वैसे तो पूरे प्रदेश में नगरीय निकायों में राजनीति के चलते बुरा हाल है। नगर निगम राजनीति का अड्डा बन चुका है। सत्ता में बैठे मंत्री से लेकर अधिकारियों की राजनीति के चलते आम आदमी अपनी मूलभूत जरूरत से दूर होता जा रहा है और इसकी परवाह किसी को नहीं है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का तो सर्वाधिक बुरा हाल है। यहां महापौर कांग्रेस की है और प्रदेश भाजपा की सरकार होने के वजह से एक दूसरे पर हावी होने की राजनीति के चलते निगम के अधिकारी व कर्मचारी बेलगाम हो गए हैै। महापौर की नहीं चलली तो मंत्री के पास चले जाते हैं और मंत्री नाराज हुए तो महापौर से संरक्षण मिल जाता है। हालत यह है कि निगमायुक्त तक की नहीं सुनी जा रही है। सालों से एक ही पदों पर बैठे निगम के तनखईया के आगे सब बेबस है और इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। कमाई वाली जगह पर बैठने की ललक और झंझट वाली जगह से छुटकारे की राजनीति का शिकार आम आदमी हो रहा है। इस भीषण गर्मी में पानी के लिए राजधानी में त्राहि मचा हुआ है। सुबह से रात तक टेंकरो से पानी की आपूर्ति में करोड़ो रूपए की घपलेबाजी हो रही है। सफाई के नाम पर पार्षद तक लूट मचा रहे हैं और बजबजाती नालियों के चलते कई क्षेत्रों में बिमारियों ने दस्तक शुरू कर दिया है।
अवैध निर्माण को संरक्षण देने में भी पार्षद से लेकर निगम अधिकारियों की भूमिका सामने आ रही है और कब्जा करने वाले बेधड़क आम लोगों का रास्ता रोक रहे है। गोलबाजार, सदर, मालवीय रोड, एमजी रोड जैसे व्यस्ततम इलाकों का तो सबसे ज्यादा बुरा हाल है।
इस सरकार में यही हाल पूरे प्रदेश भर में है, नगरीय निकाय राजनीति का अड्डा बन चुका है इसकी प्रमुख वजह राज्य व केन्द्र्र से मिल रहे बेहताशा पैसा है जिससे अपनी जेब गरम करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जा रहा है और एक दूसरे पर हावी होने की राजनीति से निगम में कार्यरत अधिकारी इसका फायदा उठाने से गुरेज नहीं करते। राजनांदगांव, अंबिकापुर, रायगढ़ से लेकर जगदलपुर में मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने की बजाय दलगत राजनीति का अखाड़ा बन चुका है।
दूसरी तरफ पानी के टैक्स में बढ़ोत्तरी से आम आदमी परेशान है। व्यवसाय के नाम पर लगातार बढ़ रहे टैक्स वसूली से आम आदमी त्रस्त है और भ्रष्टाचार के चलते सुविधाओं से वंचित होती जनता केवल तमाशा देख रही है ऐसे में राजनीति का अड्डा बन चुके निगम को ठीक नहीं किया गया तो आनेवाले दिनों में इसका गंभीर परिणाम होगा।