शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

कमल विहार योजना को लेकर राजधानी के दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत में भिड़ंत हो गई। हालांकि मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस जंग को यह कहकर टाल दिया कि योजना लागू की जाएगी और जनप्रतिनिधियों से राय लेकर विसंगतियां दूर कर दी जाएगी। कहते हैं इस योजना के पीछे मुख्य उद्देश्य भाजपा के चुनाव चिन्ह को प्रचारित करने के अलावा पैसा खाना भी है। पूरी योजना को जिस तरह से जबरिया लागू करने की कोशिश की गई वह आम लोगों के साथ चार सौ बीसी के अलावा कुछ नहीं है। धारा 50 का उल्लंघन तो किया ही गया क्षेत्रीय विधायकों-सांसदों तक से राय लेने की जरूरत नहीं समझी गई।
इसी योजना के सूत्रधार की नियत पर पहले से ही संदेह रहा है। अमित कटारिया का नाम राजधानी वालों के लिए नया नहीं है उसके अंधेरगर्दी मचाने के किस्से नगर निगम में भी खूब चर्चा में रही है और उन्हें अपनी करतूत की वजह से ही निगम से हटना पड़ा। लेकिन उसने अपनी ईमानदारी का ऐसा जाल अपने आसपास बुन रखा है कि आम जनता को भी लगने लगा कि उनके साथ गलत हुआ औार शायद सरकार को भी लगा कि ईमानदार अफसर हतोत्साहित न हो और अमित कटारिया को राविप्रा में बिठा दिया गया जहां से कमल विहार की बुनियाद रखी जानी थी।
योजना का विरोध बृजमोहन अग्रवाल द्वारा किया जाने के पीछे भले ही उनका निहित स्वार्थ हो लेकिन योजना का खुलेआम विरोध विधायक देवजीभाई पटेल से लेकर सांसद रमेश बैस कर चुके थे। पूरी योजना में जिस तरह से आम लोगों के साथ धोखाधड़ी व चार सौ बीसी की जा रही थी। सच छपाया जा रहा था और लोगों को लूटने की साजिश रची जा रही थी। उनका वहां के लोग विरोध तो कर रहे थे लेकिन अमित कटारिया अपनी मनमानी में अड़े हुए थे। यहां तक कि उसने इस कमल विहार योजना के खिलाफ खबर छापने वाले दैनिक अखबार पत्रिका तक को नोटिस ही नहीं भेजा बल्कि इसके प्रचार में विज्ञापन में करोड़ों खर्च कर दिया। राविप्रा के इस विज्ञापन में कमल विहार की विसंगतियों के खिलाफ छापने वाले को चेतावनी तक दी गई और लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के अधिकार पर कुठाराघात की कोशिश हुई। लेकिन जिस दमदारी से पत्रिका को नोटिस दी गई। विज्ञापन में नाम छापने से राविप्रा डर गया। अब जब योजना का विरोध सरकार के विधायक-सांसद और मंत्री करने लगे हैं तब भी इस योजना को लागू करने की बात अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
अमित कटारिया को यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि वे सिर्फ जनता के नौकर हैं। उन्हें तो वेतन मिलता है वह जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से दिया जाता है और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। अपनी बात सही हो तब भी जनता की भावनाओं का ध्यान रखना होगा यही नहीं कानूनी नोटिस के पहले क्या सरकार से अनुमति ली गई है या यहां भी अंधेरगर्दी मचाई गई है? इस सवाल का जवाब अमित कटारिया ही नहीं सरकार को भी देना होगा। लोकतंत्र में न तो किसी की मनमानी चलनी है न ही अंधेरगर्दी। यदि आप ईमानदार हैं तो अपनी ईमानदारी अपने पास रखे। सिर्फ एक रुपए वेतन लेने का प्रोपोगेण्डा इस राजधानी ने बहुत देखा है और लोगों को मालूम है कि ऐसा सिर्फ अपनी छवि बनाने का तिकड़म मात्र है। इसलिए जिसमें दमदारी और ईमानदारी होती है उसे खुलकर अपनी बात कहनी चाहिए। चोरी छिपे काम चार सौ बीसी कहलाता है।

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