मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

मुख्यमंत्री के खिलाफ छाप लो, संवाद प्रभारी के खिलाफ छापा तो नौकरी गई...


छत्तीसगढ़ में अफसर राज हावी है इसका यह नमूना मात्र है। छत्तीसगढ़ में सरकारी विज्ञापन के मोह ने पत्रकारिता की ऐसी-तैसी करने में कोई कमी नहीं छोड़ा है। यही वजह है कि यहां अधिकारियों के खिलाफ खबर छपते ही उसकी तीखी प्रतिक्रिया होती है।
पिछले दिनों मृत्युजंय मिश्रा ने अपनी नौकरी से हटाये जाने को लेकर संवाद प्रभारी कोरेटी के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस ली। ढसाढस भरे प्रेस कांफ्रेंस में वैसे तो सभी अखबारों के पत्रकार मौजूद थे लेकिन रोज निकलने वाले अखबारों में से दो-तीन अखबारों में ही यह खबर प्रकाशित हो पाई। इनमें से प्रतिदिन राजधानी में भी यह खबर प्रमुखता से छप गई। इस खबर को ठाकुर नामक पत्रकार ने बनाया था। जैसे ही अखबार में खबर छपी हड़कम्प मच गया। जब हमने पत्रकारिता की शुरुआत की थी मुझे याद है। तब हड़कम्प मचाने वाली खबरों पर संपादन के द्वारा पत्रकारों की पीठ थपथपाई जाती थी लेकिन यहां तो उल्टा ही हो गया। इस पत्रकार की नौकरी ही चली गई।
पत्रकारिता के इस नए मापदंड से कोई पत्रकार हैरान भी नहीं है क्योंकि ऐसा यहां अक्सर होने लगा है और कभी नेता या अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को नौकरी से निकलवाने की धमकी नई भी नहीं है। लेकिन सिर्फ सरकारी विज्ञापन के लिए जनसंपर्क के अधिकारियों से ऐसी घनिष्ठता आश्चर्यजनक है। छत्तीसगढ़ में यही सब कुछ हो रहा है और विज्ञापन देने वाली इस संस्था के अधिकारियों का प्रभाव बड़े-बड़े बैनरों पर भी स्पष्ट देखा जा सकता है। कई पत्रकार तो अब आपसी चर्चा में व्यंग्य तक करने लगे हैं कि मुख्यमंत्री के खिलाफ छाप सकते हो लेकिन जनसंपर्क या संवाद के अधिकारियों की करतूत को छापोगे तो नौकरी चली जाएगी। छत्तीसगढ़ में अखबार मालिकों के इस रवैये की वजह से ही शासन-प्रशासन में स्वेच्छाचारिता बढ़ी है और यही हाल रहा तो पत्रकारिता पर यह कलंक धुलने वाला नहीं है।
और अंत में...जनसंपर्क में नौकरी वही लोग कर सकते हैं जो अपना वेतन भी अधिकारियों पर कुर्बान कर दे। ऐसे ही एक युवक यहां अपने नियमित होने के इंतजार में आधा वेतन अधिकारियों के लिए छोड़ देता है। इसके सर्टिफिकेट भी फर्जी होने की चर्चा है।

सभापति के समय की करनी, पंचायत में भरनी पड़ी...

यह तो कुत्ते की दुम... वाली कहावत को चरितार्थ करता है वरना जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस की यह दुर्दशा नहीं होती। कई जिलों में बहुमत के बाद भी कांग्रेस की अध्यक्षीय गई तो इसकी वजह नेतृत्व की कमजोरी के साथ-साथ कांग्रेस में बड़े नेताओं की आपसी लड़ाई है। यही नहीं यदि कांग्रेस ने निगम में सभापति के चुनाव में सबक लेकर कड़ी कार्रवाई करती तो उसे यह दिन देखना नहीं पड़ता।
दरअसल छत्तीसगढ़ कांग्रेस में बिखराव की वजह बड़े नेताओं की आपसी गुटबाजी के अलावा प्रदेश अध्यक्ष का पिछलग्गू होना है। छत्तीसगढ़ में अजीत प्रमोद कुमार जोगी, मोतीलाल वोरा और विद्याचरण शुक्ल की लड़ाई जग जाहिर है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष जब अपनी कार्यकारिणी ही नहीं बना सकता तो उनसे बहुत ज्यादा उम्मीद करना भी बेमानी है। यही वजह है कि लगातार चुनाव हारने से यहां के कांग्रेसी पस्त हो गए है और जब सत्ता की तरफ से जरा भी लालच दी जाती है वे बगावत करने से भी गुरेज नहीं करते ।
प्रदेश के दर्जनभर जिलों में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों की संख्या भाजपा के मुकाबले अधिक थी लेकिन कांग्रेसी इन्हें संभाल नहीं पाए और 14 जिलों में भाजपा अपना अध्यक्ष बनाने कामयाब रही। यही स्थिति निगम चुनाव में भी रही और कांग्रेस को डेढ़ दर्जन स्थानों में अपने सभापति से वंचित होना पड़ा। क्रास वोटिंग को लेकर अध्यक्ष धनेन्द्र साहू ने तब भारी नाराजगी दिखलाई थी और जांच कमेटी भी बनाई गई लेकिन कांग्रेस की कमजोरी उजागर हो गई राजधानी के पार्षदों ने तो मोबाईल के कॉल डिटेल तक नहीं दी और उन पर किसी ने कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखाई। शायद यही वजह है कि जिला पंचायत के चुनाव में कांग्रेसियों ने पार्टी के नेताओं की परवाह नहीं की और लालच में भाजपा को वोट दे दिया।
कांग्रेस की इस दुर्दशा के लिए प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू और मोतीलाल वोरा द्वारा गठित कार्यकारिणी अपनी जिम्मेदारी से कैसे बचेंगे यह सवाल निष्ठावान कांग्रेसियों में चर्चा का विषय है। बहरहाल छत्तीसगढ क़ांग्रेस में हो रही इस बिखराव पर राष्ट्रीय नेतृत्व ने ध्यान नहीं दिया तो हालत और बदतर होगी जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।

पुलिसिया गुण्डागर्दी का शिकार पत्रकार,सिटी एसपी की मौजदूगी, सरकार खामोश

यह तो पुलिसिया गुण्डागर्दी का एक नमूना है कि वह चाहे तो किसी को भी थाने में बुलवाकर मारपीट कर सकता है और सरकार भी ऐसी गुण्डागर्दी पर कुछ नहीं करती। फिर यदि किसी के नाम के पीछे सिंह शब्द हो तो वह इस प्रदेश में शेर है।
यह वाक्या तो एक नमूना है वरना महिलाओं से मारपीट करने में भी यहां की पुलिस पीछे नहीं रहती। ताजा मामला शहर के विभिन्न दैनिकों देशबंधु, भास्कर, हरिभूमि, नेशनल लुक और आज की जनधारा में काम कर चुके स्वतंत्र पत्रकार बबलू तिवारी का है। बताया जाता है कि बबलू तिवारी का आफिस मालिक से किसी बात को लेकर विवाद है और इसी के चलते आफिस मालिक ने राजेन्द्र नगर थाने में शिकायत की है। इस शिकायत के आधार पर सिटी एसपी रजनेश सिंह ने 10 फरवरी को उसे अपने कार्यालय में बुलवाया और जब पत्रकार बबलू तिवारी कार्यालय पहुंचा तो वहां सिटी एसपी नहीं थे लेकिन वहां मौजूद राजेन्द्र नगर थाना प्रभारी अंसारी, पुरानी बस्ती सीएसपी व अन्य स्टाफ थे और अंसारी ने बबलू से अश्लील गाली गलौज कर न केवल उसकी पिटाई की बल्कि उसे मकान खाली करने की चेतावनी दी। इस दौरान पुरानी बस्ती सीएसपी ने बबलू की जेब की तलाशी ली और कहा कि मकान खाली नहीं किया तो आर्म्स एक्ट में जेल भिजवा दूंगा।
इसके बाद रजनेश सिंह वहां पहुंचे। रजनेश सिंह ने आते ही बबलू से बात की इधर बबलू ने भी अपने मित्र जो दैनिक भास्कर में संवाददाता है सुदीप त्रिपाठी को बुलवा लिया। इसके बाद भी रजनेश सिंह ने बबलू को धमकाया और उच्चाधिकारियों को गलत रिपोर्ट भी दी। यही कारण है कि रजनेश सिंह की भी पिटाई में सहमति होने का संदेह है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इस मामले की उच्चाधिकारियों से शिकायत करने के बाद भी पुलिस वालों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पुलिस के इस रवैये से पत्रकारों में रोष है और वे मुख्यमंत्री से भी इसकी शिकायत करने वाले हैं।
इधर पुलिसिया गुण्डागर्दी को लेकर कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है कि रजनेश सिंह का सीधे सरकार में बैठे लोगों से संबंध है इसलिए वे मनमानी करते रहते हैं। बताया जाता है कि पिछले दिनों लोहा व्यवसायी अच्छेलाल जायसवाल को भी धंधा बंद करने की धमकी दी गई थी और झूठा फंसाकर गिरफ्तार किया गया था। बहरहाल रजनेश सिंह के इस कार्रवाई को लेकर बबलू तिवारी ने न्यायालय जाने का मन बना लिया है और रजनेश सिंह के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो वे कोर्ट में मुकदमा दर्ज करेंगे।

इसलिए बांधी नहीं बनाए गए मंत्री...



पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी को इस सरकार में नहीं लेने मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने जो भी वजह बताई हो लेकिन स्वास्थ्य विभाग में एक के बाद एक खुल रहे घोटालों की कहानी यह बयां कर रही है कि आखिर डॉ. बांधी को मंत्री क्यों नहीं बनाया गया। इसी तरह वर्तमान संचालक राजमणि को लेकर भी कई तरह की चर्चा है।
पूर्व स्वास्थ्य सचिव बाबूलाल अग्रवाल के यहां आयकर विभाग द्वारा की गई छापे की कार्रवाई और स्वास्थ्य विभाग के सार्वा, डॉ. प्रमोद सिंह जैसे अधिकारियों के ऊपर लगे घोटालों के आरोपों ने यह साबित कर दिया है कि स्वास्थ्य विभाग जो आम लोगों की जिन्दगी से जुड़ा हुआ है के प्रति सरकार कितनी चिंतित है। भाजपा शासनकाल में स्वास्थ्य विभाग में हुई गड़बड़ी ने सरकार की कथनी-करनी में तो फर्क किया ही है और कार्रवाई के मामले में भी सरकार किस तरह से दोहरा मापदंड अपना रही है यह भी दिखने लगा है।
बताया जाता है कि स्वास्थ्य विभाग में गड़बड़ी के दौरान डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी स्वास्थ्य मंत्री थे और कुछ गड़बड़ी के दौरान अमर अग्रवाल भी स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं। लेकिन सरकार ने इन्हें पूछना भी जरूरी नहीं समझा कि इतनी गड़बड़ियों के दौरान वे किस भूमिका में थे। यही नहीं इस दौरान सचिव के पद पर रहे आईएएस अफसरों के प्रति भी सरकार साफ्ट कार्नर रखे हुए हैं। जबकि सारी गड़बड़ियां एक सोची समझी साजिश के तहत की गई जिसमें न केवल नीचे से लेकर उपर तक बैठे लोगों ने न केवल अपनी जेबें गरम की बल्कि आम लोगों के जीवन को भी खतरे में डाला गया।
वैसे आम लोगों में यह चर्चा है कि इस सरकार से बहुत ज्यादा उम्मीद करनी बेमानी है वैसे दूसरी पारी में डॉ. कृष्णमूर्ति को मंत्री नहीं बनाये जाने को लेकर अब यह चर्चा जोरों पर है कि यहां हुई गड़बड़ियों की जानकारी प्रदेश नेतृत्व से लेकर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को भी रही होगी तभी तो उन्हें चलता किया गया और एक तरह से बचाया गया। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग में कार्रवाई को लेकर सरकार के दोहरे चरित्र को आम लोगों में जबरदस्त चर्चा है और कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में बाबूलाल अग्रवाल भी कोई बड़ा खुलासा कर सकते हैं।

सच से दूर सर्वे रिपोर्ट


वैसे तो सर्वे रिपोर्ट को लेकर हमेशा से ही विवाद होता रहा है लेकिन इस साल 'सी वोटर' और प्लानमन इंडिया ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को देश का दूसरा सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री क्या घोषित कर दिया इनकी रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। हालांकि सी वोटर ने स्पष्ट किया है कि वे देश में 26432 लोगों की राय पर यह रिपोर्ट तैयार की है लेकिन एक अरब से उपर आबादी वाले इस देश में इतने कम लोगों की राय पर रिपोर्ट बनाने को लेकर सवाल तो उठेंगे ही और फिर पैसे लेकर रिपोर्ट तैयार करने का आरोप कितना सही है इसकी भी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।
सवाल यह नहीं है कि डॉ. रमन सिंह इस देश के दूसरे सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री है। सवाल यह भी नहीं है कि छत्तीसगढ़ से सिर्फ एक हजार लोगों ने ही अपनी राय जाहिर की है। सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ के दो करोड़ से ज्यादा आबादी में से सिर्फ हजार लोगों की राय को सच मान लिया गया। इस संबंध में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने सवाल पूरा होने के पहले ही पत्रकारों से कह दिया कि इस तरह की रिपोर्ट कैसे तैयार होते हैं उन्हें मालूम है और पैसे देकर ऐसी रिपोर्ट तैयार की जाती है। सवाल दिग्विजय सिंह की टिप्पणी का नहीं हैं। सवाल है इस तरह की रिपोर्ट को बढ़ाचढ़ कर क्यों पेश किया जाता है।
दरअसल छत्तीसगढ़ राज्य में जिस तरह से डॉ. रमन सिंह की छवि 'ढीला-परसन' के रुप में चर्चित होने लगा है और अधिकारियों से लेकर मंत्री तक बेलगाम होने लगे हैं उससे इस तरह की रिपोर्ट उनके लिए राहत वाली हो सकती है। जिस प्रदेश में गृहमंत्री के द्वारा कलेक्टर को दलाल और एसपी को निकम्मा कहा जाता हो। पार्टी विधायक नेतृत्व परिवर्तन के लिए गुणाभाग कर रहे हो और जहां विकास कार्यों की राशि में से एक बड़ी राशि नौकरशाह और राजनेताओं की जेबें गरम कर रही हो। उस प्रदेश की जनता दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करेगी या ऐसे किसी फालतू सर्वे के लिए अपनी राय जाहिर करने समय निकालेगी। छत्तीसगढ़ में सरकार कैसे चल रही है इसका सर्वे करना हो तो विभाग वार समीक्षा करना होगा। राय बनने के बाद सड़के तो बनी लेकिन इसकी आड़ में अफसरों ने कितने कमाये। पर्यटन को बढावा देने करोड़ों-अरबों रुपए तो खर्च किए गए लेकिन कितने पर्यटक आ रहे है। बायो डीजल के लिए पूरी सरकार को झोंक दिया गया लेकिन उत्पादन की स्थिति क्या है। शक्कर कारखाने तो खोले गए लेकिन इसका लाभ किसानों को कितना मिला उत्पादन की क्या स्थिति है।
रायपुर के आसपास की सभी तरह की जमीनें किसने खरीदी। अफसरों और नेताओं के कितने रिश्तेदारों को आकस्मिक नियुक्तियों के नाम पर नौकरी दी गई। सिर्फ खर्च करने से श्रेष्ठता सिध्द नहीं होती बल्कि खर्च सही जगह पर हो तब श्रेष्ठता मानी जानी चाहिए। दरअसल सर्वे रिपोर्ट में चर्चित को ही लोकप्रियता मान लिया जाता है इसलिए गोधरा कांड के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के सबसे चर्चित मुख्यमंत्री रहे है जिसे शायद लोकप्रिय मुख्यमंत्री का तमगा दिया गया। यही वजह है कि विकास के मामले में छत्तीसगढ़ को केवल 29 फीसदी वोट मिलने के बाद भी दूसरे नम्बर पर रखा गया।
छत्तीसगढ में भ्रष्टाचार चरम पर है यहां भ्रष्टाचार किस हद तक हावी है इसका अंदाजा आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के यहां हुई छापे की कार्रवाई से लगाया जा सकता है। डीएमसी, काफी हाउस से लेकर शॉपिंग मॉल से भी अंदाजा लगाया जा सकता है क्योंकि इन जगहों पर भी नेताओं और अफसरों के पैसे लगाये जा रहे है। बहरहाल सर्वे को लेकर सरकार भले ही गदगद हो लेकिन आम आदमी का जीवन स्तर दिनों दिन नारकीय होता जा रहा है।

गांव वालों का खाता खुलवाने वालों के खिलाफ 420 क्यों नहीं!


आयकर विभाग द्वारा आईएएस बाबूलाल अग्रवाल व उनके सीए सुनील अग्रवाल के यहां छापे की कार्रवाई के दौरान बरामद 220 फर्जी बैंक खाते बनाने वालों के खिलाफ सरकार का रवैया अब तक नरम है यही वजह है कि फर्जी बैंक खाता बनाने के मामले में अभी तक 420 का जुर्म दर्ज नहीं किया गया है।
हालांकि आयकर विभाग इस मामले की जांच कर ही रही है लेकिन खरोरा क्षेत्र के ग्रामीणों ने जब बैंक में अपने खाते नहीं खुलवाने की बात सार्वजनिक कर दी है तब सरकार को एक कदम आगे आकर ऐसे फर्जी खातों के खिलाफ न केवल कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए बल्कि मामला तत्काल पुलिस को देना चाहिए। उल्लेखनीय है कि आयकर विभाग की टीम ने सीए के हवाले से इसे बाबूलाल अग्रवाल की करस्तानी बताया है हालांकि सीए ने इसे आयकर विभाग द्वारा दबाव डालकर लिखवाने की बात कही है लेकिन इन गांव वालों के जिस प्रकार से बैंक खाते खुले है उससे यह मामला गंभीर है और सरकार सच में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करना चाहती है तो उसे या तो मामला पुलिस को सौंपना चाहिए या फिर सीबीआई को सौंपना चाहिए। लेकिन छापे की कार्रवाई और इस मामले के खुलासे को दो हफ्ते से ज्यादा बीत गए है लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं किया जाना अनेक संदेहों को जन्म देता है।
सरकार के कार्रवाई के नाम पर बाबूलाल अग्रवाल को निलंबित कर मामला आर्थिक अपराध ब्यूरों को सौंपा है लेकिन जिस तरह से संपत्ति उजागर हुई है उसके बाद सरकार को न केवल कड़े रुख अख्तियार करना चाहिए बल्कि इस सम्पूर्ण मामले की उच्च स्तरीय जांच की जानी चाहिए। बहरहाल 220 फर्जी खाते के मामले में सरकार के रवैये को लेकर कई तरह की चर्चा है और चर्चा में भ्रष्टाचारियों को सरकार का संरक्षण देने की बात कही जा रही है तो यह साफ सुथरी छवि के लिए विख्यात डॉ. रमन सिंह के लिए उचित नहीं है।

'विधायक की प्रतिष्ठा को आंच' याचिका ख़ारिज


यह तो उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत ही चरितार्थ होती है वरना पूर्व सैनिक बल्देव सिंग पर विधायक की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाने, ब्लेक मेलिंग व गुण्डागर्दी करने का आरोप खारिज नहीं होता।
उल्लेखनीय है कि पिछले माह शंकरनगर निवासी बल्देव सिंग पूर्व सैनिक ने एक पत्रकार वार्ता में कसडोल विधायक राजकमल सिंघानिया, ललित सिंघानिया पर जमीन से बेदखल करने गुण्डागर्दी व मारपीट का आरोप लगाया था। बताया जाता है कि इस पर ललित सिंघानिया ने 10 नवम्बर 2009 को कलेक्टर व जिला दंडाधिकारी को आवेदन देकर बल्देव सिंग पर भगौड़ा होने व ब्लेकमेल तथा गुण्डागर्दी करने का आरोप लगाते हुए आवेदन दिया था आवेदन में विधायक की प्रतिष्ठा को आंच पहुंचाने की बात कही थी। इस मामले को संज्ञान में लेते हुए जिला दंडाधिकारी ने दोनों पक्षों की सुनवाई की और आवेदन को नस्तीबध्द करने का आदेश दे दिया।

दस लाख दो, मान्यता लो

लगता है छत्तीसगढ सरकार में बैठे मंत्री और अफसरों को आम लोगो के जीवन को खतरे में डालने का निर्णय ही कर लिया है। यही वजह है कि स्वास्थ्य विभाग में बड़ी कार्रवाई के बाद भी घपलों की कहानी थमने का नाम ही नहीं ले रही है। ताजा मामला बगैर मापदंड के पैरामेडिकल प्रशिक्षण चला रहे संस्थाओं को मान्यता देने का है। पता तो यह भी चला है कि इन संस्थानों में कई बड़े नेता और अफसरों के पैसे लगे हैं। इसलिए नियम कानून को ताक पर रखकर न केवल धरतीपुत्रों की उपेक्षा की जा रही है बल्कि आम लोगों के जीवन से खेलने का षड़यंत्र रचा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य विभाग इन दिनों सरकारी नियंत्रण से बाहर चला गया है। पूर्व स्वास्थ्य सचिव से लेकर कई संचालकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और रोज नई कहानी बाहर आ रही है। हालत यह है कि यहां बैठे अफसर अपनी जेबें गरम कर रहे है और सरकार तमाशाबीन है। बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ में बहुउद्देशीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने तीन दर्जन से अधिक संस्था काम कर रही है। इन संस्थाओं में सार्वा, मधुलिका सिंह से लेकर कई मंत्री और अफसरों के पैसे लगे हैं। यही वजह है कि नर्सिंग काउसिंल एक्ट की धज्जिया उड़ाते हुए इन संस्थाओं को छत्तीसगढ़ में मान्यता दे दी गई। हालांकि इस तरह की मान्यता की जिम्मेदारी डॉ. आर.एन. वर्मा के पास है और कहा जाता है कि संस्थाओं को मान्यता देने 10-10 लाख रुपए तक लिए गए।
आल इंडिया नर्सिंग काउसिंल ने मान्यता के लिए करीब दर्जनभर नियम बनाये है और छत्तीसगढ में जिन संस्थाओं को मान्यता दी गई है उनमें से एक भी संस्था ऐसी नहीं है जो काउसिंल एक्ट के नियमों का पालन करती है इसके बाद भी मान्यता देने का अर्थ आसानी से समझा जा सकता है। कई लोग तो 2008 से संस्था चला रहे है और प्रत्येक संस्थान में 30 से यादा स्टूडेंट है इस तरह से इन संस्थानों ने बेरोजगार युवकों को बगैर मान्यता के भारी भरकम फीस वसूल कर धोखाधड़ी की हैं क्योंकि बगैर मान्यता प्राप्त संस्थानों की डिग्री का कोई औचित्य नहीं है।
यहीं नहीं इन संस्थानों में छत्तीसगढ क़े बाहर से आए लोगों को प्रवेश दिया गया है जिनकी डिग्री को लेकर भी सवाल उठ रहे है। बहरहाल पैरामेडिकल प्रशिक्षण संस्थानों को लेकर चल रही चर्चा थमने का नाम नहीं ले रही है और स्वास्थ्य विभाग का कारनामा बढ़ता ही जा रहा है।

पैसा तो सिर्फ नेताओ और अधिकारियो के पास

आयकर विभाग के अफसरों ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के यहां छापे की कार्रवाई क्या की छत्तीसगढ़ में एक नई बहस छिड़ गई है प्रभाकर अग्रवाल ने सवाल पूछा कि आप तो पत्रकार हैं बताईये सबसे ज्यादा पैसा छत्तीसगढ क़े किस नेता और किस अधिकारी के पास है एक अन्य मित्र अन्नू हसन ने कहा कि मीडिया को तो राज्य बनने के बाद सर्वाधिक पैसा कमाने वाले टॉप टेन अधिकारियों और टॉप टेन नेताओं की सूची जारी करनी चाहिए। इन दोनों ही मित्रों को न तो कभी राजनीति में रूचि रही और न ही कभी ये तीन-पांच में ही रहे लेकिन इनका सवाल यह बतलाता है कि छत्तीसगढ़ में नेताओं और अधिकारियों ने जो अंधेरगर्दी मचा रखी है उसकी जानकारी आम लोगों को भी है।
राज्य बनने के पहले अधिकारियों को लेकर दो चार नाम जरूर गिनाये जाते थे उनमें भूतड़ा, बख्शी, जगने साधु जैसे नाम थे। नेताओं में भी पंखा चोर, पंचर वाले या टैक्स ड्राईवर, नाका चोर कंट्रोल दुकान वाले, सटोरिया किंग जैसे कुछ नाम चर्चित थे। इनकी अंधेरगर्दी के किस्से खूब चर्चा में रहे। राज्य बनने के बाद तो शुरुआती तीन साल में छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जाते रहे वैसे वे जब कलेक्टर थे तब भी उन पर कोडार बांध और पॉम आईल घोटालों के आरोप लगे लेकिन भाजपा की पूरी सरकार और इस दौरान प्रमुख पदों पर रहे आईएएस अधिकारियों और निगम-मंडल के संचालकों या विभागीय संचालकों पर तो खुले आम भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और इसके बाद भी भ्रष्टाचार की जांच नहीं होना, यदि जांच हुई तो कार्रवाई नहीं होना सरकार की अंधेरगर्दी को दर्शाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य का सपना देखने वाले इन परिस्थितियों से दुखी हैं तो उनके दुख से सरकार का कोई सरोकार भी नहीं है सरकार अपने में मगन हैं उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि आम आदमी इस बढती महंगाई में किस तरह से जिन्दगी गुजार रहा है। मुठ्ठीभर नेता और अधिकारी अपना भविष्य संवारने में लगे हैं और आम आदमी दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहा है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। छत्तीसगढ़ में किस मंत्री ने करोड़ों कमाये और किस अधिकारी ने करोड़ों बटोरे इसकी सूची बनाना तो आसान है लेकिन इन्हें नंबरों में सजाना मुश्किल है क्योंकि इनके बीच पैसा कमाने की जबरदस्त होड़ मची है। अखबारों ने कई विभागों के कारनामों को उजागर किया है। नौकरी से लेकर भवन निर्माण हो या सड़क निर्माण सबमें खुलेआम कमीशनबाजी चल रही है। छत्तीसगढ़ के खदानों को लीज पर बेचा जा रहा है। सरकारी जमीनों का बंदरबांट चल रहा है। जिस प्रदेश में नदियों का पानी तक बेचा जा रहा हो उद्योगों को प्रदूषण फैलाने की खुली छूट हो और खाद्य पदार्थों मे मिलावट करने वाले को पकड़ने पर पुलिस को मंत्री की तरफ से धमकी दी जा रही है। गृहमंत्री को कलेक्टर को दलाल और पुलिस अधीक्षक को निकम्मा कहना पड़ रहा हो वहां अंधेरगर्दी तो आम बात है।
सरकारी जमीनों को कौड़ियों के मोल बेचा जा रहा है। उद्योगों से लेकर कालोनी बनाने की बात हो या डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डा. सुनील खेमका जैसे पैसे वालों को करोड़ों की जमीन कौड़ी के मोल देने की बात हो सरकार कटघरे में तो खड़ी ही है। ऐसे में यह कहा जाए कि छत्तीसगढ़ में पैसा तो अधिकारियों व नेताओं के पास ही है तो अतिशेयोक्ति नहीं होगी फिर टॉप टेन की सूची तो जनता को बनाना चाहिए। ऐसी सूची जरूर प्रकाशित होगी।