शुक्रवार, 21 मई 2021

मरद हो तो चिल्लाओ राजा नंगा...

 

मोदी सरकार की लापरवाही के चलते कोरोना ने जिस तरह से इस देवभूमि पर तबाही और नरसंहार किया है उसके बाद तो इस सरकार को सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। ऐसे में जब तमाम बुद्धिजीवी, कलाकार, साहित्याकर, कवि सिर्फ इस डर से खामोश बैठे हो कि ट्रोल आर्मी और वाट्सअप युनिवर्सिटी उन्हें देशद्रोही घोषित कर देंगे तब एक महिला कवियत्रि की कविता 'शववाहिनी गंगाÓ इन दिनों सोशल मीडिया में तहलका मचा रही है।

गुजरात की मशहूर गुजराती कवियित्री पारुल खखर की शववाहिनी गंगा की हिम्मत की दाद इसलिए भी देनी चाहिए क्योंकि बीस हजार से ज्यादा गाली गलौज के बाद भी उसने इस कविता को अपने फेसबुक से डिलीट नहीं किया है। यही नहीं इस कविता की सफलता साफ बताती है कि मोदी सरकार की कार्यशैली को लेकर लोग कितने नाराज है।

पारुल की इस कविता की सफलता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि गुजराती में लिखी इस कविता इस कविता का अब तक पंजाबी, मराठई, तमिल, मलयालम, अंग्रेजी और हिन्दी सहित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर सोशल मीडिया में डाला जा रहा है। पारुख खखर को इस कविता के लिए शबासी भी खूब मिल रही है। रातों रात चर्चित हुई इस कविता से नाराज मोदी समर्थकों ने तो गालियों की ऐसी बौछार कर दी है कि एक बार फिर भाजपा के संस्कार पर  सवाल उठने लगे है। महिला को लेकर की जा रही इस तरह की टिप्पणी से साफ पता चलता है कि कुंठित हिन्दुओं के लिए पार्टी से बड़ा कोई नहीं। 

आप खुद ही पढिय़े इस कविता को हम पाठकों की सुविधा के लिए हिन्दी अनुवाद ही प्रकाशित कर रहे हैं-

मरद हो तो आगे आओ, चिल्लाओ, ' राजा नंगाÓ ...,


एक स्वर में मुर्दे बोले, जब कुछ चंगा चंगा

राज, आपके रामराज्यमें शबवाहिनी गंगा


राज, आपके मसान कम हैं,कम है चिता लकड़ी,

राज, हमारे मातम करनेवाले कम हैं,कम हैं रोनेवाले,


घर घर जा कर यमटोली करती नाच बेढंगा

राज, आपके रामराज्यमें शबवाहिनी गंगा


राज, आपकी धुआं उगलती  चिमनी चाहे  चैन,

राज, हमारे कंकण टूटे तड़ाक, सीना टूटे,


जलता सब कुछ देख फीडल बजाये 'बिल्ला रंगाÓ

राज, आपके रामराज्य में शबवाहिनी गंगा


राज , दिव्य आपकी  ज्योति , दिव्य आपके वस्त्र 

राज, आपको असली रूपमें देखे पूरी नगरी,


मरद हो तो आगे आओ, चिल्लाओ, ' राजा नंगाÓ

राज आप के रामराज्यमें शबवाहिनी गंगा।

(आज के दौर मे भारतीय नागरिको के दर्द को आक्रोशित करती पारूल खखर की गुजराती कविता हिंदी अनुवाद। अनुवाद : डॉ. जी. के. वणकर)