मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं...

इन दिनों पूरे देश में 2जी स्पेक्ट्रम कांड को लेकर चर्चा है। साथ ही भ्रष्टाचार को लेकर हर कोई चिंतित है कि आखिर इस देश के ईमानदार लोग कहां चले गए। क्या हमारी शिक्षा प्रणाली ने आम आदमी को निहायत स्वार्थी और डरपोक बना दिया है। जहां विरोध करने का माद्दा ही खत्म हो गया है।
पिछले दिनों काफी हाउस में चर्चा के दौरान मेरे मित्र उचित शर्मा ने कहा कि आम आदमी के पास टाईम नहीं है इसलिए तो वह जनप्रतिनिधि चुनता है ताकि आप लोग सुकून से जिन्दगी जी सके। लोकतंत्र की यह सबसे अच्छी बात भी यही है लेकिन जब पूरी सरकार और जनप्रतिनिधि ही भ्रष्ट होने लगे और उसे चलन या परम्परा का नाम दे दे तो फिर आम आदमी के पास रास्ता क्या रह जाता है। लेकिन रास्ता है और इसके लिए हमें अपनी मुंह देखी चरित्र को बदलना होगा। हमारी लड़ाई इसी की है कि आखिर सरकार शराब क्यों बेचे। और धर्म गुरु आम लोगों को समझाईश देने की बजाय उस सरकार का बहिष्कार करे तो ऐसे कृत्य कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में शराब की गंगा बह रही है यह बात सरकार में बैठे पक्ष-विपक्ष सभी लोग जानते हैं। आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में दुर्घटना से मरने वालों की संख्या या अपाहिज होने वाले प्रकरणों पर गौर करें तो 80 से 90 फीसदी मामलों में शराब सामने आ रही है इसी तरह घरेलू हिंसा से लेकर लूटपाट और हत्या जैसे मामले भी शराब की वजह से ही बढ़े हैं इसके बाद भी सरकार राजस्व की दुहाई देकर जगह-जगह शराब बेच रही है। सरकार का सबसे हास्यास्पद पक्ष यह है कि वह गुजरात के शराब बंदी को असफल कहती है और तस्करी की बात कहकर पूर्णत: शराबबंदी के खिलाफ खड़ा होती है लेकिन क्या यह पूरा सच है। नहीं। गुजरात में शराब तस्करी होती जरूर है लेकिन इस तरह की शराब 10 फीसदी से ज्यादा लोग नहीं पीते और वहां के आंकड़े बताते हैं कि शराब बंदी के बाद दुर्घटना से लेकर अपराध के आंकड़ों में जबरदस्त कमी आई है।
इसी तरह भ्रष्टाचार और घोटाले में भी सरकार की भूमिका से आम लोग खुश नहीं है। गलत लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने की इस परम्परा को बंद करनी चाहिए। आरोपितों को दंडित करने की बजाय पुरस्कृत करने की वजह से ही बाबूलाल अग्रवाल जैसे लोगों के हौसले बुलंद है। इसकी भारी कीमत सरकार को चुकानी पड़ेगी। विवादास्पद अधिकारियों को महत्वपूर्ण विभाग देने की बजाय उन्हें आफिस के काम में लगा देना चाहिए या ऐसे काम जहां न वित्तीय अधिकार हो और न ही वे आदेश देने के लायक रहे।
सुप्रीमकोर्ट की भूमिका को ले·र इन दिनों राजनेताओं से लेकर अधिकारियों में हड़·म्प मचा है लेकिन छत्तीसगढ़ में दूसरी ही परम्परा चल रही है। आईपीएस और आईएएस के मक्·डज़ाल में सरकार ऐसे उलझ गई है कि लोकतंत्र की बजाय राजशाही ज्यादा नजर आने लगा है। भ्रष्टाचार में लिप्त आईएएस लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया जा रहा है और ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया जा रहा है। यदि इस परम्परा को बंद नहीं किया गया तो फिर ए· गांधी या चंद्रशेखर आजाद या भगत सिंह को पैदा होने से कौन रोक सकेगा। तब...