गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

स्वामी भक्ति के मायने

कहते है स्वामी भक्ति में कुत्ते से कोई मुकाबला नहीं है, वैसे कई लोग घोड़े को भी उदाहरण के रुप में प्रस्तुत करते हैं लेकिन वर्तमान में राजनैतिक दलों के नेताओं में स्वामीभक्ति की होड़ मची है। स्वामी भक्ति में लोग इतने अंधे हो गए हैं कि उनके सामने देश-धर्म और समाज तक बौना हो गया है।
हाल ही में कांग्रेस के हाईकमान के जन्मदिवस पर छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों ने स्वामीभक्ति की होड़ में तिरंगे के अपमान से भी परहेज नहीं किया। कांग्रेस भवन में बाकायदा ऐसा केक बनवाकर चाकू चलाया गया जो तिरंगे का प्रतिरुप था। कभी देश प्रेम में कांग्रेस का कहीं कोई मुकाबला नहीं था। कांग्रेस का निर्माण ही भारत को अंग्रेजी दास्तां से मुक्ति दिलाने की गई थी लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस में व्यक्तिवाद इतना हावी हो गया कि देश समाज धर्म सभी गौण हो गए। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में देश प्रेमी मौजूद नहीं है। आज भी देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले लोग हैं लेकिन पैसा इस कदर हावी है कि सारी बातें गौण हो जाती है।
ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेसियों ने तिरंगे का अपमान पहली बार किया हो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मेहतर लाल साहू ने निधन पर भी इसी तरह का कृत्य किया गया था। तब पुलिस ने तत्परता दिखलाकर जुर्म दर्ज भी किया था। लेकिन इस बार प्रशासन ने कोई रूचि नहीं दिखाई उल्टे जब शहर के पुलिस कप्तान ही यह कहने लगे हो कि शिकायत मिलेगी तभी जुर्म दर्ज होगा। शर्मनाक और हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? पुलिस की दोगलाई पहली बार उजागर नहीं हुई है। इससे पहले शहर के नामी हीरा ग्रुप के दीपावली में बांटे कार्पोरेट गिफ्ट में तो देश का नक्शा ही त्रुटिपूर्ण था तब भी शासन की ओर से कोई पहल नहीं हुई। धन बल और कुर्सी बल के आगे किस तरह से छत्तीसगढ़ का शासन बेबस है यह इस दो उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। ताजा मामला तो स्वामी भक्ति की पराकाष्ठा है। ऐसा नहीं है कि स्वामी भक्ति का उदाहरण सिर्फ कांग्रेस में ही है। भाजपा में भी स्वामी भक्ति दिखाने वालों की कमी नहीं है। राजनीतिक सुचिता, सादगी की वकालत करने वाले भाजपाध्यक्ष नीतिन गडकरी के पुत्र की शादी का आयोजन लोकतंत्र में किस तरह से स्वीकार योग्य है यह तो भाजपा ही जाने लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार में बड़े-बड़े ओहदे में बैठे लोगों ने इस विवाह समारोह में जो स्वामी भक्ति दिखाई वह आम लोगों में शर्मनाक ढंग से चर्चा में है।
दरअसल सत्ता और धन ने राजनैति· दलों से जुड़े लोगों को इस हद तक पागल कर दिया है कि उनके लिए नैतिकता छूत हो गई है। विवादों में रहना उनके लिए शगल है और हर हाल में मीडिया में बने रहने की भूख ने अच्छे-बुरे का लिहाज ही छोड़ दिया है। प्रशासन भी इस हद तक अपनी जमीर बेचने में लगा है जैसे उसके लिए नौकरी ही सब कुछ है लेकिन जो लोग इसकी परवाह नहीं करते वे समझ लें कि इस देश के लोगों ने देर से ही सही लालू-पासवान या मुलायम-वीसी शुक्ल या अजीत जोगी तक को असहाय कर दिया है। नैतिकता अब भी है और इसकी परवाह नहीं करने वालों को धूल में मिलना ही होता है।