गुरुवार, 3 जनवरी 2013

न वादा न काम सिर्फ हुए बदनाम


खदानों की बंदर बांट, खेती की जमीनों की बरबादी, सरकारी खजानों को अरबों-खरबों का नुकसान, भयावह अपराध और शर्मनाक भ्रष्टाचार की वजह से छत्तीसगढ़ की बदनामी राष्ट्रीय स्तर पर हुई । राजनीति और सत्ता के लिए वादे तो किये गये लेकिन न तो शिक्षा कर्मियों से किये वादे पूरे हुए न ही किसानों से किये वादे ही पूरे हुए । आदिवासी वर्ग पुलिसिया बर्बरता से उद्वेलित है तो सतनामी समाज आरक्षण कम होने से आन्दोलित है । मंत्री परिवारों की ढाट-बाट जहां आम छत्तीसगढिय़ों के दिलों को छलती करने लगा है तो शराब ठेकेदार की मुख्यमंत्री से सीधे नजदीकी ने गांवों की शांति छिन ली है । सत्ता के दुस्पयोग को लेकर छत्तीसगढ़ के लिए 2012 हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया है कहा जाय तो अतिशंयोक्ति नहीं होगी ।
छत्तीसगढ़ में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भले ही भाजपा व कांग्रेस ने राजनीति शुरू कर दी हो लेकिन इस राजनीति के घनचक्कर में सभी वर्ग अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं । घोटाले-भ्रष्टाचार और कालिख से पूते चेहरे सत्ता के दुरूपयोग की जो कहानी कह रहे है वह किसी के लिए भी शर्मसार कर देने वाला है । 
छवि पर ही धब्बा ...
          पिछला चुनाव भाजपा ने डॉ. रमन सिंह की साफ छवि की वजह से जीता था और  इस बार इसी साफ छवि पर एक नहीं कई बार धब्बे लगे हैं । रतनजोत घोटाले या ओपन एक्सेस घोटाले को लोग भूल भी जाये लेकिन कोयले खदान की कालिख से छत्तीसगढ़ की बदनामी राष्ट्रीय स्तर पर हुई है न तो इस संचेती बंधु की वजह से हुई बदनामी भूलने लायक है और न ही राजसी तामझाम वाली पार्टी ही लोग भूल सकते है । लोग न तो सलमान के झटके भूलने वाले है और न ही करीना के ठुमके पर किये गए करोड़ों रूपये ही भूलने वाले हैं ।
प्रदेश के मुख्य के पास उर्जा और खनिज जैसे महत्वपूर्ण विभाग हैं और दोनों ही विभागों में जिस तरह से भ्रष्टाचार के किस्से सामने आये है वह सरकार के लिए आगामी दिनों में मुसिबत बढ़ाने वाली हो सकती है ।
सरपल्स स्टेट का दावा बिजली की बड़ती कीमतों के आगे दम तोडऩे लगी है । लगातार बढ़ रही बिजली की कीमत ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है । उपर से आम आदमी को छूट देने की बजाय उद्योगों को जिस तरह से छूट दी गई वह व्यथित करने वाला  
 है ।
रतन जोत के नाम पर जिस तरह से करोड़ों फूंके गए वह भी अपने आप में एक इतिहास है । प्रचार-प्रसार में ही आरबों फूंके गए ।
ओपन एक्सेस घोटाला को लेकर तो सरकार के जिंदल प्रेस जगजाहिर हो गया जबकि हर गांव में बिजली पहुंचने का वादा पूरा होता कहीं नहीं दिख रहा है ।
ऊर्जा विभाग में ऊर्जासचिव अमन सिंह की नियुक्ति ही विवादास्पद है और यहां के अफसर शाही के किस्से तो दिल्ली तक सुनाई देते है ।
खनिज में तो बंदरबांट का जो खेल हुआ उसकी बदनामी राष्ट्रीय स्तर पर हुई । संचेती बंधुओं को कोल ब्लाक आबंटन में जिस तरह से नियम कानून की अनदेखी की गई वह सत्ता के दुरूपयोग का ऐसा मामला है जिसकी कालिख पूछते नही पूछ रही है । सरकार का संचेती प्रेम इस कदर है कि उससे संचेती बंधु को 49 फीसदी शेयर के बाद भी एम डी बना दिया है ।
खदानों की बंरबांट की कहानी यही खतम नहीं होती । पुस्य स्टील से लेकर न जाने कितने लोगों को खदानें दे दी गई जो नियम कानून के खिलाफ है । सरकार ने आवेदन कर्ताओं के आवेदन का परिक्षण तक नहीं किया ।
खेती की बरबादी और उद्योग प्रेम
विकास के नाम पर जिस तरह से खेती की जमीनों को बरबाद किया गया इसके दुस्परिणाम आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा ।
सरकार का उद्योग प्रेम इस कदर रहा कि उसने उद्योगों को जमीन दिलाने नियम-कायदे को ताक पर रखा । झूठे जन शिविर लगाये गए और जमीन नहीं देने वाली किसानों की पुलिसिया पिटाई तक हुई । औद्योगिक दादागिरी का यह आलम रहा कि खुद पार्टी के सांसदों को औद्योगिक आतंकवाद जैसे नारे बुलंद करने पड़े ।
नई राजधानी के नाम पर भ्रष्टाचार की नदिया बहाई गई और जबरिया जमीन अधिग्रहण के अलावा राÓयोत्सव के नाम पर खड़ी फसल तक में बुलडोजर चलाये गए ।
बालको चिमनी मामला हो या अन्य औद्योगिक दादागिरी सरकार साफ तौर पर इनके आगे नतमस्तक होते नजर आई ।

दमदार मंत्री की दमदारी...
ेप्रदेश के दमदार मंत्री माने जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल की दमदारी के किस्से अब दिल्ली तक गुुजने लगे है । उखड़ती सड़कें दरकतीं पूल अपने आप में भ्रष्टाचार की कहानी बयां कर रही है ।
परिवार वालों के सत्ता में गुसपैठ की चर्चा तो दिल्ली तक गुंजने लगी है । संस्कृति विभाग हो या पयर्टन विभाग हर जगह भ्रष्टाचार की नदिया बहाई गई । बगैर नाम पते के रोप वे बनाने लाखों रूपये देने का मामला हो या विदेश से काम के एवज में पैसा मांगने के आरोप ने सरकार के लिए मुसिबत बड़ा दी । सरकार के लिए शर्मिन्दगी की बात तो 26/11 के जश्र का आयोजन भी रहा ।
जिसकी चर्चा अब भ्ीा चौक चौराहों पर सुनी जा सकती है ।
अफसरशाही, दलाल-निकम्मपा प्रशासनिक आतंकवाद
रमन सरकार के कार्यकाल में अफसरों की मेहरबानी और उनकी दादागिरी के किस्से यहां तक जा पहुंचे हैं कि दीलिप सिंह जुदेव को प्रशासनिक आतंक वाद की बात कहनी पडी तो गृहमंत्री ननकी राम कंवर को एसपी को निकम्मा और कलेक्टर को दलाल कहना पड़ा ।
अफसरों ने सरकार की उसी योजना में रूचि ली जिसमें उनका हित सधता दिखा ।
गुटबाजी के चलते कई बार सचिवों के झगड़े सामने आये तो डीजीपी स्तर के कई अधिकारी रिटायर्ड मेंट के पहले हटाये गये । मंत्रियों से टकराव चरम पर रहा और पार्टी से टकराव चरम पर रहा और पार्टी के विधायक से लकर कार्यकर्ता भी अफसरशाही से त्रस्त नजर आये ।
संकल्प तोड़ा गया ...
रमन सरकार के लिए भाजपा ने चुनावी घोषणा पत्र जारी करते हुए हिन्दुत्व की खूब दुहाई देते हुए कहा था कि वे जनता से वादा नहीं संकल्प कर रहे हैं लेकिन आज भी ऐसे दर्जनों संकल्प है जिससे सरकार दूर भाग रही है इनमें से कई संकल्प तो तब लिये गये थे जब मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिह स्वयं भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे ।
शिक्षाकर्मियों का संविलियन इसके से प्रमुख संकल्प रहा है । आम शिक्षा कर्मी आन्दोलित है और उनके आन्दोलन की सÓाा ब"ाों से लेकर आम आदमी तक को भुगतना पड़ रहा है । जब शिक्षा कर्मियों का संविलियन ही नहीं करना था तब ऐसे वादे किये ही क्यों गये ।
इसी तरह का मामला प्रदेश भर के लिपिकों का है । सरकार ने तिवारी कमेटी की अनुशंसा को लागु नहीं कर रही है और जब अनुशंसा लागु नहीं करना थ तो कमेटी क्यों बनाई गई ।
प्रदेश भर के किसानों को 270 रूपये बोनस का संकल्प भी सरकार ने पूरा नहीं किया उल्टा इस मामले में केन्द्र की सरकार से राजनीति की जाने लगी ।
युवाओं को बेरोजगारी भत्ता के नाम पर छला गया । तो नौकरी के दरवाजे भी ठीक ढंग से नहीं खोले गये ।