गुरुवार, 30 सितंबर 2010

डॉ. रमन साहब विकास कहां हुआ है...

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह यह कहते नहीं थकते कि उनके कार्यकाल में छत्तीसगढ़ का विकास हुआ है। दस साल छत्तीसगढ़ के निर्माण को हो गए इनमें से 7 साल से डॉ. रमन सिंह सत्ता में हैं। अजीत जोगी तो अपने तीन सालों के कार्यकाल को विकास की बुनियाद रखने की बात कहते हुए जिम्मेदारी से मुक्त होने की कोशिश करते हैं लेकिन डॉ. रमन का दावा कितना सार्थक है यह अब देखने की जरूरत है। वे कांग्रेस के 50 बनाम 5 से तुलना कर 'बेटर देन' की बात तो करते हैं लेकिन बेटर देन के चक्कर में 'गुड' कहीं नहीं है। सब तरफ भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है। अमीरों को अधिकाधिक सुविधा दिए जा रहे हैं। अपनी सुविधा बढ़ाने की कोशिश में पूरी सरकार और विपक्ष ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है लेकिन डॉ. रमन सिंह के इस सात सालों में आम आदमी को क्या मिला है?
बिसलरी से लेकर एक्वागार्ड का पानी पीने वाले इस सरकार के मंत्री से लेकर अधिकारियों ने क्या कभी सोचा है कि छत्तीसगढ़ के गांवों के लोगों को पीने का साफ पानी और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करा दें। शायद नहीं। डॉ. रमन सिंह ने यदि सात सालों में विकास का दावा किया है तो वे क्या बता पाएंगे कि इन वर्षों में कितने गांव में पीने का साफ पानी उपलब्ध कराया गया है या कितने गांवों के खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। हमारा दावा है कि इसका जवाब ही सरकार के पास नहीं है। इसी तरह इन 7 वर्षों में कितने गांवों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई है। शिक्षा का तो भगवान ही मालिक है। आज भी छत्तीसगढ़ के ऐसे कई गांव है जहां के मीडिल और हाई स्कूल के छात्रों को कई किलोमीटर चलकर स्कूल जाना पड़ता है? जब गांव में पीने और सिंचाई का पानी हैं, चिकित्सा सुविधा नहीं है शिक्षा तक नहीं दिया जा रहा है तब सरकार के विकास का दावा कितना उचित है। जिस दिन सरकार छत्तीसगढ में यह बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा देगी तब विकास की बात की जानी चाहिए। ऐसे में किसी भी सरकार को विकास का दावा नहीं करना चाहिए।
दरअसल डॉ. रमन सिंह ने विकास के दूसरे मायने ही निकाल रखा है। भारी भ्रष्टाचार आज सरकार की प्राथमिकता हो गई है। भ्रष्ट अधिकारियों की फौज करना उसकी आदत हो गई है। तभी तो बाबूलाल अग्रवाल जैसे आईएएस की बहाली हो जाती है। नारायण सिंह जैसे सजायाफ्ता आईएएस को प्रमोशन देने पूरा मंत्रिमंडल जुट जाता है और बाल्को जैसे अवैध कब्जाधारियों को पट्टा देने पूरी सरकार लग जाती है।
उद्योगों को जमीन देने किसानों से जबरिया अधिग्रहण कराया जाता है और अपने ऐशो आराम के लिए नई राजधानी में सारे संसाधन जुटाये जाते हैं और कोई सरकार यह नहीं कहती कि नई राजधानी इसलिए बनाए जा रहे हैं ताकि अपने लिए ऐशोआराम के साधन जुटाए जाए बल्कि सरकार यह कहती है कि वह दुनिया में छत्तीसगढ क़ा नाम रोशन करने नई राजधानी में अरबों खरबों खर्च कर रहे हैं। जिस प्रदेश के आम लोगों को पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा उपलब्ध नहीं हो रहा हो वहां अरबों-खरबों की राजधानी बने और भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहे वहां बजट का रोना घड़ियाली आंसू के सिवाय कुछ नहीं है।