शुक्रवार, 14 मई 2021

कनक-कनक तै सौ गुनी...

 

जिस तरह से रुदन और वेदना के स्वर दिनों दिन आकाश से ऊंचा होने लगा है, यकीन मानिये ये किसी नरमेघ से कम नहीं है। और इन लाशों को देखकर भी यदि हम को उसके अपराध के लिए बचा रहे हैं तो फिर हमारे भीतर का मानव मर चुका है और हम वापस जानवर बन रहे हैं।

हम यहां मोदी सरकार की पिछली लापरवाही के इस त्रासदीपूर्ण दुष्परिणाम को नहीं गिना रहे हैं बल्कि वर्तमान में मोदी सत्ता को क्या करना चाहिए पर चर्चा कर रहे हैं। सत्ता ने पूर्व में जो गलतियां की वह अक्षम्य है लेकिन इस देश में कब सत्ता ने अपनी जिम्मेदारी मानी है, ईलाज के अभाव में दम तोड़ती जिन्दगी, भूख से मौत और सत्ता की रईसी को बरकरार रखने की कोशिश में आम जनों का खून निचोडऩे वाला टैक्स।

ऐसे में जो हुआ सो हुआ लेकिन अब क्या आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा। क्या आगे भी ऐसी लाशें नदी में बहती रहेगी, इतनी रुदन और वेदना के बाद भी यदि करुणआ न जगे और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो इस पर क्या सचेत रहने की जरूरत नहीं है। बड़े शौक से नेहरु और गांधी को गली देने वाले जरा सोचिये इस भीषण महामारी में यदि वे होते तो क्या वे घरों में दुबके बैठे होते, आजादी के भीषण त्रासदी के बाद क्या वे चुप िबैठे थे? इसलिए जब बात इस त्रासदी की हो रही है और देश का प्रधानमंत्री मुंह में दही जमाकर अपने निवास पर बैठा हो तब जिम्मेदारी को लेकर सवाल उठेंगे और जिन्हें ये सवाल पसंद नहीं वे अपने भीतर झांके और पूछे यदि उन्हें आक्सीजन, दवाई और खाना न मिले तब भी क्या वे अपनी किस्मत को ही कोसेंगे?

जब कांग्रेस ने सेंट्रल विस्टा का शिलान्यास किया था तब भी मैं इसका विरोध कर रहा था और आज जब सेंट्रल विस्टा में प्रधानमंत्री का महल बनाया जा रहा है तब हमें सोचना चाहिए कि क्या हम उस राजतंत्र को वापस देखना चाहते है जो राजमहल के बगैर अकल्पनीय था। लोकतंत्र में हम प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की जरूरत इसलिए महसूस नहीं की गई थी कि वे महलों में रहे, बल्कि यह व्यवस्था इसलिए की गई थी ताकि हर व्यक्ति को मूलभूत सुविधा मिले, उनके जीवन जीने का संघर्ष कम हो सके लेकिन आम आदमी के जीने का संघर्ष बढ़ गया और जनप्रतिनिधियों की सुविधा में बढ़ोत्तरी हो गई।

जनप्रतिनिधियों की सुविधा बढऩी चाहिए लेकिन वह लाशों के महल में कदापि स्वीकार नहीं है। क्या देश के प्रधानमंत्री सहित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और तमाम जनप्रतिनिधियों को अस्पतालों का दौरा नहीं करना चाहिए? इस त्रासदी के शिकार लोगों की पीड़ा जानकर भविष्य के हिसाब से व्यवस्था करने में ध्यान नहीं देना चाहिए।

सेन्ट्रल विस्टा में महल तो कदापि नहीं बनना चाहिए और यह बनता है तो कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष को यह घोषणा कर देना चाहिए कि जब तक इस देश में भूख से एक भी व्यक्ति की मौत होती है, ईलाज के अभाव में कोई दम तोड़ देता है तब तक वे इस महल में सत्ता आने के बाद भी नहीं रहने वाले। कांग्रेस तो महात्मा गांधी की पार्टी कहलाती है फिर इस तरह की घोषणा से परहेज क्यों? 

कोरोना की वजह से बर्बाद हुए परिवार और अनाथ बच्चों के लिए जो काम देश के प्रधानमंत्री को करना चाहिए वह छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने किया है। यह एक तरह से उस केन्द्रीय सत्ता के मुंह में तमाचा है जो अपने को देश की सरकार कहती है। हालांकि जिस तरह से चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री का झूठ, अमर्यादित भाषा रही है, उसके बाद तो वे भाजपा के संघ संस्कारित प्रधानमंत्री ही ज्यादा रहे हैं। तब लोकतंत्र में जनता की जिम्मेदारी है कि वे सरकार को मजबूर करे। क्योंकि सत्ता का मतलब रईसी हो गया है।