बुधवार, 23 दिसंबर 2020

किसानों की मौत पर बेशर्म ट्रोल आर्मी...

 

किसानों की मौत पर बेशर्म ट्रोल आर्मी...

क्या चुनावों में लगातार जीत के बाद कोई सत्ता इस तरह हो जाती है कि वह किसी की नहीं सुने? या फिर चुनाव में जीत जाने का अर्थ कुछ भी करे? झूठ पर झूठ बोलता जाये और विरोधियों को कटघरे में खड़ा करने झूठ का सहारा ले।

आप कहेंगे नहीं, ऐसा नहीं हो सकता? लेकिन जब ऐसा होने लगे तो आप क्या कहेंगे? लेकिन सच यही है कि तीनों कृषि कानून को लेकर एक तरफ तीन दर्जन किसानों की जान चली गई लेकिन सत्ता को  इससे कोई सरोकार नहीं रह गया है। संवेदनहीनता की सीमाएं तो तब लांघ दी गई जब सत्ता में बैठे लोग इसे विरोधियों की साजिश और पैसे वाले किसानों का आंदोलन कहकर दुष्प्रचार करने लगे लेकिन क्या किसी ने सोचा भी है कि किसान आंदोलन के दौरान जिन तीन दर्जन किसानों की मौत हुई है उनकी आर्थिक स्थिति क्या है। क्या सत्ता बताएगी कि बीते सालों में पंजाब के बीस हजार से अधिक गरीब किसानों ने आत्महत्या की है।

नहीं सत्ता यह कभी नहीं बताएगी कि दिल्ली बार्डर में ठिठुरते ठंड में मरने वाले किसान गरीब हैं वह तो आंदोलन को तोडऩे उसी झूठ और नफरत का सहारा लेगी जिस झूठ और नफरत के दम पर वह सत्ता हासिल करने में सफल हुई है। न काला धन आया न भ्रष्टाचारी जेल ही गए। क्या हुआ राबर्ट वाड्रा के जमीन घोटाले का या शारदा चिटफंड कंपनी का प्रमुख आरोपी भाजपा में आते ही पाक साफ हो गया? नोट बंदी के दौरान मरे डेढ़ सौ लोगों के परिजनों को ही वह बता पायेगी कि इससे न कालाधन कम हुआ और न ही आतंकवाद का कमर टूटा।

इसलिए किसान आंदोलन को रौदने पूरी सत्ता और उसका ट्रोल आर्मी रोज नये झूठ के साथ सोशल मीडिया में खड़ा है। बेशर्मी के साथ। उसे बंगाल की चिंता है न कि किसानों की।

सच तो यह है कि तीनों कानून किसानों के लिए नहीं पूंजीपतियों के लिए बनाया गया हैं और सत्ता हासिल करने जब पूंजी महत्वपूर्ण साधन हो तो फिर इसे बचाने झूठ का सहारा लेना जरूरी है।

किसानों ने सरकार के सामने नहीं झुकने का फैसला लेते हुए आंदोलन को तेज करने की घोषणा कर दी है। हर एक किसान संगठन बारी-बारी से भूख हड़ताल पर बैठने लगे हैं ऐसे में सत्ता के सामने ट्रोल आर्मी एक नया हथियार बनकर सामने आने लगा है। झूठ और अफवाह की इस राजनीति से भले ही शहरी तपका प्रभावित हो जाए लेकिन किसानों के रुख से स्पष्ट है कि वे पीछे नहीं हटेंगे।

ऐसे में बाघ में केदारनाथ सिंह की यह पंक्ति याद आती है-

कि इस समय मेरी जिव्हा पर

जो एक विराट झूठ है

वही है - वही है मेरी सदी का

सबसे बड़ा सच।