गुरुवार, 15 मार्च 2012

उद्योगों को बिजली की छूट आम आदमी की जेब से लूट



छत्तीसग सरकार ने एक तरफ आम उपभोक्ताओं से बिजली बिल की वसूली में केवल कड़ा रुख अख्तियार की है बल्कि विरोध के बावजूद बिजली दर में वृिद्ध करने आमदा हैं वहीं दूसरी तरफ 38 उद्योगों के बकाया 22 करोड़ रुपए का बिल माफ कर दिया। जिन उद्योगों के बिजली बिल माफ किये गये हैं उनमें से कई उद्योगों में भाजपा नेताओं के रिश्तेदार डायरेक्टर भी हैं।
छत्तीसगढ़ में चल रहे राम नाम की लूट थमने का नाम ही नहीं ले रहा है यही वजह है कि इस सरकार की कोई उद्योगपति की सरकार कह रहा है तो कोई व्यापारियों की सरकार कह रहा है। आम लोगों को सस्ते दर पर अनाज देकर जनता की हितैषी बनने वाली राज्य सरकार ने प्रदेश के 38 उद्योगों का 22 करोड़ से अधिक का बिजली बिल माफ कर दिया है।
उर्जा विभाग और राज्य विद्युत नियामक आयोग के आदेश पर उद्योगों को दी गई छूट को लेकर भ्रष्टाचार की बात जन चर्चा का विषय है। जिस विभाग के मुखिया मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह स्वयं हो वहां नियामक आयोग के विवादित अध्यक्ष  को बिठाये जाने से पहले ही मुख्यमंत्री की साफ छवि को धक्का लगा है।
बताया जाता है कि नियामक आयोग के अध्यक्ष मनोज डे पर ट्रांसफार्मर और मीटर खरीदी में भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया है और अब चर्चा यह है कि मनोज डे के अध्यक्ष बनने के बाद ही उद्योगों को 22 करोड़ रुपये की छूट से एक क्या विवाद खड़ा हो गया है।
एक तरफ बिजली विभाग हजार करोड़ के आसपास के घाटे में चल रहा है और दूसरी तरफ घरेलु बिजली दर में वृद्धि की बात हो रही है तब 38 उद्योगों के 22 करोड़ के बिजली बिल को माफ करना अनेक संदेहों को जन्म देता है.
हमारे भरोसे मंद सूत्रों ने बताया कि जिन 38 उद्योगों का बिजली बिल माफ किया गया है उनमें से कई उद्योगों में भाजपा नेताओं के रिश्तेदारों की भागीदारी है और यही वजह है कि घाटे में चलने के बावजूद बिजली बिल माफ किया गया है। चर्चा इस बात की भी है कि इन उद्योगों के बिल माफ करन ेके एवज में जमकर सौदेबाजी की गई और पैसा नहीं देने वाले 3 उद्योगों को तकनीकी आधार पर छूट नहीं दिया गया।
जिन उद्योगों को छूट दी गई हैं उनमें से हीरा फेरो, लहरी पावर, शारदा एनर्जी, अमरनाथ पावर, भवानी मोल्डर्स एव्ही स्टील किनकी है यह पूरा शहर जनता है। उद्योगों को दी गई इस छूट से आम लोगों में भारी नाराजगी है।
बताया जाता है कि विद्युत विभाग में बैठे कई अधिकारी मुख्यमंत्री को बदनाम करने न केवल जमकर  भ्रष्टाचार कर रहे हैं बल्कि उटपटांग काम भी कर रहे हैं।
जोगी शासन काल में फायदे में चलने वाला बिजली विभाग और तीन साल पहले तक इन्कम टैक्स पटाने वाला विभाग अचानक कैसे घाटे में चला गया यह आम लोगों के समझ के बाहर की बात है।
बहरहाल घरेलु बिजली के दर में वृद्धि करने की कवायद करने वाला विभाग यदि उद्योगों का बिजली बिल माफ कर रहा है तो इसका दुष्परिणाम भी सरकार को भुगतना पड़ सकता है।

असंतुलित विकास बन रहा विनाश...


छत्तीसगढ़ में संतुलित विकास कैसे हो इसे लेकर न तो सरकार के पास ही कोई योजना है और न ही प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस हही कुछ कर रही है। जिसका दुष्परिणाम जन आक्रोश के रूप में निकलता तो है लेकिन सरकार की ताकत इसे दबा देती है। लेकिन असंतुलित विकास की बेदी पर कब तक आम लोग अपने को रोक पायेंगे?
छत्तीसगढ़ में इन दिनों नक्सली समस्या के अलावा माफिया राज भी कायम होने लगा है। भ्रष्टाचार चरम पर है और अफसर राज के चलते ओपन एम्सेस से लेकर रोगदा बांध घोटालों में सरकार के पास कोई जवाब नहीं है। हालत यह हो गई है जो जिनता बड़ा भ्रष्टाचारी है उसे उतने ही बड़े पद से नवाजा गया है। सरकार का काम बड़े लोगों को बचाने व छोटों को सताने का होने लगा है यहीं वजह है कि आर्थिक अपराध ब्यूरों व लोकायुक्त जैसी सस्थाएं सफेद हाथी साबित होने लगा है। सूचना के अधिकार कानून की जितनी धज्जियां यहां उड़ाई जा रही है वैसा कहीं देखने को नहीं मिलेगा।
इन सबके पीछे असंतुलित विकास प्रमुख है। आजादी के 6 दशक बाद भी यदि आम लोगों को लोकतंत्र के मायने नहीं समझाया गया तो  अपराधियों का राज स्वाभाविक है।
छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण को हुए दशक भर से उपर हो गया है सरकार कभी भी संतुलित विकास की योजना बना सकती है हाल ही में सरकार ने करीब दर्जन भर जिले बनाकर इसकी शुरुआत जरूर की है लेकिन असली जरूरत पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।  छत्तीसगढ़ में संतुलित विकास के लिए सबसे पहले तो सभी विभागों के मुख्यालय को राजधानी में रखने की बजाय विभिन्न जिलों में उसकी ज्यादा उपयोगिता के साथ बनाया जाना चाहिए।
इसी तरह सभी बड़े निजी शिक्षण संस्थाओं को राजधानी में ही कालेज-स्कूल खोलने की अनुमति देने की बजाय अलग अलग जिले में अनुमति दी जानी चाहिए। यहीं स्थिति निजी बड़े अस्पताल खोलने जाने को लेकर सरकार की नीति होगी चाहिए।
यही नहीं राजधानी में बढ़ती आबादी को अन्य जिले में काम के अवसर बढ़ाकर रोका जा सकता है।
इसके अलावा भी संतुलित विकास के लिए सरकार को विशेषज्ञों की सलाह लेकर 10-20 साल का प्रोजेक्ट बनाकर काम करना चाहिए।