बुधवार, 30 जनवरी 2013

बढते अखबार फिऱ भी लाचार


छत्तीसगढ में होने जा रहे इस बार विधानसभा चुनाव की तैयारी  में सिफऱ् राजनैतिक दल ही नहीं मीडिया भी सक्रिय हो गया है। कई अखबार फिऱ से छपने लगे हैं तो हर माह नए नाम से अखबारों का पंजीयन भी होने लगा है। सरकारी विज्ञापन और नेताओं से विज्ञापन के लिए जोड़-तोड़ शुरु हो गई है।
एक आंकड़े के मुताबिक छत्तीसगढ़ में प्रकाशित होने वाले अखबारों की संख्या 2200 से अधिक है। इनमें से कई अखबार तो राष्ट्रीय या धार्मिक त्यौहारों पर ही भरपूर विज्ञापन के साथ प्रकाशित होते हैं।
कभी सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए पहचाने जाने वाले छत्तीसगढ़ में अब पेड न्यूज या तोड़-मरोड़ कर खबरें प्रकाशित करने का दौर शुरु हो गया है। यह कहानी सिफऱ् छोटे बैनरों की नहीं है बल्कि बड़े नामचीन बैनरों पर भी कई तरह के आरोप लग रहे हैं। कोई अपने नाम के अनुरुप मित्रता निभा रहा है तो कोइ कोयला खदान के लिए जिद पकड़े हुए है। कहने को तो नए तेवर और नए कलेवर की वकालात हो रही है तो कईयों का काम केवल दलाली करना रह गया है।
सरकार में बैठे लोग भी ऐसे अखबारों को उनकी औकात के अनुरुप रोटी फ़ेंक रहे हैं जबकि कलम की ताकत को नजर अंदाज करते हुए ठकुरसुहाती में लगने वालों की संख्या कम नहीं है।
इलेक्ट्रानिक वालों ने जोर दिखाया
प्रेस क्लब से अलग होकर पृथक संगठन बनाने वालों ने अपनी ताकत दिखानी शुरु कर दी है। इलेक्ट्रानिक मीडिया एसोसिएशन के कार्यालय में कैरम लग गया है और इसका उद्घाटन प्रेस क्लब के पूर्व पदाधिकारी और मानद सदस्य आसिफ़ इकबाल ने किया। कभी प्रेस क्लब की गरिमा के लिए लडऩे वाले आसिफ़ इकबाल पृथक बने संगठन में जाना चर्चा का विषय है।
वैसे इलेक्ट्रानिक वालों का दावा है कि अभी और भी कई नामचीन पत्रकार प्रेस क्लब छोडऩे वाले हैं। हालांकि अभी पूरी तरह इलेक्ट्रानिक वाले ही एक नहीं हो पाए हैं। ऐसे में वापसी चर्चा भी कम नहीं है।
और अंत में...
पत्रिका में पहले दिन मौदहापारा पुलिस की पिटाई की खबर छूट जाने की भरपाई दूसरे दिन की गई, लेकिन जनसम्पर्क अधिकारियों ने इस पर खूब चुटकी ली और कहने लगे कि जोश के साथ होश नहीं रखा गया तो खबरें छुटेंगी ही। किसी दिन भद्द भी पिट सकती है।