शनिवार, 6 मार्च 2010

चावल योजना से मध्यम वर्ग त्रस्त भाजपाई सत्ता सुख में मस्त

छत्तीसगढ़ में एक-दो रुपया किलो चावल योजना के चलते मध्यम वर्ग का बुरा हाल है। लेबर प्राब्लम के साथ-साथ चावल सहित अन्य समानों की कीमतों में दो गुणा वृद्धि हो गई है जबकि चावल वास्तविक लोगों को मिलने की बजाय कालाबाजारी में चला गया है।जगह-जगह मध्यम वर्ग की तरफ से यह सवाल उठाये जा रहे हैं कि आखिर एक रुपया किलो चावल बांटकर सरकार को वोट बैंक की राजनीति करने का अधिकार क्या है? इस एक रुपया किलो चावल योजना का दुष्परिणाम मध्यम वर्ग को सर्वाधिक भुगतना पड़ रहा है। ब्राम्हणपारा निवासी संजीव तिवारी ने कहा कि इस एक रुपया किलो चावल योजना की वजह से घरेलु काम के लिए नौकर-नौकरानी नहीं मिल रही है। पहले जो लोग मन लगाकर काम करते थे वे इस योजना के लागू होने के बाद छुट्टियां मारने लगे। सुंदर नगर निवासी प्रमिला पाण्डे ने कहा कि इस योजना के कारण महंगाई बढ़ गई है 16 रुपए किलो वाला एचएमटी चावल 40 रुपए किलो मिल रहा है। नौकरो का भाव अलग बढ़ गया है।
इसी तरह सदर बाजार निवासी नवरतन गोलछा का कहना था कि इस योजना ने प्रदेश की आर्थिक स्थिति को जर्जर कर दिया है। चावल योजना का लाभ वास्तविक लोगों को कम जमाखारों-कालाबाजारियों को अधिक मिल रहा है। जबकि प्रभाकर अग्रवाल का कहना था कि फर्जी राशन कार्ड बनाकर एक रुपया किलो वाले चावल दूसरे प्रांतों में बेचा जा रहा है।
बताया जाता है कि चावल योजना को लेकर सबसे यादा त्रस्त मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के लोग है क्योंकि इन वर्गों को न केवल महंगाई का सामना करना पड़ रहा है बल्कि घरेलू नौकरों के भाव बढ़ने से सर्वाधिक परेशानी इन्हीं वर्गों को उठाना पड़ रहा है। ऐसे में भले ही भारतीय जनता पार्टी नगरीय निकाय चुनाव में व्यक्तिगत ईमेज का अमलीजामा पहनाये मध्यम वर्ग भाजपा के खिलाफ बड़े पैमाने पर वोट डाला है।
राजधानी में भाजपा ने प्रभा दुबे को अपना प्रत्याशी बनाया प्रभा दुबे को इस चावल योजना के चलते भारी नुकसान उठाना पढ़ा है। राजधानी में रहने वाले यादातर ब्राम्हण वोटर मध्यम वर्ग के हैं और इस प्रतिनिधि को चर्चा के दौरान अधिकांश लोगों का कहना था कि वे चावल योजना से त्रस्त है इसलिए यदि ब्राम्हणपारा की बात हुई तो वे बसपा प्रत्याशी प्रणिता पाण्डे को वोट दे देंगे लेकिन भाजपा को वोट नहीं देंगे। आखिर ऐसे लोगों को कैसे चुना जा सकता है जिनकी सरकार के चलते मध्यम वर्ग त्रस्त है।
सूत्रों की माने तो चावल योजना भाजपा के लिए गले की हड्डी बनते जा रही है। रोज हजारों की संख्या में फर्जी राशन कार्ड पकड़ाये जा रहे है। यदि खबरों पर भरोसा करे तो मुख्यमंत्री के गृह जिले कवर्धा में एक गुप्ता परिवार ने चावल योजना के चावल को पटना भेजकर करोड़ों रुपया कमाया और सालभर के भीतर ही 7 ट्रक खरीद लिया।
राजधानी में भी बड़े पैमाने पर फर्जी राशन कार्ड पकड़ाये गए। यहां तक कि ये चावल किराना स्टोर्स में भी बिक रहे है। वास्तविक लोगों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है और कालाबाजारी करने वाले मस्त है।
बहरहाल सरकार की चावल योजना को लेकर मध्यम वर्ग त्रस्त है

बैंक कर्मियों की अवैध उगाही से लोग त्रस्त

यह तो सीधे-सीधे लोगों की जेब में डाका डालने वाली बात है और जब यह डाका बैंक ही डालने लगे तो आम आदमी किस पर भरोसा करे। अब तो बैंक कर्मी एनओसी देने सौ रुपए ले ही रहे हैं। नोटों का बंडल गिनने भी पैसे वसूल रहे हैं। प्रति बंडल 15 रुपए की रसीद नहीं चाहिए तो इसके आधे में भी बंडल गिने जाते हैं।
राजधानी में चल रहे निजी बैंकों के इस ड्रामेबाजी से आम आदमी ही नहीं व्यापारी भी त्रस्त है लेकिन वे इसका दबी जुबान से विरोध भी कर रहे हैं। लेकिन बैंकों की हठधर्मिता के कारण वे खुलकर नहीं बोल पा रहे हैं।
निजी बैंकों की इस दादागिरी के संबंध में एक व्यापारी विजय जैन ने बताया कि यह तो हद है। उन्होंने बताया कि पीएनबी में प्रति बंडल गिनने के 15 रुपए लिए जाते हैं और इसका बकायदा रसीद भी दिया जाता है लेकिन यदि आपको रसीद नहीं लेना है तो आधी राशि में आपके रुपयों का बंडल गिन लिया जाएगा और यह राशि सीधे-सीधे बैंक कर्मियों की जेब में जाता है। श्री जैन ने इसकी शिकायत छत्तीसगढ चेम्बर से भी की है लेकिन चेम्बर भी अभी तक इस मामले में खामोश है।
बताया जाता है कि इस तरह का खेल कई अन्य निजी बैंकों में चल रहा है जिससे आम लोग या व्यापारी त्रस्त है। व्यापारी नेता कन्हैया अग्रवाल ने इसे सीधे-सीधे लोगों की जेब में डाका डालने वाला बताते हुए कहा कि यह उचित नहीं है और यदि बैंकों ने अपना रवैया नहीं सुधारा तो इसका जोरदार विरोध किया जाएगा।
दूसरी तरफ ऋण लेने वालों को अन्य बैकों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पड़ता है लेकिन बैंक कर्मी बगैर रिश्वत लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं देते। लाखेनगर निवासी घनश्याम सोनकर ने कहा कि जिस बैंक से कोई लेना देना नहीं है वहां सिर्फ एनओसी के नाम पर सौ दौ सौ रुपए की उगाही से लोग त्रस्त है। राजधानी जैसी जगहों पर जहां दर्जनों बैंकों से एनओसी लेना पड़ता है हजारों रुपए बैंक कर्मियों के अवैध उगाही में चला जाता है। एक तो ऋण लेने वाले बेरोजगार युवकों को बैंकों का चक्कर लगाना वैसे ही भारी पड़ता है उपर से रिश्वत देना पड़े तो क्या हाल होता होगा। अंदाजा लगाया जा सकता है।
बहरहाल बैंक कर्मियों की इस अवैध उगाही से लोग त्रस्त है खासकर व्यापारी वर्गों में भारी नाराजगी है। लेकिन व्यापारियों की संस्था चेम्बर ऑफ कामर्स की चुप्पी आश्चर्यजनक है और इसे लेकर कई तरह की चर्चा है।