गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

जमीन नपवाने में लगे पत्रकार

छत्तीसगढ क़ी राजधानी में वैसे तो एक से एक धुरंधर पत्रकार है और इनमें से कई ऐसे हैं जो अपने नाम का खाते हैं इन्हें बैनर से यादा मतलब नहीं है। ऐसे ही एक पत्रकार की ईच्छा है कि भ्रष्टाचार को अखबारों से ही खत्म किया जाए। हालांकि प्रतिद्वद्विता के कारण यह बताना मुश्किल हो जाता है कि कौन पत्रकार किस प्रेस में काम कर रहा है। आए दिन पत्रकार मोटी तनख्वाह के फेर में अखबार बदल रहे हैं और इसके साथ ही उनकी विश्वसनियता भी बदलने लगी है यानी मालिक की पॉलिसी के मुताबिक चलना मजबूरी आदत बनते जा रही है। यही वजह है कि कई पुराने खाटी पत्रकार इधर-उधर हो गए हैं और उनकी इच्छा है कि अवैध कब्जों और पैसे के दम पर भू-उपयोग बदलने को लेकर नगर निगम कोई रणनीति तैयार करें।
इनका कहने का मतलब साफ है कि अखबार वालों ने भी सरकार जमीनों पर कब्जा किया है और ऐसे कब्जे तो हटे ही लीज की शर्तों का भी पालन होना चाहिए तब कहीं जाकर पत्रकारों की विश्वसनियता पर सवाल उठने बंद होंगे। अखबार चलाने ली गई जमीनों पर जिस तरह से व्यवसायिक भवन का निर्माण हो रहा है उससे आम लोगों का सवाल उठाना स्वाभाविक है। ऐसे में फिल्ड में काम करने वाले पत्रकारों को ही मालिक की करतूतों को सुनना ही पड़ता है। रजबंधा मैदान में बड़े-बड़े अखबारों के कब्जे को लेकर न केवल सवाल उठ रहे हैं बल्कि नए महापौर किरणमयी नायक से भी ऐसे पत्रकार उम्मीद कर रहे हैं कि वह कुछ करें।
और अंत में....
शहर में जिद करों और एक अखबार सारा संसार का नारा देने वाले अखबार के शॉपिंग माल की चर्चा इन दिनों जोरों पर है कहा जा रहा है कि भू-उपयोग बदलने में सरकार ने भी रूचि दिखाई और अखबार की दफ्तर की जगह शॉपिंग मॉल जल्द नजर आएगा। यदि किसी ने आपत्ति नहीं की तब।