गुरुवार, 10 जून 2021

अर्थव्यवस्था की बर्बादी जानबूझकर की जा रही...

 

क्या मोदी सरकार अर्थव्यवस्था की बर्बादी जानबूझकर कर रही है, क्या मोदी सरकार कुछ चंद ऐसे लोगों के हाथों में पूंजी सौंपना चाहती है जो उनके इशारे पर चले?

आप कहेंगे ऐसे कैसे हो सकता है? कोई सरकार अपनी अर्थव्यवस्था क्यों बर्बाद करेंगी, देश की पूंजी कुछ गिने चुने हाथों में क्यों सौंपेगी? इससे उन्हें क्या लाभ है। फिर वह सत्ता जो अपने को घोर धार्मिक और राष्ट्रवादी बताते नहीं थकती। वह यह सब क्यों करेगी। तो इसका सीधा सा जवाब है कि सत्ता में लंबे समय तक बने रहने के लिए मोदी सरकार यह सब जानबूझकर कर रही है, कहा जाए तो गलत इसलिए भी नहीं होगा क्योंकि यह वह फार्मूला है जो आज से सत्तर साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक संचालक ने प्रस्तुत की थी।

आप यकीन नहीं करेंगे तो संघ के सरसंघ चालक गुरुजी गोवलकर की पुस्तक  'वी आर अवर नेशनहुड डिफाइंडÓ को पढ़ लीजिए। इसे पढ़ोगे तो समझ जाओगे कि अर्थव्यवस्था की कमर तोडऩे का मकसद क्या है। यह गुरुजी गोवलकर की पुस्तक में विस्तार से बताया गया है। गोवलकर ने लिखा है कि सत्ता में हमेशा बने रहने के लिए 95 प्रतिशत देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करना जरूरी है। गोवलकर के नियम के अनुसार 95 प्रतिशत देशवासियों को गरीब बनाया जाता है और चंद गुलाम किस्म के लोगों को शक्तिशाली बनाया जाता है ऐसा हो जाने से सत्ता हमेशा हमेशा के लिए हथियाया जा सकता है।

अब आप सोचेंगे कि मोदी सरकार ने क्या किया है तो फिर बीते सात साल को बारिक से देखना होगा कि देश की अर्थव्यवस्था क्यों बर्बाद हुई, इसमें मोदी सत्ता की क्या भूमिका रही। तो मोदी सत्ता के आने के बाद क्या हुआ इसे समझने की जरूरत है। शुरुआत नोट बंदी से हुई कहा  जाए तो गलत नहीं होगा, इससे लोगों की जमा पूंजी पर क्या असर पड़ा यह किसी से छिपा नहीं है, फिर जीएसटी से मध्यम वर्ग के व्यापारियों  की कमर टूटने लगी। बैकों का एनपीए बढऩे लगा, सरकारी उपक्रम बेचा जाने लगा, रोजगार खत्म किया जाने लगा, दंगों से खरबों रुपये की सरकारी संपत्ति को नुकसान होता है यह भी कौन नहीं जानता।

इसके अलावा बीते सात सालों में संविधान को कमजोर किया गया, श्रम कानून को बदलकर उद्योगों का हित साधा गया, छोटे व्यापार की बजाय बड़े व्यापार को प्रश्रय दिया गया, यस बैंक का डूबना, जेट एयरवेज, आईएल एंड एफएस, बीएसएनएल, एयर इंडिया, वोडाफोन समेत कई कंपनी बर्बादी के कगार पर पहुंच गई। यदि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट को माने तो 2016 से 2018 तक रोज 1095 अमीर भारतीय भारत छोड़कर विदेशों में बस रहे हंै। इसकी वजह से देश का अरबों-खरबों रुपया विदेश चला गया।

बीते 7 सालों में कई कंपनियां बंद हो गई, कई डिफाल्टर हो गयेे और चंद लोग तमाम मुश्किल के बाद भी पूंजी बढ़ाते रहे, वैसे तो गुलाम उद्योगपति कौन है यह किसी से छिपा नहीं है। जिन उद्योगपतियों ने सत्ता की नहीं सुनी, उन्हें भारत से निकल जाने दिया गया, और जो सुनी वे  अडानी, अंबानी, रामदेव सहित कई नाम आप गिन सकते है। अर्थव्यवस्था की इस बदहाली पर सरकार चुप है, वह आरबीआई का रिजर्व पैसा निकाल लिया है, चार लाख नई करेंसी छापने की खबर का मतलब भी जानना चाहिए क्योंकि इससे करेंसी की वैल्यू कम होना तय है और डॉलर  सौ रुपये के पार हो जायेगा।

तब देखना होगा कि क्या गोवलकर के किताब 'वी आर अवर नेशनहुड डिफाइंडÓ की अर्थव्यवस्था लागू की जा रही है। गोवलकर अपनी किताब में लिखतेे हैं अच्छे प्रशासन को यह तय करना चाहिए कि उनके राज्य में जनता की कमाई कम से कम हो और ज्यादा धनवान हो तो नियंत्रण कठिन होता है इसलिए पंूजी दो चार हाथों से ज्यादा न हो। अब आप बीते सात सालों को परखें और तय करे कि सत्ता क्या कर रही है।