बुधवार, 23 मई 2012

निजी शिक्षण संस्थानों पर उठते सवाल...


इस बार फिर बारहवी के रिजल्ट में सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूल फिसड्डी साबित हुए है। पिछले साल भी कमोबेश यही स्थिति रही  है लेकिन यह बात सरकार को दिखाई नहीं देती  और निजी स्कूल माफियाओं से होने वाली अवैध कमाई के चलते सरकारी स्कूलों को बर्बाद करने का षडयंत्र चल रहा है।
दरअसल शिक्षा माफियाओं ने तामझाम कर एक ऐसी लकीर खींच दी है कि मध्यवर्ग तक इससे प्रभावित है और आज जब एक रिक्शावाला या मजदूर तपके के लोग भी अपने बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा देना चाहते है। तब भला सरकार अपनी संस्थानों में अंग्रेजी शिक्षा क्यों शुरू नहीं करना चाहती यह घोर आश्चर्यजनक है।
शिक्षा माफिया का दबाव सरकार पर है और अब यह साफ दिख रहा है। जब हर साल सरकारी स्कूलों का परिणाम निजी स्कूलों से बेहतर हो तब सरकार का यह रवैया साफ बताता है कि सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियों को केवल अपनी जेब गरम करने से मतलब है।
छत्तीसगढ़ में शिक्षा माफियाओं ने चारों तरफ अपना पैर पसार लिया है और सरकार उनके इशारे पर भले ही नहीं नाच रहे हो लेकिन सरकारी अधिकारियों का एक बड़ा समूह निजी स्कूलों को बढ़ावा देने सरकारी स्कूलों में गड़बडिय़ां कर रहे है। लेकिन इससे सरकार की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती और सरकारी स्कूलोंं के लिए कहीं न कहीं सरकार की नीति व जनप्रतिनिधि भी दोषी है। केवल अंग्रेजी शिक्षा की वजह से ही निजी स्कूलों का भाव बढ़ा है और सरकार यदि अपनी संस्थानों में अंग्रेजी शिक्षा प्रारंभ कर दे तो आधे से ज्यादा निजी शिक्षण संस्थान बंद हो जायेंगे? जहां आम आदमी टाई,ड्रेस,बेल्ट,जूता,मोजा,कॉपी-किताब के नाम पर लूटा जा रहा है। लकिन सरकार को जानबुझकर इस तरफ से आंख बंद किये हुए है। निजी शिक्षण संस्थानों की लूट बढ़ते ही जा रही है जबकि इस पैमाने पर  वहां पढ़ाई नहीं होती यह बात हर आदमी जानता है कि निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई उतनी अच्छी नहीं होती। शिक्षकों को शोषण होता है और यहा के 90 फीसदी बच्चे कोचिंग व ट्यूशन पर निर्भर होते है। जबकि सरकारी स्कूलों के 10 फीसदी बच्चे ट्यूशन व कोचिंग का सहारा लेते है और इसके बाद भी रिजल्ट निजी स्कूलों से बेहतर आता है। ऐसे में सरकार को नये सिरे से शिक्षा नीति बनानी होगी।