रविवार, 14 फ़रवरी 2021

जब ध्येय एजेंडा हो...

 

सिर्फ पढऩे आने से मतलब ज्ञानी हो जाना नहीं होता। इसी तरह सत्ता हासिल करने का मतलब भी जन सरोकार से वास्ता कैसेे हो सकता है और फिर सत्ता हासिल करने का ध्येय ही सिर्फ एजेंडा लागू करना हो तो जन भावना और जन सरोकार का क्या मतलब है।

पिछले 6 सालों में मोदी सत्ता के आंकलन को लेकर अर्थशाी, शिक्षा शाी से लेकर तमाम तरह के शाी निराश है, किसान, मजदूर, मध्यम श्रेणी हलाकान, परेशान है। लेकिन सत्ता का अपना कार्य है, उन्हें न किसानों से मतलब है न बढ़ती महंगाई से त्रस्त लोगों से ही कोई सरोकार है।

ऐसे मे आप कोई भी सवाल करें, उसका कोई मतलब ही नहीं है क्योंकि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सेवक संघ अपने एजेंडा को पूरा को पूरा करने में लगा है, भले ही देश की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां एक-एक कर बिक जाए, रेल बस हवाई जहाज का निजीकरण होता रहे, बेरोजगारी महंगाई बढ़ती रहे। एजेंडा ही ध्येय का है और रहेगा।

आप हैरान हो सकते है कि मोदी सत्ता के आने के बाद अब तक इस देश के 6 लाख 50 हजार से अधिक लोगों ने भारत की नागरिकता छोड़ दी है जिनमें हम मेहुल चौकसी या विजय माल्या जैसे भगोड़ों की बात नहीं कर रहे हैं।

आखिर भारत की नागरिकता छोडऩे वाले कौन है? क्या वे हिन्दू नहीं है, वे हिन्दू ही है लेकिन कुंठित हिन्दूओं की नजर में वे न तो हिन्दू है और न ही देश भक्त हैं। वे चूंकि मानवतावादी हैं और अच्छा जीवन मिलजुलकर जीना चाहते है लेकिन ये उन्हें पसंद नहीं। 

भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य सभा में गुलाम नबी आजाद को लेकर रो पड़े हो लेकिन सच तो यह है कि संघ का अपना ध्येय है और सत्ता हासिल करने के लिए नफरत ही औजार बन चुका है, ऐसे में आप कलाम या आजाद को लेकर भले ही क्षणिक भावुक हो जाये लेकिन चुनावी मंच में नफरत ही औजार होगा? और जब औजार नफरत हो तो फिर जनसरोकार कहीं दूर अंधेरे में ढकेल दिया जाता है। और जनसरोकार के मुद्दे उठाने वाले परजीवी हो जाते हैं। परजीवी भले ही शब्दों में आम लोगों को न समझ आये लेकिन है तो यह गाली ही है। संसदीय गाली। जो प्रधानमंत्री दो संसद जैसी जगह में देने से गुरेज नहीं है।