शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

भ्रष्टाचार को लोकाचार कह कर सभी विभागों में रेट चार्ट रख दे

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद दूसरी बार नगरीय निकायों के चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने बेशर्मी से पैसे बहाये। जनप्रतिनिधि बनने के लिए टिकिट से लेकर चुनाव जीतने की होड़ में कांग्रेसी और भाजपाईयों ने लोकाचार की सारी सीमाएं लांघ डाली। टिकिट के लिए तो गाली गलौज मारपीट हुई ही बड़े नेताओं को अपमानित तक होना पड़ा। जनसेवा के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं में इतना जोश था कि वे मरने-मारने पर उतारू हो गए। यह सब अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
टिकिट के बाद तो चुनाव जीतने कई प्रत्याशियों ने लाखों खर्च कर डाले राजधानी में ही मतदाताओं को खुलेआम प्रलोभन दिया गया। ऐसा कोई वार्ड नहीं था जहां शराब की नदियां नहीं बहाई गई हो। कार्यकर्ता चुनाव कार्यालय में जुआं खेलते शराब पीते रहे और आम आदमी सब कुछ देखते सुनते खामोशी ओढ़े रखा।
कांग्रेस और भाजपा जैसी प्रमुख पार्टियां जब चुनाव जीतने इस तरह के हथकंडे अपना रही हो तब भला चुनाव जीतने के बाद वह कैसे भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन और जनसेवा का काम करेगी यह समझा जा सकता है। जबकि जो लोग लाखों खर्च कर चुनाव जीतने की स्थिति में हैं वे लोग अभी से खर्च किए गए रकम की वसूली का रुपरेखा तैयार करने लग गए है।
कोई माने या न माने अब तो राजनीति पूरी तरह से व्यवसाय बन चुकी है और चुनाव लड़ने वाले इसे व्यवसायिक इन्वेस्टमेंट के तहत रकम खर्च करता है और चुनाव जीतने के बाद इसकी वसूली में लग जाता है। और जो पार्टियां भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की बात करता है वह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
अब तो राजनैतिक पार्टियां खासकर कांग्रेस और भाजपा को भ्रष्टाचार के बारे में बात ही नहीं करनी चाहिए बल्कि छत्तीसगढ़ में बैठी भाजपा सरकार को चाहिए कि वह भ्रष्टाचार को लोकाचार कह कर सभी विभागों में रेट चार्ट रख दे। इसकी शुरुआत वह चाहे तो नगरीय निकायों से शुरु कर सकती है। वह एक रेट चार्ट बना दे कि नक्शा पास कराने के लिए 15 दिन में एक राशि तय कर दे। जन्म प्रमाण पत्र के लिए इतनी राशि, मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए इतनी राशि, ले आऊट के लिए इतनी राशि, सफाई के लिए, नल कनेक्शन के लिए और इसी तरह से अन्य कार्यों के लिए एक निश्चित राशि तय कर दे ताकि यहां काम के लिए आने वाला आदमी निर्धारित फीस के अलावा लोकाचार के लिए राशि दे और कम से कम काम हो जाए। इसके कई फायदे हैं फाईल जल्दी निपटेगा क्योंकि अफसरों को भी मालूम रहेगा कि जितनी फाईल निपटेगा उतनी राशि उसे शाम को अपनी जेब में लेकर जाना है।
इस तरह की बातें कहने का मतलब कतई यह नहीं है कि मैं भ्रष्टाचार का समर्थन कर रहा हूं लेकिन कांग्रेस और भाजपा में नगरीय निकाय के चुनाव को लेकर जनसेवा के लिए जिस तरह की होड़ मची है और लाखों रुपए चुनाव में खर्च किए गए उससे तो कम से कम भ्रष्टाचार को लेकर इनसे कोई उम्मीद करना बेमानी होगी।
यह बात मैं इसलिए भी कह रहा हूं क्योंकि भ्रष्टाचार आज लोकाचार हो गया है और लेने वाले व देने वालों में संकोच नहीं होगा तो समय भी बचेगा।
आज छत्तीसगढ में भ्रष्टाचार अपनी गहरी जड़े जमा चुका है। प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर मंत्रियों के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और सरकार इन आरोपों को राजनीति कहकर खारिज कर रही है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।

कृषि जमीनों की बरबादी पर आमादा सरकार

एक तरफ देश मंहगाई की चपेट में हैं। उत्पादन कम होने की वजह से आम आदमी को महंगाई की त्रासदी झेलनी पड़ रही है। जोत का रकबा बढ़ाने नए-नए तरीके निकाले जा रहे हैं और दूसरी ओर छत्तीसगढ़ सरकार विकास के नाम पर कृषि जमीन को बरबाद कर रही है। कृषि जमीनों को कौड़ी के मोल अधिग्रहित करना अंधेरगर्दी नहीं है तो और क्या है।
बस्तर में उद्योग लगाने पर आमदा सरकार वहां के किसानों-आदिवासियों के साथ जो सलूक कर रही है वह अंधेरगर्दी नहीं है तो और क्या है। हम उद्योग के विरोधी नहीं है लेकिन जिस तरह से कृषि जमीनों पर उद्योग लगाई जा रही है और किसानों से जबरिया जमीनें ली जा रही है वह गलत है। नगरनार इस्पात संयंत्र को लेकर पूरे प्रशासनिक अमले को झोंक दिया गया है। किसानों को डरा धमका कर जमीने ली जा रही है।
यही हाल नई राजधानी के निर्माण को लेकर है। जहां की जमीनों का बाजार भाव 25-30 लाख रुपया एकड़ है वहां सरकार सिर्फ 5-7 लाख रुपया मुआवजा दे रही है। जो किसान अपनी जमीनें नहीं बेचना चाह रहे हैं उनसे जबरदस्ती की जा रही है। आखिर सरकार राजधानी किसके लिए बना रही है। सरकारी कर्मचारियों और नेताओं को अधिकाधिक सुविधा उपलब्ध कराने कृषि जमीनों की बरबादी से आम लोगों को क्या हासिल होने वाला है।
अब तो सरकार ने अंधेरगर्दी की सारी हदें पार करना शुरू कर कमल विहार योजना ला रही है। इस योजना से हजारों एकड़ कृषि जमीन बरबाद हो जायेगी और फिर उत्पादन घटने का दुष्पपरिणाम पूरा देश भुगतेगा। लगता है सरकार को महंगाई से कोई लेना देना नहीं है नहीं तो वह विकास के लिए कृषि भूमि को बरबाद करने की बजाए कोई और तरीका ढूंढती।
एक जमाना था जब छत्तीसगढ़ को धान के कटोरे के रुप में विश्व प्रसिध्दि मिला था लेकिन औद्योगिक विकास को लेकर सरकार की अंधेरगर्दी ने कृषि का रकबा समेट दिया है और आगे भी वह कृषि भूमि को बरबाद करने पर तुली है। उरला, सिलतरा, मंदिरहसौद क्षेत्र में उद्योगों में तो कृषि जमीन गई और अब इसके प्रदूषण से खेती की जमीनें बंजर हो रही है।
हिरमी-रवान, बलौदाबाजार क्षेत्र में सीमेंट उद्योगों के प्रदूषण से कृषि जमीने बरबाद हो रही है और लगातार उत्पादन कम हो रहा है। जिसके चलते चावल का मूल्य आसमान छूने लगा है। सब्जियों के दाम तो आम आदमी के पहुंच के बाहर है और इसके बाद भी सरकार नगरनार, नई राजधानी या कमल विहार जैसी योजनाओं को पूरा करने सरकारी दमन का रास्ता अख्तियार कर रही है तो यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
छत्तीसगढ़ राज्य को कई लोग अभिशप्त कहने लगे हैं तो इसकी वजह सरकार का आम आदमी के प्रति रवैया है। सरकारी जमीनों, खदानों और वन संपदाओं को कौड़ी के मोल बेचने में आमदा सरकार की नजर अब कृषि भूमि पर है। इसके दो फायदे मिलते हैं पहला उद्योगों को कौड़ी के मोल जमीन दिलाने कमीशन ले लो और फिर निर्माण में अपनी ठेकेदारी कर लो। दो-दो तरफ से मिल रहे इस कमीशन की वजह से ही सरकार निर्माण को ही विकास का नारा देते नहीं थकती।
अब तो सरकार ने सरकारी जमीनों का बंदरबाट करना शुरु कर दिया है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि सरकार ऐसे लोगों को सरकारी जमीन कौड़ी के मोल दे रही है जो पहले से ही करोड़पति और अरबपति है। ये लोग जहां चाहे जमीन खरीद सकते हैं इनके पास पैसों की कमी नहीं है। लेकिन मोटे कमीशन पर इन्हें जमीन दी जा रही है और आम आदमी के लिए अपना आशियाना बनाना कठिन हो रहा है। यह सरकारी अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।इधर छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलित हैं। भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए किसानों को 270 रुपए बोनस और मुफ्त में बिजली देने की बात कही थी लेकिन साल भर बाद भी सरकार अपने वादे को नहीं पूरा कर रही है। चुनाव जीतने झूठा घोषणा करना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। पहले ही अकाल और सरकारी दमन से अपनी उपज गंवा चुके किसान आंदोलन नहीं तो और क्या करें। ऐसे में कहीं हिंसक घटनाएं हो जाए तो इसकी जवाबदारी किसी होगी। लेकिन हाल के सालों में सरकार लोगों का ध्यान तभी रखती है जब वे हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। इस प्रशासनिक रवैये को बदलना होगा अन्यथा सरकार की मुसीबतें बढ़ेगी।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

वाह रे...नेतागिरी

छत्तीसगढ़ विधानसभा का सत्र चल रहा है। पहले ही दिन कांग्रेस ने किसानों का मुद्दा जोरदार उठाया लाठी चार्ज से लेकर किसानों को चुनाव पूर्व भाजपा द्वारा छले गए मुद्दे विधानसभा में छाये रहे। सरकार के पास न तो 270 रुपए बोनस के मामले में कोई जवाब था और न ही मुफ्त बिजली देने के योजना का ही जवाब था। ऐसे में कांग्रेस ने सरकार के जवाब से अंसतुष्ट होकर विधानसभा से बहिगर्मन कर दिया। विधानसभा में जनहित के सैकड़ों मुद्दे उठते हैं और उठाये जाते हैं। विधायक देवजी पटेल ने तो सीधे मुख्यमंत्री से ही सवाल जवाब किया और जब भाजपा के विधायक को ही मुख्यमंत्री से विधानसभा में सवाल करने पड़ रहे हो तब अंधेरगर्दी का अंदाजा लगाना मुश्किल है।
तोड़ मरोड़ कर जवाब देने के लिए बार विधानसभा अध्यक्षों को मंत्रियों को डांटना पड़ा है इसके बाद भी मंत्री जवाब देने से बचने के बहाने ढूंढ ही लेता है। अब विदेश दौरे का मामला ही ले लो किसने कितना खर्च किया के ब्यौरा को आसानी से छुपाया गया। अधिकारियों द्वारा खर्च की गई राशि तो बताई गई लेकिन मंत्रियों ने कितने खर्च किए यह बात छुपाना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। आखिर जनप्रतिनिधि बने नेता सरकारी खजाने को किस तरह लुटा रहे है यह बात जनता को पता होना चाहिए।
सरकार के अंधेरगर्दी के किस्से थमने का नाम ही नहीं ले रही है। शराब का मामला हो या दौरे के खर्चों का मामला हो। हर तरफ लोग त्रस्त हैं। महंगाई बेलगाम होते जा रही है और जमाखोरी-कालाबाजारी चरम पर हैं। महंगाई को लेकर कोई बोलने को तैयार नहीं है। केन्द्र सरकार राज्य सरकार पर तो राज्य सरकार केन्द्र सरकार पर दोषारोपण में व्यस्त हैं ऐसे में सुरसा की तरह बढ़ती महंगाई ने आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान क्षेत्र है लेकिन अब सरकार की नजर कृषि भूमि पर है वह खेती की जमीन को विकास के नाम पर अधिग्रहित करने आमदा है और जब उपज ही न हो या उपज का भाव ठीक से न मिले तो महंगाई तो बढ़ना ही है। छत्तीसगढ़ में किसानों के साथ अत्याचार की कहानी नई नहीं है। सीमेंट उद्योगों में जमीन देने वाले किसान आज भी परेशान है और अब तो गन्ना बोने वाले किसान भी सरकार की अंधेरगर्दी से त्रस्त है। ऐसा कहीं नहीं होता कि किसी भी उत्पादक को लागत से कम बेचा जाए लेकिन छत्तीसगढ़ में गन्ना किसानों को मजबूर किया जा रहा है कि वह अपनी उपज कम कीमत पर बेंचे। पूरे देश में 210 रुपए में बिकने वाला गन्ना यहां 165 रुपए में ही खरीदने की घोषणा सरकार ने की और जब उत्पादक लागत नहीं निकलने की वजह से किसान ने गन्ना बेचने की बजाय उसे गुड़ बनाने की घोषणा की तो सरकार गुड़ बनाने में प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी। देश के सर्वश्रेष्ठ गन्ना उत्पादक किसानों के साथ सरकार का यह रवैया अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। इस पर कांग्रेस की चुप्पी आश्चर्यजनक है। सरकारें आती जाती रहती हैं और सरकार बनने की गणित भी दूसरी है लेकिन याद वे किये जाते हैं जो काम करते हैं।
छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य ही है कि अकूत संपदा संसाधन होते हुए भी यहां के लोग बदहाली में जी रहे हैं। सरकार भी विकास का मतलब निर्माण समझती है अधिकारी तो पैसा कमाने निर्माणों को मंजूरी देते हैं यही वजह है कि राज्य बनने के 8-9 साल बाद भी छत्तीसगढ़ के आम लोगों को टेक्स की वजह से परेशान होना पड़ रहा है। सरकारी खजानों की लूट का यहां कई अनोखा मामला है। पर्यटन में बगैर नाम पते के लाखों रुपए के देने का मामला हो या जनसंपर्क में प्रचार सामग्री के घपले का मामला हो। सरकार ने अपने लोगों को बचाने का नया फार्मूला भी तय कर लिया है। अब तो पर्यटन में स्टेशनरी घोटाले में रिकवरी का दूसरे विभाग के अधिकारियों ने भ्रष्टाचार का नया हथियार पा लिया है। खूब भ्रष्टाचार करो और पकड़े गए तो केवल उसी मामले का पैसा दो और हल्ला हो तो समकक्ष के कमाउ विभाग में चले जाओ। सरकार की यह नीति अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

मुख्यमंत्री के खिलाफ छाप लो, संवाद प्रभारी के खिलाफ छापा तो नौकरी गई...


छत्तीसगढ़ में अफसर राज हावी है इसका यह नमूना मात्र है। छत्तीसगढ़ में सरकारी विज्ञापन के मोह ने पत्रकारिता की ऐसी-तैसी करने में कोई कमी नहीं छोड़ा है। यही वजह है कि यहां अधिकारियों के खिलाफ खबर छपते ही उसकी तीखी प्रतिक्रिया होती है।
पिछले दिनों मृत्युजंय मिश्रा ने अपनी नौकरी से हटाये जाने को लेकर संवाद प्रभारी कोरेटी के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ली। ढसाढस भरे प्रेस कांफ्रेंस में वैसे तो सभी अखबारों के पत्रकार मौजूद थे लेकिन रोज निकलने वाले अखबारों में से दो-तीन अखबारों में ही यह खबर प्रकाशित हो पाई। इनमें से प्रतिदिन राजधानी में भी यह खबर प्रमुखता से छप गई। इस खबर को ठाकुर नामक पत्रकार ने बनाया था। जैसे ही अखबार में खबर छपी हड़कम्प मच गया। जब हमने पत्रकारिता की शुरुआत की थी मुझे याद है। तब हड़कम्प मचाने वाली खबरों पर संपादन के द्वारा पत्रकारों की पीठ थपथपाई जाती थी लेकिन यहां तो उल्टा ही हो गया। इस पत्रकार की नौकरी ही चली गई।
पत्रकारिता के इस नए मापदंड से कोई पत्रकार हैरान भी नहीं है क्योंकि ऐसा यहां अक्सर होने लगा है और कभी नेता या अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को नौकरी से निकलवाने की धमकी नई भी नहीं है। लेकिन सिर्फ सरकारी विज्ञापन के लिए जनसंपर्क के अधिकारियों से ऐसी घनिष्ठता आश्चर्यजनक है। छत्तीसगढ़ में यही सब कुछ हो रहा है और विज्ञापन देने वाली इस संस्था के अधिकारियों का प्रभाव बड़े-बड़े बैनरों पर भी स्पष्ट देखा जा सकता है। कई पत्रकार तो अब आपसी चर्चा में व्यंग्य तक करने लगे हैं कि मुख्यमंत्री के खिलाफ छाप सकते हो लेकिन जनसंपर्क या संवाद के अधिकारियों की करतूत को छापोगे तो नौकरी चली जाएगी। छत्तीसगढ़ में अखबार मालिकों के इस रवैये की वजह से ही शासन-प्रशासन में स्वेच्छाचारिता बढ़ी है और यही हाल रहा तो पत्रकारिता पर यह कलंक धुलने वाला नहीं है।
और अंत में...जनसंपर्क में नौकरी वही लोग कर सकते हैं जो अपना वेतन भी अधिकारियों पर कुर्बान कर दे। ऐसे ही एक युवक यहां अपने नियमित होने के इंतजार में आधा वेतन अधिकारियों के लिए छोड़ देता है। इसके सर्टिफिकेट भी फर्जी होने की चर्चा है।

सभापति के समय की करनी, पंचायत में भरनी पड़ी...

यह तो कुत्ते की दुम... वाली कहावत को चरितार्थ करता है वरना जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस की यह दुर्दशा नहीं होती। कई जिलों में बहुमत के बाद भी कांग्रेस की अध्यक्षीय गई तो इसकी वजह नेतृत्व की कमजोरी के साथ-साथ कांग्रेस में बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई है। यही नहीं यदि कांग्रेस ने निगम में सभापति के चुनाव में सबक लेकर कड़ी कार्रवाई करती तो उसे यह दिन देखना नहीं पड़ता।
दरअसल छत्तीसगढ़ कांग्रेस में बिखराव की वजह बड़े नेताओं की आपसी गुटबाजी के अलावा प्रदेश अध्यक्ष का पिछलग्गू होना है। छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी, मोतीलाल वोरा और विद्याचरण शुक्ल की लड़ाई जग जाहिर है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष जब अपनी कार्यकारिणी ही नहीं बना सकता तो उनसे बहुत ज्यादा उम्मीद करना भी बेमानी है। यही वजह है कि लगातार चुनाव हारने से यहां के कांग्रेसी पस्त हो गए है और जब सत्ता की तरफ से जरा भी लालच दी जाती है वे बगावत करने से भी गुरेज नहीं करते ।
प्रदेश के दर्जनभर जिलों में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों की संख्या भाजपा के मुकाबले अधिक थी लेकिन कांग्रेसी इन्हें संभाल नहीं पाए और 14 जिलों में भाजपा अपना अध्यक्ष बनाने कामयाब रही। यही स्थिति निगम चुनाव में भी रही और कांग्रेस को डेढ़ दर्जन स्थानों में अपने सभापति से वंचित होना पड़ा। क्रास वोटिंग को लेकर अध्यक्ष धनेन्द्र साहू ने तब भारी नाराजगी दिखलाई थी और जांच कमेटी भी बनाई गई लेकिन कांग्रेस की कमजोरी उजागर हो गई राजधानी के पार्षदों ने तो मोबाईल के कॉल डिटेल तक नहीं दी और उन पर किसी ने कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखाई। शायद यही वजह है कि जिला पंचायत के चुनाव में कांग्रेसियों ने पार्टी के नेताओं की परवाह नहीं की और लालच में भाजपा को वोट दे दिया।
कांग्रेस की इस दुर्दशा के लिए प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू और मोतीलाल वोरा द्वारा गठित कार्यकारिणी अपनी जिम्मेदारी से कैसे बचेंगे यह सवाल निष्ठावान कांग्रेसियों में चर्चा का विषय है। बहरहाल छत्तीसगढ क़ांग्रेस में हो रही इस बिखराव पर राष्ट्रीय नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया तो हालत और बदतर होगी जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।

पुलिसिया गुण्डागर्दी का शिकार पत्रकार,सिटी एसपी की मौजदूगी, सरकार खामोश

यह तो पुलिसिया गुण्डागर्दी का एक नमूना है कि वह चाहे तो किसी को भी थाने में बुलवाकर मारपीट कर सकता है और सरकार भी ऐसी गुण्डागर्दी पर कुछ नहीं करती। फिर यदि किसी के नाम के पीछे सिंह शब्द हो तो वह इस प्रदेश में शेर है।
यह वाक्या तो एक नमूना है वरना महिलाओं से मारपीट करने में भी यहां की पुलिस पीछे नहीं रहती। ताजा मामला शहर के विभिन्न दैनिकों देशबंधु, भास्कर, हरिभूमि, नेशनल लुक और आज की जनधारा में काम कर चुके स्वतंत्र पत्रकार बबलू तिवारी का है। बताया जाता है कि बबलू तिवारी का आफिस मालिक से किसी बात को लेकर विवाद है और इसी के चलते आफिस मालिक ने राजेन्द्र नगर थाने में शिकायत की है। इस शिकायत के आधार पर सिटी एसपी रजनेश सिंह ने 10 फरवरी को उसे अपने कार्यालय में बुलवाया और जब पत्रकार बबलू तिवारी कार्यालय पहुंचा तो वहां सिटी एसपी नहीं थे लेकिन वहां मौजूद राजेन्द्र नगर थाना प्रभारी अंसारी, पुरानी बस्ती सीएसपी व अन्य स्टाफ थे और अंसारी ने बबलू से अश्लील गाली गलौज कर न केवल उसकी पिटाई की बल्कि उसे मकान खाली करने की चेतावनी दी। इस दौरान पुरानी बस्ती सीएसपी ने बबलू की जेब की तलाशी ली और कहा कि मकान खाली नहीं किया तो आर्म्स एक्ट में जेल भिजवा दूंगा।
इसके बाद रजनेश सिंह वहां पहुंचे। रजनेश सिंह ने आते ही बबलू से बात की इधर बबलू ने भी अपने मित्र जो दैनिक भास्कर में संवाददाता है सुदीप त्रिपाठी को बुलवा लिया। इसके बाद भी रजनेश सिंह ने बबलू को धमकाया और उच्चाधिकारियों को गलत रिपोर्ट भी दी। यही कारण है कि रजनेश सिंह की भी पिटाई में सहमति होने का संदेह है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इस मामले की उच्चाधिकारियों से शिकायत करने के बाद भी पुलिस वालों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पुलिस के इस रवैये से पत्रकारों में रोष है और वे मुख्यमंत्री से भी इसकी शिकायत करने वाले हैं।
इधर पुलिसिया गुण्डागर्दी को लेकर कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि रजनेश सिंह का सीधे सरकार में बैठे लोगों से संबंध है इसलिए वे मनमानी करते रहते हैं। बताया जाता है कि पिछले दिनों लोहा व्यवसायी अच्छेलाल जायसवाल को भी धंधा बंद करने की धमकी दी गई थी और झूठा फंसाकर गिरफ्तार किया गया था। बहरहाल रजनेश सिंह के इस कार्रवाई को लेकर बबलू तिवारी ने न्यायालय जाने का मन बना लिया है और रजनेश सिंह के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो वे कोर्ट में मुकदमा दर्ज करेंगे।

इसलिए बांधी नहीं बनाए गए मंत्री...



पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी को इस सरकार में नहीं लेने मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने जो भी वजह बताई हो लेकिन स्वास्थ्य विभाग में एक के बाद एक खुल रहे घोटालों की कहानी यह बयां कर रही है कि आखिर डॉ. बांधी को मंत्री क्यों नहीं बनाया गया। इसी तरह वर्तमान संचालक राजमणि को लेकर भी कई तरह की चर्चा है।
पूर्व स्वास्थ्य सचिव बाबूलाल अग्रवाल के यहां आयकर विभाग द्वारा की गई छापे की कार्रवाई और स्वास्थ्य विभाग के सार्वा, डॉ. प्रमोद सिंह जैसे अधिकारियों के ऊपर लगे घोटालों के आरोपों ने यह साबित कर दिया है कि स्वास्थ्य विभाग जो आम लोगों की जिन्दगी से जुड़ा हुआ है के प्रति सरकार कितनी चिंतित है। भाजपा शासनकाल में स्वास्थ्य विभाग में हुई गड़बड़ी ने सरकार की कथनी-करनी में तो फर्क किया ही है और कार्रवाई के मामले में भी सरकार किस तरह से दोहरा मापदंड अपना रही है यह भी दिखने लगा है।
बताया जाता है कि स्वास्थ्य विभाग में गड़बड़ी के दौरान डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी स्वास्थ्य मंत्री थे और कुछ गड़बड़ी के दौरान अमर अग्रवाल भी स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं। लेकिन सरकार ने इन्हें पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि इतनी गड़बड़ियों के दौरान वे किस भूमिका में थे। यही नहीं इस दौरान सचिव के पद पर रहे आईएएस अफसरों के प्रति भी सरकार साफ्ट कार्नर रखे हुए हैं। जबकि सारी गड़बड़ियां एक सोची समझी साजिश के तहत की गई जिसमें न केवल नीचे से लेकर उपर तक बैठे लोगों ने न केवल अपनी जेबें गरम की बल्कि आम लोगों के जीवन को भी खतरे में डाला गया।
वैसे आम लोगों में यह चर्चा है कि इस सरकार से बहुत ज्यादा उम्मीद करनी बेमानी है वैसे दूसरी पारी में डॉ. कृष्णमूर्ति को मंत्री नहीं बनाये जाने को लेकर अब यह चर्चा जोरों पर है कि यहां हुई गड़बड़ियों की जानकारी प्रदेश नेतृत्व से लेकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को भी रही होगी तभी तो उन्हें चलता किया गया और एक तरह से बचाया गया। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग में कार्रवाई को लेकर सरकार के दोहरे चरित्र को आम लोगों में जबरदस्त चर्चा है और कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में बाबूलाल अग्रवाल भी कोई बड़ा खुलासा कर सकते हैं।

सच से दूर सर्वे रिपोर्ट


वैसे तो सर्वे रिपोर्ट को लेकर हमेशा से ही विवाद होता रहा है लेकिन इस साल 'सी वोटर' और प्लानमन इंडिया ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को देश का दूसरा सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री क्या घोषित कर दिया इनकी रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि सी वोटर ने स्पष्ट किया है कि वे देश में 26432 लोगों की राय पर यह रिपोर्ट तैयार की है लेकिन एक अरब से उपर आबादी वाले इस देश में इतने कम लोगों की राय पर रिपोर्ट बनाने को लेकर सवाल तो उठेंगे ही और फिर पैसे लेकर रिपोर्ट तैयार करने का आरोप कितना सही है इसकी भी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।
सवाल यह नहीं है कि डॉ. रमन सिंह इस देश के दूसरे सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री है। सवाल यह भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ से सिर्फ एक हजार लोगों ने ही अपनी राय जाहिर की है। सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ के दो करोड़ से ज्यादा आबादी में से सिर्फ हजार लोगों की राय को सच मान लिया गया। इस संबंध में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने सवाल पूरा होने के पहले ही पत्रकारों से कह दिया कि इस तरह की रिपोर्ट कैसे तैयार होते हैं उन्हें मालूम है और पैसे देकर ऐसी रिपोर्ट तैयार की जाती है। सवाल दिग्विजय सिंह की टिप्पणी का नहीं हैं। सवाल है इस तरह की रिपोर्ट को बढ़ाचढ़ कर क्यों पेश किया जाता है।
दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य में जिस तरह से डॉ. रमन सिंह की छवि 'ढीला-परसन' के रुप में चर्चित होने लगा है और अधिकारियों से लेकर मंत्री तक बेलगाम होने लगे हैं उससे इस तरह की रिपोर्ट उनके लिए राहत वाली हो सकती है। जिस प्रदेश में गृहमंत्री के द्वारा कलेक्टर को दलाल और एसपी को निकम्मा कहा जाता हो। पार्टी विधायक नेतृत्व परिवर्तन के लिए गुणाभाग कर रहे हो और जहां विकास कार्यों की राशि में से एक बड़ी राशि नौकरशाह और राजनेताओं की जेबें गरम कर रही हो। उस प्रदेश की जनता दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करेगी या ऐसे किसी फालतू सर्वे के लिए अपनी राय जाहिर करने समय निकालेगी। छत्तीसगढ़ में सरकार कैसे चल रही है इसका सर्वे करना हो तो विभाग वार समीक्षा करना होगा। राय बनने के बाद सड़के तो बनी लेकिन इसकी आड़ में अफसरों ने कितने कमाये। पर्यटन को बढावा देने करोड़ों-अरबों रुपए तो खर्च किए गए लेकिन कितने पर्यटक आ रहे है। बायो डीजल के लिए पूरी सरकार को झोंक दिया गया लेकिन उत्पादन की स्थिति क्या है। शक्कर कारखाने तो खोले गए लेकिन इसका लाभ किसानों को कितना मिला उत्पादन की क्या स्थिति है।
रायपुर के आसपास की सभी तरह की जमीनें किसने खरीदी। अफसरों और नेताओं के कितने रिश्तेदारों को आकस्मिक नियुक्तियों के नाम पर नौकरी दी गई। सिर्फ खर्च करने से श्रेष्ठता सिध्द नहीं होती बल्कि खर्च सही जगह पर हो तब श्रेष्ठता मानी जानी चाहिए। दरअसल सर्वे रिपोर्ट में चर्चित को ही लोकप्रियता मान लिया जाता है इसलिए गोधरा कांड के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के सबसे चर्चित मुख्यमंत्री रहे है जिसे शायद लोकप्रिय मुख्यमंत्री का तमगा दिया गया। यही वजह है कि विकास के मामले में छत्तीसगढ़ को केवल 29 फीसदी वोट मिलने के बाद भी दूसरे नम्बर पर रखा गया।
छत्तीसगढ में भ्रष्टाचार चरम पर है यहां भ्रष्टाचार किस हद तक हावी है इसका अंदाजा आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के यहां हुई छापे की कार्रवाई से लगाया जा सकता है। डीएमसी, काफी हाउस से लेकर शॉपिंग मॉल से भी अंदाजा लगाया जा सकता है क्योंकि इन जगहों पर भी नेताओं और अफसरों के पैसे लगाये जा रहे है। बहरहाल सर्वे को लेकर सरकार भले ही गदगद हो लेकिन आम आदमी का जीवन स्तर दिनों दिन नारकीय होता जा रहा है।

गांव वालों का खाता खुलवाने वालों के खिलाफ 420 क्यों नहीं!


आयकर विभाग द्वारा आईएएस बाबूलाल अग्रवाल व उनके सीए सुनील अग्रवाल के यहां छापे की कार्रवाई के दौरान बरामद 220 फर्जी बैंक खाते बनाने वालों के खिलाफ सरकार का रवैया अब तक नरम है यही वजह है कि फर्जी बैंक खाता बनाने के मामले में अभी तक 420 का जुर्म दर्ज नहीं किया गया है।
हालांकि आयकर विभाग इस मामले की जांच कर ही रही है लेकिन खरोरा क्षेत्र के ग्रामीणों ने जब बैंक में अपने खाते नहीं खुलवाने की बात सार्वजनिक कर दी है तब सरकार को एक कदम आगे आकर ऐसे फर्जी खातों के खिलाफ न केवल कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए बल्कि मामला तत्काल पुलिस को देना चाहिए। उल्लेखनीय है कि आयकर विभाग की टीम ने सीए के हवाले से इसे बाबूलाल अग्रवाल की करस्तानी बताया है हालांकि सीए ने इसे आयकर विभाग द्वारा दबाव डालकर लिखवाने की बात कही है लेकिन इन गांव वालों के जिस प्रकार से बैंक खाते खुले है उससे यह मामला गंभीर है और सरकार सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना चाहती है तो उसे या तो मामला पुलिस को सौंपना चाहिए या फिर सीबीआई को सौंपना चाहिए। लेकिन छापे की कार्रवाई और इस मामले के खुलासे को दो हफ्ते से ज्यादा बीत गए है लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं किया जाना अनेक संदेहों को जन्म देता है।
सरकार के कार्रवाई के नाम पर बाबूलाल अग्रवाल को निलंबित कर मामला आर्थिक अपराध ब्यूरों को सौंपा है लेकिन जिस तरह से संपत्ति उजागर हुई है उसके बाद सरकार को न केवल कड़े रुख अख्तियार करना चाहिए बल्कि इस सम्पूर्ण मामले की उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिए। बहरहाल 220 फर्जी खाते के मामले में सरकार के रवैये को लेकर कई तरह की चर्चा है और चर्चा में भ्रष्टाचारियों को सरकार का संरक्षण देने की बात कही जा रही है तो यह साफ सुथरी छवि के लिए विख्यात डॉ. रमन सिंह के लिए उचित नहीं है।

'विधायक की प्रतिष्ठा को आंच' याचिका ख़ारिज


यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत ही चरितार्थ होती है वरना पूर्व सैनिक बल्देव सिंग पर विधायक की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाने, ब्लेक मेलिंग व गुण्डागर्दी करने का आरोप खारिज नहीं होता।
उल्लेखनीय है कि पिछले माह शंकरनगर निवासी बल्देव सिंग पूर्व सैनिक ने एक पत्रकार वार्ता में कसडोल विधायक राजकमल सिंघानिया, ललित सिंघानिया पर जमीन से बेदखल करने गुण्डागर्दी व मारपीट का आरोप लगाया था। बताया जाता है कि इस पर ललित सिंघानिया ने 10 नवम्बर 2009 को कलेक्टर व जिला दंडाधिकारी को आवेदन देकर बल्देव सिंग पर भगौड़ा होने व ब्लेकमेल तथा गुण्डागर्दी करने का आरोप लगाते हुए आवेदन दिया था आवेदन में विधायक की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाने की बात कही थी। इस मामले को संज्ञान में लेते हुए जिला दंडाधिकारी ने दोनों पक्षों की सुनवाई की और आवेदन को नस्तीबध्द करने का आदेश दे दिया।

दस लाख दो, मान्यता लो

लगता है छत्तीसगढ सरकार में बैठे मंत्री और अफसरों को आम लोगो के जीवन को खतरे में डालने का निर्णय ही कर लिया है। यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग में बड़ी कार्रवाई के बाद भी घपलों की कहानी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। ताजा मामला बगैर मापदंड के पैरामेडिकल प्रशिक्षण चला रहे संस्थाओं को मान्यता देने का है। पता तो यह भी चला है कि इन संस्थानों में कई बड़े नेता और अफसरों के पैसे लगे हैं। इसलिए नियम कानून को ताक पर रखकर न केवल धरतीपुत्रों की उपेक्षा की जा रही है बल्कि आम लोगों के जीवन से खेलने का षड़यंत्र रचा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य विभाग इन दिनों सरकारी नियंत्रण से बाहर चला गया है। पूर्व स्वास्थ्य सचिव से लेकर कई संचालकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और रोज नई कहानी बाहर आ रही है। हालत यह है कि यहां बैठे अफसर अपनी जेबें गरम कर रहे है और सरकार तमाशाबीन है। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने तीन दर्जन से अधिक संस्था काम कर रही है। इन संस्थाओं में सार्वा, मधुलिका सिंह से लेकर कई मंत्री और अफसरों के पैसे लगे हैं। यही वजह है कि नर्सिंग काउसिंल एक्ट की धज्जिया उड़ाते हुए इन संस्थाओं को छत्तीसगढ़ में मान्यता दे दी गई। हालांकि इस तरह की मान्यता की जिम्मेदारी डॉ. आर.एन. वर्मा के पास है और कहा जाता है कि संस्थाओं को मान्यता देने 10-10 लाख रुपए तक लिए गए।
आल इंडिया नर्सिंग काउसिंल ने मान्यता के लिए करीब दर्जनभर नियम बनाये है और छत्तीसगढ में जिन संस्थाओं को मान्यता दी गई है उनमें से एक भी संस्था ऐसी नहीं है जो काउसिंल एक्ट के नियमों का पालन करती है इसके बाद भी मान्यता देने का अर्थ आसानी से समझा जा सकता है। कई लोग तो 2008 से संस्था चला रहे है और प्रत्येक संस्थान में 30 से यादा स्टूडेंट है इस तरह से इन संस्थानों ने बेरोजगार युवकों को बगैर मान्यता के भारी भरकम फीस वसूल कर धोखाधड़ी की हैं क्योंकि बगैर मान्यता प्राप्त संस्थानों की डिग्री का कोई औचित्य नहीं है।
यहीं नहीं इन संस्थानों में छत्तीसगढ क़े बाहर से आए लोगों को प्रवेश दिया गया है जिनकी डिग्री को लेकर भी सवाल उठ रहे है। बहरहाल पैरामेडिकल प्रशिक्षण संस्थानों को लेकर चल रही चर्चा थमने का नाम नहीं ले रही है और स्वास्थ्य विभाग का कारनामा बढ़ता ही जा रहा है।

पैसा तो सिर्फ नेताओ और अधिकारियो के पास

आयकर विभाग के अफसरों ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के यहां छापे की कार्रवाई क्या की छत्तीसगढ़ में एक नई बहस छिड़ गई है प्रभाकर अग्रवाल ने सवाल पूछा कि आप तो पत्रकार हैं बताईये सबसे ज्यादा पैसा छत्तीसगढ क़े किस नेता और किस अधिकारी के पास है एक अन्य मित्र अन्नू हसन ने कहा कि मीडिया को तो राज्य बनने के बाद सर्वाधिक पैसा कमाने वाले टॉप टेन अधिकारियों और टॉप टेन नेताओं की सूची जारी करनी चाहिए। इन दोनों ही मित्रों को न तो कभी राजनीति में रूचि रही और न ही कभी ये तीन-पांच में ही रहे लेकिन इनका सवाल यह बतलाता है कि छत्तीसगढ़ में नेताओं और अधिकारियों ने जो अंधेरगर्दी मचा रखी है उसकी जानकारी आम लोगों को भी है।
राज्य बनने के पहले अधिकारियों को लेकर दो चार नाम जरूर गिनाये जाते थे उनमें भूतड़ा, बख्शी, जगने साधु जैसे नाम थे। नेताओं में भी पंखा चोर, पंचर वाले या टैक्स ड्राईवर, नाका चोर कंट्रोल दुकान वाले, सटोरिया किंग जैसे कुछ नाम चर्चित थे। इनकी अंधेरगर्दी के किस्से खूब चर्चा में रहे। राज्य बनने के बाद तो शुरुआती तीन साल में छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जाते रहे वैसे वे जब कलेक्टर थे तब भी उन पर कोडार बांध और पॉम आईल घोटालों के आरोप लगे लेकिन भाजपा की पूरी सरकार और इस दौरान प्रमुख पदों पर रहे आईएएस अधिकारियों और निगम-मंडल के संचालकों या विभागीय संचालकों पर तो खुले आम भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और इसके बाद भी भ्रष्टाचार की जांच नहीं होना, यदि जांच हुई तो कार्रवाई नहीं होना सरकार की अंधेरगर्दी को दर्शाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य का सपना देखने वाले इन परिस्थितियों से दुखी हैं तो उनके दुख से सरकार का कोई सरोकार भी नहीं है सरकार अपने में मगन हैं उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि आम आदमी इस बढती महंगाई में किस तरह से जिन्दगी गुजार रहा है। मुठ्ठीभर नेता और अधिकारी अपना भविष्य संवारने में लगे हैं और आम आदमी दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहा है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। छत्तीसगढ़ में किस मंत्री ने करोड़ों कमाये और किस अधिकारी ने करोड़ों बटोरे इसकी सूची बनाना तो आसान है लेकिन इन्हें नंबरों में सजाना मुश्किल है क्योंकि इनके बीच पैसा कमाने की जबरदस्त होड़ मची है। अखबारों ने कई विभागों के कारनामों को उजागर किया है। नौकरी से लेकर भवन निर्माण हो या सड़क निर्माण सबमें खुलेआम कमीशनबाजी चल रही है। छत्तीसगढ़ के खदानों को लीज पर बेचा जा रहा है। सरकारी जमीनों का बंदरबांट चल रहा है। जिस प्रदेश में नदियों का पानी तक बेचा जा रहा हो उद्योगों को प्रदूषण फैलाने की खुली छूट हो और खाद्य पदार्थों मे मिलावट करने वाले को पकड़ने पर पुलिस को मंत्री की तरफ से धमकी दी जा रही है। गृहमंत्री को कलेक्टर को दलाल और पुलिस अधीक्षक को निकम्मा कहना पड़ रहा हो वहां अंधेरगर्दी तो आम बात है।
सरकारी जमीनों को कौड़ियों के मोल बेचा जा रहा है। उद्योगों से लेकर कालोनी बनाने की बात हो या डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डा. सुनील खेमका जैसे पैसे वालों को करोड़ों की जमीन कौड़ी के मोल देने की बात हो सरकार कटघरे में तो खड़ी ही है। ऐसे में यह कहा जाए कि छत्तीसगढ़ में पैसा तो अधिकारियों व नेताओं के पास ही है तो अतिशेयोक्ति नहीं होगी फिर टॉप टेन की सूची तो जनता को बनाना चाहिए। ऐसी सूची जरूर प्रकाशित होगी।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

खूबसूरती छत्तीसगढ़ की


आम तौर पर छत्तीसगढ़ को आदिवासी राज्य के रूप में जाना जाता है जंहा की लढ़किया मार्डन नहीं है और न ही उनमे मैट्रो लुक है लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते है कि छत्तीसगढ़ में खूबसूरती के साथ बुद्धिमानी भी है और जिन लोगो को मेरी बातो में जरा भी संदेह हो वे उन्नत्ति को देख सकते उन्नति ने न केवल अपनी खूबसूरती बल्कि अपनी बुद्धिमानी का लोहा मनवाते हुए फेमिना मिस इंडिया के लिए जगह बना ली है

छत्तीसगढ़ के बारे में जो लोगो में भ्रान्तिया है उन्हें मै बता दू कि छत्तीसगढ़ न केवल जंगल,खनिज के मामले में बल्कि शिक्षा , तकनीक से लेकर अन्य संसाधनों में भी वह भारत के किसी भी राज्य से कमजोर नहीं है प्राकृतिक सौन्दर्यता में तो इस राज्य का कोई जवाब नहीं है इस शांत इलाके में अभी और भी विकास होने है

उन्नति इस बात के लिए बढ़ी कि पत्र है कि उसने यंहा कि खूबसूरती के लिए एक मार्ग खोला है और उसने यह भी बताने कि कोशिश की छतीसगढ़ aआदिवासी बाहुल्य राज्य तो है लेकिन यंहा खूबसूरती भी है और बुद्धिमानी भी

उन्नति के साथ उन तमाम खुबसूरत+बुद्धिमानो को मेरा अभिवादन जो अपने हुनर से छत्तीसगढ़ को लेकर फैली भ्रांतियों को तोढ़ने की कोशिश में लगे है

शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

मूल निवासियों की अनदेखी का मतलब

छत्तीसगढ़ राय में भारतीय जनता पार्टी की सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर जिस तरह के सवाल उठ रहे है वह लोकतंत्र के लिए घातक है धर्म के नाम पर वोट की राजनीति करने वाली भाजपा अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने की बजाय उसे बढ़ाने में लगी है। हर हाल में सत्ता में बने रहने की राजनैतिक तिकड़म में बंदरबाट के साथ अपनी जेबें भरने की रणनीति ही अंधेरगर्दी है और यह सब इस राज में बड़े पैमाने पर हो रहा है।
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण की प्रमुख वजह यहां के मूल निवासियों की अनदेखी रही है और आश्चर्य का विषय तो यह है कि सरकार अभी भी मूल निवासियों की जमकर अनदेखी कर रही है लोकसेवा आयोग का गठन छत्तीसगढ़ में क्या इसलिए किया गया है कि वह छत्तीसगढ़ के बाहर के लोगों की ही नियुक्ति करें। आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी के सामान्य वर्ग के 158 पदों के विरुध्द बमुश्किल तीन दर्जन छत्तीसगढ़ियों की ही भर्ती की गई है शेष सभी नियुक्तियों दूसरे प्रांत के लोगों को हुई। यह छत्तीसगढ़ियों के साथ अन्याय नहीं तो और क्या है। नियमानुसार सरकार को इस पर हस्तक्षेप कर सारी नियुक्तियां रद्द कर छत्तीसगढ पीएससी के लिए ऐसी नीतियां बनानी चाहिए ताकि छत्तीसगढ़ के बेरोजगारों को प्राथमिकता मिले अन्यथा युवा जगत इस अंधेरगर्दी के खिलाफ उठ खड़ा हुआ तो महाराष्ट्र की तरह यहां भी आंदोलन की आग शांत छत्तीसगढ़ को अपने चपेट में ले लेगी।
नौकरशाह तो हर जगह अपने ढंग से काम करती है वह लोकतंत्र का विरोधी माना जाता है लेकिन चुनाव जीत कर आने वाले जनप्रतिनिधियों का यह कर्तव्य होता है कि वह इन नौकरशाह को काबू में रख आम लोगों के हितों में फैसले लें। गृह निर्माण मंडल के मौली श्री विहार योजना को लेकर जिस तरह से नौकरशाहों की करतूत सामने आई है वह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। आईएएस को गृह निर्माण मंडल ने सस्ते दर पर इसलिए बंगला दिया है कि वे इसका स्वयं उपयोग करें लेकिन दो-चार को छोड़ तमाम आईएएस अफसरों ने अपने बंगले किराये पर दे रखा है और इन बंगलों के एवज में छत्तीसगढ़ के उद्योगपति इस आईएएस लोगों को ओब्लाईज कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। क्या सरकार के मुखिया की जानकारी में यह बात नहीं है कि किस तरह से उद्योगपतियों ने उनके आईएएस लोगों को अपनी जेब में रखकर सरकार को करोड़ों रुपए का चूना लगा रहे हैं। यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। अंधेरगर्दी तो यह भी है कि मौली श्री विहार का उपयोग उद्योगपति अपने गेस्ट हाउस के रुप में कर रहे हैं जहां एशो आराम की गंदगी की चर्चा शहर में हो रही है।
इन अफसरों ने शपथ पत्र दिया है कि उनका राजधानी में कोई अन्य मकान नहीं है क्या सरकार झूठा शपथ पत्र देने वाले इन आईएएस लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर पायेगी। यदि यह चर्चा सही है कि सरकार की बात अधिकारी नहीं सुन रहे हैं तो इससे बड़ा अंधेरगर्दी और क्या होगा।
छत्तीसगढ अपने बाल्यावस्था पर है यहां विकास की तीव्र संभावना है संसाधनों की कमी नहीं है लेकिन आश्चर्य का विषय तो यह है कि सरकार का विकास को लेकर किसी तरह से मॉडल तैयार नहीं करना है। क्या भवनों का निर्माण ही विकास है या फिर सिर्फ सड़कें बना देने से विकास हो जाएगा। सरकार का आम लोगों के विकास की सोच कहीं दिखलाई नहीं देती। वह तो चुनाव जीतने वादा करती है उसे तक पूरा नहीं कर रही है। किसान आंदोलन की उपज सरकार के अंधेरगर्दी की वजह से हुआ है। एक तरफ तो प्रचुर संपदा की वजह से कर मुक्त राज्य के सपने देखे जाते थे और आज सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है यह सरकारी अंधेरगर्दी के कारण हो रहा है और अभी भी सरकार चाहे तो सब तरफ मचे लूट खसोट को रोककर अंधेरगर्दी से बच सकती है।

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

बंदरबाट की राजनीती

सरकारी अंधेरगर्दी तो थमने का नाम ही नहीं ले रही है। कमल विहार योजना का परिणाम भाजपा ने निगम चुनाव में भुगत लिया है। लोग आक्रोशित है कि जमीन भी दो और उपर से पैसा भी दो। कहने को तो यह योजना राजधानी के दो तीन वार्डों तक ही सीमित है। लेकिन वास्तव में इस योजना से प्रभावित लोग शहर के विभिन्न वार्डों में रहते हैं।
जब से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है सरकारी खर्च में दो गुना वृध्दि हुई है। असंतोष को दबाने बेतहाशा निगम मंडल का गठन कर लाल बत्ती बांटी गई और एक-एक अध्यक्ष के पीछे लाखों करोड़ों रुपये खर्च किए गए यह सब अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
जब छत्तीसगढ़ राय बना तो यही नेता दावा करते थे कि छत्तीसगढ़ के पास अकूत संपदा है और यह देश का पहला टेक्स फ्री राय बन सकता है लेकिन 6-7 सालों में ऐसा क्या हो गया कि वेट बढ़ाना पड़ रहा है और विकास के लिए पैसों की कमी होने लगी। सरकार की अंधेरगर्दी के सिवाय कोई कारण नहीं है। गरीबों के नाम पर बंदरबाट किया जाने लगा और इसका फायदा दूसरे लोगों को मिला। नाई पेटी, बैल जोड़ी, सरस्वती सायकल, जूता, नमक, चावल सभी में घोटाले हुए और आम लोगों के पैसों का बंदरबाट हुआ। निगम-मंडल के नाम पर भाजपा ने अपने अंसतुष्टों को लालबत्ती दी और उस पर करोड़ों रुपये फूंके गए।
सरकार की अदूरदर्शिता सबके सामने है। सरकारी धन से गुलछर्रे उड़ाने की कोशिश में प्रदेश के खजाने को लूटा जाना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। कमल विहार योजना को लेकर हजारों लोगों ने आपत्ति की है इसके समर्थन में कितने लोग है यह सरकार को बताना चाहिए। चंद पूंजीपतियों और बिल्डरों के लिए योजना बनाने की बजाय आम लोगों के हितों में योजना बननी चाहिए। इससे ज्यादा अंधेरगर्दी और क्या होगी कि 65 फीसदी जमीन छीनने के बाद लाखों रुपए भी देना पड़े। राजधानी निर्माण भी सरकार की अंधेरगर्दी है। हम विकास के विरोधी नहीं विकास जरूर हो हमारे मंत्री और अधिकारी बेहतर जगह पर काम करें लेकिन किसी का घर उजाड़ कर विकास करना बेमानी है। आज पूरा विश्व खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है बिल्डरों ने पहले ही खेती की जमीन पर कालोनी बना रखी है। सरकार उद्योगों को खेती की जमीन ही दे रही है ऐसे में जोत बढ़ाने की बजाय सरकार राजधानी के नाम पर खेती की जमीनों को बर्बाद करें तो यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
आखिर नई राजधानी की जरूरत किसे है। रायपुर 70 वार्डों का शहर है और यहां सरकारी जमीनों की कोई कमी नहीं है। सरकार चाहे तो इस छोटे राज्य का चौतरफा विकास कर हर जिला मुख्यालय में हर विभाग का मुख्यालय बनाना चाहिए शहर से लगे सरकारी जमीनों पर भवन बनाकर और रायपुर निगम की जमीनों पर पार्किंग सुविधा बढ़ाकर रायपुर को ही अच्छे ढंग से विकसित किया जा सकता है। सरकार यह सब करने की बजाय गांवों के लोगों के पीछे पड़ी है और 25-30 लाख रुपए एकड़ की जमीन को 5-7 लाख रुपए में खरीदने दबाव बना रही है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
अंधेरगर्दी तो सरकारी जमीनों का धन्ना सेठों को बंदरबाट करना भी है। हमने पहले ही कहा है कि अपोलों के लिए पूर्व मंत्री विद्याचरण शुक्ल को जो जमीन दी गई है वहां अपोलों नहीं बन रहा है तो सरकार वापस ले ले। इसी तरह डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डा. सुनील खेमका जैसे धनाडय डाक्टरों को कौड़ी के मोल सरकारी जमीनें देना अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। यदि सरकार को लगता है कि उसकी जमीने फालतू है तो इसे कौड़ी के मोल देने की बजाय इसका और भी उपयोग कर सकती थी लेकिन सिर्फ भाजपा के दमदार नेताओं के रिश्तेदार होने की वजह से कौड़ी के मोल जमीन देना अंधेरगर्दी के सिवाय और कुछ नहीं है।

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

महंगाई पर नौटंकी


छत्तीसगढ में महंगाई को लेकर राजनेताओं की नौटंकी से आम आदमी को जितनी तकलीफ उठानी पड़ रही है उसका इन नौटंकीबाजों को अंदाजा नहीं है। धरना प्रदर्शन और बंद से भी इन नौटंकीबाजों को जब फर्क नहीं पड़ा तो वे नए-नए करतब दिखाने लगे है और सरकार तो अपनी तरफ से कोई उपाय करने की बजाय इन्हीं लोगों के साथ खड़ी हो गई है।
छत्तीसगढ़ में महंगाई को लेकर नेताओं द्वारा की जा रही कसरत उस मदारी की तरह है जो सांप और नेवले की लड़ाई दिखाने भीड़ जुटाता है और इस भीड़ में अपना मतलब साथ लेता है और बगैर लड़ाई दिखाये पैसा बटोर निकल जाता है। वास्तव में महंगाई से आम लोगों को हो रही पीड़ा से इन नेताओं का कोई सरोकार नहीं है तभी तो कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर महंगाई के लिए आरोप लगा रहे हैं और आम जनता इन मदारियों का तमाशा देखने मजबूर है।
छत्तीसगढ़ में तो महंगाई के खिलाफ आंदोलन की अति हो गई है सरकार के मंत्रियों व विधायकों ने महंगाई के विरोध में विधानसभा में पहले दिन सायकल से गए और गांधी जी की प्रतिमा के सामने उपवास किया । सरकार में बैठे लोगों की इस घोषणा से महंगाई तो कम नहीं हो रही है बल्कि इस नाटकबाजी से खर्चे अलग बढ ग़ए हैं। नई सायकल के साथ-साथ यहां पहुंचने वालों की वाहनों के ईधन और पानी की बोतलों से फिजूलखर्ची हुई यह सरकार उठाये या नेता कोई फर्क नहीं पड़ता है। वास्तव में सरकार व उससे जुड़े नेताओं को महंगाई से इतनी पीड़ा है और आम लोगों की तकलीफ का इतना ही अंदाजा है तो वे बंगलों से लेकर सरकारी वाहनों में हो रही फिजूलखर्ची को रोके हम यह नहीं कहते कि वे रोज विधानसभा सायकल से ही जाएं लेकिन काफिले में जाने की बजाय सिर्फ एक सरकारी गाड़ी में ही जाए तब भी सरकारी धन की फिजूलखर्ची रुक सकेगी। भाजपा सरकार को महंगाई की इतनी चिंता है तो वह कालाबाजारी और जमाखोरी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई भी कर सकती है। इतना ही नहीं वह अपने राय को लोगों को जिस तरफ रुपया किलों चावल दे रही है उसी तरह समस्त राशन कार्डों में प्रति यूनिट आवश्यक वस्तु उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की संपत्ति राजसात करने जैसे कड़े कानून बनाए। इसी तरह कांग्रेस भी महंगाई को लेकर नौटंकी की बजाय कहां कहां जमाखोरी हो रही तथा भ्रष्ट अधिकारियों की करतूतों को उजागर कर सरकार की मदद करें तो यह प्रदेश के हित में होगा। बहरहाल कांग्रेस और भाजपा की नौटंकी से आम लोग दुखी हैं और नौटंकी बंद कर उनकी तकलीफ न बढ़ाएं तो बेहतर होगा।

चिट्ठाजगत संकलक क्या है?: मेरा चिट्ठा शामिल करें

kaushal-1.blogspot.com चिट्ठा शामिल करें

दलालों के जाल में बड़े अखबार

अब जमाना बदल गया है इसके साथ अखबारों की सोच में भी बदलाव हुआ है। कभी मिशन के रुप में चलने वाले इस धंधे पर अब पूरी तरह व्यवसायिकता हावी है और इस व्यवसाय को सत्ता के दलालों ने अपने कब्जे में कर लिया है।
प्रतिष्ठित अखबारों के रुप में अपनी पहचान बना चुके अखबारों में सत्ता के दलाल किस कदर हावी है इसकी कल्पना आम आदमी शायद ही कर पाए। ऐसा ही मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाला एक अखबार जो छत्तीसगढ़ में स्वयं को स्थापित करने में लगा है। इस अखबार ने स्वयं को स्थापित करने पाठकों की बजाय सत्ता के एक ऐसे दलाल को अपने पाले में कर रखा है जो भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी का न केवल रिश्तेदार है बल्कि भाजपाई उसे आम बोल चाल में सीएम का दत्तक पुत्र भी कहते हैं।
यह अलग बात है कि उसने इस अखबार को जमीन दिलाते-दिलाते स्वयं के लिए कौड़ी मोल में सरकारी जमीन हथिया ली। पेशे से डाक्टर इस दलाल के बारे में यह भी चर्चा है कि वह इस अखबार के परिशिष्ठ के लिए सरकार से लाखों रुपए का विज्ञापन तक दिलवाता है।
यह सिर्फ एक अखबार की कहानी है। ऐसे ही कई सत्ता के या मंत्री के दलाल रोज शाम संपादकों के कमरे में कॉफी की चुस्कियां लेते दिखाई पड़ जाएंगे।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि स्वयं के अखबार में खबर नहीं छाप पाने वाले ये संपादक दूसरे पत्रकारों तक को दलाली करने की प्रेरणा देते नहीं शर्माते। सत्ता के दलालों के चंगुल में फंसते अखबार खबरों को किस तरह से पेश करते होंगे। समझा जा सकता है।
और अंत में...
किसानों के आंदोलन को असफल बनाने जब पूरा सरकारी तंत्र लगा हुआ था तब जनसंपर्क विभाग का एक अधिकारी सरकार के निर्देशों के विरुध्द पत्रकारों को फोन कर इसकी सफलता की कहानी सुनाने में व्यस्त था। सालों से जमें इस अधिकारी के रवैये से पत्रकार भी हैरान थे कि आखिर कुर्सी पाते ही ये सरकार के विरोधी कैसे हो गए।

छत्तीसगढ़ में अफसर राज

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अफसर राज हावी है। सरकार में केवल अधिकारियों की चल रही है और इन्हीं अधिकारियों के सहारे कई विधायक और मंत्री भी लाखों कमा रहे हैं इसलिए जनप्रतिनिधि इन अफसरों के खिलाफ कुछ नहीं कहते। शायद यही वजह है कि आयकर विभाग के छापे के बाद कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल ने सीना ठोक कर कहा कि वे ईमानदार हैं और मुख्यमंत्री भी यही कहते रहें कि आयकर के रिपोर्ट को देखने के बाद ही कार्रवाई होगी जबकि इसी दौरान मध्यप्रदेश में भी छापे की कार्रवाई हुई और वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने यहां के भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने में जरा भी देर नहीं की।
छत्तीसगढ़ में अफसरों के अंधेरगर्दी का यह आलम है कि वे अपनी मनमानी पर उतर आए है। एक सचिव तो अपनी दूकान सजाने दूसरे की दुकान खाली कराने निगम पर दबाव डाल रहे हैं तो दूसरा सचिव इस्तीफा देकर सीएसईबी का चेयरमैन बनने आमदा है। कोई सचिव मौली विहार में मजे लूट रहा है तो कोई भ्रष्टाचार में गले तक उतर आया है। जिस प्रदेश के गृहमंत्री को मुख्यमंत्री के जिले के कलेक्टर और पुलिस कप्तान को दलाल व निकम्मा कहना पड़ रहा हो वहां की सरकार की व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में तो दर्जनभर सचिवों को पांच-पांच सौ करोड़ का आसामी माना जाने लगा है। ऐसे में बाबूलाल अग्रवाल जैसे आईएएस के यहां छापे की कार्रवाई "टिप आफ आइस बर्ग" है। मुख्यमंत्री से लेकर आधा दर्जन मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं।राज बनने के बाद नेताओं ने जिस बेहिसाब ढंग से जमीनें खरीदी है वह अपने आप में आश्चर्यजनक है। इन जमीनों में नामी-बेनामी करने में करोड़ों रुपए की हेराफेरी हुई है।
छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है ऐसे में बाबूलाल अग्रवाल और उनके सीए सुनील अग्रवाल का कहना है कि उन्हें फंसाया गया है कम आश्चर्यजनक नहीं है। छापे के दौरान जब्त 220 बैंक खाते और लाकरों की चाबियां जो कहानी बयान कर रही है उसके बाद भी सरकार के मुखिया नहीं जागे तो इसे अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या कहेंगे।
छत्तीसगढ़ का ऐसा कौन सा सरकारी विभाग नहीं हैं जहां भ्रष्टाचार की खबरें राह चलते सुनाई नहीं पड़ रही है। पर्यटन में बगैर नाम पते के किसी व्यक्ति को लाखों रुपया देना भ्रष्टाचार की हदें पार करना नहीं तो और क्या है। पर्यटन में नियुक्ति के नाम पर अधिकारियों के रिश्तेदारों की नियुक्ति के बाद भी मंत्री यह कहें कि सब कुछ ठीक है तो यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
यदि मुख्यमंत्री ईमानदार हैं तो उन्हें विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार पर सीधे सचिवों व मंत्रियों पर जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। लेकिन यहां तो भ्रष्ट लोगों को संरक्षण दिया जा रहा है। कमलू, विक्रमा जैसे दलालों द्वारा काम कराने के दावे किए जा रहे हैं। और सबसे बड़ी अंधेरगर्दी तो करोड़पतियों को कौड़ी के मोल सरकारी जमीनों को बांटना है। डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डॉ. सुनील खेमका को मंडी में करोड़ों की जमीनें कौड़ी के मोल सिर्फ इसलिए दे दी जाती है क्योंकि वे भाजपा के प्रमुख पदाधिकारियों के रिश्तेदार हैं। ऐसे में अधिकारी जनप्रतिनिधियों से दबने की बजाय मनमानी करें तो क्या कहा जा सकता है।

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

पुलिस बुलवाकर पिटवाने का मतलब

अखबार को संसार बताने वाले राजधानी के एक प्रतिष्ठित कहे जाने वाले इस अखबार में बीते सप्ताह जो कुछ हुआ वह शर्मनाक है। शॉपिंग माल बनाने के चक्कर में किराये के भवन में संचालित इस अखबार के प्रबंधकों की मनमानी की कहानी वैसे तो नई नहीं है। अपने अखबार में कार्यरत पत्रकारों को दो कौड़ी का कहने वाले प्रबंधकों की दादागिरी के कई उदाहरण है।
बीते सप्ताह इस अखबार के दफ्तर में विज्ञापन विभाग से मोबाइल चोरी चला गया। संदेह पर यहां कार्यरत नए नवेले चपरासी को न केवल पुलिस में दिया गया बल्कि उसे पीटने का भी फरमान सुना दिया। पुलिस तो वैसे भी पीटने में माहिर है और जब इतने बड़े समूह का वरदहस्त हो जाए तो फिर क्या कहना। पुलिस इस चपरासी को थाने ले गई और पूछताछ के बहाने उसकी तबियत से धुनाई की।
इस घटना से यहां कार्यरत पत्रकार आक्रोशित जरूर हैं लेकिन नौकरी के मोह की वजह से वे खामोश है। यहां कार्यरत एक पत्रकार का कहना था कि यह तो अखबार का दुरुपयोग है और पुलिस की बेशर्मी का नमूना है।
यह घटना अखबार की दादागिरी का एक नमूना है और अखबार में मैनेजमेंट के बढ़ते दखल की कहानी है और जब पुलिसिया अत्याचार में अखबार ही सहभागी बने तो फिर पुलिस का अत्याचार कौन रोक सकेगा।
राजधानी के अखबार के दफ्तर तक पुलिस का आना और चपरासी की पिटाई को लेकर चर्चा तो है लेकिन अखबार के इस रवैये को लेकर भी तीखी प्रतिक्रिया है अखबार के व्यवसायिकता को लेकर कई तरह की चर्चाओं के बीच अपने ही कर्मचारियों को पुलिस से पिटवाने का यह नया खेल अखबार की प्रतिष्ठा को कहां ले जाएगा कोई नहीं जानता।
और अंत में....
राजधानी बनने के बाद पत्रकारों का वेतन तो बढ़ा है साथ ही काम भी बढ़ गया है। यह अलग बात है कि पहले की तरह पत्रकारिता नहीं हो पा रही है तो इसकी वजह सरकारी विज्ञापन की रफ्तार है जिसका मोह कोई छोड़ना नहीं चाहता।

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

मंत्री भाई के साले को कौड़ी के मोल जमीन,राजधानी की सरकारी जमीनों की बंदर-बांट

इसे राम नाम की लूट कहें या सत्ताधीशों का बंदरबाट। राजधानी की कीमती जमीनों को किस तरह से रमन सरकार धन्नासेठों को कौड़ी के मोल बांट रही है। उससे तो यही लगता है कि जनसेवा की बजाय सरकार व उसके मंत्री छत्तीसगढ़ को लूटने में लग गए है।
ताजा मामला प्रदेश के दमदार मंत्री कहे जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल के भाई देवेन्द्र अग्रवाल के साले डा. सुनील खेमका को सरकारी जमीन कौड़ी के मोल आबंटन करने का है। डा. सुनील खेमका को जो जमीन दी गई है वह कृषि उपज मंडी की जमीन है जिसकी कीमत तीन हजार वर्गफुट से कम नहीं है लेकिन यह जमीन सरकार ने डा. सुनील खेमका को कौड़ी के मोल दे दी।
सरकारी जमीनों का बंदरबांट हालांकि नया नहीं है। लेकिन राजनीति में सिध्दांतों की वकालत करने वाली भाजपा सरकार में जिस तरह से घोटाले-भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रही है वह चौंकाने वाली है। निर्माण कार्यों में जेबे गरम करने वाले मंत्रियों की निगाह अब शहरों की बेशकीमती जमीनों पर लगी है और बड़ी बेशर्मी से कीमती सरकारी जमीनों को अपने रिश्तेदारों को कौड़ी के मोल पर बेचने लगी है। भले ही सरकार इसे लीज का नाम दे दे लेकिन क्या बड़े लोगों की लीज रद्द होती है?
बताया जाता है कि डा. सुनील खेमका को अस्पताल बनाने यह जमीन दी गई है जबकि उनके पास पैसे की कमी नहीं है और वे चाहें तो राजधानी के किसी भी हिस्से की जमीन खरीद कर अस्पताल बना सकते हैं ऐसे लोगों को सरकारी कीमती जमीन देने के औचित्य पर सवाल नहीं उठाये जाएंगे तो क्या होगा।
सूत्रों के मुताबिक सरकारी कीमती जमीनों को लीज पर देने के एवज में सरकारी कर्मचारी से लेकर मंत्रियों तक को मोटा कमीशन दिया जा रहा है। इस तरह से सरकार खुले आम भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रही है या यूं कहें कि सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है तो अति शंयोक्ति नहीं होगी।
इधर इस मामले की कांग्रेस को जानकारी होने के बाद भी उनकी चुप्पी आश्चर्यजनक है और ऐसा लगता है कि सरकार के इस लूट खसोट में कांग्रेस भी शामिल है।
दूसरी तरफ इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के अध्यक्ष ताराचंद साहू ने घोर आपत्ति करते हुए इसका हर स्तर पर विरोध करने की बात कही है वहीं छत्तीसगढ़ समाज पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष अनिल दुबे ने कहा कि कृषि उपज मंडी की जमीन किसानों की संपत्ति है और इस मामले का वे खुलकर विरोध करते हैं।
जबकि छत्तीसगढ़ विकास पार्टी के अध्यक्ष पी.आर. खुंटे ने इस मामले की शिकायत ईओडब्ल्यू में करने के साथ न्यायालय जाने तक की बात कही।
वहीं जय छत्तीसगढ़ पार्टी के प्रवक्ता महेश देवांगन व किसान नेता द्वारिका साहू ने कहा कि यह तो छत्तीसगढ़ को लूटने की साजिश है और इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कृषि उपज मंडी की जमीनों को धन्ना सेठों को देने की निंदा करते हुए मुख्यमंत्री से इस मामले में हस्तक्षेप कर आबंटन रद्द करने की भी मांग की है।
बहरहाल इस मामले में पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के नाम आने से भाजपा की अंदरूनी राजनीति गर्म है और कहा जा रहा है कि इससे बृजमोहन विरोधी भाजपाई सक्रिय हो गए है।

यूं हीं नहीं होता कोई बड़ा अखबार...

पिछले दिनों जब कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल के यहां छापे की कार्रवाई चल रही थी तब एक मित्र उचित ने मुझे मेरे मोबाइल पर एक एसएमएस भेजा नवभारत इस प्रदेश का सबसे तेज अखबार है इसलिए उसने माह भर पहले ही अपने यंग एचिव में बाबूलाल अग्रवाल का साक्षात्कार प्रकाशित कर दिया था। यह एसएमएस के पीछे क्या वजह थी यह तो उचित ही जाने लेकिन नवभारत की तेजी को लेकर उनके कमेन्ट्स पर मुझे व्यंग्य ही नजर आ रहा था।
वास्तव में छत्तीसगढ़ में मीडिया का अपना प्रभाव है और आज भी लोगों को सबसे यादा किसी अखबार पर भरोसा है तो उसमें नवभारत की गिनती होती है। राज्य बनने के बाद सरकारी विज्ञापन हासिल करने की होड़ में बड़े अखबारों ने जिस तरह से खबरों पर लीपा-पोती की है और विभागीय विज्ञापन हासिल करने जिस तरह से अधिकारियों की खुशामद शुरु की है उससे कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में पदस्थ कई अधिकारियों पर गंभीर आरोप हैं। मालिक मकबूजा कांड से लेकर दूसरे बड़े घोटालों में आरोपी हैं ऐसे में उनकी तारीफ में छापने से पहले उनकी पूरी पृष्ठभूमि की जानकारी जरूरी है। अन्यथा आम लोगों में जो प्रतिक्रिया होगी वह मेरे मित्र उचित की तरह होगी जो मीडिया का साख गिराने वाला होगा। विभाग की जानकारी लेना और विभाग के कार्यक्रमों को छापना अलग बात है लेकिन हम जब किसी के पर्सनल जिन्दगी पर छापते हैं तो कई तरह की सावधानियां जरूरी है।
मैं यहां किसी को पत्रकारिता या पत्रकारिता का मापदंड सिखाने की कोशिश नहीं कर रहा हूं लेकिन राज्य बनने के बाद पत्रकारिता की कमजोरी का फायदा जिस तेजी से अधिकारी व नेता उठा रहे हैं उससे हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।
और अंत में....
शहर के प्रतिष्ठित माने जाने वाले एक अखबार के प्रथम पृष्ठ पर पूरा पेज विज्ञापन देखकर एक पाठक ने हमें कमेन्ट्स भेजा कि यूं ही कोई सात-आठ सौ करोड़ का आसामी नहीं हो जाता इसके लिए काम करने वालों का आह लेना पड़ता है।