गुरुवार, 17 जून 2021

पैसा खुदा से कम नहीं...

 

आर्थिक झंझावतों से गुजर रहे देश की राजनीति भी इन दिनों प्रसव वेदना से गुजरने लगी है, देश की सबसे बड़े राजनैतिक दल के भीतर भी सब कुछ ठीक नहीं है, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में गड़बड़झाला है कई राज्यों में स्थिति डावाडोल है लेकिन हम आज बात करेंगे, देश की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली भाजपा की।

वैसे तो भाजपा पर नरेन्द्र मोदी, अमित शाह की मजबूत पकड़ है और वे जो चाहे पार्टी में वही होगा तब सवाल यही है कि क्या भाजपा में अधिनायकवाद ने कदम बढ़ा दिया है। हालांकि भाजपा नेताओं के तमाम दावों के बाद भी हमारा शुरु से मानना रहा है कि जिस तरह से कांग्रेस में गांधी परिवार के इतर कुछ भी नहीं है उसी तरह भाजपा में संघ परिवार की स्थिति है।

देशभर की तमाम पार्टियों को परिवारवाद के नाम पर गरियाने वाली भाजपा में भी वहीं होता है जो संघ परिवार चाहता है, लेकिन स्थिति में थोड़ा बदलाव हुआ है और अब वही होगा जो गुजरात गैंग चाहता है। गुजरात गैंग क्या है और इनमें कौन कौन लोग जुड़े हैं इस पर कभी विस्तार से जानकारी दी जायेगी। अभी तो भाजपा के भीतर की स्थिति को समझने की कोशिश होनी चाहिए।

वैसे तो भाजपा को शुरु से ही पूंजीवादियों, व्यापारियों की पार्टी कहा जाता रहा है लेकिन अटल-अडवानी की जोड़ी के हटने के बाद यह साफ तौर पर दिखने भी लगा है कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ऐसे में सवाल यह नहीं है कि संघ किनारे कर दिये गए है बल्कि सवाल यह है कि वर्तमान परिदृश्य में क्या पैसा और पूंजी ही महत्वपूर्ण हो चला है और जिसके पांस पूंजी की ताकत होगी वही पार्टी को अपने हिसाब से चलायेगा?

तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि संघ की भूमिका इतनी बेबस क्यों है? इसके लिए इतिहास में ज्यादा दिन पीछे जाने की जरूरत नहीं है। यह 2013-14 की ही बात है। कांग्रेस के खिलाफ पूरे देश में माहौल था और संघ को सत्ता की राह आसान तो दिख रहा था लेकिन वह हर  कदम सोच समझ कर चलना चाहते थे। ऐसे में मामला आडवानी और मोदी के बीच जा फंसा। भाजपा का एक बड़ा वर्ग चाहता था कि आडवानी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए लेकिन संघ ने एक दांव खेला कि पैसा कौन लायेगा। यानी पूंजी की जवाबदारी के आगे आडवानी मौन रह गये और नरेन्द्र मोदी ने बाजी मार ली। आखिर तीन बार के मुख्यमंत्री और सहारा डायरी तो इसका संकेत था ही।

और जब संघ और पूरी भाजपा ही पूंजी के आगे नतमस्तक हो तब फिर सवाल बेमानी है कि पार्टी कौन चलायेगा। और यह बात न केवल नरेन्द्र मोदी जानते है बल्कि पूरा गुजरात गैंग जानता है कि जब तक पूंजी की ताकत रहेगी उनका न तो योगी आदित्यनाथ ही कुछ कर पायेगा और न ही संघ ही कुछ कर पायेगा।

यही वजह है कि गुजरात गैंग ने सबसे पहले योगी आदित्यनाथ का पर कतर देना चाहते हैं क्योंकि मोदी के बाद कौन के सवाल पर अब भी योगी ही है। जबकि योगी से पहले अमित शाह थे। इसलिए उत्तरप्रदेश की दमदारी और कट्टर हिन्दू चेहरा के बाद भी यदि योगी पर वार हो रहे हैं और संघ तथा पूरी भाजपा इसे खामोशी से दख रहा है तो जान लीजिए की पूंजी की ताकत ने अपना प्रभाव जमा लिया है।