने की कोशिश करती है।
काशी में जिस तरह से सौंदर्यीकरण का खेल खेला गया वह हैरान और परेशान करने वाला इसलिए भी है कि आज पूरी दुनिया में प्राचीन धरोहरों, संस्कृति और शहरों को बचाने के उपाय किये जा रहे है। अपनी पुरानी पहचान को बनाने के इस जद्दोजहद में पुरातत्व विभाग से लेकर दुनियाभर के लोग लगे हैं तब सिर्फ एक सोमनाथ मंदिर की भव्यता को रेखांकित करने पुराने शङर को ही मिटा देने का काम शर्मनाक है जिस पर संस्कृति की दुहाई देने वालों का मौन इतिहास कभी नहीं भूलेगा और समय आने पर यह सवाल भी पूछा जायेगा कि हमारी प्राचीन पहचान को मिटा देने का अधिकार किसने दिया?
काशी आज से 7 साल पहले जब हम गये थे तब वहां पहुंचे विदेशी सैलानियों से जब हमने पूछा था कि वह काशी क्या बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने आये हैं तब उनका उत्तर सुन हम हैरान थे और तब काशी को नये तरह से जानने की जिज्ञासा हुई थी। उस विदेशी ने कहा था 'काशी हम गंगा और यहां की गलियों में बसे शहर और 33 करोड़ देवी देवताओं को देखने समझने आये हैं।Ó  तब अनायास हमारा ध्यान गया था कि काशी की सिर्फ बाबा विश्वनाथ की नगरी नहीं है यह तो हमारी विरासत है हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान है। छोटी-छोटी गलियों में विराजमान 33 करोड़ देवी देवताओं के प्रति हर गुजरने वालों की श्रद्धा ने ही इस प्राचीन नगरी को विश्व में अलग पहचान दी है। दुनिया के प्राचीन शहरों में गिना जाने वाला इस शहर को जब बदला जाने लगा तब किसी ने शोर क्यों नहीं किया। वहां रहने वालों ने इस बदलाव पर अपनी जुबान पर क्यों ताला लगाकर खून का आंसू टपकाते रह गये यह भी सवाल इतिहास में पूछा जायेगा।
इस बदलाव की वजह से बाबा विश्वनाथ अब अकेले हो गये हैं और पुराना काशी तस्वीरों और स्मृतियों में शेष रह जाएगा। पुराना चला गया और वर्तमान जो है क्या वह अंतिम विकल्प है। पौराणिक मान्यता और काशी के भीतर होने वाली अंतरग्रही यात्रा का क्या होगा। दीवारों और हर घर में मंदिर के इस शहर में हर कोई सेवाभाव से आते थे। काशी में स्वर्गद्वार यानी मोक्ष द्वार भी बने थे। घाट किनारे से बाबा विश्वनाथ तक गलियों की दीवारों में भी मंदिर थे और गलियों के कारण ही जिस काशी की विश्वव्यापी पहचान थी और विदेशी इन गलियों को देखने ही आते थे जो देश में और कहीं नहीं देखने को मिल सकता है। वहां के लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि शरीर से प्राण निकाल दिया गया है। जहां 33 करोड़ देवी-देवताओं की मूर्तियां ही हटा दी गई यानी 33 करोड़ देवी-देवता ही नहीें रहेंगे तो काशी का क्या मतलब?
सवाल अनेक है लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर इस तरह की प्राचीन शहरों की रक्षा कैसे हो। विकास और सौंदर्यीकरण के नाम पर कब तक सभ्यता का विनाश होता रहेगा। आने वाली पीढ़ी क्या देखेंगी? क्या वह समझ भी पायेगी कि भारतीय प्राचीन शहर कैसे होते थे? और सबसे बड़ा सवाल तो यह भी उठेगा की आखिर संस्कृति की दुहाई देने वाले ही सांस्कृतिक शहर को कैसे नष्ट करने का काम किया।