सोमवार, 5 अप्रैल 2010

अस्पताल है या कत्लखाना ?

पैसे की लालच में जान ले ली
डॉक्टरों में भगवान का रूप देखकर अपने अजीजों का जीवन सौंपने वालों को अब समझ लेना चाहिए कि बड़े-बड़े भवनों में अस्पताल चलाने वाले रुपयों की लालच में किसी की जान तक ले सकते हैं। अस्पताल में आए मरीजों से रुपये कमाने की होड़ में लगे डाक्टर अब मरीजों को उचित सलाह देने की बजाय इस चिन्ता में यादा रहते हैं कि मरीज उनकी बजाय दूसरे अस्पताल में न चला जाए। शायद डाक्टर की ऐसी ही लापरवाही की वजह से ही सतीश को अपना बेटा खोना पड़ गया और अब वह अपने बेटे के ईलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाकर डॉ. केदार अग्रवाल, डॉ. जवाहर अग्रवाल, डॉ. ओ.पी. सिंघानिया और डॉ. केडिया के खिलाफ जुर्म दर्ज करने की मांग को लेकर पुलिस व न्यायालय की शरण में भटक रहा है। पोस्टमार्टम में बच्चे की मौत की वजह जटील मारक आघात बताया गया है।
मामला 18 जनवरी 2010 का है जब कोटा निवासी सतीश ताण्डी के 14 वर्षीय पुत्र मुकेश को पसली के पास दर्द की वजह से अग्रसेन अस्पताल लाया गया। इसके बाद डॉ. केदार अग्रवाल की सलाह पर एक्स-रे और सोनोग्राफी कराया गया। रिपोर्ट देखकर डॉ. केदार अग्रवाल ने पेट में तिल्ली फटने की जानकारी देकर तत्काल आपरेशन कराने की सलाह देते हुए 25 हजार रुपए खर्च बताया। दूसरे दिन सतीश द्वारा 20 हजार रुपए जमा कराया तब बताया गया कि पूरा खर्च करीब 45 हजार रुपये बताते हुए शाम को आपरेशन किया गया।
दूसरे दिन सतीश ने 20 हजार रुपए फिर जमा किया। इसके बाद बच्चे की तबियत बिगड़ने लगी तो डॉ. केदार अग्रवाल ने मरीज मुकेश को लाईफवर्थ अस्पताल के लिए रिफर कर दिया और 22 जनवरी को 11 बजे लाईफ वर्थ में शिफ्ट किया गया। रात में बच्चे के पेट में असहनीय दर्द से जब बच्चे के परिजनों ने हल्ला मचाना शुरु किया तो डाक्टरों की अनुपस्थिति में नर्स द्वारा बच्चे को दवा व इंजेक्शन दिया गया। बच्चे की तबियत बिगड़ते देख परिजनों ने पुन: डॉ. केदार अग्रवाल से संपर्क किया तो उन्होंने डॉ. ओ.पी. सिंघानिया से चर्चा की और फिर ओ.पी. सिंघानिया लाईफवर्थ में राउण्ड में आए और जानकारी दी कि बच्चे के फेफड़े में पानी भर गया और आईसीयू में भर्ती कर दिया गया और अचानक 26 जनवरी को बच्चे को जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया जबकि बच्चे की तबियत में कोई खास सुधार नहीं देखा जा रहा था।
इसके बाद 27 जनवरी को डॉ. जवाहर अग्रवाल ने सतीश को फीस के लिए न केवल डांटा बल्कि राजेश मूणत मंत्री के पास तत्काल सहायता उपलब्ध कराने कहा। तब सतीश भागा-भागा राजेश मूणत के पास गया वहां बताया गया कि 20 हजार सहायता राशि स्वीकृत हो गई है और लाईफवर्थ के नाम पर चेक जारी कर दिया जाएगा। इस सूचना के बाद सतीश ने लाईफवर्थ में अपना गरीबी रेखा वाला स्मार्ट कार्ड जमा करा दिया। इसके बाद 5 फरवरी को मुकेश को अचानक छुट्टी दे गई और 6 फरवरी को बच्चे की तबियत फिर यादा बिगड़ने पर डॉक्टरों के पास दौड़ लगाई तो लाईफवर्थ में पुन: बच्चे को भर्ती कर दिया गया। 8 फरवरी को डॉ. ओ.पी. सिंघानिया ने रात्रि 8 बजे बताया कि आपरेशन की गलती की वजह से अतड़ी चिपक गई है और पुन: आपरेशन करना होगा। इसके बाद राउण्ड में आए डॉ. केडिया ने भी आपरेशन की बात कही।
26 फरवरी को बच्चे का दुबारा ऑपरेशन किया गया लेकिन इसकी जानकारी डाक्टरों ने बच्चे के परिजनों को देने की जरूरत नहीं समझी और इसके बाद भी बच्चे के तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि मामला बिगड़ता गया और 3 मार्च को बच्चे की मौत हो गई। मामला सिर्फ इतना ही नहीं है सतीश के मुताबिक बच्चे के मौत की खबर छुपाई गई और फीस का तीस हजार रुपए जमा करने दबाव बनाया गया और जब बच्चे के परिजनों ने हंगामा किया तब पुलिस की मौजूदगी में डॉ. अम्बेडकर अस्पताल में पोस्टमार्टम कराया गया तब पता चला कि बच्चे की मौत की वजह पेट में जटील मारक आघात के कारण मौत हुई है।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि इस मामले में न तो बच्चों के विशेषज्ञ डाक्टर को ही बुलाया गया और न ही मरीज के परिजनों को ही उचित सलाह दी गई। इधर सतीश तांडी का कहना है कि मरीज भाग न जाए इसलिए ईलाज न होने के बावजूद फीस के चक्कर में रोका गया। सतीश का यह भी आरोप है कि हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. केदार ने ही पहला आपरेशन किया। इधर इस संबंध में जब अग्रसेन अस्पताल व लाईफवर्थ से संपर्क की कोशिश की गई तो वे उपलब्ध नहीं थे। बार-बार संपर्क की कोशिश बेकार रही। वहीं सतीश ताण्डी ने पूरे घटनाक्रम की शिकायत पुलिस से की है और कार्रवाई नहीं होने पर न्यायालय जाने की बात कही है। राजधानी के बड़े अस्पतालों में चल रहे इस तरह के खेल की आम लोगों में जबरर्दस्त चर्चा है।