शुक्रवार, 12 मार्च 2021

कैसा जनसरोकार !



एक तरफ केन्द्र सरकार के मनमाने फैसले से देश की आर्थिक स्थिति बदहाली की कगार पर है, बेरोजगारी और महंगाई से आम जनमानस त्रस्त है तब छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा विधायकों और पूर्व विधायकों की सुविधा की राशि को दो गुणा कर देने का मतलब क्या है? ये सच है कि भूपेश सरकार जब से सत्ता में आई है तब से आम जनों के हित में कई निर्णय लिये है लेकिन नोट बंदी, जीएसटी और कोविड की वजह से आर्थिक झंझावत भी कम नहीं है।

ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार का यह निर्णय न केवल हैरान कर देने वाला है बल्कि सत्ता के चरित्र को भी प्रदर्शित करता है। सवाल जनप्रतिनिधियों की सुविधा में ईजाफे का नहीं है और न ही हमें इस बात से इंकार है कि जनप्रतिनिधियों की सुविधाओं में कमी हो लेकिन क्या यह वर्तमान समय में उचित है।

छत्तीसगढ़ भी उन राज्यों में शामिल है जिनकों लगातार कर्ज लेना पड़ रहा है, प्रदेश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है और केन्द्र की मनमानी के चलते आने वाले दिनों में कोई आर्थिक मदद की उम्मीद तो दूर योजनाओं के लिए या धान खरीदी के कोटे के लिए ही पैसा मिलने की उम्मीद नहीं है।

जानकारो का कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य में विकास के कार्यों में रफ्तार की कमी है। धीमी गति से चल रहे विकास कार्यों के अलावा नई नौकरी के रास्ते भी नहीं खुल पा रहे हैं। अस्पताल या स्कूल भवन तो बन गए है लेकिन डाक्टरों और शिक्षकों की कमी है। सहायक शिक्षक अपने वेतन की विसंगति को दूर करने आंदोलनरत है, मनरेगा का काम भी धीमी गति से हो रहा है। इसके अलावा भी वित्तीय स्थिति को लेकर कई तरह के सवाल है। साल दर साल राज्य का कर्ज बढ़ता ही जा रहा है, पैसों की कमी की वजह से कई योजनाएं तय समय में पूरी नहीं होने की वजह से योजना लागत में डेढ़ से दो गुणा वृद्धि हो गई है।

ऐसी स्थिति में पूर्व और वर्तमान विधायकों की सुविधा में सीधे दो गुणा वृद्धि को लेकर सवाल तो उठेंगे ही। क्या विधायकों की सुविधा जन सरोकार से बड़ा हो गया है।

राजधानी में ही शारदा चौक से तात्यापारा चौक तक चौड़ीकरण के लिए बजट का रोना रोया जाता है, तालाबों की सफाई का मामला हो या नए ओवर ब्रिज निर्माण का मामला हो सब कुछ वित्तीय संकट के कारण रुका पड़ा है।

सरकार अपने प्रचार प्रसार और सुविधा के नाम पर करोड़ों अरबों रुपये खर्च कर रही है लेकिन अस्पतालों की हालत बदहाल है, कहीं दवाई नहीं तो कहीं डाक्टर नहीं है। ऐसे में यह सवाल तो उठेंगे ही कि क्या जनप्रतिनिधि केवल अपनी सुविधा ही देखते है। जब छत्तीसगढ़ के विधायकों का वेतन वैसे भी बहुत ज्यादा है।