मंगलवार, 11 मई 2010

मीडिया पर मीडिया

परदे बचा न पायेंगे अब घर के आबरू
इस दौर में हवाओं की भी नियत खराब है
छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता का एक नाम था लेकिन राय बनने के बाद जिस तेजी से सरकारों ने विज्ञापन का चारा डाला है उससे मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि अखबारों में अब खबरें नहीं होती लेकिन जिस तरह से खबरों को मैनेज किया जा रहा है वह आम लोगों के समझ में भी आने लगा है। वैसे तो जनसंपर्क विभाग का काम सरकार और जनता के बीच सेतु का है लेकिन इन दिनों जनसंपर्क का पूरा ध्यान मीडिया मैनेजमेंट पर जा टिका है और वे इसमें भी कमाई का जरिया निकाल लेते हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के बाहर से प्रकाशित होने वाले टुटपुंजिए पत्र-पत्रिकाओं को भी मोटी राशि वाले विज्ञापन दिए जाते हैं और इसके एवज में कमीशन लिए जाते हैं।
सरकारी विज्ञापन लेने की होड़ में अखबारों को जनसंपर्क के जाल में फंसा रखा है। अब न पहले जैसी खोजी पत्रकारिता होती है और न ही घटना के बाद किश्तों में छपने वाले फॉलोअप स्टोरी ही दिखाई पड़ता है। एक समय था जब रायपुर के अखबारों व उनके पत्रकारों के आगे बड़े-बड़े नेता-अधिकारी तक अपना सिर झुकाते थे अब तो जमाना बदल गया है। भैय्या शब्द की लाचारी ने रिश्ते जोड़ दिए हैं और रिश्ते जुड़ने के बाद खबर की बात ही बेमानी हो जाती है। बड़े अखबारों ने तो परिशिष्ट के बहाने विज्ञापन बटोरना शुरु कर दिया है। मंत्रियों को छोटे-छोटे कार्यक्रमों में बुलाए जाने लगे है ऐसे में पत्रकारिता की विश्वसनियता पर सवाल उठे भी तो क्या। धंधा अच्छा चलना चाहिए।
और अंत में....
पिछले दिनों स्कूल के पैसे से अखबार निकालने वाले ने दूसरे अखबार वाले से कहा आपका अखबार हमारे यहां तभी छपेगा जब आप अपने यहां के अमूक कर्मचारी को हटाओगें उसके लड़के को हम हटा रहे हैं।

मंदिर-आदिवासियों की जमीन हड़पने में सरकार की चुप्पी!

घोटालेबाजों का जमाना महाधिवक्ता है सुराना - 8
सुराना परिवार द्वारा श्री हनुमान मंदिर की जमीन और आदिवासियों की जमीन हड़पने के मामले में सरकार की चुप्पी आश्चर्यजनक है और कहा जा रहा है उच्च राजनैतिक पहुंच के चलते ही इस मामले पर कार्रवाई नहीं की जा रही है जबकि प्रथम दृष्टया ही अपराध बनता है।
छत्तीसगढ़ को लुटने की साजिश में वैसे तो कई नेता अधिकारी और मंत्री तक शामिल है लेकिन महाधिवक्ता जैसे पद पर बैठने वाले देवराज सुराना और उसके परिवार पर जिस तरह से आरोप लगे हैं उसके बाद तो इस मामले की उच्च स्तरीय जांच की जरूरत है लेकिन आश्चर्य का विषय तो यह है कि जांच की बात तो दूर उन्हें महाधिवक्ता बना दिया गया। ऐसे में सरकार के रवैये का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
इधर गोपियापारा में जब श्री हनुमान मंदिर की जमीन के बिक्री को लेकर बात की गई तो लोगों में आक्रोश साफ झलक रहा था। मंदिरों की जमीन बचाने में लगे श्री ठाकुर ने कहा कि सरकार कानून तो बना देती है लेकिन कार्रवाई नहीं करती अभी भी साजिशपूर्वक मंदिरों की जमीनें बेची जा रही है। नागरिकदास मठ की जमीन तो साजिशपूर्वक एक संस्था को ही दी जा रही है जिसका हम विरोध करते हैं। वहीं अजय अग्रवाल ने कहा कि महाधिवक्ता पद एक गरिमामय पद हैं और ऐसे जगह पर विवादास्पद व्यक्तियों को बिठाया जाना ठीक नहीं है जबकि सरकार को चाहिए कि वे ऐसे विवादास्पद व्यक्तियों से इस्तीफा ले ले।इसी तरह आदिवासी की जमीन हड़पने के मामले में भी शासन प्रशासन की भूमिका संदिग्ध है और इस मामले में भी लीपापोती का केल जमकर खेला गया। बहरहाल महाधिवक्ता देवराज सुराना के विवादास्पद मामले की शहर में कई तरह की चर्चा है और कहा जा रहा है जमीन व्यवसाय से जुड़े सुराना परिवार के कई और मामले सामने आएंगे।