सोमवार, 12 मार्च 2012

छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढिय़ा का यह कैसा विरोध...

आरएसएस हो जब विरोध में, तो सरकार कैसे हो सपोर्ट में
छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी भाषा के विरोध में जिस तरह से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सहयोगी संस्था सरस्वती शिक्षा संस्थान ने कार्य करना शुरू किया है उसके बाद तो भाजपा सरकार से इसके लिए कुछ करने का सवाल ही नहीं होगा? यहीं वजह है कि अभी तक स्कूलों में न तो छत्तीसगढ़ी पढ़ाई जा रही है और न ही इसके लिए सराकर ही कुछ कर रही है। आश्चर्य का विषय तो यह है इन लोगों ने छत्तीसगढ़ की मातृभाषा छत्तीसगढ़ी की बजाय हिन्दी बताया जबकि हिन्दी राष्ट्र भाषा है और छत्तीसगढ़ी मातृभाषा है। छत्तीसगढ़ में जिस तरह से छत्तीसगढ़ी और छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा की जा रही है वह न केवल शर्मनाक है बल्कि सत्ता व विपक्ष की राजनीति करने वालों को शर्मसार करने वाली बात है।
छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा देने का ढकोसला करने वाली सरकार छत्तीसगढ़ी को सिर्फ इसलिए स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल नहीं कर रही है क्योंकि ऐसा छत्तीसगढ़ में रहने वाले बाहरी लोग नहीं चाहते। यहीं वजह है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंद्ध विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा आपत्ति करते हुए गौरव जागरण अभियान चलाकर छत्तीसगढ़ी को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। ये लोग छत्तीसगढ़ी के कितने विरोधी है इसका ताजा उदाहरण मातृभाषा गौरव जागरण अभियान का वह पर्चा है जिसमें छत्तीसगढ़ की मातृभाषा हिन्दी को बताया गया है जबकि इसी मातृभाषा गौरव अभियान के द्वारा महाराष्ट्र में मराठी, बंगाल में बंगाली को मातृभाषा बताया जाता है। दूसरा उदाहरण सरस्वती शिक्षा संस्थान के संस्थापक शारदा प्रसाद शर्मा का 5 दिसंबर 11 को जारी वह परिपत्र है जिसमें सरस्वती शिशु मंदिर में छत्तीसगढ़ी में पढ़ाने की बात कही गई लेकिन अब तक पढ़ाई ही शुरू नहीं की गई जिसे आरएस के दबाव में रद्द करने की बात कही जा रही है।
बताया जाता है कि आरएसएस के दबाव के चलते ही छत्तीसगढ़ सरकार ने भी प्रायमरी स्कूल में छत्तीसगढ़ी पढ़ाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। इधर छत्तीसगढी को लेकर जनजागरण चला रहे नंद किशोरर शुक्ला ने कहा कि छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी व छत्तीसगढिय़ों की घोर  उपेक्षा हो रही है। छत्तीसगढ़ में बाहरी लोगों की ताकत बढ़ाई जा रही है और छत्तीसगढिय़ों का शोषण किया जा रहा है। उन्होंने अब तक प्रायमरी स्कूलों में छत्तीसगढ़ी पाठ्यक्रम नहीं शुरू किये जाने के पीछे बाहरी लोगों का दबाव बताया और छत्तीसगढ़ी नेताओं की भत्र्सना भी की।
उन्होंने कहा कि वे गवरव यात्रा निकाल रहे हैं ताकि लोग सीधे सरकार पर दबाव बनाये। उनका कहना था कि जब तक छत्तीसगढ़ी को आगे नहीं बढ़ाया जायेगा छत्तीसगढिय़ों की उपेक्षा जारी रहेगा।
इधर नौकरी में भी छत्तीसगढिय़ों की बजाय बाहरी लोगों की भर्ती को लेकर भी सरकार कटघरे में है  इन सब मामले में सबसे दुखद व आश्चर्यजनक बात यह है कि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी खामोश है।
बहरहाल यह तो तय हो गया है कि आरएसएस ने छत्तीसगढ़ी को लेकर जैसा रुख अपनाया है उसके बाद यह सरकार छत्तीसगढ़ी को प्रायमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए कोई कार्य करेगी ऐसा नहीं लगता?