शुक्रवार, 19 मार्च 2010

बेबस गृहमंत्री , मदमस्त सरकार



एक तरफ देश की आधी आबादी महिला बिल को लेकर फूले नहीं समा रही है तो दूसरी तरफ यही आधी आबादी छत्तीसगढ़ में नासूर बन चुके शराब को बंद करने आंदोलनरत है। शराब के दुष्परिणामों का सर्वाधिक शिकार होने वाली इस आधी आबादी को छत्तीसगढ़ में छला जा रहा है। जगह-जगह वैध और अवैध भट्ठियों के जल ने महिलाएं ही नहीं युवाओं को भी बीमा कर दिया है ऐसे में प्रदेश के गृहमंत्री ननकीराम कंवर का विधानसभा में स्वीकारोक्ति कि धाने वाले दस हजार रुपया महिना लेकर उन्हीं का कहा मानते है। सरकार के लिए शर्म की बात नहीं तो और क्या है। शराब लॉबी का यह समनांतर प्रशासन क्या अंधेरगर्दी नहीं है।
सरकार पर खासकर डॉ. रमन सिंह की सरकार पर यह आरोप नया नई है कि यह उद्योगपतियों और शराब माफियाओं की सरकार है और सरकार ने कभी भी इस पर अपना पक्ष नहीं रखा। शराब बंदी पर वह जरूर कहते रहती है कि यह राजस्व का मामला है। पीढ़ी खत्म कर देने वाली इस भयावह शराब के राजस्व से सरकार चले यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है। विधानसभा में गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने जिस बेबाकी से अपनी बेबसी व्यक्त की है वह सभ्य समाज के लिए सोचनीय विषय है सोचनीय विषय तो सरकार के लिए है लेकिन वह शराब माफियाओं के पैसों में दब गई है इसलिए शराब दुकानों की खिलाफत करने वालों को ही प्रताड़ित किया जाता है। समूचे छत्तीसगढ़ में इन दिनों अजब तमाशा है। गांव-गांव में वैध-अवैध शराब खुले आम बिक रहे हैं और इसके विरोध करने वालों को शराब माफियाओं के गुण्डे और पुलिस मिलकर पिट रहे हैं। इतनी अंधेरगर्दी के बाद भी शराब को लेकर सरकार का राजस्व प्रेम अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
अब जब महिला बिल पास हो चुका है छत्तीसगढ़ सरकार को भी शराब के संबंध में निर्णय लेने की जरूरत है। उसे तय करना ही होगा कि किस जनसंख्या के अनुपात में शराब भट्ठी या दुकानें कितनी खोली जा सकती है। उसे तय करना ही होगा कि बड़े शहरों में दो-चार से यादा दुकानें न खुले। उसे यह भी तय करना होगा कि शराब माफिया और पुलिस के गठजोड़ से कोई गांव बर्बाद न हो जाए। संस्कृति को नष्ट होने से नहीं बचाने का मतलब ही अंधेरगर्दी है। गृहमंत्री ननकीराम कंवर की बेबसी के बाद भी सरकार ने निर्णय नहीं लिया और नई-नई दुकाने खोलने का लाइसेंस देते रहा तो इस प्रदेश का विकास थम जाएगा। इस प्रदेश का युवा बर्बाद हो सकता है और घर-परिवार बिखर जाएगा। सिर्फ राजस्व के लिए पूरी पीढ़ी को दांव पर लगाने की कोशिश ही सबसे बड़ी अंधेरगर्दी है।
महिला संगठनों में खासकर पूनम साहू जो पेशे से वकील भी हैं उनका कहना है कि सरकार ही नहीं चाहती कि लोग मिल जुलकर रहे और अपनी हक की लड़ाई व सरकार के करतूतों का सामूहिक विरोध करें इसलिए सरकारें जानबूझकर लोगों को शराब पीने के लिए प्रेरित कर रही है। पूनम जी इन दिनों शराब के खिलाफ प्रखरता से आवाज उठा रही हैं वह कहती है इसकी वजह से सबसे यादा महिलाएं प्रताड़ित है। वह यह भी कहती हैं कि सरकार पूर्ण शराब बंदी लागू करें और हमें उग्र आंदोलन के लिए मजबूर न करें। ऐसी कितनी ही पूनम है जो अब आवाज बनने जा रही है इसलिए सरकार दूसरे की नहीं तो कम से कम अपने गृहमंत्री की बेबसी को देखकर फैसला ले।