बुधवार, 21 अप्रैल 2021

जन की बात-5

 

कोरोना, कोरोना, कोरोना... सब तरफ एक ही दृश्य, त्राहिमाम् त्राहिमाम्! इस देश के लोग बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के है इसलिए इसे ईश्वर का प्रकोप भी माना गया। धार्मिक हम भी है इसलिए जब चारों ओर करुण क्रुदन और लाशें दिखने लगी तो मन में यह सवाल भी आया कि ईश्वर आखिर हमें यह क्यों दिखाना चाहता है, ऐसा क्या पाप हुआ है जो ये दिन देखने पड़ रहे हैं, अपनों की पीड़ा में भी हम कुछ खास सहायता के लिए प्रस्तुत नहीं हो पा रहे हैं, अपनों के चेहरे तक नहीं देख पा रहे हैं?

और हमारी ही बनाई हुई सत्ता बड़े ही निर्लजता से कुंभ की अनुमति दे रहा है, चुनौवी रैली में भीड़ के सामने खुशी महसूस कर रहा है, क्या यह इस सत्ता को चयन करने का पाप भोग रहे हैं, नहीं नहीं इस रोग से तो पूरी धरती पी़ि़त है, शहर व कस्बों के जीव जंतु भी इस कहर से कहां बच सकें है, वो तो भला हो ईश्वर का कि अभी तक मनुष्यों ने जीव-जन्तु को बगैर धर्म से जोड़े सेवा कर रहे हैं, आवारा मवेशियों, स्वान और चिडिय़ों को भोजन दे रहे हैं।

वरना कुंठित धर्मालंबियों ने गाय-बकरा पता नहीं किस किस पर अपनी राजनीति साधने की कोशिश नहीं की है, गनीमत है गौ पालन का अधिकार छिनने का फरमान नहीं सुनाया गया। पिछले कुछ सालों में इस देश के लोगों ने क्या कम सत्रांश झेला है, नोटबंदी, जीएसटी जैसे मनमानी को छोड़ भी दे तो छिनता रोजगार, बढ़ती महंगाई से मध्यम वर्ग क्या गरीब नहीं होता जा रहा। उपर से बैंकों का कहर क्या मध्यम वर्ग को चूस नहीं ले रहा है, स्टेट बैक जब कहता है कि उसने मिनिमम बैलेंस से तीन सौ करोड़ से अधिक कमाये हैं तो क्या ये पैसे मध्यम वर्ग के नहीं है, या गरीबों के नहीं है, पेट्रोल-डीजल पर टैक्स क्या खून की आखरी बूंदे निचोड़ लेने का उपक्रम नहीं है। लेकिन हमारी धार्मिक आस्था ने सरकार की झूठ, नफरती किया कलाप और मनमानी को यह सोचकर नजर अंदाज नहीं किया कि हिन्दू राष्ट्र जरूरी है और इस देश के अल्पसंख्यकों और आरक्षित वर्गों के द्वारा हमारे अधिकार छिने जा रहे हैं, जबकि अल्पसंख्यकों और आरक्षित वर्गों को संरक्षण देना सरकार का काम है। 

ये ठीक है कि कांग्रेस ने भी बहुसंख्यक समाज की अनदेखी की, लेकिन इस देश की सामाजिक एकता को कभी खंडित नहीं किया, अपने शासनकाल में कई अभूतपूर्व निर्णय लिये, विकास के नये आयाम खोले, प्रेम के फूल भी खिलाये ये अलग बात है कि इस फूल में कीड़े लगने को नहीं रोक पाये। इसके लिए मैं आज भी कांग्रेस को दोषी मानता हूं कि फूल में लगने वाले कीड़ों का समुचित उपचार किया होता तो देश में प्रेम और सुगंध को ग्रहण नहीं लगता।

कोरोना भीषण महामारी के रुप में आया है, मित्र हो या सत्ता, उसकी असली परीक्षा तो आपदा काल में ही होती है और आपदा काल में सत्ता में दायित्वबोध न हो, जिम्मेदारी से मुंह मोड़ ले और केवल, सत्ता बचाने या उसे हासिल करने का ही उपक्रम करे तो इसका मतलब क्या है? यह उपक्रम तो वे लोग लगभग सौ सालों से कर रहे थे, तब कहीं जाकर सत्ता मिली है लेकिन अब भी इस देश के तीस फीसदी तो छोडिय़े बीस फीसदी भी हिन्दू यदि उनके साथ नहीं है तो इसकी वजह इस देश के अराध्य राम-कृष्ण है, इस देश के दर्शन में विवेकानंद, नानक कबीर है इस देश के हवा पानी में टैगोर, सुभाष, भगत सिंह आजाद हैं इस देश के जड़ में गांधी, नेहरु, पटेल हैं। 

इसलिए वे जड़ को काट देना चाहते हैं, इसलिए े राम-कृष्ण भगत-आजाद, विवेकानंद का सहारा लेना चाहते हैं, ताकि लोगों को भ्रमित कर सके। लेकिन ईश्वर जानते हैं कि जीवन क्या है, समाज में न्याय, सत्य का क्या महत्व है वे सिर्फ न्याय नहीं करते परीक्षा भी लेते हैं। तब अहिल्या प्रसंग में विश्वामित्र की स्वीकारोक्ति को याद करना चाहिए कि बड़ी मुश्किल से, बड़े छल-प्रपंच से जब सत्ता मिलती है तो उसका मोह भयावह होता है, सत्ता अन्यायी और झूठ परोसती है जनता को दिग्भ्रमित किया जाता है और यही राक्षसी प्रवृत्ति है।