गुरुवार, 8 जुलाई 2021

देश की बजाय चुनाव संभालने वाला मंत्रिमंडल

 

हर क्षेत्र में पिट चुकी मोदी सरकार की प्राथमिकता अब भी चुनाव है कहा जाए तो कुछ लोगों को यकीन नहीं होगा लेकिन यकीन मानिये मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार की वजह देश संभालना नहीं बल्कि जिन ग्यारह राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां भारतीय जनता पार्टी को संभालना है।

मंत्रिमंडल का बहुप्रतिक्षित विस्तार को लेकर जिस तरह का खेल खेला गया, असफलता के लिए बलि का बकरा ढूंढा गया और राज्यों में होने वाले चुनाव में जीत के सपने देखे गए उसके बाद तो यही लगता है कि आने वाले दिन आम लोगों के लिए ज्यादा मुसिबत भरा होने वाला है। तब सवाल यही है कि क्या मोादी सत्ता की प्राथमिकता केवल चुनाव जीतना है, तब आम लोगों के हितों का क्या होगा?

आप यकीन नहीं करेंगे लेकिन सच यही है कि विभिन्न मंत्रालयों में खाली पड़े आठ लाख पदों की वजह से सरकार का कामकाज बुरी तरह प्रभावित है लेकिन उनमें भर्ती इसलिए नहीं की जा रही है क्योंकि कर्मचारियों-अधिकारियों के वेतन की दिक्कत है। अकेले रक्षा विभाग में ढाई लाख से ज्यादा पद रिक्त होने की चर्चा है।

देश की हालत किसी से छिपी नहीं है, आर्थिक बदहाली ने महंगाई को चरम पर पहुंचा दिया है और सत्ता अपनी रईसी बरकरार रखने और आर्थिक स्थिति सुधारने के नाम पर जिस तरह से आम लोगों पर टैक्स का बोझ बढ़ा रही है वह गब्बर सिंह टैक्स से कम नहीं है। लेकिन निर्मल सीतारमण को इसके लिए नहीं हटाया गया क्योंकि वह मोदी सत्ता के लिए सुविधाजनक है। महामारी में असफलता के लिए बलि का बकरा भले ही डॉ. हर्षवर्धन को बना दिया गया है लेकिन सच तो यह है कि महामारी प्रबंधन नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथारिटी का चेयरमेन तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी है। रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, बाबूल सुप्रियों जैसे कितने ही नाम है जिन्हें मंत्रिमंडल से हटाकर मोदी सत्ता ने न केवल अपनी ताकत दिखाई है बल्कि यह संदेश भी दिया है कि सत्ता का चेहरा बनने की कोशिश फिजूल है।

संतोष गंगवार तो शायद सिर्फ इसलिए हटाये गये क्योंकि उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र बरेली में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली पर योगी सरकार की आलोचना की थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया और नारायण राणे को पुरस्कार देकर दूसरे दलों के नेताओं को आमंत्रित करने की शैली भाजपा की नई नहीं है तब सवाल यही है कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत का असर मंत्री को नहीं जनता को भुगतना है। कुल मिलाकर केन्द्रीय मंत्रिमंडल  के विस्तार का ध्येय सिर्फ और सिर्फ 11 राज्यों में चुनाव जीतना है।