रविवार, 15 मार्च 2020

सूचना का अधिकार भी तमाशा


कानून की आड़ लेकर जानकारी देने
से बच रहे हैं सूचना अधिकारी
विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। सूचना का अधिकार कानून इसलिए लागू किया गया था कि इससे भ्रष्टाचार और मनमानी पर रोक लगाई जा सके लेकिन कानून की आड़ लेकर कई विभागों ने इस कानून को ही तमाशा बना दिया है। ऐसा ही एक मामला राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरों का है जिन्होंने जानकारी देने से मना कर दिया है।
सूचना का अधिकार कानून की जिस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही है वह हैरान कर देने वाला है। बताया जाता है कि इस कानून के तहत आने वाले आवेदनों की जिस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही है उसकी कहीं सुनवाई नहीं है। राज्य आयोग में भी आवेदनों की फाईल मोटी होते जा रही है।
बताया जाता है कि अफसरों की मनमानी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बने इस कानून की खुले आम धज्जियां उड़ाई जा रही है। हालत यह है कि पहले तो आवेदन करने वालों से ही मिलीभगत करने की कोशिश की जाती है और जब यह कोशिश नाकाम हो जाती है तो कानून का सहारा लेकर जानकारी देने से मना कर दिया जाता है जिससे आदमी इतना परेशान हो जाता या जोश ठंडा हो जाता है। 
ताजा मामला राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो से मांगी गई जानकारी का है। प्रो. बीएल पंथी ने राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो से जानकारी चाही थी कि सन्....... से....... तक ब्यूरो ने कितने लोगों के खिलाफ छापे की कार्रवाई की और इसमें से कितने लोग अनूसूचित जाति और जनजाति के है तथा इनमें से कितने लोगों के खिलाफ न्यायालय में चालान पेश किया गया है। लेकिन इसकी जानकारी देने से इंकार करते हुए ब्यूरो के जनसूचना अधिकारी ने कानून का हवाला दे दिया जबकि मांगी गई जानकारी से किसी तरह की दिक्कत नहीं होनी है और न ही सुरक्षा या शांति को ही कोई खतरा उत्पन्न होने वाला है।
इस संबंध में प्रो. पंथी ने कहा कि वे इस मामले की आगे अपील करेंगे क्योंकि वे जिस शोषण मुक्ति मंच के माध्यम से अजजाजजा वर्ग का उत्थान करना चाहते है उसके तहत इस तरह की जानकारी इकट्ठा करना जरूरी है। सूचना के अधिकार के तहत काम कर रहे विभिन्न सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं का भी मानना है कि जानकारी लेना मुश्किल हो गया है अधिकारी पहले तो जानकारी लेने की वजह को लेकर सवाल जवाब करते है और जानबूझकर लेट लतीफ या अधूरी जानकारी देते हैं। 
बहरहाल सूचना के अधिकार कानून की जिस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही है वह हैरान कर देने वाला है।