रविवार, 7 फ़रवरी 2021

कानून नहीं नियत...

 

तुमने आंदोलन को कुचलने सड़कों पर किलें ठोंक दी लेकिन किसानों ने उन किलों के समनान्तर मिट्टी में फूल रोप दिये। तुमने चक्काजाम के खिलाफ पुलिस के जवान खड़ा कर दिये लेकिन किसानों ने रफ्तार रोक दी। तुमने संसद में जब कहा कि कानून में काला क्या है तब किसी ने चुपके से कह दिया कि नियत ही काला है!

बस यही चुपके से कही बात हवा में तैरने लगा। खुशबू की तरह फैलने लगा। और इसके साथ ही तुम्हारे हर फैसले के पीछे की नियत परत-दर-परत खुलने लगी। क्योंकि फैसला कितना भी अच्छा हो यदि उसे लागू करने की नियत खराब हो तो लोकतंत्र उसे स्वीकार कदापि नहीं करेगा।

तुम्हारे हर फैसले में तुम्हारी खराब नियत खुलने लगी। और अब तो किसानों ने जिस तरह से इस नियत का खुलासा शुरु कर दिया है उससे राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व कुंठा भी सामने आने लगा है। तभी तो संघ के भीतर से भी आवाज आने लगी है कि सत्ता का अहंकार सर चढ़कर बोलने लगा है हालांकि संघ के कार्यकर्ता रघुनंदन शर्मा से हम इत्तेफाक नहीं रखते क्योंकि जिसकी राजनैतिक पृष्ठभूमि में ही नफरत विभाजन झूठ और अफवाह ही सब कुछ है वहां इन बातों का कोई औचित्य नहीं रह जाता कि लोकतंत्र का क्या महत्व है। 

हमने पहले ही कहा है कि जो लोग आंदोलनरत किसानों के खिलाफ विषवक्य कर रहे हैं उन्हें शायद यह नहीं पता है कि किसानों को केवल 80 हजार करोड़ सब्सिडी दी जाती है जबकि उद्योगों व व्यापार को जो हर साल छूट दी जाती है वह 6 लाख करोड़ से भी अधिक है।

हर दिन मरते किसानों का दर्द देखने की बजाय यह दावा करना कि हमारे हाथ खून से नहीं रंगे है हैरान कर देता है। सत्ता की नियत क्या है यह किसी से छिपा नहीं है। उसे अपनी रईसी बरकरार रखनी है और इसके लिए चंदा किसान नहीं कार्पोरेट ही देता है। ऐसे में यदि किसान तीनों कानून के खिलाफ कमर कस चुका है तो यकीन मानिये सत्ता को इसे वापस लेना ही होगा।