शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

सरकारी लूट...


छत्तीसगढ़ में सरकारी लूट चरम पर है। हर विभाग में घपले बाजी के नये-नये सरकारी तरीके हैरत अंगेज है ऐसे में यह यक्ष प्रश्र उठना स्वाभाविक है सरकार के जिरो टारलेंस की बात कितनी सार्थक है।
ताजा मामला आबकारी विभाग का है जहां सरकारी लूट का ऐसा तरीका ईजाद किया गया जो न केवल घोर आपत्तिजनक है बल्कि हैरान कर देने वाला है। बिलासपुर में आधा दर्जन शराब दुकाने बगैर ठेके का महिनों चलता रहा। इसकी वजह से सरकार को राजस्व का नुकसान तो उठाना ही पड़ा। अधिकारियों और मंत्रियों की जेबों में भी तगड़ी रकम पहुंच गई। शिकायत कर्ता अनिल दुबे के मुताबिक इस खेल में न केवल शराब माफिया बल्कि आबकारी विभाग के अधिकारी और सरकार के कई मंत्री भी शामिल है। खुले आम सरकार डाका की संज्ञा देने वाले दुबे ने इस मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
वास्तव में सरकार के इस करतूत का पर्दाफाश तो होना ही चाहिए दोषियों को कउ़ी सजा के साथ-साथ जेल में भी होना चाहिए लेकिन कहा जाता है कि जब पूरा तंत्र ही भ्रष्ट हो और सत्ता में बैठे लोगों का ध्येय पैसा कमाना हो तो सारी जांच और उसकी रिपोर्ट बेमानी हो जाती है।
छत्तीसगढ़ में तीसरी बार सत्ता हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी पर भ्रष्टाचार और मनमानी के इतने आरोप लगे हैं कि यदि इनकी निश्पक्ष जांच कराई जाए तो कई बड़े चेहरे न केवल सलाखों के पीछे होंगे बल्कि भाजपा के कई राष्ट्रीय नेता भी मुंंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे।
भटगांव कोल ब्लॉक से लेकर इंदिरा बैंक घोटाले का मामला हो या लोकायुक्त में पीडब्ल्यु डी और अन्य विभाग का मामला हो। सचिवों से लेकर मंत्री तक भ्रष्टाचार की चपेट पर है। हालत यह है कि बाबूलाल अग्रवाल हो या एम के राउत सहित कई नामी गिरामी सचिव कटघरे में है लेकिन जांच के नाम पर जिस तरह की नूरा कुश्ती की जा रही है वह हैरान कर देने वाली है।
लोकतंत्र का सबसे दुखद पहलू यह है कि 40-42 फीसदी वोट पाकर स्वयं को सर्वशक्तिमान समझ लिया जाता है और पूरे खेल में विपक्षी दलों की भूमिका भी सिर्फ कांव-कांव की रह जाती है।
बिलासपुर के शराब दुकान के मामले में जिस तरह का खेल हुआ है। उसकी जांच होगी भी या नहीं यह भी सवालों में है ओर लूट अब भी जारी है...