सोमवार, 25 जनवरी 2021

राजपथ बनाम जनपथ



भारत के इतिहास में इस वर्ष का 26 जनवरी इस मायने में ऐतिहासिक होगा, क्योंकि 72 साल के इतिहास में पहली बार देश की राजधानी में दो-दो परेड होंगे। एक सरकार का राजपथ में, दूसरा किसानों का जनपथ में।

हालांकि जो लोग वर्तमान सत्ता की राजनीति को जानते समझते है, उनके लिए यह अचरज की बात नहीं है क्योंकि जिनकी राजनैतिक पृष्ट भूमि  ही नफरत और विभाजन की रही हो उसके राज में 26 जनवरी को दो परेड हैरान नहीं करती।

दरअसल जिद् और शायद अहंकार में डूबी सत्ता के सामने कृषि कानून को वापस लेना इज्जत का सवाल बन गया है और जब मामला खुद की इज्जत से जोड़ दिया जाये तो फिर यह बात कहां मायने रखता है कि इसका नुकसान कितना और किसे हो रहा है। देश, समाज धर्म सब कुछ उस कथित इज्जत की बलि चढ़ जाती है?

जिन लोगों को यह लगता है कि 26 जनवरी 1950 सिर्फ  एक तारीख है तो उन्हें यह जानना चाहिए कि यह सिर्फ तारीख नहीं है और इस दिन सिर्फ संविधान ही नहीं रचा गया था, बल्कि 26 जनवरी की तारीख चुनने की ऐतिहासिक वजह रही है। 26 जनवरी की तारीख इसलिए चुनी गई थी क्योंकि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों ने 26 जनवरी 1930 को सम्पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा की थी।

और इसके बाद हर प्रत्येक 26 जनवरी को या उसके पूर्व संध्या को देश के नाम जिन जिन राष्ट्रपतियों ने संबोधन किया वे सभी अपने संबोधन में किसानों का जिक्र जरूर किया। ऐसे में इस 26 जनवरी को किसानों का परेड अपने आप में एक ऐतिहासिक क्षण होगा। क्योंकि यह परेड राजपथ पर नहीं जनपथ पर होगा जो शायद गण को तंत्र के कैद से मुक्त कर सके।

राजपथ पर निकलने वाली झांकियों में भारत के हर राज्यों का दर्शन होगा लेकिन जनपथ पर निकलने वाली झांकियों में तंत्र में जकड़े किसान जवान मजदूरों और मध्यम श्रेणियों की तकलीफ का दर्शन होगा। हालांकि सत्ता को इनसे कोई सरोकार नहीं है लेकिन असली परेड कौन सा है यह जनता तय करेंगी।

विभाजन-नफरत के इस दौर में सत्ता की यह करतूत हमेशा याद रहेगी, गणतंत्र अमर रहे का नारा गुंजेगा लेकिन यह आवाज जनपथ पर ही बुलंदी छुएगा।