सोमवार, 31 दिसंबर 2012

वांटेड मन्नू को पकडऩे में पुलिस के हाथ पांव फूल रहे!



रायपुर। करोड़ों के वायदा कारोबार में धमकी-चमकी और अपहरण के मामले पुलिस ने दर्ज तो कर लिये हैं लेकिन इस कांड के सरगना मन्नू उर्फ अभिनंदन नत्थानी को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर पाई है जबकि वह लगातार नेताओं और अधिकारियों के संपर्क में है। करोड़ों के वायदा कारोबार को लेकर शहर के धनाड्य वर्गों में जबरदस्त रूचि है। चूंकि मामला लाखों-करोड़ों का है इसलिए इसकी वसूली भी इसी तरीके से की जाती है। चूंकि पूरा मामला नम्बर दो का है इसलिए वायदा कारोबारी पैसा वसूली में दो नंबरी लोगों का ही उपयोग करती है कही वजह है कि इस कारोबार में किसी गंभीर वारदात की आशंका है। चूंकि इस मामले में दोनों की पक्ष धनाड्य व अपने को ई"ातहार मानते हैं इसलिए भी मामला पुलिस तक पहुंचने के पहले ही जैसे-तैसे सुलझा लिया जाता है।
चूंकि एक मामला पुलिस तक पहुंच गया इसलिए इस धंधे के पीछे का सच लोग जान पाये। इधर अभय नाहर अपहरण कांत में पुलिस ने कुछ लोगों को पकड़ा जरूर है लेकिन वह मन्नू नत्थानी को गिरफ्तार नहीं कर पा रही है इससे पुलिस पर उसे बचाने का भी आरोप लगाया जा रहा है। हालांकि पुलिस ने उसे वांटेड घोषित जरूर कर दिया है लेकिन उसे अभी मन्नू तक पहुंचने में सफलता नहीं मिली है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि मन्नू नत्थानी लगातार शहर में मौजूद अपने शुभ चिंतकों के संपर्क में है और उसके पास पुलिस की गतिविधियों की भी सूचना पहुंच रही है। मन्नू इन दिनों मोबाईल नंबर बहल-बदल कर या लैंड लाईन से अपने शुभचिंतकों के संपर्क में है।
ज्ञात हो कि सोने चांदी की ऑनलाईन बुुकिंग के जरिये करोड़ों का खेल दो नंबर में बिना लिाख पढ़ी के हुआ है सूत्रों का कहना है। मन्नू उर्फ अभिनंदन नत्थानी, नीतिन चोपड़ा और सन्नी नायडू इस बाजार के बड़े खिलाड़ी के रूप में अपने को प्रचारित किया था। एजेटों के माध्यम से बेहिसाब कटिंग के चलते वसूली में दिक्कत हुई फिर वसूली के लिए भाई गिरी का रास्ता अख्तियार किया गया।
बताया जाता है कि शहर में अभी भी तीन दर्जन से अधिक एजेंट हैं जो बेहिसाब कटिंग कर रहे हैं जबकि इस खेल में किसी प---पृथ्वानी के दादागिरी करने की चर्चा भी दब  जोर पकडऩे लगी है। एकांश जैन सहित कोठारी बंधु भी अपने दो वायदा बाजार का बड़ा खिलाड़ी बताकर वसूली के लिए धमकी चमकी का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं।
वायदा कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि कई लोग अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं और पैसा देने में आना-कानी कर रहे हैं चूंकि पूरा खेल दो नंबर में हुआ है इसलिए वसूली के लिए भाईगिरी वाला रास्ता ही अख्तियार किया जा रहा है।
इधर खबर है कि अनीस भंडारी, प्रवीण मालू, निलेश बेगानी विकास अग्रवाल जैसे वायदा कारोबारियों पर पुलिस की नजर लगी हुई है। चूंकि में लोग राजनैतिक पहुंच रखते हैं इसलिए पुलिस इन पर हाथ नहीं डाल पा रही है।
बहरहाल वाटेंड मन्नू को पुलिस द्वारा गिरफ्तार नहीं करने से आम लोगों में कई तरह की प्रतिक्रिया है जो ठीक नहीं कही जा सकती।

रविवार, 30 दिसंबर 2012

अवैध निर्माण बना कमाई का जरिया ...


छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर को सुंदर बनाने की जिम्मेदारी जिन पर है वे ही निगम को चूना लगाने आमदा है । बजबजाती नालियां, भयंकर धूल और खौफनाक म'छर राजधानी की पहचान बन चुका है । कभी धूल मुक्त शहर का दावा करने वालों को जनता ने धूल चटा ही । इसके बाद भी हालात कुछ नहीं बदला है ।
बेतरतीब निर्माण ने तो शहर को बेढंगा कर ही दिया है इसकी वजह से यातायात की समस्या भी शहर वालों को झेलना पड़ रहा हैं । निगम के अधिकारियों से तो इन अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद ही बेमानी है और जिन पाषदों पर उम्मीद की जा रही है वे भी ऐसे अवैध निर्माण को कमाई का जरिया बना चुके है ।
यहां तक कि इन अवैध निर्माण करने वालों से मंत्रियों तक पैसा पहुंचाने की चर्चा गरम है ।
शहर के ह्दय स्थल माने जाने वाले जयस्तम्भ चौक में स्थित किरण बिल्डिंग को लेकर क्या कुछ नहीं हुआ । नक्शे के विपरित निर्माण से लेकर नियम-कानून की ध"िायां उड़ाते यह अब भी वैसा ही खड़ा है । पहले तो जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई करने का बहाना बनाया गया और जब जांच रिपोर्ट आ गई तब भी कुछ नहीं हो रहा है । कमिश्रर से लेकर महापौर सहित तमाम जिम्मेदार लोगों पर पैसों को लेकर उंगलिया उठ रही है । हल्ला मचाने वाले भाजपाई भी खामोश है और वार्ड पार्षद को तो मानों इससे कोई मतलब ही नहीं है ।
जब शहर के जयस्तम्भ जैसी जगह का यह हाल है तो आसानी से समझा जा सकता हे कि दूसरे काम्प्लेक्सों का क्या हाल होगा । कार्रवाई नहीं करने का मतलब  साफ है कि तिजोरियां भरी जा रही है । Óयादा दिन नहीं हुए है शंकर नगर में राजकुमार चोपड़ा के काम्प्लेक्स की दूकानों पर सील लगाई गई थी । मंत्री राजेश मूणत तक नाराज थे । क्रिस्टल टावर का भी यही हाल था । सील लगाई गई । फिर खोल दी गई । सील खोलने के एवज में क्या सौदा हुआ । कोई नहीं जानता । पार्किंग की समस्या यथावत है काम्प्लेक्स नियम कानून को चिढ़ाते खड़े है । पार्षद बनते ही जिन्दगी बदलने लगी । गाडिय़ां खरीदी जा रही है । क्या-कांग्रेस और क्या भाजपा, निर्दलीय तो पहले ही सौदेबाजी कर मजे में है ।
शहर का बुरा हाल हे । निगम राजनीति का अड्डा बनते जा रहा है । विकास में बाधा के लिए एक दूसरे के सिर ठिकरा फोड़ा जा रहा है लेकिन धूल और म'छर से परेशान जनता की पीड़ा कोई नहीं देख रहा है । नगर निगम पहले दिन घोषणा करता है कि सड़कें नहीं खोदने दी जायेगी दूसरे दिन पुलिस वाले मोतीबाग के पास धड़ा-धड़ सड़क खोदते है । कुछ नहीं होता है।
धर्मार्थ के नाम पर बिल्डिंग बन गई है लेकिन यहां खुले आम दूकानदारी चल रही है लेकिन निगम को यह सब देखने की फुरसत  ही नहीं है । सच तो यह है कि टैक्स बचाने के एवज में भी पैसे वसूले जा रहे है ं ।
राÓय बनने के बाद से निगम की राजनीति में जबरदस्त गिरावट आई है । लाखों रूपए चुनाव में खर्च किये जा रहे हैं । लोग हैरान है कि पार्षद जैसे पद के लिए लाखों खर्च करके चुनाव जीतने की कोशिश क्यों हो रही है ।
बैजनाथ पारा के उपचुनाव में तो एक मंत्री द्वारा 60-70 लाख रूपये खर्च करने की चर्चा है । खर्च तो कांग्रेसीयों ने भी कम नहीं किया है । इतने खर्च के बाद क्या जन सेवा होगी । आसानी से समझा जा सकता है ।
मूंदी आंख से ..
बैजनाथ पारा में पार्षद उपचुनाव में भले ही मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच कही जा रही हो लेकिन वास्तव में कांग्रेस यहां अपने ही लोगों से मुकाबले पर नजर आ रही थी । ढेबर गुटको पटकनी देने कौन सा गुट सक्रिय था और वह कितना कारगर होगा यह तो वक्त की बात है लेकिन भाजपाई भी अपने मंत्री की रूचि से हैरान थे ।

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

अवैध कालोनी की सूची बने साल बीत गये पर कार्रवाई नहीं...



रायपुर। यह तो राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट की कहावत को ही चरितार्थ करता है वरना नगर एवं ग्राम निवेश द्वारा अवैध कालोनियों की सूची बगैर कार्रवाई के सवा साल तक यू ही पड़ी नहीं होती। कहा जाता है कि राजनैतिक पहुंच से लेकर पैसे वालों की इस जमात ने अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक के मुंह में नोट भर दिये हैं। इसलिए कार्रवाई होने की बात तो दूर इन्हें नोटिस तक नहीं दिया गया और गुपचुप ढंग से पैसा खाकर इन्हें बचाया जा रहा है।
राजधानी में पदस्थ अधिकारियों की खाओं पियों नीति के चलते भू-माफियाओं ने जबरदस्त ठंग से अवैध कालोनी बना रखा है और वे शासन प्रशासन को अपनी जेबों में रखने का दावा करते हुए आम लोगों को मनमाने कीमत पर जमीन व मकान बेच रहे हैं।
इस संबंध में आरटीओ कार्यकर्ता इंदरजीत छाबड़ा, राकेश चौबे से बात की गई तो उन्होंने बताया कि सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के बाद सरकार में बैठे मंत्री और अधिकारियों की नीति के चलते ही आम आदमी ठग जा रहा है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश ने ऐसे 204 लोगों की सूची बनाई है जिन लोगों के द्वारा ग्राम बोरियाखुर्द, डोमा, माना, डूण्डा, कांदुल, धरमपुर, बनरसी टेमरी, दतरेंगा, भठगांव, संकरी, पिद्दा जोरा मडिया देवपुुरी, काठाडीह, कचना, धनेली, छपोरा व सेजबहार में अवैध रूप से प्लाटिंग, अवैध व्यपर्तन व अवैध कालोनी का निर्माण कर रहे हैं।
यह सूची 10-08-2010 को बन गई है लेकिन इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। आखिर सरकार क्या यह चाहती है कि इनके झांसे में आकर लोग अपने घर का सपना परा करे फिर सरकार इसे तोड़ दे? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब सरकार को देना चाहिए? सरकार की इस नीति के चलते आम आदमी ठगा जा रहा है। ग्राम व नगर निवेश द्वारा तैयार सूची के अनुसार माना में दलजीत सिंह पिता कुलदीप सिंह चावला, जनक बाई पिता मनराखन, मनोज पिता नंदकुमार सिंहा, ग्राम बोरियाखुद में श्रीमती मथुरा बाई पिता प्रेमलाल, सुरेश सिंह पिता चंद्रपाल सिंह, ग्राम डूण्डा में मो. मोहसिन पिता अब्दुल जलील, विनोद अंदानी पिता स्व. नरसिंह दासअंदानी, कमलजीत कौर पिता हरजीत सिंग छाबड़ा, ग्राम सेरीखेड़ी में अनिल कुमार थौरानी पिता मंशाराम थौरानी, ग्राम धरमपुरा में मनोहरलाल पिता आसन दास, घनाराम पिता बिसाहू, कार्तिक पिता बिसाहू, अमरू पिता कार्तिक, सरजू पिता भोकलू, ग्राम टेमरी में विजय कुमार पिता शुभकरण, ग्राम बनरसी में तापस चन्द्र दास और ग्राम काठाडीह में विमल कुमार पिता मोतीलाल जैन शामिल है।
सूत्रों के मुताबिक इस 17 लागों की सूची में शामिल लोगों ने नियम कानून को ताक पर रखकर काम किया है और इन्हें बचाने में मंत्री स्तर के लोग भी लगे हुए हैं। बताया जाता है कि सरकार का काम ऐसे लोगों पर कार्रवाई कर आम लोगों को ठगी से बचाना है लेकिन कार्रवाई की बजाय इनसे पैसा लेकर मामले को रफा-दफा किया जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि इस मामले में भाजपाईयों को ही बचाया जा रहा है बल्कि कांग्रेस के लोग भी शामिल है जिसके चलते यह कहावत को भी बल मिला है कि लूट की राजनीति में दोनों ही दल माहिर है।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि इस मामले में अधिकारियों की जेबें Óयादा गरम हुई है और मंत्रियों या नेताओं को सिर्फ रोटी डाला गया है तब भी कार्रवाई नहीं की गई।

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

क्या करोगे नहीं लिखेंगे रिपोर्ट...


वर्दी वाला गुण्डा, पुलिस को कोई यूं ही नहीं कहता ! छत्तीसगढ़ में तो कम से कम हर वर्दी वाला अपनी मर्जी का मालिक है । उसे लगेगा कि रिपोर्ट लिखी जाय तो लिखा जायेगा नहीं तो नहीं । कोई क्या कर लेगा । मुंह में तो मानों गाली की घुट्टी पिलाई गई हो । वे यह भी नहीं देखते कि आजू-बाजू से महिलाएं गुजर रही है । और वर्दी का रौब तो सिर्फ शरीफों के लिए है वरना ऐसा कौन सा थाना नहीं है जहां अपराधियों की घुसपैठ न हो ।
अब पंकज अग्रवाल का मामला ही देख लें । उसके आफिस में उसे धमकाया जाता है । वह जब इसकी शिकायत लेकर थाना पहुंचता है तो उसे थाने से चलता कर दिया जाता है । पंकज पैसे वाला है इसलिए वह शहर के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और मुख्यमंत्री रमन सिंह तक पहुंच जाता है । तब कहीं जाकर पुलिस रिपोर्ट भी लिखती है और आरोपियों को पकड़ भी लेती है । छत्तीसगढ़ में  यह सिर्फ अपवाद नहीं है । रोज ऐसे कितने लोग है जिन्हें थाने से लौटा दिया जाता है अब सबके पास न तो राजनैतिक पहुंच है न पैसा ऐसे में उनकी कौन सुनेगा । लोग गुस्से में है लेकिन वे कर भी क्या सकते हैं । पुलिस भी जानती है कि उसके मुंह के आगे सब बेबस है इसलिए वह खुले आम मन मर्जी चला रही है ।
एक तरफ मंत्री से लेकर वरिष्ठ अधिकारी अपनी बातों में नागरिकों के सम्मान, पुलिस-नागरिक संबंध सुधारने और अपराधियों में भय की दुहाई देते रहते हैं लेकिन थानों में इसका उलट होता है । थानों में उलट इसलिए होता है क्योंकि थाने वाले जानते हैं कि उनका काम भाषण देना भर है । उनके खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं है तभी तो पंकज की रिपोर्ट नहीं लिखने वाले अब भी थाने में बैठे हैं उनका कभी नहीं बिगड़ेगा । आखिर सब पंकज जैसे तो है नहीं जिनके लिए मंत्री फोन कर दे और कार्रवाई हो जाए ।
अब पंडरी मोवा में ही संध्या द्विवेदी वाले थाने की करतूत क्या कम है । थाने की शिकायतों का अंबार है । लेकिन न तो पुलिस वालों की हिम्मत है और न ही मंत्री ही उन्हें हटा पा रहे हैं ।
ऐसे में जनता का गुस्सा कभी न कभी-फुट पड़ेगा तब क्या होगा ! इसकी भी परवाह पुलिस वालों को नहीं है उन्हें मालूम है कि उनकी लाठी के आगे किसी की नहीं चलती । तभी तो दिल्ली में हुए बलात्कार को लेकर रायपुर में सड़क पर निकलने वाले युवाओं व महिलाओं को खुले आम धमकाया गया यह सच है कि लॉ एंड आर्डर बनाये रखने की जिम्मेदारी पुलिस पर है लेकिन गाली-गलौच देने की जिम्मेदारी भी क्या पुलिस की है ।
छत्तीसगढ़ में सम्रांट लोगों या पीढि़तों से थाने में दुव्र्यवहार के मामले लगातार बढ़ रहे है । यह सरकार के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए क्योंकि पुलिस का गुस्सा कहीं न कहीं उतरेगा और यह गुस्सा सरकार के खिलाफ भी निकल सकता है ।
चलते-चलते

उरला थाने की कमाई का सबसे बड़ा जरिया कबाड़ के नाम पर बिकने वाले चोरी के लोहे के अलावा अवैध शराब के अड्डे हैं । सर्वे के अनुसार इस थाना क्षेत्र में आधादर्जन सट्टा अड्डा हे तो एक दर्जन से उपर अवैध शराब कोचिये हैं । कार्रवाई नहीं होती तो वजह वरिष्ठ अधिकारी स्वयं समझे तो अ'छा है ।

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

गुस्से की वजह

गुस्से की वजह
दिल्ली में हुए बलात्कार के बाद दिल्लीवासियों का गुस्सा जिस तरह से फट पड़ा । वह हैरान कर देने वाला रहा । इतना गुस्सा ।
इसके उलट राजधानी में हफ्ते भर में बलात्कार की तीन घटनाएं हुई । चार साल के मासूम तक को नहीं छोड़ा । तब भी लोग सड़क पर नहीं आये और सड़क पर आये तो दिल्ली के लिए । छत्तीसगढ़ में शिक्षा  कर्मियों का आन्दोलन भी उतना उग्र नहीं हुआ । भाजपा ने एक नहीं दो बार अपने घोषणा पत्र बनाम संकल्प पत्र में शिक्षा कर्मियों के संविलियन की बात कहीं है लेकिन अपने संकल्प को वह सत्ता में आते ही भूल गई । पहले संकल्प के दौरान तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह स्वयं प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष थे ।
संकल्प तो किसानों को 270 रूपये बोनस देने का भी था लेकिन उसे भी भूल गई । किसानों ने भी आन्दोलन किया लेकिन न सरकार झूकी और न ही किसानों को इतना गुस्सा आया । गुस्सा तो तब भी नहीं दिखा जब नई राजधानी से लेकर उद्योगों के लिए खेती की जमीन कौडिय़ों के मोल किसानों से ले ली गई और न ही गुस्सा तब भी आ रहा है जब भ्रष्टाचार के किस्से गली चौराहे पर हो रही है ।
कृषि उपज मंडी की जमीन डाक्टरों को कौडिय़ों के मोल दे दी गई । तब भी गुस्सा नहीं आया ।
छत्तीसगढ़ राÓय आन्दोलन के दौरान भी कभी आन्दोलन में हिंसा ने अपना स्थान नहीं लिया और अब भी किसी भी आन्दोलन में हिंसा का कोई स्थान नहीं है । और न ही हम किसी भी आन्दोलन के हिंसा का समर्थन ही करते हैं । लेकिन हम सरकार से एक बात जरूर कहते हैं कि वह छत्तीसगढ़ की स्थिति को ऐसा न होने दे ।
सत्ता के लिए राजनीति जरूर करें लेकिन ऐसे वादे न करे जिसे पूरा करने में दिक्कत हो । कांग्रेस सरकार के लाठी चार्च से नाराज शिक्षा कर्मियों के वोट के लिए संविलियन का संकल्प जब पूरा नहीं करना था तब ऐसा संकल्प लिया ही क्यों गया ? ऐसे में आज जब शिक्षा कर्मी इसी संकल्प को पूरा करने सड़क पर उतर आये हैं तो गलती किसकी है । उनके सड़क पर उतरने से नौनिहालों की पढ़ाई का क्या होगा । इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ।
उपर से आन्दोलन को कुचलने का सरकारी प्रयास क्या गुस्से को भड़काने वाला नहीं है । क्या भाजपा को इस झूठे वादे के लिए माफी मांगकर शिक्षाकर्मियों को समझाना नहीं चाहिए । हमारी तो सभी राजनैतिक दलों से गुजारिश है कि सिर्फ सत्ता के लिए ऐसा आश्वासन या वादे न करे जिसे पूरा नहीं किया जा सकता । क्योंकि ऐसे वादों से ही आन्दोलन में हिंसा को बल मिलता है और जिसकी सजा ईमानदार या आम लोगों को भुगतना पड़ता है । अब लोगों को सिर्फ झूठे वादों से Óयादा दिन नहीं बहलाया जा सकता । लोगों में जागरूकता आई है और वे अपना अधिकार भी समझने लगे हैं । अब पहले सा जमाना नहीं रहा कि लोग वादे भूल जाते थे या अपने जनप्रतिनिधियों के भ्रष्टाचार को नजर अंदाज कर देते थे ।
अब लोग अपने हक के लिए सड़कों तक आने लगे है और उन्हें समय रहते नहीं समझाया गया तो सरकार के लिए दिक्कत हो सकती है ।

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

दबाव पर भारी पड़ते प्रतिस्पर्धा...


इन दिनों राजधानी के बड़े मीडिया समूह में प्रसार संख्या बढ़ाने की होड़ मची हुई है कोई प्रदेश में स्वयं को नम्बर वन बताने लगा है तो कोई राजधानी में अपने को नंबर वन बता रहा है । नबंर वन बनने की इस प्रतिस्पर्धा में उपहार तो बांटे ही जा रहे हैं विज्ञापन दरों पर भी समझौते हो रहे हैं । ऐसे कार्यक्रमों में मीडिया पार्टनर बने जा रहे हैं जिनके आयोजकों पर उंगली उठ रही है ।
यह प्रतिस्पर्धा खबरों पर भी दिखने लगी है । लेकिन कुछ खबरों पर विज्ञापन की मजबूरी भी झलकने लगी है । खबरों से संस्थान के नाम गायब हो जाते है या फिर खबरें छायावाद पर बन जाती है  ।
इस सार्धा से पत्रकार बिरादरी खुश है कम से कम उन्हें रूटीन की खबर पर दबाव नहीं फेलना पड़ रहा है । यह अलग बात है कि राज बनने के बाद ग्रामीण रिर्पोटिंग व खोजी पत्रकारिता को सर्वाधिक नुकसान पहुंचा है ।
कभी- सर्वाधिक ग्रामीण रिपोटिंग प्रकाशित करने वाला देशबंधु प्रसार में पीछे छूट गया है तो इसकी वजह कहीं न कहीं विज्ञापनदाताओं का दबाव ही है ।
सरकार केविज्ञापन का दबाव तो अब भी कम नहीं हुआ है अब तो पत्रकार बिरादरी भी सरकार के कई किस्से सुनाते नहीं थकते । पत्रिका को पास जारी नहीं करना भी सरकारी दबाव का एक हिस्सा है । वैसे भी कौडिय़ों के मोल सरकारी जमीन लेकर कार्मशियल उपयोग की गलती हो तो दबाव तो झेलने ही पड़ेंगे । लेकिन कई अखबार वाले तो केवल सरकारी विज्ञापन के लालच में ही दबाव झेल रहे है ।
मजे में ब्यूरों
छत्तीगढ़ से निकलने वाले पत्र पत्रिकाओं से Óयादा मजे में दूसरे प्रदेश से निकलने वाले पत्र-पत्रिकाओं के पत्रकारों के मजे है । विज्ञापन भी इन्हें खूब मिल रहा है और घूमने-फिरने के लिए जनसंपर्क से वाहन भी उपलब्ध हो जाते हैं ।
अब यह अलग बात है कि पत्रकारों के सत्कार में जितने पैसे खर्च नहीं होते उससे अधिक का बिल बन जाता है ।
रिश्तेदारी पर प्रहार...
भले ही इसे प्रतिस्पर्धा का नाम दिया जाये पर सच तो यह है कि अपने को मालिक का रिश्तेदार बताकर धौंस जमाना एक पुलिस अधिकारी को भारी पडऩे लगा हैं अब इसी अखबार के रिपोर्टर नाराज हैं और ढूंढ-ढूंढ कर खबरें बनाई जा रही है । आखिर थाने में रोज की करतूत कम नहीं है । यानी रिपोर्टर की जय हो ।
और अंत में ...
छत्तीसगढ़ में स्थापित होने छल-प्रपंच करने वाले एक अखबार को अब विज्ञापन वाला अखबार कहा जाने लगा है । आखिर इतना बड़ा काम्प्लेक्स कोई यूं ही खड़ा नहीं करता ।

रविवार, 23 दिसंबर 2012

गरीबों का आशियाना ढहा दिया..

.इधर  जब सरकार उद्योग लगाने उद्योगपतियों को पुचकार रही है तब दूसरी तरफ औद्योगिक दादागिरी को नजर अंदाज किया जा रहा है । वंदना हो या जिन्दल, एस के एस हो या लक्ष्मी सीमेंट इनकी दादागिरी पर भाजपाई नाराज है लेकिन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है । वन्दना समूह के इशारे पर तो 25 साल से रह रहे 8 परिवार के घर उजाड़ देने से भाजपा नेता और विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष बनवारी लाल अग्रवाल के तक निंदा कर दी लेकिन रमन सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है ।
रमन सरकार के उद्योग प्रेम की वजह से इन दिनों छत्तीसगढ़ में जगह-जगह लोगों की नाराजगी खुलकर सामने आने लगी हैं बावजूद सरकार को आम लोगों से Óयादा उद्योग लगाने की चिंता है । और इस उद्योग प्रेम की वजह से आम लोगों पर हो रहे औद्योगिक अत्याचार पर भी कार्रवाई नहीं हो रही है । उल्टा उन्हें पुरस्कार तक दे दिया जाता है ।
वंदना समूह द्वारा कोटवा जिले में स्थापित किये जा रहे पावर प्लांट की करतूत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है । जमीनों पर कब्जे, तालाबों पर कब्जे के बाद अब गरीबों के आशियाना ढहाने को लेकर वंदना समूह एक बार फिर सुर्खियों में है ।
जानकारी के अनुसार ग्राम सलोरा व छुरीखुर्द की जमीन पर वंदना विद्युत लिमिटेड प्रबंधन द्वारा संयंत्र का निर्माण कराया गया है । इस संयंत्र के लिए राखड़ बांध का निर्माण ग्राम झोरा में कराया जा रहा है । संयंत्र से राखड़ बांध तक पाईप लाइन बिछाने का कार्य प्रबंधन करा रहा है, जिसके लिए भूमि का अधिग्रहण वह कर चुका है । यह पाईप लाइन गंगापुर से होकर गुजरनी है । पाईप लाइन के रास्ते में गंगापुर निवासी 7 कृषकों व एक महिला के आवास आ रहे थे । इन आवासों को वंदना प्रबंधन ने शुक्रवार की सुबह एकाएक गांव में पहुंचकर कटघोरा तहसीलदार आर के मार्बल की उपस्थिति में लगभग ढाई सौ पुलिस जवानों के साये में गिरवा दिया ।
बताया गया कि शासकीय भूमि पर लगभग &0 वर्षो से काबिज एवं मकान बनाकर खेती-बाड़ी करते हुए हरिराम रिर्मलकर, भोजराम निर्मलकर, लखनलाल, छतराम, यशवंत यादव, मुखीराम, छत्रपाल यादव व रसियानों बाई सपरिवार निवासरत थे । मुखीराम द्वारा किराना दुकान का संचालन भी किया जा रहा था  जबकि भोजराम ने बाड़ी लगाया था । इन परिवारों का आशियाना वंदना प्रबंधन के इशारे पर उजाडऩे की कार्रवाई करने के साथ ही सरकारी जमीन पर संचालित होटल को भी तहस-नहस कर दिया गया । वहीं किराना व्यवसायी मुखीराम यादव ने महिला पटवारी पर आरोप लगाया है कि उसने कार्रवाई के दौरान गल्ले से 5 सौ रूपये निकाल लिए और वापस नहीं किया ।
सूत्रों के मुताबिक वंदना विद्युत लिमिटेड के अधिकारियों द्वारा उपरोक्त  ग्रामीणों के पास पिछले दिनों पहुंचकर मकान खाली करने कहा गया था । ग्रामीणों ने तहसील कार्यालय पहुंचकर तहसीलदार से शिकायत कर मदद की गुहार लगाई थी । तहसीलदार ने पूरी तरह सहयोग का आश्वासन किसानों को दिया ।
इसके कुछ दिन बाद वंदना प्रबंधन के अधिकारी दोबारा ग्रामीणों के पास गए तब ग्रामीणों ने उनसे बसाहट की सुविधा मांगी । & दिन पहले तहसीलदार ने ग्रामीणों को कार्यालय बुलाकर समझाईश दी थी, जिस पर ग्रामीण जमीन छोडऩे तैयार हो गए थे । इस सहमति के बाद  जिस तरह का रवैया वंदना प्रबंधन ने अपनाया उसे क्षेत्रवासी अनुचित और गुण्डागर्दी पूर्ण कार्रवाई बता रहे हैं ।

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

गृहमंत्री साहब ! अपराध तो बढ़ेंगे ही ...


जब प्रदेश के गृह मंत्री शराब ठेकेदारों के हाथों थाने बिकने की सिर्फ बात करता हो, पुलिस कप्तान को निकम्मा तो कहता हो लेकिन कार्रवाई नहीं कर पाता हो तब अपराध तो बढ़ेगे ही । अब  तो लोगों को सोच लेना चाहिए कि उनकी सुरक्षा उन्हें स्वयं करना है
क्योंकि वर्दी का सारा रौब तो यातायात सुधारने के बहाने की जाने वाली वसूली में निकल जाती है और थोड़ी बहुत ताकत बचती है वह वीआईपी ड्यूटी की भेंट चढ़ जाती है ।
भाजपा के इस दूसरे शासन काल में बढ़ते अपराध पर बेवजह कांग्रेसी हल्ला मचा रहे हैं । जब गृह मंत्री की बेबसी उनके शब्दों में बाहर आ रही हो तब भला पुलिस की मनमर्जी तो चलेगी ही । फिर कोई सरकार को कैसे दोष दिया जा सकता है ।
अब राजधानी की पुलिस को ही देख लीजीए ।  जो आई जी बने हंै उन पर एक आईपीएस राहूल शर्मा को लेकर गंभीर आरोप है लेकिन सरकार मुक्त में तनख्वाह देगी नहीं और काम लेना है तो भेज दिया रायपुर । फिर ऐसे अफसर की शायद सरकार को भी जरूरत है जो बेहद चालाक हो ।
इसके बाद पुलिस कप्तान दीपांशु काबरा को समझ ले । कहने को तो किसी भी आईपीएस को एक स्थान पर तीन साल से Óयादा नहीं रहना चाहिए लेकिन वे चार साल से कप्तानी संभाल रहे है । इस बीच कई गंभीर अपराध हुए । मन्नू नत्थानी से लेकर राजेश शर्मा जैसे अपराधी नहीं पकड़े जा सके । हत्या के कितने ही मामलों का पता नहीं चला । इस बीच कई थानेदार बदल गये । उनके नीचे के कई अधिकारी बदल गये । अपराधियों में दहशत पैदा करने वाले रत्नेश सिंह - शशिमोहन सिंह हो या मुकेश गुप्ता जैसे आई जी हो सब चले गए लेकिन काबरा साहब चार साल से जमें हुए हैं ।
राजधानी के थानों और यहां की थानेदारी के किस्से भी कम नहीं है । हर थाने के अपने किस्से है । मोटे तौर पर पीडि़तों को परेशान करने का आरोप के अलावा सटोरियों-जुआडिय़ों और अवैध शराब बेचने वालों से महिना वसूलने का आरोप साबित होने पर भी कुछ नहीं होता । खासकर पंडरी मोवा और टिकरापारा में तो थानेदारों के कारनामों से आम आदमी तक परेशान है । शिकायतें दर्ज करने की बजाय पीडि़तों को भगाकर थाने का आर सी सुधारने में ये माहिर है और यहि धोखे से मामला कप्तान तक चल दे तब भी कोइ्र फिक्र नहीं क्योंकि ऐसी शिकायतों को रद्दी की टोकरी में कैसे फेंकना हैे यह कप्तान साहब भी जानते हैं । और Óयादा हल्ला हुआ तो कुछ नहीं करना है बस एक आई आर लिख दो ।
भले ही राजधानी की पुलिस अपने यहां अपराध रोकने में फेल हो गई हो लेकिन पड़ोसी जिले में कुछ हुआ नहीं कि भरपूर नाकेबंदी की जाती है । अरे नाके बंदी करनी हो तो चौक चौराहों की बजाय प्रवेश स्थल पर कर लो लेकिन नहीं वहां जाने का झंझट कौन पाले । शहर में ही पकड़ लेंगे ।
ऐसा नहीं है कि दीपांशु काबरा जी चार साल से जमें है इसलिए रायपुर का यह हाल है । दूसरी जगह भी स्थिति अ'छी नहीं है ।
चांपा-जांजगीर, रायगढ़ में तो पुलिस अद्योग पतियों के इशारे पर काम कर रही है । जबकि अंबिकापुर सरगुजा में तो अब भी माफिया गिरी हो रही है । कोयला चोर हो या जंगल तस्कर सबसे पैसा मिल रहा है । जबकि बस्तर क्षेत्र में तो नक्सली दहशत उन्हें रोक रखी है । लेकिन वहां के पुलिस वालों के घरों के फर्नीचर किसी से छिपे नहीं है ।
पुलिस के दुश्मन मीडिया वाले है । नेता तो सेट हो जाते है । मामला बना दो नेता चुप । लेकिन मीडिया का तोड़ ढूंढना मुश्किल है ।
चलते - चलते ...
डाल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा, वायदा कारोबारी मन्नू नत्थानी के अलावा शहर में ही दर्जन भर से Óयादा ईनामी अपराधी को पुलिस नहीं ढूढ़ पा रही है लेकिन सीबीआई जांच  की सिफारिश नहीं होगी ? आखिर पुलिस भी जानती है कि .इनके पीछे किसका हाथ है ?

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

पार्षदों की चाहत, शहर वासी आहत...


राजधानी का नगर निगम इन दिनों राÓय सरकार के लिए राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है । सत्ता में बैठी राÓय सरकार के दो मंत्री अभी भी यह बात हजम नहीं कर पा रहे हैं कि जनता ने भाजपा को नकार दिया है । वे यह बात देखना ही नहीं चाहते कि उनकी पैसे की भूख को लोगों ने देख लिया है । निगम के अधिकारी भी सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं ।
 आयुक्त के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वे हर हाल में राजधानी में ही रहना चाहते हैं । ऐसे में ठुकुर -सुहाती तो करनी ही पड़ेगी । फिर तहसील के पाप भी तो कम नहीं है ।
महापौर किरणमयी नायक तो अभी से विधानसभा चुनाव की तैयारी में है । विदेश यात्रा भी कम नहीं हो रहा है । छत्तीसगढिय़ा वाद को लेकर स्वाभिमान यात्रा अब पद के साथ गुम होने लगा है तभी तो प्रभारी महापौर मनोज कंदोई के हिस्से में चला जाता है । अब शहर कांग्रेस अध्यक्ष इंदर चंद धाड़ीवाल पर भी तो दबाव बनाना है और भाजपा तो राजनैतिक बैरी है ही ।
पहले इस राजनैतिक बैरी को साधने की कोशिश हुई । स्वयं सेवकों पर फूल बरसाये गये लेकिन जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि इससे कोई फायदा नहीं है । इसलिए यह गलती दोहराई नहीं गई ।
अब व्यवस्था व नियम को लेकर सभापति संजय श्रीवास्तव और महापौर में ठन गई है । यानी शहर विकास से Óयादा राजनीति जरूरी है । और ऐसे में जब बैजनाथ पारा वार्ड में चुनाव हो तो राजनीति जोरदार होनी तय है ।
कांग्रेस को अब भी यहां मुस्लिम वोटों पर भरोसा है । जबकि भाजपा समझने लगी है कि वोट कहां से हासिल होंगे । लेकिन जनता भी समझ गई है कि जो लोग खड़े हैं उनमें वार्ड की चिंता किसे Óयादा है । पहले भी देश में कई चुनावों में किन्नरों की जीत हुई है । यहां भी एक किन्नर प्रत्याशी है ?
वैसे भी राजधानी के 70 पार्षदों का हाल जनता अ'छे से जान रही है । कौन पार्षद कहां से पैसे कमा रहा है  किसी से छिपा नहीं है । गुमटी और पानठेला लगाने के एवज में कहां-कहां वसूली चल रही है । बगैर नक्शा स्वीकृत कैसे मकान बन रहे है और पार्षद को कितना मिल रहा है । यह भी छिपा नहीं है ।
हद तो यह है कि सफाई कर्मियों की उपस्थिति को लेकर भी पैसा कमाया जा रहा है। कई पार्षद के रिश्तेदार तो निगम के ठेकेदार तक बन गये है । और महिला पार्षदों से Óयादा तो उनके पति लगे रहते है भले ही पार्षद पति को लोग शार्ट कट में पाप कह रहे हो लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता आखिर राजनीति तो मोटी चमड़ी वाले ही करते है ।

बंद आंख से ...
शंकर नगर क्षेत्र के एक पार्षद की दादागिरी चरम पर है । कार्यक्रम के लिए पैसा नहीं देने वाले गुमटी वाले को दूकान बंद कर भागना पड़ा । जब कब्जा ही अवैध हो तो पार्षद की दादागिरी ऐसी ही चलती है ।  दूसरा मामला स्टेशन क्षेत्र का है । भतीजे की ठेकेदारी की करतूत सड़क पर दिखने लगी है और पाप बाहर आने से रोका जा रहा है ।

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

गर्भाशय कांड के डाक्टरों से भी करोड़ों वसूली !

गर्भाशय कांड के डाक्टरों से भी करोड़ों वसूली !
रमन राज में चल रहा राम नाम की लूट !
छत्तीसगढ़ सरकार में मची राम नाम की लूट का एक और चौकाने वाला मामला उÓाागर हुआ है । पैसों की लालच में गर्भाशय निकालने के आरोपी डाक्टरों को बचाने करोड़ों रूपये वसूलने जाने का आरोप सामने आया है । लोगों की जान के एवज में चल रहे इस गोरख धंधे में प्रदेश सरकार के मंत्री से लेकर सचिव स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत की खबर है । छत्तीसगढ़ में सत्ता में बैठे लोगों की पैसे की हवस समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है । ऐसा कोई विभाग नहीं है जहां भ्रष्टाचार की नदियां नहीं बह रही हो । स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कोल ब्लाक मामले में आरोपी है ओपन एक्सेस घोटाले से खनिज घोटाले, रतनजोत घोटाले में सीधे मुख्यमंत्री पर आरोप लग रहा है जबकि रोगदाबांध से लेकर सरकारी जमीनों के मामले भी गर्म है ।
स्वास्थ्य विभाग में घोटाला चरम पर है । हालत यह है कि सरकार गरीबों की जान की कीमत लगाने लगी है और गरीबों की जान से खिलवाड करने वाले डाक्टरों को बचाने तक पैसा वसूले जाने की चर्चा है ।
नेत्र कांड में अब तक करीब सौ लोगों की आंखे फोड़ दी गई और स्मार्ट कार्ड घोटाले के आरोपी को पकडऩे में भी प्रशासन असफल रहा है ।
ताजा सनसनीखेज मामला गर्भाशय कांड के डाक्टरों को बचाने का है । हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों की माने तो इस कांड में फंसे डाक्टरों को बचाने के एवज में करोड़ों रूपये वसूले गए है । ज्ञात हो कि ईलाज के नाम पर छत्तीसगढ़ के करीब दर्जनभर डाक्टरों ने बेवजह गर्भाशय निकालकर गरीबों से आपरेशन के एवज में पैसे वसूले थे । कम उम्र की इन महिलाओं का पैसे के लिए गर्भाशय निकालने का मामला जब प्रकाश में आया तो डाक्टरों की करतूत से अ'छे-अ'छे के रोंगटे खड़े हो गए ।
जांच में ऐसे सैकड़ों मामले सामने आये जिनमें डाक्टरों की करतूत सामने आई और जांच में दोष्शी पाये जाने वाले करीब 9 डाक्टरों का पंजीयन रद्द कर दिया गया ।
सूत्रों का क हना है कि पंजीयन रद्द होने से क्षेत्र के बाकी डाक्टरों में हड़कम्प मच गया और वे सरकार से आरपार की लड़ाई पर उतर आये ।
डाक्टरों की धमकी से घबराकर सरकार ने गर्भाशय कांड की एक और जांच शुरू करने की घोषणा कर दी और निलंबन समाप्त कर दिया ।
सूत्रों का कहना है कि डाक्टरों का निलंबन समाप्त करने प्रत्येक डाक्टरों से 50 लाख से लेकर एक करोड़ तक लिये गये । सूत्रों की माने तो यह रकम सचिव से लेकर डाक्टरों की जेब में पहुंच चुका है ।
स्लाटर हाऊस में तब्दिल होतते नर्सिंग होम के खिलाफ कार्रवाई की बजाय उनके प्रति सरकार का रवैया आश्चर्यजनक है । दूसरी तरफ निलंबित डाक्टरों ने बहाली के बाद फिर जोरशोर से अपना पुराना खेल शुरू कर देने की चर्चा है ।
रमन राज में भ्रष्टाचार के इस तरह के शर्मनाक खेल की चर्चा तो अब चौक चौराहों में होने लगी है ।
इधर गर्भाशय कांड के मामले की जांच की घोषणा तो कर दी गई है लेकिन सूत्रों का दावा है कि यह केवल विषय से ध्यान भटकाने के लिए किया गया है । जबकि वास्तविकता यह है कि लेनदेन का सारा मामला रफा दफा कर दिया गया है ।

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

स्वास्थ और नैतिकता ...

स्वास्थ और नैतिकता ...
 अब राजनीति में नैतिकता नहीं रह गई है । रेल दुर्धटना में रेल मंत्री का इस्तीफा इतिहास बन गया है । अब नैतिकता कहीं बची है तो सिर्फ विरोधियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए ही बच गया है ।
छत्तीसगढ़ की राजनीति से तो यह पूरी तरह से गायब हो चुका है । सरकार में बैठे जो लोग कल तक नैतिकता की दुहाई देते नहीं थकते थे आज सत्ता  में बैठते ही केवल पैसे कमाने में लग गये हैं ।
बालोद नेत्र कांड से लेकर बागबाहरा  नेत्र कांड में करीब सौ लोगों की आंखे फोड़ दी गई । लेकिन कुछ नहीं हुआ । न स्वास्थ मंत्री का इस्तीफा आया और न ही किसी डाक्टर पर ही कार्रवाई की गई । आखिर गरिबों की जान की कीमत ही क्या है । Óयादा हल्ला मचेगा तो मुआवजा दे दो । कौन सा अपनी जेब से देना है ।
छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है । सरकारी अस्पतालों में घोर लापरवाही चल रही है । और निजी अस्पताल तो किसी स्लाटर हाऊस से कम नहीं रह गया है । और सरकार में बैठे लोगों ने तो अपनी आंखे बंद कर ली है । ऐसे में आम आदमी के सामने क्या स्थिति है यह सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।
छत्तीसगढ़ सरकार भले ही लाख दावा करे लेकिन वह आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है । स्मार्ट कार्ड घोटाला हो या गर्भीशय कांड का मामला हो । सरकार डाक्टरों के सामने असहाय साबित हो  चुकी है ।
अब तो आम लोगों में यह चर्चा साफ सुनी जा सकती है कि सरकार में बैठे लोगों का ध्येय सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना रह गया है उन्हें आम लोगों की जिंदगी से कोई लेना देना नहीं है ।
एक तरफ मुख्यमंत्री हर व्यक्ति के लिए &0 हजार रूपये तक का मुफ्त ईलाज करने के लिए योजना बना रहे है तो दूसरी तरफ ईलाज के अभाव में या डाक्टरों की लापरवाही से लोगों की जान पर बन आई है । एक तरफ जब सरकारी अस्पतालों में लापरवाह डाक्टर मौजूद हो, दवाई न हो तथा दूसरी तरफ निजी अस्पताल केवल पैसे कमाने की मशीन बन कर स्लाटर हाऊस में तब्दिल हो रहे हो तब &0 हजार नहीं &0 लाख रूपये के मुफ्त ईलाज की योजना बना दिया जाए । आम लोगों को क्या लाभ होगा । 
जब तक सरकार में बैठे लोगों की पैसों भूख समाप्त नहीं होगी किसी भी योजना का कोई मतलब नहीं रह जाता । ऐ वहीं भाजपा है जो सोते जागते राजनैतिक सुचिता और नैतिकता की बात करते नहीं थकते थे लेकिन सत्ता में आते ही सब भूल बैठे । ये वहीं मुख्यमंत्री है जिनकी छवि को लेकर भाजपा ने पिछला चुनाव जीता था लेकिन इस बार वे स्वयं कोयले की कालिख से पूते हुए है ।
ऐसे में मंत्रियों या अधिकारियों से नैतिकता की उम्मीद कैसे की जा सकती है ।
हद तो यह है कि चर्चा यहां तक आ पहुंची है कि आंख फोड़वा कांड के डाक्टरों को बचाने पैसे लिये जाते है । गर्भाशय कांड के दोषी आधा दर्जन डाक्टरों से उन्हें बचाने करोड़ो लिये गये । हद तो यह भी है कि सोची समझी इस गर्भाशय कांड के दोषियों के द्वारा आज भी उन्ही क्लीनिक में मजे से प्रेक्टिस चल रहा है ।
यह कैसी सरकार है जो आंख फोडऩे या गर्भाशय हजम करने या गरीबों के ईलाज वाले स्मार्ट कार्ड का पैसा हजम करने वालों पर कार्रवाई नहीं करती  । हद तो यह भी है कि ऐसे मामले में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी हल्ला मचाने के अलावा Óयादा कुछ नहीं करती । चोर-चोर मौसेरे भाई की तर्ज पर आम लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने वालों को बख्शने की यह कोशिश नैतिकता का कौन सा परिभाषा गढ़ रही है यह तो राजनैतिक दल ही जाने लेकिन यह ठीक नहीं है और यह बात राजनैतिक दलों को समझ लेना चाहिए कि एक और सर्वो"ा सत्ता है जिसकी लाठी बेआवाज होती है

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

छत्तीसगढ़ में दागी व विवादास्पद आईएएस अफसरों का जमावड़ा...

छत्तीसगढ़ में दागी व विवादास्पद आईएएस अफसरों का जमावड़ा...

 छत्तीसगढ़ में कार्यरत अधिकांश आईएएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं भारतीय प्रशासनिक सेवा के इन अधिकारियों की विवादास्पद छवि के चलते जनता के करोड़ों रुपए डकारे जा रहे हैं। पदों का दुरुपयोग खुलेआम किया जा रहा है और डॉ. रमन सरकार इन बेकाबू होते अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर उन्हें संरक्षण देने में आमदा है।
छत्तीसगढ़ में जिस तरह से लूट-खसोट मची है वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के दामन में एक बदनुमा दाग बनकर सामने आने लगा है और एक बारगी तो सीधे सरकार से गठजोड़ दिखाई देने लगा है। हालत यह है कि बेहिसाब संपत्ति के मालिक इन अफसरों पर अंकुश लगाने में सरकार पूरी तरह विफल है। सर्वाधिक चर्चित अफसरों में इन दिनों बाबूलाल अग्रवाल का नाम सबसे ऊपर है। उनके साथ तो सीधे सीएम हाउस से गठजोड़ की खबर है जबकि अन्य अफसरों में विवेक ढांड का नाम भी सामने आया है। कहा जाता है कि रायपुर के इस अफसर ने अपने पद का दुरुपयोग इतनी चालाकी से किया है कि अ'छे-अ'छे नटवर लाल भी फेल हो जाए ताजा मामला तो उनके स्वयं के दुकान सजाने व गृहनिर्माण मंडल के बंगले को रेस्ट हाउस के लिए किराए से देने का है।
मालिक मकबूजा कांड में फंसे नारायण सिंह को किस तरह से पदोन्नति दी जा रही है यह किसी से छिपा नहीं है जबकि सुब्रत साहू पर तो धमतरी कांड के अलावा भी कई आरोप है। दूसरे चर्चित अफसरों में सी.के. खेतान का नाम तो आम लोगों की जुबान पर चढ गय़ा है। बारदाना से लेकर मालिक मकबूजा के आरोपों से घिरे खेतान साहब पर सरकार की मेहरबानी के चर्चे आम होने लगे हैं।
ताजा मामला जे. मिंज का है माध्यमिक शिक्षा मंडल के एमडी श्री मिंज पर रायपुर में अपर कलेक्टर रहते हुए जमीन प्रकरणों में अनियमितता बरतने का आरोप है। सरकारी जमीन को बड़े लोगों से सांठ-गांठ कर गड़बड़ी करने के मामले में उन्हें नोटिस तक दी जा चुकी है। एम.के. राउत पर तो न जाने कितने आरोप हैं जबकि अब तक ईमानदार बने डी.एस. मिश्रा पर भी आरोपों की झड़ी लगने लगी है। अजय सिंह, बैजेन्द्र कुमार, सुनील कुजूर तो आरोपों से घिरे ही है। आरपी मंडल के खिलाफ तो स्वयं भाजपाई मोर्चा खोल चुके हैं लेकिन वे भी महत्वपूर्ण पदों पर जमें हुए हैं। जबकि अनिल टूटेजा पर तो हिस्ट्रीशिटरों के साथ पार्टनरशिप के आरोप लग रहे हैं। कहा जाता है कि देवेन्द्र नगर वाले इस शासकीय सेवा से जुड़े अपराधी को हर बार बचाने में अनिल टुटेजा की भूमिका रहती है।

अधिकांश आईएएस की करतूतों का क'चा चि_ा सरकार के पास है आश्चर्य का विषय तो यह है कि जब भाजपा विपक्ष में थी तब इनमें से अधिकांश अधिकारियों की करतूत पर मोर्चा खोल चुकी है लेकिन सत्ता में आते ही इनके खिलाफ कार्रवाई तो दूर उन्हें महत्वपूर्ण पदों से नवाजा गया। बताया जाता है कि आईएएस और मंत्रियों के गठजोड़ की वजह से करोड़ों रुपए इनके जेब में जा रहा है। यहां तक कि जांच रिपोर्टों को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है। बहरहाल छत्तीसगढ़ में बदनाम आईएएस अफसरों का जमावड़ा होता जा रहा है और सरकार भी इनकी करतूत पर आंखे मूंदे है।

रविवार, 16 दिसंबर 2012

उद्योगों की गुण्डागर्दी पर सरकारी चुप्पी !


ऐसा नहीं है कि वंदना समूह की मनमानी की कहानी समाप्त हो गई है वह बेधड़क जारी है लेकिन ताजा मामला दुर्ग जिले के अहिवारा के समीप स्थापित हो रहे जे के लक्ष्मी सीमेंट की गुण्डागर्दी का है । एक तरफ सरकार इनवेस्टर मीट के नाम पर करोड़ों खर्च कर उद्योगों को भरपूर सुविधा देने की घोषणा करती है दूसरी तरफ यहां आकर उद्योग गुण्डागर्दी कर रहे है क्या ऐसे में उद्योग यहां आने चाहिए ?
विशेष प्रतिनिधि
ऐसा नहीं है कि वंदना समूह की मनमानी की कहानी समाप्त हो गई है वह बेधड़क जारी है लेकिन ताजा मामला दुर्ग जिले के अहिवारा के समीप स्थापित हो रहे जे के लक्ष्मी सीमेंट की गुण्डागर्दी का है । एक तरफ सरकार इनवेस्टर मीट के नाम पर करोड़ों खर्च कर उद्योगों को भरपूर सुविधा देने की घोषणा करती है दूसरी तरफ यहां आकर उद्योग गुण्डागर्दी कर रहे है क्या ऐसे में उद्योग यहां आने चाहिए ?
पिछले चार अंको में हमने वन्दना समूह के करतूतों पर विस्तार से प्रकाश डाला था इस बार एक और उद्योग के कारनामें बताये जा रहे है । इस उद्योग को जमीन दिलाने शासन प्रशास
न ने न केवल फर्जी जनसुनवाई की बल्कि विरोध करने वाले ग्रामीणों की पिटाई व गिरफ्तारी भी हुई । हालत यह हे कि गांव वाले आन्दोलित हे लेकिन विपक्षी कांग्रेस के नेता नदारत है । स्वाभिमान मंच ने जरूर यहां किसानों व गांव वालों का साथ दिया लेकिन सरकार तो हर हाल में उद्योग के साथ खड़ा दिख रहा है ।
छत्तीसगढ़ सरकार की नीतियों के चलते जल जंगल जमीन और दवा तक में उद्योगों का हक होने लगा है । अहिवारा विधानसभा क्षेत्र खासाडीह अहिवारा, गिरहोला,भलपुरी खुई, सेमरिया के किसान इन दिनों आन्दोलित है उनका न केवल जेके लक्ष्मी सीमेंट प्रबंधक पर गलत तरीके से जमीन हासिल करने का आरोप है बल्कि स्थानीय लोगों की उपेक्षा का भी आरोप है । आश्चर्य का विषय तो यह हे कि यह संयंत्र लगभग पूरी तरह कृषि भूमि पर स्थापित हे । लगभग दो हजार एकड़ जमीन कौडिय़ों के मोल खरीदने में सरकार की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता सूत्रों की माने तो लघु उद्योग लगाने के नाम पर किसानों से जमीन ट्रकड़े-ट्रकड़े में ली गई और गांव की सरकारी जमीनों पर बेतहाशा कब्जा किये जाने का आरोप किसान लगा रहे हें । यहां तक कि बगीचे, चरागन और श्मशान घाट तक उद्योग में शामिल कर लिये गए और जब गांव वालों ने इसका विरोध किया तो उनके खिलाफ ही कार्रवाई की जा रही हे ।
सूत्रों की माने तो संयंत्र प्रबंधन ने किसानों को उद्योंगों में नौकरी देने का झांसा देकर कौडिय़ों के मोल जमीन हथियायी और अब नौकरी देने से मना किया जा रहा है । यहां तक कि कंपनी के लेटर पैड पर नौकरी का आश्वासन देने की चर्चा है और ऐसी शिकायतों पर पुलिस कार्रवाई करने से साफ मुकर रही है । इधर अपने को ठगा महसूस कर किसान जब आन्दोलन करने लगे तो उन्हें सुरक्षा गार्डो से पिटवाया गया और जब वे थाने पहुंचे तो वहां भी उनकी सुनवाई नहीं हुई ।
इधर किसानों के मुताबिक संयंत्र स्थापना से पहले होने वाली जनसुनवाई भी नहीं हुई और पर्यावारण मंडल मे उद्योग स्थापना की अनुमति भी दे दी । यही नहीं जनसुनवाई का विज्ञापन जानबहुझकर दिल्ली और रायपुर से प्रकाशित होने वाले ऐसे अखबार में कराया गया जिन्हें अहिवारा क्षेत्र के लोग ठीक से जानते ही नहीं है । सूत्रों की माने तो उद्योग से ही विकास की रणनीति की अवधारणा पर चल रही भाजपा की रमन सरकार को ग्रामीणों की तकलीफ से कोइ्र सरोकार नहीं है जबकि उद्योगों को बिजली पानी जमीन की सुविधाएं दी जा रही है ।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

कप्तान पर भारी पड़ते थानेदार...

कप्तान पर भारी पड़ते थानेदार...
राÓय के नये डीजीपी राम निवास यादव ने आते ही अपनी ताकत पीएचक्यू यानी पुलिस मुख्यालय में दिखा दी । इस यादवी फेरबदल का असर क्या होगा यह तो वही जाने लेकिन मुख्यालय की चर्चा सड़कों तक पहुचने लगी है । सरकार नहीं चाहती थी कि इस चुनावी साल में कोई भ्रष्ट अफसरों को लेकर कोई बखेड़ा खड़ा हो इसलिए डीएस अवस्थी को छापामारी से हटा दिया ।
अब सरकार के लिए इतना तो करना ही था आखिर सिनियर संत कुमार पासवान को नजर अंदाज कर रामनिवास यादव पर जो भरोसा किया गया है । यह सरकार तो वैसे भी भ्रष्टाचारियों की संरक्षक मानी जाती है ऐसे में चुनावी साल बहाना ही है और जब प्रदेश के लोकतंात्रिक मुखिया पर ही कोयले की कालिख पूती हो तो फिर उनसे इससे Óयादा उम्मीद बेमानी है ।
हाथ-पांव तोडऩे के लिए चर्चित आई जी मुकेश गुप्ता तो स्वयं हटना चाहते थे और फिर सरकार भी नहीं चाहती थी कि मुकेश गुप्ता को लेकर कार्यकर्ताओं के मन में उठने वाले सवालों का सामना करें इसलिए उन्हें भी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया लेकिन ये क्या जिसे बिठाया गया उस पर कम आरोप नहीं है । जी पी सिंग को आईजी बनाते समय शायद यह नहीं सोचा गया कि उन पर तो सीधे आई पी एस राहूल शर्मा की मौत को लेकर गंभीर आरोप है । और राजधानी के आई जी पर जब ऐसे आरोप हो तो सवाल उठने से रोक पाना आसान नहीं है । हालांकि पुलिस वालों को ऐसे आरोप से फर्क नहीं पड़ता लेकिन सरकार को फर्क पड़ सकता है । राजधानी के दिग्गज मंत्रियों की सलाह से यदि जीपी सिंग को आई जी बनाया गया है तो फिर सांसद रमेश बैस या नंदकुमार साय कितना भी पुलिस को नियंत्रण करने की बात करें कोई मतलब नहीं है ।
वैसे भी बैस जी कब मुंह खोले और कब पलटी मार दे कोई ठीकाना नहीं है । भतीजे को पड़ी तो बोल दिये । बाद में ऐसा नहीं कहा करने में कितनी देर लगेगी । यानी पुलिस को क्लीन चिट मिलना तय है । नहीं तो गृहमंत्री यदि किसी पुलिस कप्तान को निकम्मा कहे और उसके बाद भी कप्तानी रहे यह ल"ााजनक बात नहीं मानी जाती ।
राजधानी में चार साल से जमें पुलिस कप्तान दीपांशु काबरा भले ही खुशबू के अपहरकर्ताओं को पकडऩे के लिए अपनी पीठ थपथपा ले लेकिन सच तो यह है कि जिले के कई थानेदार उनकी नहीं सुनते ।
अब मोवा थाने का ही मामला ले । यहां पदस्थ श्रीमती संध्या द्विवेदी की रोज शिकायत हो रही है । यहां लूट की घटना को चोरी बता दिया जाता है । अवैध शराब से लेकर जुआरियों और सटांरिये तक से महिने वसुलने की शिकायतें है । बिल्डरों के पक्ष में पीढि़तों को चमकाने की शिकायत है । अपराधियों से गठजोड़ की तो शिकायतों का अंबार है लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई ही नहीं होती है ।
अब तो दहेज प्रताडि़त एक महिला Óाया शर्मा ने मोवा थाने पर रिपोर्ट नहीं लिखने की शिकायत कर दी है लेकिन कप्तान को इससे मतलब ही नहीं है । अब लोग कहते रहे हैं कि थानेदार के आगे कप्तान की नहीं चलती । न तो सरकार को फर्क पड़ता है और न ही मुख्यालय में बैठे अफसरों को ही इससे फर्क पड़ता है । आखिर पुलिस की छवि ऐसी बनी रहेगी तभी तो खर्चा चलेगा ।
खर्चा चलेगा तभी तो सेहत बनेगी । तभी तो फरार होने वाले कैदियों को पकडऩे में ताकत लगेगी । अब कांकेर में बस स्टैण्ड से तीन जवानों को चकमा देकर कैदी भाग गया तो इसमें पुलिस वालों की गलती कैसे ? लेकिन लोगों का ध्यान रखना है इसलिए तीनों निलंबित कर दिये गये । लोगों की याददाश्त Óयादा होती नहीं इसलिए कुछ दिन में बहाल कर दिये जायेगे । आखिर बल की कमी है और बल की कमी न भी हो तब भी बैठा के वेतन देना ठीक नहीं है । तभी तो थाने में हुई हत्याओं के दोषी पुलिस कर्मी मजे से दूसरी जगह डूयूटी बजा रहे हैं मरने वाले का क्या । वह लौट के तो आयेगा नहीं लेकिन जो दोषी जिन्दा है उन्हें कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए ।

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

नियंत्रण नहीं पर लाभ चाहिए...

नियंत्रण नहीं पर लाभ चाहिए...
कोलगेट कांड को दबाने के लिए जी न्यूज और जिंदल समुह में सौदे की खबर से मीडिया शर्मसार हुआ है। और यह सवाल जोर पकडऩे लगा है कि यह मीडिया पर सरकार का नियंत्रण जरूरी हो गया है! इस घटना में न तो जिंदल समूह के भ्रष्टाचार कम आंके जा सकते है और न ही जी न्यूज की इस खेल को ही नजर अंदाज किया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ राÓय बनने से पहले यहां की पत्रकारिता को जो सम्मान मिलता रहा है ह उसमें कमी आई है। राÓय बनने के बाद मीडिया मैनेजमेंट का नया खेल शुरू हुआ है जिसमें बड़े-बड़े मीडिया समूह भी शामिल हो गये है। वे या तो खबरों के एवज में सीधे रकम ले रहे हैं या फिर विज्ञापन को माध्यम बता रहे है। पेड-चूज का यह आलम है कि सभी नेता व कार्पोरेट घराने इस खेल में शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ में बड़े अखबार समूहो ने सरकार से फायदे के सीधे रास्ते के अलावा अप्रत्यक्ष फायदे का खेल शुरू कर दिया अखबार के अलावा दूसरे धंधो में सरकार से फायदा लेने का तिकइम जनता के सामने है। अखबार चलाने के नाम पर कौडिय़ों के मोल सरकारी जमीने ली गई और उस पर कामर्शियल काम्प्लेक्स तक ताने गये। सरकारी जमीनों के इस बेचा इस्तेमाल पर कार्रवाई करने की हिम्मत न तो किसी अधिकारी में है और न ही राजनेताओं में। इन जमीनों के लीज रेट को लेकर भी खेल चला। अखबार को सरकार से सारी सुविधाएं चाहिए। जनसंपर्क से विज्ञापन पर दबाव, वाहनों के लिए दबाव यहां तक कि घूमने फिरने तक के लिए दबाव बनाये जाते हैं।
विदेश तक घूम आये...
छत्तीसगढ़ के मीडिया बिरादरी को खुश करने सरकार विदेश तक ले जा चुकी है बैकांक- पटाया जा चुके पत्रकारों के नाम पर खूब खर्च हुए। जनता की गाढ़ी कमाई पर अपव्यय को लेकर छापने वाले पत्रकार न संपादक को यह विदेश यात्रा कभी अपव्यय नहीं लगा। और न ही उन्हें सरकारी सुविधाएं लेने में कभी हिचक हुई।

और अंत में...
पत्रकार अब सरकारी खर्चे पर किताब लिखने लगे है। सरकार से पैसा एंठने में इस नये खेल में ईमानदारी का ढि़ंढोरा पिटने वाले कई शामिल है।