गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

शिक्षा पर सवाल मोबाइल का कमाल

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अपराध के ग्राफ में तेजी आई है। अनाप-शनाप पैसे कमाने की धुन ने जीवन स्तर को विवादित बना दिया है। सरकार के पास कोई योजना नहीं है और शिक्षा के सफल उद्योग के रुप में विकसित होने लगा है जहां पढ़ाई के अलावा झूठे-फरेब-छल और मौज-मस्ती अधिक होने लगी है। सरकार भी इन शिक्षण संस्थाओं पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। सर्वाधिक दुखद स्थिति पेट काटकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने वाले पालकों की है। स्कूल फीस से लेकर बस और अन्य कार्यक्रमों में होने वाले खर्च ने पालकों की चिंता बढ़ा दी है और अभाव में अच्छी संस्थाओं में पढ़ने वाले मध्यम वर्ग के बच्चों में अपराध पनपते जा रहा है।
महंगी चाकलेट, मॉल और मोबाईल ने इस मध्यम वर्गीय बच्चों को एक नए अपराध में ढकेल दिया है जिसकी भयावकता की कल्पना से ही शरीर सिंहर जाता है। मेरे परिचित की एक बिटिया 11वीं कक्षा में एक नामी शिक्षा के लिए नामी संस्थान में भर्ती किया है। उसे मोबाइल भी दी गई ताकि आने जाने में कहीं दिक्कतें न हो। शुरु में तो सब कुछ ठीक-ठाक चलने लगा लेकिन जब वह मोबाइल से कुछ अधिक ही बातें करने लगी तो मेरे परिचित ने इसे गंभीरता से लिया सिर्फ 300 से 500 रुपए में इतनी लम्बी बात पर वे विचलित हुए और जब पता लगाया तो उनके पैरों से जमीन खिसक गई पिछले 3-4 माह से उसके मोबाइल में ढाई-तीन हजार का रिचार्ज किया जा रहा था। उसने अपनी बिटिया से पूछा तो वह साफ मुकर गई। क्योंकि यह रिचार्ज उसके कथित फ्रेंड्स करवाते थे। यह स्थिति अमूमन शहर के अधिकांश छात्र-छात्राओं की है। अमीरजादों से दोस्ती और फिर आपस में लेन-देन ने शर्म-हया तक को बेच दिया है। मां-बाप अच्छी शिक्षा के फेर में महंगे संस्थानों में भर्ती कर मोबाइल देकर भूल जाते है और बच्चे बिगड़ते जा रहे हैं।
इसके लिए शिक्षा पध्दति ही दोषी है मैं यह नहीं कहता कि मां-बाप दोषी नहीं है लेकिन बेहतर शिक्षा को लेकर सरकार के रवैये की अनदेखी बेमानी होगी। हम सिर्फ मां-बाप को दोष देकर इससे मुक्ति नहीं पा सकते। छत्तीसगढ़ की राजधानी में ही मैं ऐसे दर्जनों छात्र-छात्राओं को जानता हूं जिनके एक से अधिक लोगों से अंतरंग संबंध है। सरकार की भी जिम्मेदारी है कि वे अच्छी शिक्षा की व्यवस्था तो करें लेकिन महंगे शिक्षा पर प्रतिबंध लगाए। अन्यथा एक झूठ सौ झूठ बुलवाता है की कहावत की तरह एक अपराध किसी को भी अपराध के दलदल में ले जाने की कहावत तैयार हो जाएगी। मां-बाप भी अपने बच्चों पर नजर रखे। खासकर मोबाइल देने वाले मां-बाप समय-समय पर यह जरूर चेक करे कि रिचार्ज कितने का हो रहा है। क्योंकि झूठ सीखाने वाले इस मंत्र ने आदमी को संस्कार और नैतिकता से परे ढकेल रहा है और इसकी अनदेखी से गंभीर परिणाम आएंगे जो कलंक साबित हो सकते हैं।

स्वराज दास की मनमानी की कहानी...

कुरेटी के कारनामों की कहानी अभी लोगों की जुबान से उतर भी नहीं पाई है कि जनसंपर्क के एक और अधिकारी स्वराज दास की मनमानी चर्चे में हैं। मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के घर पदस्थ इस अधिकारी स्वराज दास पर अब अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मनमानी किए जाने को लेकर पत्र मिला है। पत्र को हम हू-बहू प्रकाशित नहीं कर सकते इसलिए उसके अर्थ ही प्रकाशित किए जा रहे हैं।
पत्र के अनुसार किसी समय अजीत जोगी के करीबी रहकर राजनीति का गुण सीखने वाले स्वराज दास ने अब जनसंपर्क में अपने प्रभाव के चलते राजनीति कर रहे हैं। चूंकि सचिव बैजेन्द्र कुमार जनसंपर्क से यादा पर्यावरण विभाग में यादा रूचि रखते हैं इसलिए भी यहां सब कुछ ठीक नहीं है। स्वराज दास जी जनसंपर्क के स्थापना व समाचार शाखा के भी प्रभारी है और उन पर पदोन्नति संबंधी फाईल दो सालों से रोक लेने का आरोप है। शासकीय कार्यक्रमों के कव्हरेज के लिए गाड़ी नहीं देकर कर्मचारियों को परेशान करने के अलावा संविदा कम्प्यूटर कर्मचारी को अनावश्यक परेशान करने का भी आरोप लगााया गया है। यही नहीं अखबारों को विलंब से समाचार भेजने व फोटोग्राफरों से दर्ुव्यवहार की भी शिकायत है।
पत्र के अनुसार मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने 27 सितम्बर 2008 की बैठक में संचालनालय व बड़े जिलों में फोटो ग्राफरों की सीधी भर्ती का निर्णय लिया था लेकिन जानबूझकर भर्ती नहीं की जा रही है जिसकी वजह से कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के कव्हरेज में दिक्कत आ रही है और अनुबंधित फोटोग्राफरों की सेवा ली जा रही है।
प्रताड़ित पत्रकार की पीड़ा
रामनगर से साप्ताहिक समाचार ओम दर्पण निकालने वाले पत्रकार ओम प्रकाश सिंह की पीड़ा यह है कि उसके साथ पुलिस वालों ने तो बदतमीजी की ही महिला सीएसपी श्वेता सिन्हा ने उन्हें एनकाउंडर करने की धमकी भी दी अब उन्हें झूठे केस में फंसा लेने का डर सता रहा है और उसने अपने साथ हुई घटना की शिकायत उच्चाधिकारियों से भी की है लेकिन कार्रवाई कोई नहीं कर रहा है।
चौथे स्तम्भ की शान
वफादार साथी द्वारा कथित रुप से प्रताड़ित होने वाले रेंजर एमआर साहू ने पत्रकार वार्ता लेकर अपनी आप बीती सुनाई है। श्री साहू का कहना है कि वे दुखी हैं एक तो नक्सली क्षेत्र में काम कर रहे हैं और उनके साथ गलत हो रहा है उनके साथ हो रहे गलत को छापने से चौथे स्तम्भ की शान बचाई जा सकती है।
और अंत में...
सीधे भास्कर के खिलाफ छापने वाली पत्रिका को अब सचेत होना होगा क्योंकि भास्कर भी बड़ी तैयारी में है और बलात छापने से भास्कर परहेज भी नहीं करने वाला है।

डाल्फीन स्कूल के शिक्षकों ने छात्र से की अप्राकृतिक कृत्य

एक शिक्षक गिरफ्तार, दो फरार
डाल्फिन इंटरनेशनल स्कूल भाटापारा के तीन शिक्षकों द्वारा एक नाबालिग छात्र से अप्राकृतिक कृत्य करने का सनसनीखेज मामला उजागर हुआ है। इस मामले में एक शिक्षक आशीष प्रधान गिरफ्तार कर लिए गए हैं। जबकि दो शिक्षक फरार बताए जा रहे हैं। इस मामले का दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि पूरे मामले को दबाने की कोशिश मंत्री स्तर पर की गई जबकि स्कूल संचालक एक अखबार मालिक होने की वजह से भी मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही है और फरार शिक्षकों को बचाया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि डाल्फिन इंटरनेशनल स्कूल द्वारा छत्तीसगढ़ के विभिन्न कस्बों व शहरों में स्कूल संचालित किया जा रहा है और 50 हजार दो 12वीं तक पढ़ों स्कीम भी चला रहा है। यही नहीं अधिकांश जगहों पर दूसरे शहर के लोगों की नियुक्ति की गई है। भाटापारा में संचालित डाल्फिन स्कूल में भी इसी तरह से दूसरे शहर के ही शिक्षकों की भर्ती की गई है जिन्हें सिर्फ पैसों से मतलब है। बताया जाता है कि भाटापारा में जिस बच्चे के साथ दूराचार किया गया वह प्रतिष्ठित परिवार का है इसलिए तत्काल एक शिक्षक आशीष प्रधान की धारा 37, 511 व 292 के तहत गिरफ्तार किया गया। जबकि दबाव में सहयोगी दो शिक्षकों को फरार होने का मौका दिया गया।
सूत्रों की माने तो शर्म की वजह से कुछ बच्चे सामने नहीं आ रहे हैं। बताया जाता है कि घर में समझा देने के नाम पर शिक्षकों द्वारा बच्चों को बुलाकर यह कृत्य किया गया और बच्चे ने जैसे ही इसकी जानकारी अपने परिजनों को दी तो वे सीधे पुलिस के पास जा पहुंचे और आनन-फानन में पुलिस को दबाव में कार्रवाई करनी पड़ी।
इधर इस मामले को लेकर भाटापारा में जबरदस्त आक्रोश व्याप्त है। सूत्रों के मुताबिक भाटापारा के लोगों ने बताया कि शिक्षकों से लेकर पूरा स्टाफ बाहरी है और अधिकांश कर्मचारी किराये का मकान लेकर अकेले रहते हैं। दरअसल घटना की प्रमुख वजह भी यही मानी जा रही है कि बाहरी शिक्षकों की वजह से ही इस तरह की घटनाएं हो रही है। दूसरी तरफ इस मामले में फरार शिक्षकों का बचाने का प्रयास किया जा रहा है। सूत्रों की माने तो इन दोनों शिक्षकों को छुट्टी पर जाना बताया जा रहा है। इधर हमारे पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस मामले को गुपचुप तरीके से निपटाने एक मंत्री द्वारा थानेदार को फोन भी किया गया जबकि ऐसे घिनौने कृत्य पर डाल्फिन स्कूल के संचालक की भूमिका को भी शर्मनाक बताया जा रहा है। इधर डाल्फिन स्कूल के संचालक राजेश शर्मा से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे जबकि भाटापारा स्कूल के प्रचार्य की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।