शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

प्रतिष्ठा कुछ नहीं, आफत में अस्तित्व

छत्तीसगढ़ में पत्रिका ने जिस ढंग से आगाज किया उससे प्रतिष्ठित माने जाने वाले अखबारों का बौखलाना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ के लूट में शामिल अखबार कैसे बंटवारा स्वीकार करे इसलिए सारी लड़ाई अस्तित्व को लेकर है। हम ही नहीं विष्णु सिंहा ने अग्रदूत में सोच की लकीर में कह दिया कि राजस्थानी और भोपाली अखबारों की लड़ाई से सारे नियम कायदे ताक पर रख दिया गया। भास्कर को तो पत्रिका का बंडल चुराते पकड़ा गया और शासन-प्रशासन मूक दर्शक बनी रही। किरायेदारों के अपराध पर मकान मालिक को धर दबोचने वाली इस सरकार ने इस अशांति फैलाने वाली करतूत पर सिर्फ जुर्म दर्ज किया वह भी पत्रिका के दबाव पर।
सोच की लकीर में विष्णु सिन्हा ने अखबारों के बेशर्मी को भी उजागर किया है कि किस तरह से नवभारत ने अग्रिम आधिपत्य पर बिल्डिंग खड़ा कर दी या समवेत शिखर को कैसे जमीन मिल गई। अमृत संदेश के अवैध निर्माण पर भी शासन-प्रशासन चुप है तो यह छत्तीसगढ़ को लुटने की साजिश नहीं तो और क्या है। जिस तह से सरकारी विज्ञापनों के लिए जीभ लपलपाई जाती है और चरण वंदन कर छत्तीसगढ़ को लुटने वाले अधिकारी व नेताओं का यशोगान किया जाता है उससे आम आदमी बेहद दुखी है वह चाहता है कि जब अवैध निर्माण टूटे तो अखबारों पर भी कार्रवाई हो। जब नियम कायदों की बात हो तो इसके जद में अखबार भी रहे।
राजस्थानी और भोपाली के अलावा धंधेबाजों के अखबारों का एक ही मकसद रहा है और सरकार में बैठे लोग भी इन धंधेबाजों को मदद करने आतुर है। अखबार मालिकों की इस करतूत पर सरकार जिस तरह से मुहर लगाकर अपना उल्लू सीधा कर रही है वह अंयंत्र देखने को नहीं मिलेगा। नियमों को ताक पर रखकर पत्रकारों को कीड़े-मकौड़े की तरह इस्तेमाल करने वाले अखबारों ने पत्रकारिता ही नहीं इस देश का भी नुकसान किया है। यदि किसी सरकार को बनियों की सरकार कहा जाता है तो कई अखबार भी इन्हीं की है जिनका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है ऐसे में सरकार किस नियम के तहत इन्हें कौड़ियों के मोल जमीन व विज्ञापन देती है यह सरकार ही जाने। हमारे पास ढेरों शिकायतें अखबारों की दादागिरी की आती है और हम कोशिश करते हैं कि पत्रकारिता अब भी मिशन के रुप में चले। देश निर्माण की जिम्मेदारी वहन करें।
और अंत में...
कहते हैं लोग अपने दुख से कम दूरे के सुख से यादा दुखी है यही हाल अखबारों में भी है। पत्रिका के आने से कई अखबार वाले विज्ञापन के बंटवारे से दुखी है लेकिन एक अखबार ऐसा है जिसे पत्रिका के आने से नुकसान तो हुआ है लेकिन वह इस नुकसान के बाद भी खुशी मना रहा है क्योंकि अकेले भास्कर से लड़ाई संभव नहीं अब दो मिलकर भास्कर को निपटायेंगे। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है न।

करोड़ों दबाने वाले को पुलिस ने सिर्फ तीन लाख लेकर छोड़ दिया

कम्प्लेन नहीं थी इसलिए नहीं पकड़ने का बहाना
राजधानी में शासन-प्रशासन के नाक के नीचे एक व्यक्ति फर्जी फाईनेंस कम्पनी का कारोबार चलाकर फिर आम लोगों को करोड़ों रुपया हड़प कर निकल गया। पुलिस के आला अधिकारी की जानकारी में यह बात भी आ गई लेकिन उसे पकड़ने की बजाय उससे सिर्फ तीन-साढ़े तीन लाख रुपए लेकर छोड़ दिया गया। इस कंपनी के संचालक शिवकुमार शर्मा के पार्टनर मदनमोहन राये सेट्टी व उसके पुत्र तक को पुलिस गिरफ्तार करने से बच रही है।
शिवसेना प्रमुख धनंजय सिंह परिहार के होटल में डांस बार चलाने के एवज में डीडी नगर पुलिस का पैसा खाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि राजधानी के ही मौदहापारा थाने पर तीन-साढ़े तीन लाख रुपए लेकर नटवरलाल शिवकुमार शर्मा को छोड़ देने का मामला चर्चा में है। राजधानी में फर्जी फाइनेंस कंपनी चलाकर लोगों से ठगी करने का यह पहला मामला नहीं है लेकिन पुलिस द्वारा किस तरह से ऐसे अपराधों को बढ़ावा दिया जा रहा है और कैसे पकड़ में आए अपराधियों को पैसा लेकर छोड़ा जा रहा है यह पहली बार प्रकाश में आया है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक राजस्थान से आकर शिवकुमार शर्मा नामक एक व्यक्ति ने यहां रिटायर्ड शासकीय इंजीनियर मदनमोहन राये सेट्टी से संपर्क किया और फिर श्री सेट्टी के ऋषभ काम्प्लेक्स स्थित 210 नम्बर के कार्यालय में वैष्णव फायनेंस कंपनी का आफिस डाला। इसके बाद उसने वहां कुछ कर्मचारी रखे और आसानी से फाईनेंस कराने का यहां के प्रतिष्ठित माने जाने वाले दैनिकों में विज्ञापन प्रकाशित किया। बताया जाता है लगातार विज्ञापन प्रकाशित होने की वजह से लोगों ने फाईनेंस के लिए वैष्णव फाईनेंस से संपर्क किया जहां मदन मोहन सेट्टी के पुत्र व स्टाफ की लड़कियाें ने लोगों से फाइनेंस के एवज में एक निश्चित रकम जमा कराना शुरु कर दिया। यह खेल महीनेभर ही चला था कि यहां कार्यरत अनिमेष दुबे को इस कंपनी के कामकाज पर संदेह हुआ तो उन्होंने क्राईम स्क्वाड प्रभारी श्री साहू को इसकी मौखिक जानकारी दी।
बताया जाता है कि बुधवार को क्राईम स्क्वाड ने तत्काल इसकी जानकारी क्राईम एसपी अजात शत्रु और एडिशनल एसपी लाल उमेंद सिंह को दी और इनकी सलाह पर मौदहापारा थाना प्रभारी व स्टाफ के साथ ऋषभ काम्प्लेक्स स्थित दफ्तर में छापा मारा गया। जहां से शिवकुमार शर्मा को थाना बुलाया गया। इसके बाद क्राईम विभाग ने अपने को अलग कर लिया। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद शिवकुमार शर्मा थाना पहुंचा और यही से लेन-देन का खेल शुरु हुआ। बताया जाता है कि यहां शिवकुमार ने पांच-पांच सौ के सात गड्डी आफिस से मंगाया और थोड़ी देर में उसे छोड़ दिया गया।
इधर दूसरे दिन यानी गुरुवार को जब शिवकुमार दिनभर आफिस नहीं आया सके बसककककतो स्टाफ को संदेह हुआ वहीं शाम को पैसा जमा करने वालों के बीच फुसफुसाहट होने लगी कि कंपनी फर्जी है और बुलंद छत्तीसगढ़ के पत्रकार भी वहां पहुंच गए। तभी वहां मदनमोहन राये सेट्टी व उसके पुत्र ने यह कहते हुए आफिस बंद कर दी कि आफिस बंद होने का समय हो गया है जो भी पूछताछ करनी है कल कर लेना। इधर जब शिवकुमार शर्मा से उसके मोबाईल नम्बर 9754752682 में संपर्क किया गया तो उन्होंने भी अपने आप को सच्चा बताते हुए दूसरे दिन आफिस में मुलाकात करने की बात कही। चूंकि पूरा मामला संदेह से भरा था इसलिए जब यहां कार्यरत स्टाफ से चर्चा की गई तो पुलिस कार्रवाई और लेन-देन का मामला सामने आया।
इसके बाद जब दूसरे दिन शुक्रवार को आफिस नहीं खुला तो संदेह यकीन में बदलने लगा तब बुलंद छत्तीसगढ़ ने मदनमोहन राये सेट्टी के न्यूशांतिनगर स्टेट बैंक के पीछे स्थित निवास में संपर्क किया तो वहां फायनेंस कंपनी के कर्मचारी मिले और हमसे बताया गया कि बाप-बेटे अपने वकील के पास गए हैं। ताकि फायनेंस कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई जा सके और दोपहर में मौदहापारा थाने में इनके द्वारा लिखित में शिकायत कर दी गई। इधर स्टाफ से बातचीत से पता चला कि कंपनी में मदनमोहन राये सेट्टी के पुत्र बैठते थे और पूरी लेन-देन वही करते थे। स्टाफ के लोगों ने शक जाहिर किया कि वे भी पार्टनर थे और अपने को बचाने पुलिस में शिकायत की गई है। इधर इस संबंध में जब मौदहापारा प्रभारी श्री टंडन से पूछताछ की गई तो उन्होंने कहा कि चूंकि किसी ने कम्प्लेन नहीं की थी इसलिए कार्रवाई नहीं की गई।
इधर कंपनी के पार्टनर सेट्टी से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा कि शिवकुमार उसके किरायेदार हैं और उनका पुत्र वहां नौकरी करता था जबकि उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि वे रोज क्या करने आफिस जाते थे। उन्होंने कहा कि वे एसपी को भी शिकायत कर चुके हैं और पैसे की उन्हें कोई जानकारी नहीं है। इधर पता चला है कि कंपनी ने करीब चार सौ लोगों को चूना लगाया है और उनसे करीब तीन करोड़ रुपए लेकर फरार हो गया है। इधर इस मामले में पुलिस की करतूत पर कर्मचारी दुखी है कि पहले से जानकारी देने के बाद भी शिवकुमार से पैसे खाकर छोड़ दिया गया जबकि सेट्टी बाप-बेटे भी इस साजिश में हिस्सेदार हैं जिनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है?
ढाई लाख रुपए कहां गए...
गुरुवार की शाम जब बुलंद के पत्रकार फायनेंस कम्पनी के दफ्तर पहुंचे तब वहां ढाई लाख रुपए जमा थे और कहा जाता है कि इस रुपए को मदनमोहन सेट्टी के पुत्र अपने साथ ले गए लेकिन जब इन्होंने पुलिस में इस फर्जीवाड़े की शिकायत की तब इस रुपए का जिक्र ही नहीं किया। जबकि आफिस की चाबी इन्हीं के पास है और ताला बंद इन्हीं लोगों ने किया है। इससे भी संदेह होता है कि पूरे मामले में सेट्टी बाप-बेटे शामिल रहे हैं?
बार डांस से महिना
तपन का आव भगत
छत्तीसगढ़ पुलिस की करतूत पहली बार उजागर नहीं हुआ है। यदि शिवसेना प्रमुख के होटल में एश करने पहुंचे भाजपाध्यक्ष के पुत्र की पिटाई नहीं होती तो डांस बार अब भी चलते रहता क्योंकि यहां से पुलिस को करीब एक लाख रुपए महिना जाता था। इसी तरह तपन सरकार गिरोह के आवभगत का मामला भी लोग भूले नहीं है और इस मामले में देवेन्द्र नगर का हीरो अभी भी बचा हुआ है। यह मामले राजधानी पुलिस की अपराधियों से गठजोड़ की कहानी के लिए काफी है।