मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

अंधेरे नगरी, चौपट राजा

 

यह तो बचपने में सुनी कहानी अंधेर नगरी, चौपट राजा, टकासेर भाजी- टकासेर खाजा की कहानी को ही चरितार्थ करता है वरना सरकार का जोर सिर्फ बाजार पर नहीं होता। इस बार का बजट पर पूरा जोर बाजार पर है और बाजार पर जोर का केवल एक ही अर्थ है कि हर कीमत पर सरकार को टेक्स चाहिए और हर कीमत पर टेक्स का मतलब इस देश की बहुत सी चीजे निजी हाथों को बेच दी जायेगी और निजी हाथों में बेचने का अर्थ उन हाथों को नहीं देखना है कि वह देशी है या विदेशी?

हम शुरुआत एलआईसी से करें या पुराने वाहनों को रातो-रात कबाड़ में तब्दिल करने की योजना से से करें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

पूरी दुनिया में वाहनों की सड़क से हटाने के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट देखा जाता है लेकिन यह सरकार उसकी उम्र देख रही है, इसका सीधा सा मतलब है कि वह जानती है कि लोगों की हालत नये वाहन खरीदने की नई रह गई है, इसलिए वाहन उद्योग की तिजौरी भरने के लिए यही एक मात्र उपाय है?

इसी तरह से देश में भारतीय जीवन बीमा निगम ही एक ऐसी संस्था है जिसके फल-फूल और जड़ सभी मजबूत है वह कई बार सरकार को भी फंड देती है, लेकिन अब सरकार को लगने लगा है कि इससे काम नहीं चलेगा इसलिए उसके फल और फूल तोड़े जायेंगे, फिर तना और आखरी में जड़ को खोखला कर दो।

बजट को लेकर जिस तरह की प्रतिक्रिया आ रही है, उसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रतिक्रिया का अर्थ लोगों को समझना चाहिए ''बकौल भूपेश बघेल मैं पहले ही कता था कि कांग्रेस ने 70 साल में जो कुछ बनाया है ये वह सब एक-एक करके बेच देंगे!ÓÓ

जब बजट की ऐसी प्रतिक्रिया है तो समझा जा सकता है कि मोदी सत्ता आने वाले दिनों में क्या करने वाली है  और देश किस दिशा में जा रहा है।

गांव की तपिश...


अचानक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब कहा कि वे आंदोलनरत किसान नेताओं से सिर्फ एक फोन दूर हैं, तो इसका मतलब साफ है कि गांव-गांव से उठ रहे आवाज अब उनके कानों में सुनाई पडऩे लगी है और वे इस आंदोलन के विस्तार से विचलित हैं, बेचैन हैं।

किसान आंदोलन का यह एक ऐसा सच है, जिसे नजरअंदाज करना आसान नहीं है क्योंकि तमाम सरकारी प्रपंच और अवरोध के बाद भी किसान अपनी मांगों पर टिके हुए हैं वे एक इंच जमीन छोडऩे को तैयार नहीं है ऐसे में सरकार के सामने दुविधा है कि वह कैसे तीनों कानून को रद्द करें।

दरअसल किसानों ने यह जान लिया है कि तीनों कृषि कानून उनकी हालत बदतर कर देगा और वे कहीं के नहीं रहेंगे। क्योंकि जहां के भी किसानों के विकास के नाम यह अपनी जमीनें दी है उनकी हालत मजदूर की हो गई है। मुआवजे के रुप में दी जाने वाली रकम कब खर्च होता है यह पता नहीं चलता और सरकार रोजगार देने की बजाय भीख देने में ध्यान देती है।

यही वजह है कि तीनों कानून के विरोध गांव-गांव से लोग दिल्ली पहुंचने लगे हैं। इतनी बड़ी तादात में किसान दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं कि सरकार का सारा प्रपंच धरा का धरा रह गया है।

ऐसे में सवाल यह है कि आखिर सरकार यह तीन कानून लाने में क्यों अड़ी हुई है? इसका सीधा और साफ मतलब है कि सरकार बनाने के लिए पार्टियों को पैसों की जरूरत है और पैसा किसान नहीं कार्पोरेट देता है। इसलिए कार्पोरेट के इशारे पर यह कानून लाया गया कि कोई किसान अदालत का दरवाजा खटखटाकर बेवजह उनके मंसूबे को ध्वस्त न कर दे। बेहिसाब स्टॉक से लेकर कांट्रेक्ट खेती वाले इस कानून का मतलब ही किसानों को नोच खाना है।

ऐसे में सरकार के सामने दिक्कत यह है कि पांच ट्रिलियन का जो सपना वह देख रही है वह बगैर कार्पोरेट के कैसे पूरा होगी, इसलिए ये तीनों कानून भी इसी मंशा से बनाई गई है लेकिन सरकार की यह मंशा इस बार किसानों ने भांप ली है और अब तो गांव-गांव में आंदोलन की सुगबुगाहट शुरु हो गई है जिसकी तपिश ने प्रधानमंत्री को एक फोन दूर तक ला दिया है।