रविवार, 11 जुलाई 2010

साढ़े 16 का पेट्रोल 53 में क्यों ?

कभी लोकसभा में अपने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि सरकार के खिलाफ अविश्वास पेश करते समय विकल्प भी दिए जाने चाहिए। पूरा देश इन दिनों महंगाई की भीषण त्रासदी से गुजर रहा है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों के लिए बना दी गई। अपने हित के लिए राजनैतिक दलों ने गरीबों तक को गरीबी रेखा के नीचे और ऊपर बांट दिया। 16 रुपए 50 पैसे का पेट्रोल 53 रुपए में बेची जा रही है। इसमें भी तीन रुपया एक्स्ट्रा वसूला जा रहा है। पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतें बढ़ते ही प्रमुख विपक्षी दल भाजपा, कम्युनिस्ट सहित अन्य ने बांह चढ़ा ली। 1 जुलाई को जगह-जगह धरना दिया गया और 5 जुलाई को भारत बंद किया गया।
महंगाई के खिलाफ लड़ाई की बजाय राजनैतिक फायदे की सोच से आम आदमी हतप्रभ है कि आखिर भाजपा के राज में क्या कीमतें नहीं बढ़ाई गई थी तब कांग्रेसी महंगाई को लेकर मातम करते रहे। आखिर यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा। हमारे से कमजोर पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल तक में पेट्रोल के कीमत 40 रुपए से कम है तब 16 रुपए 50 पैसे में सरकार को मिलने वाला पेट्रोल 53 रुपए में जनता को क्यों दिया जा रहा है।
जवाब आपके सामने है सेन्ट्रल टेक्स के रुप में 11.80 रुपए, एक्साईज डयूटी 9.75 रुपए, राय कर 8 रुपए और वेट टैक्स 4 रुपए यानी साढ़े 21 रुपए केन्द्र सरकार और 12 रुपए राय सरकार वसूलती है और इसमें से एक बड़ा हिस्सा किस तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और नेताओं की जेब में चला जाता है यह किसी से छिपा नहीं है।
पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि पर सर्वाधिक भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी हल्ला कर रहे हैं लेकिन इन पार्टियों की राय सरकारों खासकर भाजपा के राय सरकार को अपने राय में टैक्स कम कर लडाई में उतरना चाहिए। यदि सरकार गिराने के प्रस्ताव में विकल्प जरूरी है तब अन्य मामले के विरोध में भी विकल्प जरूरी होना चाहिए। पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृध्दि क्या हुई ट्रांसपोर्टरों से लेकर इससे सीधा जुड़े लोगों ने 15 से 40 फीसदी कीमत बढ़ा दी। जब पेट्रोलियम की मूल्य वृध्दि 4 से 8 फीसदी हुआ है तब किसी चीज की कीमत 40 फीसदी तक कैसे बढ़ाई जा सकती है। क्या राय सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से बच सकती है? इसलिए महंगाई पर राजनीति करके राजनैतिक पार्टियां लोगों को भ्रम में डाल रही है और सरकार किसी की भी बने उदारीकरण के दरवाजे खोले जाएंगे कोई अपनी जेबें न भरे इसके लिए जनता को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी।

खबर यह भी

पटवारी पर जमीन
हड़पने का आरोप
धमतरी। पटवारी पर मिलीभगत कर जमीन हड़पने दूसरे के नाम करने का आरोप रेलवे कर्मचारी फटिर न्याय के लिए दर-दर घूम रहा भखारा थाना, तह कुरुद जिला धमतरी निवासी बानीराम साहू ने संबंधित क्षेत्र के पटवारी पारस चंद्राकर पर अपनी 80 डिसमिल रजिस्टर्ड जमीन हड़पने एवं केन्द्री के निवासी ज्ञानिक राम साहू के नाम करने का आरोप लगाया है।
आज यहां बाबीराम साहू पत्रकारों से अनौपचारिक चर्चा कर रहे थे। उन्होंने बताया कि उनकी जोरातराई पंचायत, भाखारा थाना, तह कुरुद में 2 एकड़ 72 डिसमिल जमीन है। जिसे उन्होंने सन् 1990 में छबलू सतनामी से लेकर रजिस्ट्री बकायदा करवाई थी। जिसकी कीमत तब 15 हजार रुपए आंकी गई थी। जमीन पर उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राजबाई खेती करती है। साहू ने आरोप लगाते हुए बताया कि क्षेत्र के सरपंच पारस चंद्राकर ने गलत सीमांकन कर केन्द्री में किसान ज्ञानिक राम साहू पिता बनिहार साहू के साथ मिलीभगत कर उनकी बाबी साहू 80 डिसमिल जमीन को पहले शासकीय फिर ज्ञानिक साहू को बता दिया जिसका उन्होंने प्रथा गांव के पंच-सरपंच ने कडा प्रतिभार किया। पंच-सरपंच ने उस्तख्त करने में इंकार कर दिया। बावजूद पटवारी ने जमीन हड़प ली तथा उक्त किसान ज्ञानिक साहू को दे दी। जिस पर ज्ञानिक ने सब कुछ जानते हुए एवं उनकी आपत्ति को अनुसुना कर 80 डिसमिल में लगे दर्जनों पेड़ काट डाले तथा 4 ट्रेक्टरों में भरकर ले गया। बाबी राम साहू ने आगे बताया कि मामले की रिपोर्ट उन्होंने भाखाराक थाने में दर्ज कराई है। ज्ञानिक साहू आरोपी है। मामला तहसीलदार के पास विचाराधीन है। परंतु सरपंच भय के चलते दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पा रहा है। उधर पुलिस भी इसके चलते ज्ञानिक को गिरफ्तार नहीं कर रही है। बाबी ने बताया कि उनके पास रजिस्ट्री के तमाम दस्तावेज है। उनकी 80 डिसमिल उक्त जमीन का वर्तमान दर लाखों में है। उन्हें न्याय चाहिए, पटवारी ने सरहदी नाला पार करके बाबी राम में जमीन हड़पने का कोशिश कर रहा है।
पत्रकार कादरी का इंतेकाल
बिलाईगढ़। बुलंद छत्तीसगढ़ के पत्रकार पंडरीपानी निवासी मोहम्मद सुल्तान कादरी वल्द सुमान खान का पिछले दिनों हृदय गति रुक जाने से निधन हो गया। 32 वर्षीय कादरी मिलनसार व तेज तर्रार पत्रकार के रुप में पूरे क्षेत्र में जाने जाते थे। उनके निधन पर बुलंद छत्तीसगढ़ परिवार स्तब्ध है और ईश्वर से कामना करते हैं कि उनके परिजनों को इस दुखद घड़ी को सहने की शक्ति प्रदान करे।
अपराधियों के संरक्षण के खिलाफ सुझाव
रायपुर। छत्तीसगढ़िया सुन्नी मुस्लिम पंचायत के सदर से मुजफ्फर अली ने कहा है कि सीरतुन्नबी कमेटी के सदर पद पर अनिवार्य रुप से छत्तीसगढ़िया मुस्लिम को ही प्राथमिकता दी जाए। इससे छत्तीसगढ़ में अपराधिक व्यक्ति जो कि मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं में संरक्षण लेते है उससे मस्जिद मदरसे, दरगाह, कमेटियों को मुक्ति मिलेगी। ऐसी सुझाव छत्तीसगढ़िया सुन्नी मुस्लिम पंचायत ने सीरत कमेटी के वयोवृध्द समाजसेवी जनाब कुतुबुद्दीन साहब को दिया है।
अस्पताल के सामने कब्जा
कर मकान बना लिया
सिमगा। रावण में कृष्णकुमार वर्मा नामक व्यक्ति ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के सामने अतिक्रमण कर मकान बना लिया। इसकी शिकायत सरपंच ने स्वास्थ्य मंत्री से की है। यही नहीं तहसीलदार सुहेला द्वारा लेन देन कर मामले को दबाने की चर्चा है।

पति बैठक में थे तो पंचों ने बहिष्कार कर दिया

विकास के मुद्दे धरे रह गए
चर्चा के दौरान ग्राम पंचायत जामगांव (एम) की सरपंच श्रीमती रोशनी जोगी ने बताया कि विकास की आवश्यकताओं पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि अभी विकास कार्य एवं आय-व्यय पर चर्चा होनी थी लेकिन पंचगण के द्वारा उस मीटिंग को बहिष्कार कर दिया गया। क्योंकि उस मीटिंग में मेरे पति मेरे साथ में उपस्थिति थे। पंचों का कहना है कि सरपंच आप हो आप इस मीटिंग में उपस्थित रहो आपके पति नहीं क्योंकि यह पंचायत कि मीटिंग है। इस मीटिंग में आपके पति नहीं उपस्थित रह सकते और कहते है कि सुबह 9 से 6 बजे शाम तक आप ग्राम पंचायत में उपस्थित रहा करे और प्रत्येक मीटिंग का चाय नाश्ता का खर्च भी आप स्वयं वहन किया करे। यहां कहां तक सही है। हम एक महिला होने के नाते ना कही हम प्रत्येक वार्ड पर निरीक्षण नहीं कर पाते और जो भी कार्य का निरीक्षण हमारे पति के साथ मिलकर कार्य करते है। एक ओर सरकार महिला सशक्तीकरण की बात करते है और दूसरी ओर पुरुष वर्ग इसे दबाने की कोशिश कर रहे इस विषय पर मैंने विधायक महोदय सी.ओ. सर इस विषय पर बात रखी है। तो कि इस विषय पर आप जल्द से जल्द कोई कार्यवाही करे ताकि पंचायत का कार्य सही तरीके से चल सके।

देश के नम्बर एक मुख्यमंत्री रहे रमन को अपने ही प्रमुख सचिव की चुनौती

छत्तीसगढ़ संवाद में हुए करीब 100 करोड़ के घपले और 40 करोड़ की ऑडिट आपत्ति की खबरें राजधानी में गूंज रही है। योति एंड कंपनी द्वारा तैयार आडिट रिपोर्ट की कापी कायदे से महालेखाकार को भेजा जाना था। लेकिन इसमें की गई आपत्तियों के चलते सीईओ एन बैजेन्द्र कुमार इसे छुपाने या बदलने में अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं।
बताया गया कि योति एंड कंपनी ने सीधे तौर पर रिपोर्ट बदलने से मना कर दिया था। इसी वजह से जनवरी 2010 में पेश आडिट रिपोर्ट की कापी अब तक महालेखाकार के पास नहीं पहुंच पाई है। संवाद के अधिकारी यह बात समझने को तैयार नहीं है कि उनकी इस गतिविधि के चलते पूरे हिन्दुस्तान में डा. रमन सिंह की बदनामी निकम्मे मुख्यमंत्री के रुप में हो सकती है। संवाद की जिम्मेदारी खुद डा. सिंह ने ले रखी है ऐसी स्थिति में कोई बड़े घपले की बात सामने आती है तो यह केवल मुख्यमंत्री के बदनामी की बात नहीं होगी इसका नुकसान भारतीय जनता पार्टी को भी झेलना पड़ेगा। अब तक के रिकार्ड के मुताबिक राय शासन घपलेबाज अफसरों पर मेहरबान रही है। ऐसी स्थिति में संवाद के अधिकारी अपने आप को खतरे से बाहर मानकर चल रहे हों, यह भी हो सकता है। लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि अब तक घपले दूसरे विभागों के रहे हैं। सोचने वाली बात यह भी है कि साफ सुथरे छवि के लिए देशभर में पहचान रखने वाले मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा को मिट्टी में मिलाने जैसी कोई बात सामने आएगी तो डा. रमन सिंह किस प्रकार कोई मेहरबानी कर पाएंगे।
खबर मिली है कि श्री बैजेन्द्र कुमार इस बात के लिए जांच समिति बनाने वाले हैं कि आडिट में किए गए घपले की खबर संवाद की दीवारों के बाहर कैसे गई। मतलब अब सरकारी खजाने में सेंध मारने वाले यह पता करना चाहते हैं कि कौन उनके कुकर्मों के लिए उन्हें जेल भेजवाने की इच्छा रखता है। इस 100 करोड़ के घोटाले के मुख्य सूत्रधार हैं संविदा कर्मचार को बताया जा रहा है। अब आडिट रिपोर्ट देखकर पता चलता है कि करोड़ों के मुख्य सूत्रधारों में एक नाम उसका भी है। श्री सांची और श्री पात्र को 2002 में भर्ती हुई गड़बड़ी और आरक्षण नियमों का पालन नहीं होने के कारण नौकरी से बाहर कर दिया गया था। लेकिन दोनों कर्मचारियों को रातों रात बिना भर्ती प्रक्रिया के नौकरी पर रख लिया गया जिससे उनकी हेराफेरी में सहयोग मिलता रह सके। ऑडिट आपत्तियां फिल्म, प्रकाशन, विज्ञापन, रोजगार नियोजन और लेखा सभी विभागों के कामों को लेकर की गई हैं।

खिलाफ छापा तो नोटिस भिजवाई

इस सरकार में नौकरशाह किस कदर हावी है और मंत्रियों का संरक्षण उन्हें किस तरह मिल रहा है यह पर्यटन विभाग में पदस्थ अजय श्रीवास्तव द्वारा बुलंद छत्तीसगढ़ को भिजवाई नोटिस से देखा जा सकता है। इसके लिए उन्होंने विभाग से अनुमति ली है या नहीं यह जांच का विषय भी है।
ज्ञात हो कि बुलंद छत्तीसगढ़ ने दुग्ध संघ के इस कर्मचारी अजय श्रीवास्तव को प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल द्वारा संरक्षण दिए जाने की खबर विस्तार से प्रकाशित की थी। खबर में सिमगा पुलिस द्वारा अजय श्रीवास्तव पर कालगर्ल की हत्या का अपराध भी दर्ज किया गया था। इसकी एफआईआर की कॉपी भी प्रकाशित की गई थी।
हमने यह भी बात प्रकाशित की थी। इस अजय श्रीवास्तव को जब बृजमोहन अग्रवाल गृहमंत्री थे तो पुलिस मुख्यालय में पदस्थ किए थे और जब पर्यटन मंत्री बने तो इन्हें पर्यटन विभाग में ले गए। अजय श्रीवास्तव की इस काबिलियत की हमें जानकारी नहीं थी कि वे इतने काबिल हैं कि जहां-जहां बृजमोहन अग्रवाल मंत्री बनेंगे वे उन विभागों में पदस्थ किए जाते रहेंगे। उन्होंने नोटिस में कहा है कि उच्च न्यायालय ने कालगर्ल मडर केस से अजय श्रीवास्तव का नाम हटा दिया है जबकि हमने इस खबर को छापने से पहले उनसे संपर्क की कोशिश भी की थी। बहरहाल यह एक उदाहरण है कि किस तरह से राजनैतिक पार्टियों के संरक्षण में शासकीय कर्मी काम कर रहे हैं बाबूलाल अग्रवाल की बहाली भी तो लोग अभी भूले नहीं है।

ईमानदारी की छवि बनाओं मुफ्त में सरकारी माल उड़ाओं

बाबूलाल और मिश्रा में कैसा अंतर
छत्तीसगढ़ में नैतिकता और ईमानदारी की छवि बनाकर किस तरह से सरकारी माल उड़ाने का खेल चल रहा है यह आईएएस डीएस मिश्रा को देखकर समझा जा सकता है। मिश्राजी के मंहगी सराकरी गाड़ी के मोह से बीज निगम के अधिकारियों को न केवल परेशानी हुई बल्कि नवनियुक्त अध्यक्ष श्याम बैस के लिए नई गाड़ी की जुगाड़ के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
वैसे तो सरकारी गाड़ी का उपयोग जिस बेशर्मी से नेता या अधिकारियों के परिवार वाले करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन यदि कोई अफसर ही इसका दुरुपयोग करे तो क्या कहना। छत्तीसगढ़ सरकार में अपनी ईमानदारी के लिए चर्चित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी और राय में सचिव डीएस मिश्रा की कहानी भी कुछ अलग ही है। बीज निगम के प्रमुख रहते उनके कारनामें अब बाहर आने लगे हैं। ऐसे ही कारनामों में 13 लाख की करोला कार कार का मामला है। ऐम्बेसडर की बजाय बीज निगम के अधिकारियों ने प्रमुख की फरमाईश पर करोला कार दे दी। 13-14 लाख की यह कार निगम के पैसे से कैसे खरीदी गई इसकी कई कहानी है लेकिन कहा जाता है कि इस कार के प्रति मिश्रा साहब का मोह कुछ यादा ही बढ़ गया।
बताया जाता है कि जब तक वे बीज निगम में रहे इस कार का उपयोग करते रहे और जब वहां से हट गए तो अपने साथ कार को भी ले गए। अब बीज निगम में ऐसा कोई दमदार आदमी तो है नहीं जो इस कार को वापस मांग सके। इसलिए ईमानदारी के लिए विख्यात डीएस मिश्रा जी ही इस कार में इन दिनों सफर करते हैं। दुखद आश्चर्य की बात तो यह है कि श्याम बैस के अध्यक्ष बनने के बाद इस कार कार को वापस मंगाये जाने की बजाय उनके लिए नए कार खरीदे जाने की योजना बन रही है।
बहरहाल बीज निगम में डीएस मिश्रा की ईमानदारी की चर्चा जोर-शोर से होने लगी है जबकि बाहर की पार्टी को 20 करोड़ के सप्लाई का मामला खुलने की उम्मीद है।