रविवार, 3 अप्रैल 2011

हम तो सरे राह लिये बैठे हैं चिंगारी,जिसका जी चाहे चिरागों को जला ले जाए...





पता नहीं छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता का कैसा दौर चल रहा है। अखबार मालिक तो सरकारी विज्ञापनों की लालच में फंसे हैं। पत्रकारिता से उनका कोई सरोकार नहीं रह गया है। दमदार पत्रकारों को अपने मतलब के लिए रखते हैं और युज एंड थ्रो की नीति बना रखे हैं।

विज्ञापन की बाढ़ ने अखबारों की बाढ़ ला दी है।राजधानी में पत्रकार कहलाने वालों कि संख्या में बेतहाशा इजाफा हुआ है और इसके साथ ही वसूली बाजों कि भी भरमार हो गई है। भ्रष्ट अधिकारी व मंत्री बेहिसाब भ्रष्टाचार कर पैसे बांट रहे हैं और वसूली बाजों की निकल पड़ी है।

यही वजह है कि अखबारों की बाढ़ तो आई ही है। इलेक्ट्रानिक मीडिया का आई डी लेकर घुमने वालों की संख्या भी बढ़ गई है।

वसूली बाजों की हिम्मत इतनी बढ़ गई है कि वे अपने मतलब के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।

उनकी हिम्मत का इससे बड़ा उदाहरन और क्या होगा कि पिछले दिनों कुछ वसूली बाज वरिष्ठ पत्रकार आसिफ इकबाल के घर पहुंच गये और अपने साथ एक वर्दी वाले को भी ले जाकर तीन लाख रुपये की मांग कर बैठे।

आसिफ इकबाल जैसे वरिष्ठ पत्रकार जिन्होंने अपने जीवन में पत्रकारिता का नया आयाम रचा हो। शासन-प्रशासन में जिनकी तूती बोलती हो जिनके सामने आज भी हमारे जैसे जूनियर पत्रकार बैठेने की हिमाकत न कर सके। ऐसे पत्रकार से वसूली के लिए पहुंचना कई सवाल खड़े करता है।

आसिफ इकबाल पत्रकारिता जगत का ऐसा नाम है जिनके तेवर से 6 साल पहले तक के पत्रकार अच्छी तरह जानते हैं। उनके जैसे पत्रकारों की लेखनी और सोच की वजह से ही छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का पूरा देश में नाम रहा है। अच्छे-अच्छे अखबार मालिक तक उनकी खुशामद करते रहे हैं और इस शहर में पदस्थ अधिकारी हो या नेता,उद्योगपति हो या समाजसेवी सभी उनके कम के कायल रहे हैं।

लेकिन इस घटना ने पत्रकारिता के वर्तमान स्थिति को रेखांकित कर दिया है। और यही हाल रहा तो ईमानदार पत्रकारों को अधिकारी या गलत काम करने वाले धमकाने लगेंगे और भ्रष्ट अधिकारियों के संरक्षन में वसूली बाज मजा करते रहेंगे।



और अंत में ...

राजधानी में पत्रकारों की बढ़ती मांग के बावजूद नेशनल लुक के बंद हो जाने के बाद भी कुछ पत्रकार काम पर नहीं लग पा रहे हैं। वजह को लेकर चर्चा सुननी हो तो ‘ प्रेस क्लब अच्छा स्थान है।