शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

मोदी सरकार कटघरे में ?


 

26 जनवरी को लाल किले में जो कुछ हंगामा हुआ उसे लेकर भले ही दिल्ली पुलिस ने किसानों को नोटिस थमाना शुरु कर दिया है, कुछ की गिरफ्तारी होने लगी है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में मोदी सरकार पूरी तरह से कटघरे में है। क्योंकि दिल्ली के लाल किले की सुरक्षा व्यवस्था सामान्य दिनों में इतनी मजबूत होती है कि कोई परिन्दा भी बगैर ईजाजत के नहीं घुस सकता तब किसान कैसे घुस गये। क्या यह सरकार की नाकामी है या किसान आंदोलन को तोडऩे षडय़ंत्र है? सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि 26 जनवरी को टेक्टर परेड निकालने की अनुमति किसके इशारे पर दी गई।

यह सवाल इसलिए भी उठाये जा रहे हैं क्योंकि व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त है। यहां तक कि 26 जनवरी और 15 अगस्त को लाल किले की अतिरिक्त सुरक्षा की जाती है। दिल्ली पुलिस के अस्सी हजार जवानों के अलावा दिल्ली की सुरक्षा में सीआरपीएफ सहित दूसरी कंपनियां मौजूद होती है इसके बावजूद यह घटना होना क्या किसी षडय़ंत्र की ओर ईशारा नहीं करता?

सत्ता की अपनी ताकत होती है और आज तक कोई भी आंदोलन सत्ता में नहीं जीत सकी है। मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्री ने भी रामदेव बाबा के आंदोलन का क्या हश्र किया था यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन से क्या सत्ता घबरा गई थी।

जी हां, बिल्कुल घबरा गई थी इसलिए वह डेढ़ साल तक कानून को टालने की बात भी कहते रही। और जिस तरह से हर सत्ता आंदोलन को तोडऩे झूठ-छल प्रपंच का सहारा लेती है इस आंदोलन को तोडऩे की भी                 कोशिश हुई।

ऐसे में सवाल यह नहीं है कि आंदोलन करने वाले किसानों का क्या होगा? और सवाल यह भी नहीं है कि तीनों  कानून से किसे फायदा होगा। सवाल तो यहीं है कि आखिर सुरक्षा में चूक की जिम्मेदारी किसकी है। सवाल तो यह भी है कि आखिर किसानों के सामने खड़ी हुई इस नई चुनौती से वे कैसे निपटेंगे?

हालांकि विपक्ष ने संसद में राष्ट्रपति के भाषण का बहिष्कार करने की घोषणा कर आंदोलन को बल देने की कोशिश की है लेकिन चुनावी राजनीति में लगातार पराजय की निराशा ने उनसे लडऩे का जुनून समाप्त कर दिया है। ऐसे में अब सिर्फ किसानों को निर्णय लेना है कि इस परिस्थिति से कैसे निपटा जाए। क्योंकि जब सत्ता अपने पर आ जाती है तो वह यह नहीं देखती कि लोग क्या कहेंगे वह तो सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के उपक्रम में लग जाती है।